बात 2014 लोकसभा चुनाव के समय की है। भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर आगे किया। उस समय जनता दल यूनाइटेड (JDU) बीजेपी के अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी NDA का हिस्सा थी। मगर, बीजेपी ने जैसे ही 2014 के आम चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी को अपना नेता मानते हुए आगे किया जेडीयू ने बिहार में बीजेपी के साथ अपना 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया।

 

जेडीयू के तत्कालीन अध्यक्ष शरद यादव ने एनडीए से अलग होते हुए कहा था, 'हमने पार्टी पदाधिकारियों की बैठक की। सबसे बातचीत कर ये तय हुआ कि अब गठबंधन में साथ चलने से न तो उनके गठबंधन को लाभ होगा और न हमारी पार्टी के लिए ये हितकारी होगा। इसलिए हमने फैसला किया है अब उनका रास्ता और हमारा रास्ता अलग हो गया है। अब जेडीयू गठबंधन से बाहर हो गया है।'

 

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नीतीश कुमार का NDA छोड़ने का ऐलान

इसके साथ ही शरद यादव ने एनडीए के संयोजक का पद भी छोड़ने की घोषणा कर दी थी। वहीं, प्रेस कॉन्फ्रेंस करते नीतीश कुमार ने बिहार की गठबंधन सरकार में शामिल बीजेपी के 11 मंत्रियों के असहयोगात्मक रवैय्ये के कारण उन्होंने राज्यपाल से उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने की सिफारिश की थी। हालांकि, बीजेपी ने इस गठबंधन को बचाने के लिए हरसंभव कोशिश की थी। उस समय पार्टी ने कहा था कि बीजेपी नहीं चाहती थी कि गठबंधन टूटे। जेडीयू ने जब ये फैसला कर लिया है तो ठीक है, लेकिन बीजेपी नरेंद्र मोदी के मुद्दे पर पीछे नहीं हटेगी।

 

यह बिहार और भारत की राजनीति के लिए बहुत बड़ा घटनाक्रम था। 17 साल पुराने बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के टूटने के बाद 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव होने थे। ऐसे में बिहार में समीकरण बन रहे थे। राज्य की राजनीति की दो धुरी कबीर आ रही थीं। उस समय इन दोनों धुरी को एक दूसरे का कट्टर विरोधी माना जाता था। कोई नहीं सोच सकता था कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक होंगे और मिलकर बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।

2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ी जेडीयू

इससे पहले बीजेपी के साथ गठबंधन टूटने के बाद 2014 का लोकसभा चुनाव जेडीयू ने अकेले लड़ा। अकेले चुनाव लड़कर जेडीयू का बुरा हश्र हुआ। इस चुनाव में उसे महज 2 सीटें मिली। 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने बिहार की 40 में से 31 सीटें जीत ली, इसके बाद राज्य में बीजेपी का दबदबा बढ़ा। मगर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लक्ष्य बिहार विधानसभा चुनाव था। उन्होंने पटना में लालू प्रसाद से हाथ मिला लिया। तय हुआ कि दोनों साथ रहेंगे और बिहार से लेकर केंद्र की राजनीति को बदल देंगे।

 

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जेडीयू-आरजेडी ने मिलाया हाथ

जेडीयू और आरजेडी ने हाथ मिलाया तो, इसमें कांग्रेस भी शामिल हो गई। तीनों ने हाथ मिलाया तो इसे 'महागठबंधन' नाम दिया गया। जनता परिवार एक हो चुका था। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के साथ आने से बीजेपी को समझ आ चुका था कि यह अजेय गठबंधन बन चुका है। दूसरी तरफ जेडीयू के अलग होने के बाद बीजेपी ने रामविलास पासवान की लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी के साथ एनडीए गठबंधन मजबूत किया। बिहार में बीजेपी की अगुवाई करने वाले दिवंगत पूर्व उप मुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी महागठबंधन के सामने संघर्ष करते रहे।

 

बिहार विधानसभा चुनाव 2015 बिहार की राजनीतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यह चुनाव 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए लड़ा गयामहागठबंधन ने यह चुनाव हिंदुत्व (कमंडल) बनाम सामाजिक न्याय (मंडल) के बीच लड़ा गया। बीजेपी पर हिंदुत्व एजेंडे को बढ़ावा देने का आरोप लगा, जबकि महागठबंधन ने पिछड़ों-दलितों के एकीकरण पर जोर दिया। यादव-कुर्मी एकता ने महागठबंधन को मजबूत किया। महादलित वोट एनडीए से महागठबंधन की ओर खिसके। सामाजिक न्याय ने हिंदुत्व की राजनीति को हरा दिया।

महागठबंधन को मिला भारी बहुमत

इस चुनाव में महागठबंधन को भारी बहुमत मिला और बीजेपी-नीत एनडीए को करारी हार का सामना करना पड़ा। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 नवंबर 2015 को नतीजे घोषित हुए। नतीजे में भूचाल आ चुका था। महागठबंधन ने 243 सीटों में से 178 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया। जबकि एनडीए को महज 58 सीटें ही मिलीं। चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरीआरजेडी ने बीजेपी की 36 और जेडीयू की 25 सीटें अपने खाते में कर लीं। आरजेडी को 80 सीटों पर जीत मिली, जबकि जेडीयू को 71 पर जीत मिली।

 

वहीं, कांग्रेस भी 27 जीतने में कामयाब रही। जो लालू प्रसाद यादव 2005 के बाद सत्ता पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, उन्हें संजीवनी मिल चुकी थी। उन्होंने नीतीश कुमार के समर्थन से एक बार फिर से बिहार में खोई हुई पावर हासिल कर ली। दूसरी तरफ एनडीए के खाते में 58 सीटें ही आईं। बीजेपी के खाते में 53, लोजपा 2 और अन्य ने 3 सीटें जीतीं। इसके अलावा वामपंथी दलों और निर्दलीयों ने 7 सीटें जीती थीं

पांचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने नीतीश

20 नवंबर 2015 को नीतीश कुमार पांचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। यह जीत बिहार में विकास और सामाजिक न्याय की नई लहर लाई। एनडीए की हार ने राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को झटका दिया, खासकर 2019 लोकसभा चुनाव से पहले।

 

इसी चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने अपने दोनों बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से बड़ा रैली करके लॉन्च किया। तेज प्रताप यादव हाजीपुर जिले की महुआ विधानसभा सीट से विधायकी का चुनाव जीते, जबकि तेजस्वी वैशाली जिले की राघोपुर से चुनाव जीतकर विधायक बने। नीतीश कुमार की सरकार में तेजस्वी यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री बनाए गए। वहीं, तेज प्रताप को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया।

 

2015 विधानसभा चुनाव: एक नजर में

  • कुल सीटेंः 243
  • बहुमत: 122
  • कुल वोटर: 6.7 करोड़
  • वोट पड़े: 3.79 करोड़
  • वोटिंग प्रतिशत: 56.66%
  • राष्ट्रीय जनता दल ने कितनी सीटें जीतीं: 80
  • जनता दल यूनाइटेड ने कितनी सीटें जीतीं: 71
  • बीजेपी ने कितनी सीटें जीतीं: 53
  • कांग्रेस ने कितनी सीटें जीतीं: 27
  • लोजपा ने कितनी सीटें जीतीं: 2
  • वामपंथी दलों और निर्दलीयों ने कितनी सीटें जीतीं: 7
  • अन्य पार्टियों ने कितनी सीटें जीतीं: 3