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बिहार चुनाव 1995: EC ने ऐसा क्या किया कि लालू ने 'पागल सांड' कह दिया?

1995 में बिहार में जो चुनाव हुआ, उसमें हिंसा और बूथ कैप्चरिंग को रोकने के लिए चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने कमांडो तैनात कर दिए थे। चुनाव आयोग की सख्ती पर लालू यादव घबरा गए थे।

bihar 1995

बिहार विधानसभा चुनाव 1995। (Photo Credit: Khabargaon)

साल 1995 में बिहार में जो विधानसभा चुनाव हुए थे, वह कई मायनों में खास था। वह इसलिए क्योंकि यह पहला चुनाव था, जब बिहार के दो बड़े नेता- लालू यादव और नीतीश कुमार ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में नीतीश कुमार अपनी समता पार्टी बना चुके थे। जबकि, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का गठन अब तक हुआ नहीं था। इस चुनाव में लालू ने पिछली बार से भी बड़ी जीत हासिल की थी और दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे। इतना ही नहीं, यह वह चुनाव भी था जब चुनाव आयोग को हिंसा रोकने के लिए कमांडो उतारने पड़ गए थे।


1995 के चुनाव में नीतीश कुमार की समता पार्टी ने CPI(ML) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उस वक्त बिहार में 324 विधानसभा सीटें होती थीं। समता पार्टी ने 310 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। मगर उनकी पार्टी सिर्फ 7 सीटें ही जीत सकी। 270 सीटों पर उनकी पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। उनकी सहयोगी CPI(ML) भी 6 सीट ही जीत पाई थी।


इस चुनाव लालू यादव की जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। जनता दल ने 264 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 167 सीटें जीत ली थीं। उस समय बहुमत के लिए 163 सीटों की जरूरत थी। जनता दल अपने दम पर बहुमत में आ गई थी। जबकि, 1990 के चुनाव में जनता दल को दूसरी पार्टियों का सहारा लेना पड़ा था। उस चुनाव में भी जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनी थी लेकिन 122 सीटें ही जीत पाई थी।


बीजेपी ने 315 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन जीत सिर्फ 41 पर ही मिली थी। कांग्रेस की हालत तो और खराब हो गई थी। साल 1990 के चुनाव में कांग्रेस ने 71 सीटें जीती थीं लेकिन 1995 में वह 29 सीटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस ने 320 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से 167 पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।

 

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बिहार में उतारने पड़े थे कमांडो

बिहार का चुनावी इतिहास वैसे हिंसा से भरा रहा है। मगर 90 का दशक कुछ ज्यादा ही हिंसक रहा था। यह वह दौर था जब में बूथ कैप्चरिंग और राजनीतिक हत्याओं के लिए बदनाम था।


जब बिहार में चुनाव हो रहे थे, उस वक्त देश के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन थे। टीएन शेषन एक ऐसे चुनाव आयुक्त थे जिनका राजनेताओं के साथ सीधा टकराव होता था। वह किसी को नहीं बख्शते थे। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रह चुके ज्योति बसु ने तो उन्हें 'पागल कुत्ता' तक कह दिया था।


ऐसा कहा जाता है कि 1995 का चुनाव जनता दल ने राजनीतिक पार्टियों से नहीं, बल्कि चुनाव आयोग के खिलाफ लड़ा था।


मृत्युंजय शर्मा की किताब 'ब्रोकन प्रॉमिसेसः कास्ट, क्राइम एंड पॉलिटिक्स इन बिहार' में लिखते हैं कि बूथ कैप्चरिंग और हिंसा रोकने के लिए टीएन शेषन ने पंजाब से कमांडो हायर कर बिहार में तैनात करवाए थे। उन्होंने बिहार के उन सभी पोलिंग बूथों पर कमांडो की तैनाती करवा दी थी, जहां हिंसा और बूथ कैप्चरिंग होती थी।


किताब में मृत्युंजय शर्मा बताते हैं कि लालू यादव इतना परेशान हो गए थे कि उन्होंने टीएन शेषन को 'पागल सांड' कह दिया था। उन्होंने कहा था, 'शेषण पगला सांड जैसे कर रहा है। मालूमे हीं है कि हम रस्सा बांधकर खटाल में बंद कर सकते हैं।' 


इतना ही नहीं, लालू यादव ने तो यहां तक कह दिया था 'ये शेषनवा चुनाव करवा रहा है या कुंभ?' टीएन शेषन की ओर से बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए जाने पर लालू यादव ने कहा था, 'विधि व्यवस्था नहीं, कुछ लोगों का बुद्धि व्यवस्था खराब है।'

 

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'विकास नहीं सम्मान चाहिए'

बिहार में 1995 के चुनाव के दौरान खूब हिंसा हुई थी। लालू यादव उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री थे। उन पर खूब सवाल खड़े हुए थे।


विपक्ष लालू यादव पर हमलावर था लेकिन उन्होंने ऐसी चाल चली जिसने विपक्ष को किनारे कर दिया। लालू यादव ने खुद को 'गरीबों का मसीहा' बताया। उन्होंने जातीय गोलबंदी करते हुए पिछड़ी जातियों को अपने साथ किया। इस चुनाव में लालू यादव ने 'लालू यादव फकीर है, गरीब की तकदीर है। विकास नहीं, सम्मान चाहिए' का नारा दिया था।


लालू यादव के इस एक नारे ने उन्हें गरीबों के साथ-साथ 'पिछड़ों का मसीहा' भी बना दिया। उनकी पार्टी को यादवों के भरकर वोट मिले। ऐसा कहा जाता है कि इस चुनाव ने बिहार में अगड़ी जातियों की राजनीति को खत्म कर दिया। पॉलिटिकल साइंटिस्ट संजय कुमार ने कहा था, 'इस चुनाव ने बिहार की जाति आधारित राजनीति में एक अलग दिशा तय की क्योंकि इसमें वर्गों के बीच सत्ता के लिए होड़ मची थी। इस सत्ता संघर्ष का नेतृत्व पिछड़ी जातियों ने किया था। यह वह चुनाव था जिसने अगड़ी जातियों को राज्य की राजनीति में हाशिए पर धकेल दिया था।'

 

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लालू बने मुख्यमंत्री, लेकिन...

1995 के चुनाव में जनता दल की जबरदस्त जीत हुई। जनता दल ने अकेले 167 सीटें जीतीं। लालू यादव ने 4 अप्रैल 1995 को दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लालू यादव की इस सरकार को कांग्रेस, सीपीआई, जेएएम समेत कई निर्दलीयों का समर्थन भी था।


हालांकि, लालू यादव लंबे समय तक मुख्यमंत्री नहीं रहे। जुलाई 1997 में चारा घोटाले में लालू यादव का नाम सामने आया। इससे जनता दल में बगावत हो गई। जनता दल के कई विधायक लालू यादव के खिलाफ हो गए थे। 


आखिरकार लालू यादव जनता दल से अलग हो गए और अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी बनाई। लालू यादव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। राबड़ी देवी बिहार की पहली और इकलौती महिला मुख्यमंत्री हैं। 


लालू यादव की पार्टी के साथ जनता दल के कई सारे विधायक आ गए थे। विधानसभा में आरजेडी के पास अपने 136 विधायक हो गए थे। कांग्रेस, जेएमएम और निर्दलीयों ने भी उनका समर्थन किया। राबड़ी देवी के पास 190 से ज्यादा विधायकों का समर्थन था।

 

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1995 का विधानसभा चुनावः एक नजर में

  • कुल सीटेंः 324
  • बहुमत: 163
  • कुल वोटर: 5.77 करोड़
  • वोट पड़े: 3.56 करोड़
  • वोटिंग प्रतिशत: 61.79%
  • जनता दल ने कितनी सीटें जीतीं: 167
  • कांग्रेस ने कितनी सीटें जीतीं: 29
  • बीजेपी ने कितनी सीटें जीतीं: 41
  • सीपीआई ने कितनी सीटें जीतीं: 26
  • झामुमो ने कितनी सीटें जीतीं: 10
  • सीपीएम ने कितनी सीटें जीतीं: 6
  • निर्दलीयों ने कितनी सीटें जीतीं: 12
  • समता पार्टी ने कितनी सीटें जीतीं: 7
  • अन्य पार्टियों ने कितनी सीटें जीतीं: 26

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