सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अमेरिका पहुंचे। यह 7 साल बाद उनका पहला अमेरिकी दौरा है। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया। मोहम्मद बिन सलमान का यह दौरा इसलिए भी खास है, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान F-35 को सऊदी अरब को बेचने पर सहमति जता दी है।
इस डील को लेकर दो चिंताएं जताई जा रही हैं। पहली तो यह सऊदी अरब को F-35 देने से अमेरिकी तकनीक तक चीन की पहुंच हो सकती है। और दूसरी यह कि सऊदी अरब के पास F-35 आने से मिडिल ईस्ट में इजरायल कमजोर पड़ सकता है।
इस साल जून में ईरान के साथ 12 दिन तक चले संघर्ष में इजरायल ने F-35 का इस्तेमाल किया था। F-35 लगभग 20 साल पहले आया था और तब से अब तक 1,200 से ज्यादा लड़ाकू विमान बनाए जा चुके हैं। दुनियाभर के लगभग 20 देशों के पास F-35 है। इस साल फरवरी में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका गए थे, तब ट्रंप ने भारत को भी F-35 बेचने का एलान किया था।
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F-35 से जुड़ी कुछ बातें
- अमेरिका ने अब तक जितने भी लड़ाकू विमान बनाए हैं, उनमें F-35 सबसे महंगा है। अक्सर इसे 'सफेद हाथी' भी कहा जाता है। कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस के मुताबिक, 2023 में एक F-35 का खर्चा 7.7 करोड़ डॉलर तक थी। इसकी लागत लगातार बढ़ रही है।
- यह छोटा लड़ाकू विमान है और अक्सर इसकी आलोचना भी होती रही है। वह इसलिए क्योंकि इस हर सेना के हिसाब से अलग तरह से डिजाइन किया गया है। दाहरण के लिए, नौसेना इसे एयरक्राफ्ट कैरियर से उड़ाती है, जबकि मरीन्स का वर्जन हेलिकॉप्टर की तरह सीधा ऊपर उठकर और उतर सकता है।
- हालांकि, इसके बावजूद दुनियाभर के कई देश इसे खरीदना चाहते हैं। इसे अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन बनाती है। अमेरिकी मरीन्स ने अफगानिस्तान में दुश्मन ठिकानों पर हमले के लिए F-35 का इस्तेमाल किया था।
- ऐसा भी माना जाता है कि F-35 की कुछ खुफिया जानकारी चीन के पास भी हो सकती है। पेंटागन से जुड़े डिफेंस साइंस बोर्ड ने 2013 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि चीन ने एक साइबर अटैक किया था और डिफेंस से जुड़ा कई डेटा चुरा लिया था। चुराए गए डेटा में कथित तौर पर F-35 से जुड़ा डेटा भी था।
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अमेरिका का सबसे आधुनिक विमान
F-35 को अमेरिका का सबसे उन्नत और आधुनिक लड़ाकू विमान माना जाता है। फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसी में सेंटर ऑन मिलिट्री एंड पॉलिटिकल पावर के सीनियर डायरेक्टर ब्रैडली बोमन ने बताया कि अमेरिका अपने मिलिट्री सिस्टम को लगातार अपग्रेड कर रहा है, ताकि सालों पहले अगर कोई डेटा चोरी किया भी गया तो उसका अब वह किसी मतलब का न रह जाए।
उन्होंने कहा कि यही कारण है कि पहले से ही 19 देशों के पास F-35 है और सऊदी अरब जैसे देश इसे चाहते हैं। अगर चीन के पास इससे जुड़ा डेटा होता तो सऊदी अरब इसे नहीं चाहता।
उन्होंने बताया कि 1990 के दशक में F-35 का प्रस्ताव रखा गया था, ताकि F-16 को रिप्लेस किया जा सके। इस विमान को इस तरह डिजाइन किया गया था कि पायलट एक ही मिशन में बमबारी के साथ-साथ हवाई लड़ाई भी लड़ सके।

कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस के अनुसार, यह पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है, जिसमें उन्नत रडार और सेंसर भी शामिल हैं।
बोमन ने बताया, 'F-35 काफी शक्तिशाली लड़ाकू विमान है और इसे रडार पर पकड़ पाना भी मुश्किल है। जब आप इसे रडार पर नहीं देख सकते तो इसे मार भी नहीं सकते। इस विमान में दुश्मन के ठिकानों का सटीक पता लगाने के लिए एडवांस्ड सेंसर लगे हैं। साथ ही युद्ध के समय बाकी विमानों और जमीनी सेना से बातचीत करने के लिए भी इसमें नेटवर्किंग कैपेबिलिटीज हैं।'
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F-35 में क्या है खासियत?
F-35 फाइटर जेट 5वीं पीढ़ी का विमान है। लॉकहीड मार्टिन ने इसे 2006 में बनाना शुरू किया था। 2015 में F-35 अमेरिकी वायुसेना में शामिल हुआ था। इजरायल भी इस विमान को खरीद चुका है।
इस विमान की लंबाई 51.4 फीट और ऊंचाई 14.4 फीट है। इसमें 8,278 किलो का ईंधन भरा जा सकता है। इसके साथ ही 8,160 किलो के हथियारों को लोड किया जा सकता है। F-35 विमान 1,931 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है। इसकी कॉम्बैट रेडियस 1,093 किलोमीटर है। इसका मतलब हुआ कि F-35 विमान 1,093 किलोमीटर तक जा सकता है और वापस लौट सकता है। इस दौरान इसमें रिफ्यूलिंग की जरूरत नहीं होती।
इस विमान में एयर-टू-एयर मिसाइल और गाइडेड बॉम्ब को लोड किया जा सकता है। इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि ये रडार की पकड़ में भी नहीं आता।

F-35 की एक खास बात ये भी है कि इसमें एक छोटा क्रॉस-सेक्शन रडार सिस्टम भी है। इससे पायलट दुश्मन को पहले ही देख सकते हैं और उसपर हमला कर सकते हैं। पायलट के हेलमेट में ही एक डिस्प्ले सिस्टम होता है। इसकी मदद से हमला करते वक्त विमान को मोड़ने की जरूरत नहीं होती है। पायलट अपना सिर हिलाकर ही दुश्मन के विमान पर मिसाइल दाग सकते हैं।
इसके अलावा, इसका सेंसर सिस्टम और कम्युनिकेशन सिस्टम भी बहुत खास है। इसके जरिए पायलट अपने कमांडर तक रियल टाइम डेटा भेज सकते हैं। इससे दुश्मन को ट्रैक किया जा सकता है। विमान से ही दुश्मन के रडार को जाम कर सकते हैं और हमलों को नाकाम कर सकते हैं।
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अमेरिका का सबसे महंगा विमान
F-35 को इसलिए तैयार किया गया था, ताकि यह पुराने लड़ाकू विमानों को रिप्लेस कर सके। शुरुआत में इसकी लागत कम थी लेकिन धीरे-धीरे यह काफी महंगा होता चला गया। एक F-35 बनाने और उसके मेंटेनेंस पर लगभग 7.7 करोड़ डॉलर का खर्च आता है।
अमेरिकी सरकार की सितंबर में आई एक रिपोर्ट बताती है कि एक F-35 की लाइफ साइकिल 77 साल है। यानी, 77 साल तक इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे में इसका मेंटेनेंस काफी महंगा हो जाता है। अनुमान है कि 2,470 F-35 विमानों पर 2 ट्रिलियन डॉलर तक का खर्चा आएगा।
नेशनल सिक्योरिटी रिफॉर्म प्रोग्राम के डायरेक्टर डैन ग्रेजियर ने बताया कि F-35 आखिरकार एक 'फेल प्रोग्राम' था। उन्होंने कहा, 'F-35 को एक साथ कई पुराने विमानों को रिप्लेस करने के लिए डिजाइन किया गया था। यह कई काम तो अच्छी तरह करता है लेकिन कुछ खास नहीं करता है।'
ग्रेजियर आगे कहते हैं, 'इसकी कीमत भी बहुत ज्यादा है। इसलिए आप एक ऐसे विमान के लिए बहुत ज्यादा पैसे देते हैं जो वास्तव में कई मामलों में अपने पिछले विमानों से कम सक्षम है।'
इतना ही नहीं, F-35 की डिलिवरी में भी काफी देरी होती है। अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में लॉकहीड मार्टिन 110 F-35 विमानों की डिलिवरी की थी। इसमें हर एक विमान की डिलिवरी में औसतन 238 दिन की देरी हुई थी।
हालांकि, इन सबके बावजूद इसकी गिनती दुनिया के सबसे शक्तिशाली लड़ाकू विमानों में होती है। दुनियाभर के 19 देशों में 1,255 F-35 हैं।
