दिल्ली में सरकार जरूरी बदली, मगर प्रदूषण के हालात नहीं। दिल्ली में प्रदूषण की समस्या आज या कल की नहीं है, बल्कि सालों से है। कई सालों से हर साल सर्दियां आने से पहले ही दिल्ली की हवा खराब होने लगती है। धीरे-धीरे यह और खराब होती है और एक वक्त ऐसा आता है जब सांस लेना भी मुहाल हो जाता है। दस दिन से भी ज्यादा हो गए हैं जब दिल्ली की हवा 'बहुत खराब' बनी हुई है। कई इलाके तो ऐसे हैं जहां AQI का स्तर 400 के पार चला गया है।
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए तमाम उपाय किए जा रहे हैं। कई तरह की पाबंदियां लगाई जा रहीं हैं। पानी का छिड़काव किया जा रहा है। क्लाउड सीडिंग के जरिए आर्टिफिशियल बारिश करवाने की कोशिश भी की गई। मगर इसके बावजूद दिल्ली की हवा जहरीली ही होती जा रही है।
रेखा गुप्ता की सरकार दावा कर रही है कि पिछली सरकार की तुलना में उनकी सरकार में दिल्ली की हवा में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है। वहीं, आम आदमी पार्टी समेत विपक्ष का आरोप है कि सरकार AQI स्टेशन के बाहर पानी से छिड़काव करवा रही है ताकि AQI कम आए।
बहरहाल, कुछ भी हो इससे जूझना दिल्ली वालों को ही जूझना पड़ता है। पर ऐसे में एक सवाल यह भी मन में आता है कि दिल्ली में प्रदूषण को काबू करने के लिए क्या कुछ किया जा रहा है? पैसा कितना खर्च किया जा रहा है?
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कितना खर्च करती है दिल्ली सरकार?
दिल्ली में फरवरी में बीजेपी सरकार बनी थी। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मार्च में 2025-26 का बजट पेश किया था। यह बजट 1 लाख करोड़ रुपये का था। 2024-25 की तुलना में यह 31 फीसदी ज्यादा था।
इस 1 लाख करोड़ रुपये के बजट में से लगभग 1,885 करोड़ रुपये प्रदूषण और पर्यावरण के लिए रखे गए थे। इसमें से लगभग 1,634 करोड़ रुपये तो प्रदूषण के लिए डायरेक्ट खर्च होने थे। इसके अलावा, करीब 250 करोड़ रुपये ऐसे थे जो इनडायरेक्ट तरीके से प्रदूषण के लिए थे।
दिल्ली सरकार के बजट में 300 करोड़ रुपये तो प्रदूषण को काबू में करने के लिए रखे गए थे। वहीं, 506 करोड़ रुपये का फंड पर्यावरण और वन विभाग को दिया गया था। 20 करोड़ रुपये दिल्ली पार्क्स और गार्डन सोसायटी के लिए दिया गया था, ताकि ग्रीन स्पेस बढ़ाया जा सके।

इसके अलावा, बजट में 58.8 करोड़ रुपये का बजट एंटी-स्मॉक गन और बाकी दूसरे उपकरणों के लिए रखा गया था।
यमुना नदी में होने वाले प्रदूषण को खत्म करने के लिए भी लगभग 750 करोड़ रुपये रखे गए थे। इसमें 500 करोड़ यमुना की सफाई और सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के लिए था। बाकी 250 करोड़ रुपये से दिल्ली में पुरानी सीवर लाइंस को बदलकर नई लाइंस बनानी थी, ताकि नदी में गंदे पानी को जाने से रोका जा सके।
कुल मिलाकर, दिल्ली सरकार के लगभग 1,885 करोड़ के बजट में से 20% पैसा स्मॉग गन और AQI स्टेशन जैसी चीजों पर खर्च होना है। 40% पैसा यमुना नदी के लिए खर्च होगा। 15% रकम पेड़-पौधे लगाने के लिए खर्च किए जाएंगे। बाकी का पैसा ड्रेनेज और सीवर सिस्टम जैसी चीजों पर खर्च किया जाएगा।
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क्या प्रदूषण पर खुलकर खर्च करती है सरकारें?
दिल्ली सरकार ने भले ही अपने 2025-26 के बजट में प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए 1,885 करोड़ रुपये का बड़ा बजट रखा है लेकिन केंद्र और राज्य से जुड़े पर्यावरण फंड का असल इस्तेमाल अभी भी पीछे है।
न्यूज एजेंसी PTI ने सरकारी डेटा के हवाले से बताया था कि दिल्ली सरकार ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत मिले फंड का सिर्फ 32.65% ही इस्तेमाल किया है। यह वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए देश का पहला नेशनल प्रोग्राम है, जिसका मकसद 2026 तक 130 हाई रिस्क शहरों में PM2.5 को 40% तक कम करना है। इस स्कीम के तहत दिल्ली को अब तक केंद्र से 42.69 करोड़ का फंड मिला है लेकिन उसने सिर्फ 13.94 करोड़ रुपये ही खर्च किए हैं।
NCAP का मकसद AQI मॉनिटरिंग नेटवर्क को मजबूत करना, एंटी-स्मॉग गन और रियल डेटा सिस्टम लगाना और नगर निगमों और राज्य सरकार के बीच तालमेल को बेहतर बनाना है। मगर इस्तेमाल में कमी और ब्यूरोक्रेटिक देरी की वजह से दिल्ली में इन कामों को शुरू करने में देरी हुई है।

सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि NCR के बाकी शहर भी फंड का इस्तेमाल करने में बहुत पीछे हैं। उदाहरण के लिए नोएडा को 30.89 करोड़ रुपये मिले हैं, जिसमें से उसने सिर्फ 3.44 करोड़ ही खर्च किए हैं। फरीदाबाद ने 107.14 करोड़ में से 28.6 करोड़ खर्च किए। कुल मिलाकर 14 शहरों ने NCAP फंड का आधे से भी कम इस्तेमाल किया है।
मई 2025 तक NCAP के तहत 130 शहरों को 12,636 करोड़ रुपये का फंड मिला है। इसमें से 8,981 करोड़ रुपये यानी 71 फीसदी ही खर्च हुआ है।
बहरहाल, दिल्ली का बजट पहले से कहीं ज्यादा है लेकिन पैसे का सही इस्तेमाल ही हवा में सुधार कर सकता है।
