जापान और चीन के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। ताइवान पर जापानी प्रधानमंत्री साने ताकाइची की हलिया बयान से चीन खफा है। जापानी प्रधानमंत्री की बयानबाजी से खफा चीन ने अपने नागरिकों को जापान नहीं जाने की सलाह दी है। इसके अलावा सी फूड के आयात को रोक दिया है। वहीं जापानी फिल्मों को मंजूरी देने की प्रक्रिया पर भी लगाम लगा दी है। उसने जापानी पीएम के बयानबाजी को सैन्य धमकी तक करार दिया।
चीन के एक अधिकारी ने जापानी पीएम साने ताकाइची की गर्दन तक काटने की धमकी दे डाली। जवाब में जापान ने चीन में रहने वाले अपने नागरिकों को सतर्क किया और कहा कि उन पर हमला हो सकते हैं। दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजदूतों को भी तलब किया।
जापान का सेनकाकू द्वीप ताइवान से करीब 110 किमी की दूरी पर है। साने ताकाइची के बयान के बाद चीन ने सेनकाकू द्वीप के करीब अपना एक तटरक्षक जहाज भेजा। इसके अलावा जापान के योनागुनी द्वीप के पास चीनी सेना के ड्रोन उड़ते दिखे। इस बीच चीन सेना ने अपनी चेतावनी में कहा कि अगर जापान ने ताइवान जलडमरूमध्य पार संघर्ष में सैन्य हस्तक्षेप करने की हिम्मत दिखाई तो उसे करारी हार का सामना करना पड़ेगा। चीन सेनकाकू द्वीप पर भी अपना दावा ठोकता है।
यह भी पढ़ें: दुबई एयर शो में तेजस विमान क्रैश, पायलट की नहीं बची जान; जांच का आदेश
जापान में संकटमोचक नेताओं की कमी क्यों?
चीन के साथ भारी तनाव के बीच जापान की सरकार में संकटमोचक नेताओं की कमी दिख रही है। मौजूदा सरकार में ऐसे सांसद नहीं हैं, जो चीन से बातचीत के माध्यम से तनाव कम करने में मदद कर सकें। गुरुवार को दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के अधिकारियों ने बैठक जरूर की, लेकिन यह बेनतीजा रही।
कोमेइतो: जापनी नेता कोमेइतो के चीन के साथ अच्छे संबंध है। वह कई मौकों पर चीन और जापान के बीच पुल का काम कर चुके हैं। मगर वह अब मौजूदा सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। वहीं साने ताकाइची की पार्टी एलडीपी के पूर्व सेक्रेटरी-जनरल तोशीहिरो निकाई भी राजनीति को अलविदा कह चुके हैं। यही वजह है कि जापान की सियासत में उन लोगों की कमी साफ तौर पर देखी जा रही है जो दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ाने की वकालत करते थे। 1964 में कोमेइतो ने जापान और चीन के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन नॉर्मलाइजेशन में अहम योगदान दिया था। तब चीन ने खुलकर कोमेइतो की तारीफ की थी।
तोशीहिरो निकाई: इनके भी चीन से बेहतर संबंध हैं। यह बात शिंजो आबे भलीभांति जानते थे। तभी आबे ने निकाई को अपनी सरकार में एलडीपी सेक्रेटरी-जनरल और पार्टी की जनरल काउंसिल का मुखिया बना रखा था, ताकि चीन के साथ संकट में निकाई का इस्तेमाल किया जा सके। इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आबे ने तीन बार चीन की राजकीय यात्रा की। उस वक्त तोशीहिरो निकाई ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विशेष दूत के तौर पर न केवल मीटिंग की बल्कि दोनों के बीच मध्यस्थता की भूमिका भी निभाई।
हिरोशी मोरियामा: सत्तारूढ़ एलडीपी के पूर्व सेक्रेटरी-जनरल हिरोशी मोरियामा के भी चीन से बेहतर रिश्ते हैं। वह चीन के साथ रिश्तों को बढ़ाने के पक्षधर हैं। मगर वह भी मौजूदा सरकार से अलग हैं। जापान की मौजूदा सरकार में चीन विरोधी नेताओं की भरमार है। अधिकांश नेता ताइवान समर्थक है। इनमें प्रमुख नाम खुद पीएम साने ताकाइची और चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी मिनोरू किहारा का है। साने ताकाइची के गठबंधन में शामिल जापान इनोवेशन पार्टी के भी रिश्ते चीन से ठीक नहीं है।
क्या है ताइवान विवाद, जापान का क्या संबंध?
शी जिनपिंग जहां के राष्ट्रपति हैं, उसे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) कहा जाता है। ताइवान को रिपब्लिक ऑफ चाइना के नाम से जाना जाता है। जापान ने करीब 50 वर्षों तक ताइवान पर राज किया। हालांकि द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के बाद यह क्षेत्र रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) के कब्जे में आ गया। दूसरी तरफ मेन लैंड चीन में कम्युनिस्ट पार्टी और आरओसी सरकार के बीच गृह युद्ध चल रहा था। कम्युनिस्टों के हाथों मिली हार के बाद आरओसी ने ताइवान द्वीप पर अपना डेरा डाला और इसका नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा। वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) नाम से एक नया देश बनाया।
शी जिनपिंग वाला चीन ताइवान को अपना एक हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान खुद को एक अलग देश कहता है। दुनियाभर में बहुत कम देश हैं जिन्होंने ताइवान को मान्यता दी है। कम्युनिस्ट पार्टी का कहना है कि पहले ताइवान को चीन में मिलाने की खातिर मनाया जाएगा। अगर नहीं बना तो सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुना जाएगा, लेकिन चीन को डर है कि इस संघर्ष में अमेरिका और जापान जैसे देश भी कूद सकते हैं।
जापानी पीएम के किस बयान पर मचा बवाल?
साने ताकाइची ने अक्टूबर में प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया। उन्होंने अपने पहले संसदीय संबोधन में अगर ताइवान संघर्ष में चीन सैन्य बल और युद्धपोत का इस्तेमाल करता है तो इसे जापान के अस्तित्व का खतरा माना जाएगा। ऐसे हालात में जापान भी संघर्ष में शामिल हो सकता है। जापानी पीएम ने ताइवान के समर्थन में अपनी सेना तक भेजने की बात कही।
क्या कहता है जापान का संविधान?
युद्ध के बाद का जापानी संविधान अंतरराष्ट्रीय विवाद के हल में बल के इस्तेमाल पर रोक लगता है। मगर 2015 में शिंजो आबे ने एक नया कानून पारित किया था। इसमें कहा गया है कि कुछ परिस्थितियों में जापान को सामूहिक आत्मरक्षा की इजाजत होगी। भले ही उस पर सीधे हमला न हुआ हो। यहां यह बताना जरूरी है कि जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे साने ताकाइची के राजनीतिक गुरु हैं।
शिंजो आबे जैसी आक्रामक हैं ताकाइची
साने ताकाइची चीन के बारे में वैसा ही सोचती हैं, जैसे उनके गुरु शिंजो आबे सोचते थे। चीन के खिलाफ शिंजो आबे के आक्रामक विचार जगजाहिर हैं। दोनों का संबंध जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के दक्षिणपंथी धड़े से है। वह चीन के खतरे के बारे में पहले ही जानती हैं। ताइवान के प्रति उनका समर्थन भी सबको पता है। हाल ही में उन्होंने चीन के जवाब में रक्षा खर्च बढ़ाने की घोषणा भी की।
यह भी पढ़ें: रूस का बड़ा ऑफर, भारत को देगा Su-57 लड़ाकू विमान
अमेरिका आया जापान के साथ
अमेरिका खुलकर जापान के समर्थन में आ चुका है। जापान में अमेरिका के राजदूत जॉर्ज ग्लास ने ऐलान किया कि चीन के साथ किसी भी विवाद में अमेरिका जापान का साथ देगा। अमेरिकी राजदूत ने जापानी विदेश मंत्री तोशिमित्सु मोटेगी से मुलाकात भी की।
कैसे गर्दन काटने तक पहुंची बात?
दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया कि एक चीनी अधिकारी ने जापानी पीएम की गर्दन तक काटने की धमकी दे डाली। जापान के ओसाका में चीन के महावाणिज्यदूत जू जियान ने अपने बयान में कहा कि ताइवान मामले को अपने अस्तित्व का खतरा मानने का जापान का रुख मूर्ख नेताओं द्वारा चुना गया एक घातक रास्ता है। अगर तुमने उस गंदी गर्दन को वहां डाला, जहां उसकी जगह नहीं है तो उसे काट डाला जाएगा। क्या तुम इसके लिए तैयार हो। हालांकि बाद में चीनी अधिकारी ने अपनी पोस्ट डिलीट कर दी।
