देश के प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे। उन्हें सरकार पद्म विभूषण से सम्मानित कर चुकी है। 91 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। वह मिर्जापुर में रह रहे थे। उनका घर वाराणसी में है। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे और उम्र संबंधी परेशानियों से जूझ रहे थे। छन्नू लाल मिश्र अपने शास्त्रीय संगीत के लिए दुनियाभर में मशहूर थे। उनकी आवाज में पूर्वांचली और भोजपुरी ठसक थी, जिसे लोग बेहद पसंद करते थे।

उनके निधन से संगीत जगत में शोक की लहर छा गई है। उनका अंतिम संस्कार वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर होगा। पंडित छन्नू लाल मिश्र ठुमरी, चैती, फगुआ जैसी शैलियों में खूब काम किया था। उनके शो के टिकट हजारों में बिकते थे। अपनी अनूठी शैली की वजह से दुनियाभर से लोग उन्हें देखते हैं। यूट्यूब पर उनके गानों को करोड़ों लोग देख चुके हैं।  

यह भी पढ़ें: एक और रांझणा ले आए धनुष, 'तेरे इश्क में' के टीजर पर क्या बोली पब्लिक?

कौन थे छन्नूलाल मिश्र?

छन्नूलाल मिश्र की जन्मभूमि आजमगढ़ है। वह बनारस में कला और संस्कृति के प्रचारक रहे। वह बनारस घराने के सबसे चर्चित चेहरों में से एक थे। उन्हें कला के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान की वजह से सरकार ने साल 2020 में पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था।

छन्नूलाल मिश्र 3 अगस्त 1936 को आजमगढ़ जिले के हरिपुर में पैदा हुए थे। उनके दादा गुदई महाराज शांता प्रसाद थे। वह भी प्रसिद्ध तबला वादक थे। छन्नूलाल मिश्र के गुरु उनके पिता बद्री प्रसार मिश्र थे। उन्होंने ने ही छन्नूलाल मिश्र को गायन की दीक्षा दी थी। पिता के बाद उस्ताद गनी अली ने भी उन्हें 'खयाल' सिखाया था। यह संगीत की एक विधा है। ठाकुर जयदेव सिंह ने भी उन्हें गायन की शिक्षा दी थी। 

यह भी पढ़ें: किलविश से गीता विश्वास तक, कहां गायब हैं 'शक्तिमान' के ये कलाकार?

क्या गाते थे छन्नू लाल मिश्र?

छन्नूलाल मिश्रा ठुमरी, खयाल, भजन, दादरा, फगुआन, कजरी और चैती गाते थे। उनके शो सुपरहिट होते थे। साल 2020 में उन्हें पद्म विभूषण, 2010 में पद्म भूषण, 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है। ऑल इंडिया रेडियो से लेकर दूरदर्शन तक उनके कार्यक्रम खूब प्रकाशइत हुए हैं। वह संस्कृति मंत्रालय के सदस्य भी रह चुके थे। 

गायकी, जिसे याद करेगी दुनिया

छन्नू लाल मिश्रा की गायकी अद्भुत थी। उन्होंने सोरठा से लेकर दोहा तक गाया है। उन्होंने कई चालीसा को अपनी आवाज दी है। उनकी गायन परंपरा अनूठी थी। वह पान खाकर देसी ठसक के साथ जब गाते थे लोग तारीफ करते नहीं थकते थे। सावन हो या फाल्गुन, हर मौसम के लिए उनके पास गाने थे। 

 

यह भी पढ़ें- धनश्री वर्मा ने युजवेंद्र पर लगाया चीटिंग का आरोप, शो में खोला राज

आइए जानते हैं उनके कुछ प्रसिद्ध गानों के बारे में- 

  • खेलैं मसाने में होरी दिंगबर: यह फगुआ गाना है। फाल्गुन के महीने में यह गाना खूब सुना और गाया जाता है। पंडित छन्नूलाल मिश्र, अपने शो में यह गाना जरूर गाते थे।
  • बरसन लागी बदरिया: यह कजरी परंपरा का गाना है। शास्त्रीय सुरों में गाए इस गाने को करोड़ों लोग देख चुके हैं। यह मिर्जापुरी कजरी है। वह मिर्जापुर और बनारसी, दोनों अंदाज में यह कजरी गाते थे। 
  • गोरिया पाई नाहीं सइंया के सवाना में: यह कजरी है। यह गाना भी बेहद मशहूर है। सावन में दो प्रेमी युगल के वियोग का यह गीत है, पूर्वांचल में खूब सुना जाता है। यह विरह का गीत है। 

और कौन से गाने मशहूर हैं?

  • राम कहानी
  • दुनिया दर्शन का है मेला
  • सेजिया से सैयां रूठ गए
  • जय दुर्गा मोरी मैया भवानी
  • भवानी दयानी
  • विंध्येश्वरी चालीसा
  • शिव चालीसा
  • हनुमान चालीसा
  • सुंदरकांड
  • माया महा ठगी हम जानि