देश की राजधानी दिल्ली में सांस लेना अब मुश्किल हो रहा है। दिल्ली में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) गंभीर स्थिति में है। इस साल दावा किया जा रहा है कि दिल्ली की हवा पिछले तीन सालों की तुलना में कम खराब है। 1 से 15 नवंबर तक का औसत AQI पिछले तीन सालों में सबसे कम रहा है लेकिन दिल्ली वाले फिर भी जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं। दिल्ली में हवा की क्वालिटी 'बहुत खराब' से 'गंभीर' श्रेणी में बनी हुई है। इस साल का औसत AQI 349 रहा है, जो 2024 के 367 और 2023 में 376 से कुछ कम है।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि AQI के इन आंकड़ों से किसी को भ्रम में नहीं रहना चाहिए। उनका कहना है कि AQI में हल्की गिरावट के पिछे कई कारण हैं और आने वाले दिनों में AQI बढ़ सकता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, पंजाब में बाढ़ आने के कारण पराली जलाने में देरी हुई और सर्दियां शुरू होने से पहले ही दिवाली आ गई जिस कारण AQI में हल्की गिरावट दर्ज की गई है। कम AQI के पीछे AQI मॉनिटरिंग सेंटर्स पर होने वाली अनियमितताओं को भी माना जा रहा है।
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जहरीला होता है नवंबर
दिल्ली प्रदूषण नियमंत्रण कमेटी ने 2018 से 2023 तक नवंबर के शुरुआती दो हफ्तों को सबसे जहरीला माना है। 2018 से 2023 तक नवंबर के पहले दो हफ्तों में औसत AQI 371 रहा है। इस दौरान पराली जलाने के कारण, सर्दियों से पहले दिवाली के आने के कारण और हवा के स्थिर हो जाने के कारण AQI बहुत बढ़ जाता है। इस साल दिवाली समय से पहले 20 अक्टूबर को ही आ गई थी। इस समय तक तापमान में गिरावट दर्ज नहीं की गई थी, जिसके चलते प्रदूषित हवा शहर में ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई।
पराली जलाने की घटानाओं में कमी
इस साल पराली जलाने की घटनाएं पिछले कुछ सालों की तुलना में कम हुई हैं। इसका मुख्य कारण इस साल पंजाब में आई बाढ़ है। बाढ़ के कारण पंजाब में धान की फसल काटने में देरी हुई है लेकिन अब पराली जलाने का मौसम भी शुरू हो चुका है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में 1 से 15 नवंबर के बीच पराली जलाने की 4,87 घटनाएं दर्ज की गईं हैं और यह पिदिल्ली छले साल इसी समय 7,864 घटनाएं दर्ज की गई थीं। हरियाणा में पिछले साल इस समय अवधि में 1055 पराली जलाने की घटनाएं हुई थीं, जो इस साल घटकर 516 रह गई हैं।
दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी पर नजर रखने वाली डीएसएस ने इस नवंबर में 22.47 प्रतिशत हिस्सा अधिकतम दर्ज किया है, जबकि पिछले साल यही हिस्सेदारी 35 प्रतिशत थी। इससे साफ है कि पराली जलाने की घटनाओं के कम होने के कारण दिल्ली में प्रदूषण पिछले साल की तुलना में कम दर्ज किया गया है।
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डेटा में खामियां?
इस साल AQI कम होने के पीछे डेटा से छेड़छाड़ को भी माना जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 39 मॉनिटरिंग सेंटर्स पर डेटा की कमी है और इससे रीडिंग और एल्गोरिदम में खामियां पाई गईं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि शहर में अगर AQI कम दर्ज किया जाता है तो इस सावधानी से देखा जाना चाहिए। इसके साथ ही मॉनिटर सेंटर्स के आसपास लगातार पानी के छिड़काव को भी इसका कारण माना जा रहा है।
सीपीसीबी के डेटा के अनुसार, पिछले दो हफ्तों में तीन दिन AQI गंभीर श्रेणी में, 10 दिन बेहद खराब श्रेणी में और दो दिन खराब श्रेणी में रहा। पिछले साल इसी समय अवधि में 13 दिन बेहद खराब श्रेणी में रहा था। आमतौर पर दिल्ली में 15 से 31 दिसंबर के बीच प्रदूषण का स्तर बहुत खराब हो जाता है। ऐसे में दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए अहम कदम उठाए जाने की जरूरत है।
