विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2025 जारी की है। टीबी अब भी दुनिया की सबसे घातक बीमारियों में से एक बनी हुई है। साल 2024 में टीबी से 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई, जबकि 1.07 करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में आए हैं। दुनिया के 87 फीसदी देश मामले सिर्फ 30 देशों से आए हैं, जिनमें भारत पहले स्थान पर है।
ट्यूबरकुलोसिस के 25 फीसदी मामले, भारत में दर्ज किए गए हैं। इंडोनेशिया में दुनिया के 10 फीसदी केस हैं, फिलिपींस में 6.8 फीसदी और चीन में 6.5 फीसदी केस सामने आते हैं। पाकिस्तान, नाइजीरिया और
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो भी दुनिया के शीर्ष टीबी संक्रमित देशों में आते हैं। ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर टीबी के इलाज में सरकारें बजट नहीं बढ़ाती हैं, इलाज को हर वर्ग तक नहीं पहुंचाती हैं तो तेजी से गिरते मामले और बढ़ सकते हैं।
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भारत की स्थिति क्या है?
भारत में टीबी के सबसे ज्यादा मामले हैं लेकिन 2015 से 2024 के बीच प्रति लाख आबादी पर टीबी की दर 237 से घटकर 187 तक पहुंच गई है। टीबी संक्रमण के मामले करीब 21 फीसदी तक कम हुए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि भारत में टीबी के 92 फीसदी मामलों सही उपचार देने की कोशिश की जा रही है।
टीबी उन्मूलन में कहां चूक रहे हम?
गाजियाबाद के एक सरकारी अस्पताल के टीबी विभाग में लेबेरेट्री सुपरवाइजर संजय कुमार यादव बताते हैं, 'भारत में एक बड़ा वर्ग टीबी को आज भी 'सामाजिक धब्बे' के तौर पर देखता है। टीबी संक्रमित मरीज, आम मरीजों की तरह रहते हैं, बीमारी छिपाते हैं। यही लोग, सबसे ज्यादा संक्रमण फैलाते हैं। यह एक संक्रामक बीमारी है, जो जरा सी चूक पर एक शख्स से दूसरे शख्स में फैल सकती है।'
वह दूसरी वजह बताते हैं कि देश में ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी की समस्या बढ़ी है। यह गंभीर स्थिति है। जिन मरीजों में ऐसी स्थिति है, ज्यादातर वे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं। अस्पतालों में पूरी व्यवस्था है, सरकार जागरूकता अभियान भी चलाती है लेकिन वे इलाज से झिझकते हैं। गरीब और वंचित आबादी में इसका डर ज्यादा बड़ा है।
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गलतियां, जिनकी वजह से बढ़ रहे टीबी के मामले
- आबादी: भारत में सघन आबादी है। टीबी के मरीजों को अलग रहना चाहिए। एक ही घर में कई लोग रहते हैं। टीबी संक्रमित व्यक्ति कई लोगों को संक्रमित करता है।
- शर्मिंदगी: लोग शर्मिंदगी वजह से टीबी की बीमारी छिपाते हैं, खुद संक्रमण फैलाने की वजह बनते हैं। इसे सामाजिक कलंक के तौर पर देखते हैं।
- लापरवाही: टीबी के मरीजों को भीड़ से बचना चाहिए, भीड़ से लोग बच नहीं पाते। मास्क नहीं पहनते, टीबी को भी सामान्य सर्दी जुकाम की तरह लेते हैं।
संयुक्त राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कर्मचारी संघ के महामंत्री योगेश उपाध्याय कर्मचारी ने कहा, 'लापरवाही बीमारी को ज्यादा बढ़ा देती है। कुछ लोग टीबी का इलाज कराते हैं, राहत मिलते ही दोबारा दवाइयां नहीं लेते हैं। यह उन्हें और संक्रामक और बीमार बनाता है। 100 में 10 फीसदी मरीज ऐसे होते हैं जो टीबी का कोर्स पूरा नहीं करते हैं। यह लापरवाही उन पर भारी पड़ती है।'
कितना संक्रामक है टीबी?
डॉ. शाहिद अख्तर बताते हैं, 'टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया से होता है। यह हवा में फैलने वाली बैक्टीरिया है। जब टीबी से पीड़ित व्यक्ति खांसता, छींकता, बोलता या थूकता है तो उसके मुंह से छोटी-छोटी बूंदें या ड्रॉपलेट्स हवा में फैलती हैं। स्वस्थ व्यक्ति भी हवा की वजह से सांस के साथ अंदर ले लेता है और बैक्टीरिया फेफड़ों में पहुंच जाता है।'
डॉ. शाहिद अख्तर:-
हर मरीज में संक्रमण के लक्षण तत्काल नहीं देते। यह लेटेंट टीबी के तौर पर निष्क्रिय रहता है। कमजोर इम्युनिटी के लोगों में यह सक्रिय होकर बीमारी पैदा करता है। टीबी फेफड़ों के अलावा हड्डी, लिम्फ नोड्स और दिमाग में भी हो सकता है। भारत में लापरवाही की वजह से ज्यादा टीबी फैलता है।
भारत में टीबी का इलाज कैसे होता है?
भारत में टीबी 2 तरह की होती है, फेफड़ों की टीबी और फेफड़ों के बाहर की टीबी। फेफड़ों के बाहर की टीबी, शरीर के नाजुक अंगों में होती है। इलाज के लिए टीबी को 3 श्रेणी में बांटा गया है।
- लेटेंट टीबी: संक्रमण है लेकिन लक्षण नहीं, दूसरों में नहीं फैलती
- एक्टिव टीबी: लक्षण मौजूद, दूसरों में फैलने वाली
- ड्रग रेसिस्टेंट टीबी: दवाइयों से ठीक होने में दिक्कत, लंबा इलाज लगता है
डॉ. शाहिद अख्तर बताते हैं, 'अगर ड्रग सेंसेटिव टीबी है तो 6 महीने तक DOTS या ATT इलाज चलता है। अगर ब्रेन या बोन टीबी है तो 9 से 18 महीने तक इलाज चल सकता है। अगर ड्रग रेसिस्टेंट टीबी है तो 18 से 24 महीने से ज्यादा वक्त लग सकता है। इसका इलाज 18 से 24 महीने तक चल सकता है।'
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टीबी के इलाज में मौत कब होती है?
डॉ. शाहिद अख्तर ने कहा, 'DOTS या ATT ट्रीटमेंट के दौरान रिफैम्पिसिन,आइसोनियाजिड, पाइराजिनामाइड और एथैम्बूटॉल जैसी दवाइयां दी जाती हैं। इनका असर आपकी किडनी और लिवर पर पड़ता है। अगर मरीज लिवर फिटनेस टेस्ट और किडनी फिटनेस टेस्ट नियमित नहीं कराता है तो स्थिति जानलेवा हो सकती है। टीबी की दवाइयों से लिवर सिरोसिस हो सकता है।'
टीबी के लक्षण क्या हैं?
डॉक्टर शाहिद अख्तर ने कहा, 'अगर मरीज को लगातार खांसी आ रही है, बुखार बना रह रहा है, तेजी से वजन गिर रहा है, बलगम से खून आ रहा है, भूख नहीं लग रही है, खाने से चिढ़ हो रही है, लगातार पसीना आता है, सर्दी-जुकाम दो हफ्ते तक टिक रहा है तो तत्काल डॉक्टर से परामर्श लेकर टीबी टेस्ट कराएं। ये लक्षण टीबी के हैं।'
टीबी का इलाज कहां कराएं?
टीबी का इलाज, सरकारी अस्पताल में कराएं। सरकारी अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों और आयुष्मान आरोग्य केंद्रों में मुफ्त इलाज भी मिलता है। सरकार टीबी के मरीजों को वित्तीय सहायता भी देती है। अप्रैल 2025 में, इस योजना के तहत वित्तीय सहायता को ₹500 से बढ़ाकर ₹1,000 प्रति माह कर दिया गया है। इलाज के दौरान मरीज को 3000 से 6000 रुपये तक की मदद पोषण के लिए की जाती है। सरकार ने इस योजना का नाम निक्षय पोषण रखा है।
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हम-आप टीबी रोकने के लिए क्या कर सकते हैं?
संक्रमित व्यक्ति को जांच के लिए कराने के लिए कहें। जिसमें लक्षण दिखें उसे परहेज करने का अनुरोध करें, सतर्कता बरतें। टीबी की जांच बेहद आसान होती है। अगर फेफड़ों की टीबी है तो 'थूक' की जांच की जाती है, एक्स-रे से भी टीबी चेक की जाती है। सरकार टीबी पर मदद के लिए टीबी आरोग्य साथी ऐप भी चलाती है। टीबी के लिए सरकारी हेल्पलाइन 1800-11-6666 है।
सरकार टीबी उन्मूलन के लिए क्या कर रही है?
सरकार ने टीबी नियंत्रण के लिए बड़े कदम उठाए हैं। देश में 9,391 रैपिड मॉलिक्यूलर टेस्टिंग सर्विस शुरू की गई है। 107 कल्चर-ड्रग सेंसिटिविटी लैब हैं। 500 से ज्यादा AI हैंडहेल्ड एक्स-रे मशीनें काम कर रहीं हैं। 1,500 नई मशीनें लाने का सरकार ने लक्ष्य रखा है। देश में करीब 1.78 लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिर हैं, जहां टीबी का उपचार किया जाता है। आशा कार्यकर्ताओं प्रशिक्षित किया जा रहा है।
