मोदी सरकार चंडीगढ़ का प्रशासनिक ढांचा बदलने की तैयारी कर रही है। इससे चंडीगढ़ का पूरा कंट्रोल राष्ट्रपति के पास आ जाएगा। इसे लेकर संसद के शीतकालीन सत्र में बिल लाने की तैयारी की जा रही है। केंद्र सरकार के इस कदम का विरोध होना शुरू हो गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस पर आपत्ति जताई है। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा ने आरोप लगाया है कि सरकार चंडीगढ़ को पंजाब से छीनने की कोशिश कर रही है।
दरअसल, केंद्र सरकार चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में लाने जा रही है। इससे राष्ट्रपति को चंडीगढ़ के लिए सीधे नियम और कानून बनाने का अधिकार मिल जाएगा।
अब तक चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के गवर्नर संभालते हैं। पंजाब के गवर्नर ही चंडीगढ़ के प्रशासक होते हैं। केंद्र सरकार इसे ही बदलने जा रही है। सरकार जो बिल लेकर आ रही है, अगर वह पास हो जाता है तो चंडीगढ़ का अपना अलग प्रशासक होगा।
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क्या करने जा रही है सरकार?
संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से शुरू हो रहा है। इस सत्र में सरकार 131वां संविधान संशोधन बिल पेश करने जा रही है। लोकसभा और राज्यसभा के बुलेटिन में इस बिल का जिक्र है।
इससे चंडीगढ़ भी अनुच्छेद 240 के दायरे में आ जाएगा। अभी अनुच्छेद 240 के दायरे में वे केंद्र शासित प्रदेश आते हैं, जहां अपनी विधानसभा नहीं है। जैसे- अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव। पुडुचेरी भी इस दायरे में तब आता है, जब वहां की विधानसभा की निलंबित हो या भंग हो।
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इससे होगा क्या?
संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में आने वाले केंद्र शासित प्रदेशों में नियम और कानून बनाने का पूरा अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है। हालांकि, जब किसी केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा होती है तो वहां के लिए राष्ट्रपति नियम या कानून नहीं बना सकते।
अनुच्छेद 240 कहता है कि राष्ट्रपति जो भी नियम बनाएंगे, वह संसद से पास कानून जितना ताकतवर ही होगा। इसके अलावा, राष्ट्रपति यहां के लिए संसद के किसी भी कानून को बदल या रद्द कर सकते हैं।

अगर 131वां संविधान संशोधन बिल पास हो जाता है तो इससे चंडीगढ़ में एक स्वतंत्र प्रशासक की नियुक्ति का रास्ता खुल जाएगा। जैसा कि पहले यहां का स्वतंत्र मुख्य सचिव होता था।
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इसका विरोध क्यों हो रहा है?
चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है। दोनों ही राज्य इस पर अपना-अपना दावा करते हैं। अब तक चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के गवर्नर के पास होता है। लेकिन 131वां संशोधन हो जाता है तो इसका प्रशासन राष्ट्रपति के पास चला जाएगा, जो केंद्र सरकार की सलाह पर काम करते हैं।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि यह एक बड़ा अन्याय है कि बीजेपी सरकार पंजाब की राजधानी 'छीनने की साजिश' कर रही है। उन्होंने कहा, 'चंडीगढ़ पहले भी पंजाब का अभिन्न हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा। कोई भी व्यक्ति या संस्था इससे इनकार नहीं कर सकता कि पंजाब का अपनी राजधानी चंडीगढ़ पर पूरा अधिकार है।'
पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने इस कदम को 'पूरी तरह गैर-जरूरी' बताया और पंजाब से चंडीगढ़ 'छीनने' के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने कहा, 'चंडीगढ़ पंजाब का है और इसे छीनने की किसी भी कोशिश के गंभीर नतीजे होंगे।'
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि यह बिल चंडीगढ़ को पंजाब को वापस देने के केंद्र के वादे के साथ 'विश्वासघात' होगा। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित 131वां संविधान संशोधन बिल चंडीगढ़ को हमेशा के लिए पंजाब के प्रशासनिक और राजनीतिक नियंत्रण से बाहर करने की कोशिश है। उन्होंने कहा, 'यह बिल चंडीगढ़ को अपनी राजधानी के तौर पर पंजाब का दावा खत्म करना चाहता है।'
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह ने कहा कि केंद्र एक 'राजनीतिक रूप से संवेदनशील' संविधान संशोधन विधेयक ला रहा है, जिसका उद्देश्य चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश को अनुच्छेद 240 के दायरे में ठीक उसी तरह शामिल करना है जैसे अन्य कई केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया है।
विक्रमजीत सिंह ने पंजाब के सभी सांसदों से तुरंत गृह मंत्री अमित शाह से मिलने की अपील की है। उन्होंने कहा कि 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा की राजधानी बनाया गया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाने का वादा किया था।
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पंजाब में क्या है प्रशासनिक ढांचा?
मौजूदा समय में पंजाब के राज्यपाल ही चंडीगढ़ के प्रशासक होते हैं। एक नवंबर 1966 में जब पंजाब का पुनर्गठन हुआ था तब चंडीगढ़ का प्रशासन स्वतंत्र रूप से मुख्य सचिव के पास था।
हालांकि, एक जून 1984 से चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के राज्यपाल के पास है। मुख्य सचिव का पद प्रशासक के सलाहकार के रूप में बदल दिया गया था।
अगस्त 2016 में केंद्र सरकार ने पुरानी व्यवस्था बहाल करने की कोशिश की थी। केंद्र सरकार ने केजे अल्फोंस को चंडीगढ़ का स्वतंत्र प्रशासक भी नियुक्त किया था। हालांकि, विरोध के बाद इस फैसले को वापस ले लिया गया था।
