26 नवंबर 1922  को ब्रिटिश आर्कोलॉजिस्ट हॉवर्ड कार्टर और उनके साथी लॉर्ड कार्नरवॉन ने मिस्त्र की वैली ऑफ द किंग्स में एक ऐतिहासिक खोज की। जब उन्हें सालों की मेहनत के बाद मिस्त्र के 13वें फराओ यानी प्राचीन राजा तूतनखामेन का मकबरा मिला। खोज के दौरान सोने की कलाकृतियों, आभूषणों के अलावा उन्हें सोने का एक भव्य ताबूत मिला जिसमें तूतनखामेन का ममीकृत शरीर रखा था। इस राजा का शासनकाल काफी छोटा था। किंग टुट के नाम से जाने जाने वाले इस राजा ने 1332 ईसा पूर्व से 1323 ईसा पूर्व तक यानी महज 9 साल तक ही मिस्त्र पर शासन किया था और महज 19 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई थी।

 

DNA जांच और CT Scan से वैज्ञानिकों को पता चला कि उसकी मौत का कारण जेनेटिक बीमारियां थीं। छानबीन में पता चला कि तूतनखामेन के माता-पिता सगे भाई बहन थे, जिसकी वजह से उसमें जेनेटिक बीमारियां पनपीं। इसी के चलते उसके पैर में खराबी थी, उसका तालु कटा हुआ था और उसे डिजेनरेटिव बोन डिजीज थी जिसकी वजह से उसकी हड्डियां धीरे-धीरे खराब हो रही थीं और अपने माता-पिता की एक गलती की वजह से मिस्त्र का यह फराओ महज़ 19 साल की उम्र में मर गया।  

 

इतिहास में कज़िन मैरेजिज़ या कहें Consanguineous marriage के ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। फिर चाहे वे मैसेपोटामिया के राजवंश हों, सुमेरिया के राजा अब्रू-उम की बेटी हो या फिर हैब्सबर्ग राजवंश के मैक्सिमिलियन प्रथम जिनकी शादी ने यूरोप की नींव रखी लेकिन इस राजवंश की कज़िन मैरिज वाली गलती ने आगे चलकर पूरे वंश को खत्म कर दिय। ऐसा नहीं है कि ये सब इतिहास की ही बाते हैं। आज भी कज़िन मैरेजिज़ का काफी चलन है जिसकी वजह से पाकिस्तान जैसे देश में बच्चे जेनेटिक बीमारियों से जूझ रहे हैं। ऐसा भी नहीं है सिर्फ पाकिस्तान में ही कज़िन मैरिजिज़ देखने को मिलती हैं। भारत के भी कई राज्यों में कज़िन मैरिज का चलन है, जिसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता है इन शादियों से पैदा हुए बच्चों को…   

 

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आइए समझते हैं कि कैसे कजिन मैरिज ने लाखों बच्चों की किस्मत खराब कर दी है और वह भी उनके पैदा होने से पहले। मेडिकल साइंस इस बारे में क्या कहता है उस पर भी बात होगी? दो कजिन के शादी करने पर ऐसा क्या होता कि अगली पीढ़ी पर तबाही का खतरा मंडराता है और दक्षिण भारत में वह कौन-सी परंपरा है जिसके कारण इसको डिफेंड किया जाता है? यह भी जानेंगे कि कज़िन मैरिज इंसानों की सभ्यता में कब से शामिल है? और इसका धार्मिक एंगल क्या है? पाकिस्तान की भी बात करेंगे जो इस समस्या से सबसे ज्यादा जूझ रहा है?  

 

हाउस ऑफ हैब्सबर्ग

 

साल 1477 में एक ऐसी शादी हुई जिसने यूरोप के नक्शे को हमेशा के लिए बदल दिया। किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह महज एक शादी नहीं, बल्कि एक महाद्वीप की किस्मत की पटकथा थी। हैब्सबर्ग राजवंश के मैक्सिमिलियन प्रथम ने मेरी ऑफ़ बरगंडी से शादी की। इस शादी को 'The Marriage that Made Europe' कहा गया। यानी कि इस विवाह ने यूरोप की नींव डाली। इस शादी ने न सिर्फ इतिहास में कई अहम पन्ने जोड़े बल्कि शादी की एक नई परिभाषा भी पेश की। दरअसल, यह एक रणनीतिक गठबंधन था। इससे बरगंडी का बड़ा क्षेत्र मैक्सिमिलियन प्रथम के कंट्रोल में आ गया। जो आज के बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्ज़मबर्ग के साथ ही फ्रांस के कुछ हिस्सों तक फैला। इस शादी ने दोनों परिवारों की शक्ति और संपत्ति में भारी इजाफा किया।

 

आगे चलकर हाउस ऑफ हैब्सबर्ग ने यूरोप में तेजी से अपने पांव पसारे। बॉर्डर बढ़ाने के लिए उन्होंने सिर्फ युद्द का रास्ता अख्तियार नहीं किया, बल्कि उन्होंने वही रास्ता अपनाया जिसकी शुरुआत मैक्सिमिलियन फर्स्ट ने की थी। यानी- शादी का रास्ता। दो राजवंशों के बीच शादी के रिश्ते ने हैब्सबर्ग को खूब तरक्की दिलाई। इसी वजह से इस राजवंश का एक मोटो फेमस हुआ- Let others wage war; you, happy Austria, marry। यानी- दूसरे युद्ध करें और तुम खुशनुमा ऑस्ट्रिया, तुम विवाह करो।

 

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1496 में मैक्सिमिलियन फर्स्ट के बेटे फिलिप ने स्पेन की जोआना से शादी की। इस तरह हैब्सबर्ग फैमिली के हिस्से में आया- स्पेन, नेपल्स, सिसिली, सार्डिनिया और स्पेन का हिस्सा। इन रणनीतिक शादियों से हैब्सबर्ग ने अलग-अलग कल्चर और क्षेत्रों को अपने कंट्रोल में ले लिया। ऑस्ट्रिया के साथ उन्होंने हंगरी के क्षेत्रों में भी अपना दबदबा बनाया। इतना कि यूरोप के सभी अहम हिस्सों तक उनकी पहुंच बन गई लेकिन 16वीं शताब्दी ने हैब्सबर्ग को एक चिंता सताने लगी। जिस शादी को हथियार बनाकर उन्होंने अपना इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया। शादी का इस तरह का आइडिया किसी और को भी तो आ सकता था। उन्होंने सोचा अगर हैब्सबर्ग परिवार की महिलाओं से बाहर के राजाओं ने शादी कर ली तो उनकी संपत्ति और साम्राज्य पर बुरा असर पड़ सकता है इसलिए उन्होंने अपनी स्ट्रैटजी बदल दी।

 

हाउस ऑफ हैब्सबर्ग ने अपने वंश के खून को शुद्ध रखने का फैसला किया। यानी कि उन्होंने तय किया कि इस वंश के लोग अपने परिवार से बाहर शादी नहीं करेंगे और यहां से हैब्सबर्ग में परिवार के भीतर ही शादी के प्रचलन ने जोर पकड़ लिया। चार्ल्स पंचम ने भी ऐसा ही किया। 1519 में उसने अपनी फर्स्ट कजिन यानी चचेरी बहन से शादी कर ली। फिलिप द्वितीय ने अपनी नीस (भतीजी या भांजी) से शादी की। फिलिप तृतीय ने फर्स्ट कजिन से और फिलिप फोर्थ ने अपनी भतीजी से। परिणाम क्या निकला? परिवार की संपत्ति परिवार में ही रही। शक्ति और भावनाओं का जुड़ाव रहा। साम्राज्य खूब फैला लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

शादी कैसे बनी विनाश का कारण?

 

जिस शादी को हथियार बनाकर इस डायनेस्टी ने अपना सम्राज्य बनाया। वह एक सेल्फ डिस्ट्रक्शन हथियार साबित हुआ। यानी वही उनके खात्मे का कारण बना। अगर दो ऐसे लोग आपस में शादी करते हैं जिनका नजदीक का बल्ड रिलेशन है, तो उसको Consanguineous marriage (कॉन्सेंगुनियस) कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसको कजिन मैरिज भी कहते हैं। इसी कजिन मैरिज के कारण हैब्सबर्ग राजवंश समाप्त हो गया।
 
हुआ यूं कि ब्लड रिलेशन में ब्रीडिंग यानी इन ब्रीडिंग के कारण हैब्सबर्ग की संतानों पर बुरा असर पड़ा। उनके निचले जबड़े और होंठ आगे की ओर निकलने लगे। उनको बोलने और खाने में दिक्कतें होतीं। मानसिक और शारीरिक कमजोरी का सामना करना पड़ता। उनके चेहरे काफी लंबे होते। 

 

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16वीं और 17वीं शताब्दी में इस वंश का स्वर्णकाल चल रहा था। इस वक्त का एक किस्सा है कि स्पेन के लोग चार्ल्स पंचम से कहा करते थे- 'Your majesty, shut your mouth! The flies of this country are very insolent।” यानी-
‘महाराज, अपना मुंह बंद कर लीजिए! इस देश की मक्खियां बहुत बदतमीज़ हैं।’ लेकिन चार्ल्स पंचम का निचला जबड़ा इतना आगे तक निकला था कि वह अपना मुंह बंद नहीं रख पाते थे। आगे चलकर इस खानदान के चार्ल्स द्वितीय (Charles II) पर इनब्रीडिंग का सबसे बुरा असर पड़ा। इतना कि लोगों ने कहा- ‘he was more Habsburg than human’। यानी कि चार्ल्स द्वितीय सामान्य इंसानों से बहुत अलग हो चुके थे।
 
उनकी बनावट तो विचित्र थी ही साथ ही उनकी सेहत भी खराब रहती थी। 3 शताब्दियों की इनब्रीडिंग के कारण वह अपना वंश आगे नहीं बढ़ा पाए। चार्ल्स अपने आखिरी वक्त में खाना खाने तक में सक्षम नहीं थे लेकिन यह इनब्रीडिंग का सबसे खतरनाक रूप नहीं था। यह "mandibular prognathism" की स्थिति थी। कई पीढ़ियों की इनब्रीडिंग से इस वंश के लोगों में विकृत जीन प्रमुख हो गया था। चार्ल्स द्वितीय के DNA अध्ययन (2019, Nature Communications) में पाया गया कि उनके पास 9 पीढ़ियों की इनब्रीडिंग के निशान थे। यानी नौ पीढ़ी पहले से उनके परिवार के लोग आपस में बच्चे पैदा कर रहे थे।

 

आगे चलकर जब मेडिकल साइंस में इसपर रिसर्च हुई तो पता चला कि इनब्रीडिंग अगली पीढ़ी पर इतना बुरा असर डाल सकती है कि बच्चे पैदा होते ही मर जाएं या आगे चलकर उनकी आंखों की रोशनी या सुनने की क्षमता चली जाए या वे अपनी सोचने-समझने की शक्ति खो बैठें। वैसे तो कजिन मैरिज कई पश्चिमी देशों के साथ-साथ दक्षिण भारत और पाकिस्तान में होती रही हैं लेकिन वर्तमान में पाकिस्तान इसका बड़ा भुक्तभोगी है।

दक्षिण भारत की कजिन मैरिज

 

कजिन मैरिज का इतिहास बहुत पुराना है। जो किस्सा हमने आपको बताया उससे भी पुराना। इसके पक्ष में दी जाने वाली दलीलें कमोबेश वही हैं जो हाउस ऑफ हैब्सबर्ग से समझ आती हैं। यानी- संपत्ति। इसके अलावा इसमें एक एंगल यह भी जुड़ता है कि महिला शादी के बाद भी अपने परिवार के करीब रह पाती है। एक तर्क यह भी है कि कजिन मैरिज में सिम्पथी यानी हमदर्दी का स्कोप ज्यादा होता है और इन सबसे बढ़कर एक और चीज है जिसके कारण लोग इससे जुड़ते हैं। वह है- कल्चर। समय के साथ इसमें दहेज और गरीबी जैसे कारण भी जुड़ते हैं। परिवार के भीतर ही शादी का मतलब है- दहेज नहीं देना पड़ेगा और खर्चा बचेगा लेकिन असल सवाल यह है कि यह सब कुछ किस कीमत पर हो रहा है? इस सवाल पर वापस लौटेंगे।

 

अभी इस कल्चर की बात कर लेते हैं। पाकिस्तान या पाकिस्तान के लोग- जो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। उनके बीच यह Consanguineous marriage सबसे ज्यादा लोकप्रिय है लेकिन पड़ोसी की बात करने से पहले क्यों न अपनी बात की जाए। हम यहां बात करेंगे एक रिपोर्ट की। रिपोर्ट है- नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 यानी NFHS 5 2019-21। इसके मुताबिक, भारत में करीब 11 प्रतिशत शादियां Consanguineous marriage होती हैं और यह दक्षिण भारत के राज्यों में आम है। यह तमिलनाडु (28 प्रतिशत), कर्नाटक (26 प्रतिशत) और आंध्र प्रदेश (26 प्रतिशत) जैसे राज्य में आम है। केरल में ऐसी शादियों की संख्या कम (4.4 प्रतिशत) है।ॉ

 

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इसके अलावा पुडुचेरी, तेलंगाना, लद्दाख, महाराष्ट्र, ओडिशा और जम्मू-कश्मीर में भी इस तरह की शादियां होती हैं। इससे इतना तो तय हो जाता है कि कजिन मैरिज इंसानों के लिए कोई नई बात नहीं है। जनसंख्या के एक हिस्से की जीवनशैली में यह बहुत पहले से शामिल रहा है। फिर यह टैबू कैसे बन गया? हम इसके बारे में बातचीत करने से बचने कैसे लगे? इसका एक कारण यह है कि आमतौर पर कजिन मैरिज को एक खास धर्म से जोड़ा जाता है। खासकर यह उत्तर भारत के क्षेत्रों में होता है। जहां ऐसी शादियों के लिए कजिन मैरिज या Consanguineous marriage जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि इसको ‘बहन से शादी’ कह दिया जाता है। Consanguineous marriage का यह मतलब बिल्कुल नहीं है। दक्षिण भारत में ऐसा भी नहीं है कि कोई भी अपने किसी कजिन से शादी कर लेता है। जो आमतौर पर पाकिस्तान में होने वाले कजिन मैरिज से अलग है। 

 

कजिन का मतलब है- मामा, चाचा, बुआ या मौसी के बच्चे। साउथ इंडिया में इनको दो तरीके से बांटा गया है। पैरलल कजिन और क्रॉस कजिन। पैरलल कजिन का मतलब है- मां-बाप के सेम जेंडर वाले भाई या बहन के बच्चे। पिता के भाई यानी चाचा के बच्चे और मां की बहन यानी मौसी के बच्चे। इनको कहा जाता है पैरलल कजिन। दक्षिण भारत के कल्चर में पैरलल कजिन आपस में शादी नहीं करते या इनकी संख्या काफी कम है। दूसरी तरफ हैं क्रॉस कजिन- ये होते हैं मां-बाप के अपोजिट जेंडर वाले भाई या बहन के बच्चे। पिता की बहन यानी बुआ के बच्चे और मां के भाई यानी मामा के बच्चे। ये होते हैं क्रॉस कजिन। साउथ इंडिया में इनके बीच शादियां आम हैं। कुछ जगहों पर एक और बात आम है और वह है किसी मर्द का अपनी बहन की बेटी यानी अपनी भांजी से शादी करना। यह भी Consanguineous marriage में आता है।
 
तमिल शादियों में एक रस्म होती है। जब दुल्हा और दुल्हन घर में प्रवेश करते हैं, तब दूल्हे की बहन उनको रोकती है और पूछती है कि क्या तुम फ्यूचर में अपनी बेटी की शादी मेरे बेटे से करवाओगे। जवाब जब हां में होता है तभी उनको प्रवेश करने दिया जाता है। केरल के कुछ हिस्सों में “Marumakkathayam” (मरुमक्कथायम) जैसी प्रथा के कारण भी Consanguineous marriage का प्रचलन था। मरुमक्कथायम, एक तरह का इनहेरिटेंस सिस्टम था। इसमें संपत्ति और वंश की परंपरा पिता की ओर से नहीं चलती बल्कि मां की ओर से चलती है। यानी किसी महिला की शादी अगर परिवार से बाहर हुई तो उसके साथ संपत्ति भी बाहर चली जाएगी लेकिन अगर शादी परिवार में हुई तो संपत्ति भी परिवार में ही रहेगी। हालांकि, जैसे-जैसे यह व्यवस्था कम हुई, केरल में Consanguineous marriage की संख्या भी कम हुई। दूसरे इलाकों में भी इस तरह की शादियां कम हो रही हैं क्योंकि लड़कियां घर से बाहर निकल रही हैं। नौकरी कर रही हैं और नए लोगों से मिल रही हैं और सबसे बड़ी बात, इस तरह की शादी के जोखिमों के बारे में भी अब बातचीत शुरू हो गई है। उन जोखिमों पर लौटेंगे लेकिन उससे पहले पाकिस्तान और पाकिस्तान मूल के लोगों की बात करते हैं। 

पाकिस्तान में कजिन मैरिज

 

इस मामले को लेकर पाकिस्तान में दो धड़े हैं। एक धड़ा जो जागरूक है और मेडिकल साइंस के नए रिसर्च को मानने को राजी है। इसमें बड़ी संख्या में डॉक्टर्स आते हैं और दूसरे वे हैं जो आंखमूंद कर कजिन मैरिज में भरोसा ही नहीं करते बल्कि इसे बढ़ावा भी देते हैं। यहां दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर लोग इसके रिस्क को जानते हैं। इसके बावजूद वे इसका बचाव करते हैं।

 

एक उदाहरण तो जाकिर नाईक का ही है। जो एक विवादित इस्लामिक स्कॉलर के साथ-साथ पेशे से डॉक्टर भी हैं। डॉक्टर होने के नाते वे इस बात को मानते हैं कि फर्स्ट कजिन मैरिज से आने वाली पीढ़ी पर बुरा असर पड़ता है लेकिन वे पूरी तरह से इसका विरोध करने से बचते हैं और इस रिस्क को बहुत कम बताते हैं। ऐसा क्यों? इसका एक धार्मिक एंगल भी है। कुरान में उन महिलाओं के बारे में लिखा गया है जिनसे इस्लाम का पालन करने वाले लोग शादी नहीं कर सकते। सूरह अन-निसा के चैप्टर चार और वर्स 23 में इसका जिक्र है। जिसमें कजिन का जिक्र नहीं है। अब Consanguineous marriage को डिफेंड करने वाले कई लोग इसी बात का सहारा लेते हैं।

 

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ऑनलाइन ऐसे सैकड़ों पाकिस्तानी डॉक्टर्स मिल जाएंगे जो खुलकर इसके नुकसान गिनाते हैं और पाकिस्तान के लोगों को इससे दूर रहने की सलाह देते हैं। ये कौन से नुकसान हैं? क्या होता है जब ब्लड रिलेशन में शादी होती है? मेडिकल साइंस इस पर क्या कहता है? इसको बिल्कुल आसान भाषा में समझते हैं।

कजिन मैरिज का मेडिकल साइंस

 

जब फर्स्ट कजिन्स की शादी होती है तो उनके ग्रैंडपैरेंट्स सेम होते हैं। अगर किसी एक ग्रैंडपैरेंट के पास बीमारी वाला कोई जीन है तो कजिन्स के माता-पिता में उसके होने की 50 प्रतिशत संभावना होती है और फिर उन कजिन्स में इसकी संभावना और ज्यादा होती है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की वेबसाइट पर छपी एक रिसर्च के मुताबिक, फर्स्ट कजिन्स अपने जीन का लगभग 12.5% (1/8) हिस्सा शेयर करते हैं। इसका मतलब है कि हर 8 में से 1 जीन, दोनों के अंदर एक जैसा होता है। जब ये दोनों आपस में शादी करते हैं तो उनके बच्चे में लगभग 6.25% (1/16) जीन ऐसे होंगे जिनकी दोनों कॉपियां यानी कि माता और पिता की ओर से आने वाली जीन की कॉपियां एक जैसी होंगी।

 

अगर किसी बच्चे को एक ही जीन की दो एक जैसी कॉपियां मिलें और दोनों बीमारी वाले जीन हों तो वह गंभीर बीमारी या जेनेटिक डिसऑर्डर में बदल सकता है। आमतौर पर बच्चों में जेनेटिक डिसऑर्डर का खतरा 2 से 3 प्रतिशत तक होता है लेकिन फर्स्ट कजिन मैरिज के मामले में यह 4 से 7 प्रतिशत तक हो जाता है। यानी कि लगभग दोगुना और जब पीढ़ी दर पीढ़ी इसको बार-बार दोहराया जाता है तो यह खतरा और बढ़ता चला जाता है। जैसा कि हाउस ऑफ हैब्सबर्ग के साथ हुआ। अब यह 4 से 7 प्रतिशत का खतरा कुछ लोगों को कम लग सकता है लेकिन जब किसी देश में ऐसी शादियों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाए। जैसा कि पाकिस्तान में है। जहां लगभग 65 प्रतिशत शादियां कजिन मैरिज हैं। ऐसी स्थिति में जेनेटिक डिसऑर्डर वाले बच्चों की संख्या भी बढ़ जाती है और जाहिर तौर पर यह चिंता का विषय बन जाता है।

 

अब यहां बात सिर्फ जेनेटिक डिसऑर्डर की भी नहीं है। इसी साल फरवरी महीने में BBC ने 2007 से 2010 के बीच हुई Born in Bradford नाम के एक रिसर्च की जानकारी दी। इसमें 13,000 से अधिक बच्चों को शामिल किया गया था। इसके अनुसार- ब्लड रिलेशन से बाहर हुई शादियों में। बच्चों के अच्छे विकास की संभावना 64 प्रतिशत तक होती है जबकि फर्स्ट कजिन मैरिज में ये 53.7 प्रतिशत रह जाती है। ब्लड रिलेशन से बाहर हुई शादियों के मामले में। 7.4 प्रतिशत संभावना होती है कि बच्चे को बोलने और भाषा समझने में दिक्कत होगी लेकिन फर्स्ट कजिन मैरिज में यह जोखिम बढ़कर 11.3 प्रतिशत हो जाता है।

 

फर्स्ट कजिन मैरिज में पैदा हुए बच्चे को अगर जेनेटिक डिसऑर्डर नहीं होता तो भी उन्हें दूसरे बच्चों की तुलना में डॉक्टर के ज्यादा चक्कर लगाने पड़ते हैं। बात जब फर्स्ट कजिन मैरिज से सेकेंड कजिन मैरिज और थर्ड कजिन मैरिज। इस तरह से और आगे तक जुड़ी होती है, तो उसका क्या अंजाम हो सकता है। इसका एक उदाहरण हम हैब्सबर्ग के चार्ल्स द्वितीय के मामले में देख सकते हैं। अब इन सारी बातों का सिरा कहां है?
 
फर्स्ट कजिन मैरिज में हुए बच्चों में जेनेटिक डिसऑर्डर का खतरा है लेकिन इसके बावजूद भी ये दक्षिण भारत और पाकिस्तान में क्यों बरकरार है? इसका एक मुख्य कारण है- कल्चर। यानी पूर्वज ऐसा करते आ रहे हैं तो आगे भी लोग करते जा रहे हैं। लोगों के जीने का तरीका- समाज की फिलॉसफी, मौजूदा साइंस और तकनीक के साथ-साथ धर्म और राजनीति से प्रभावित होता है। धीरे-धीरे ही सही लेकिन इसमें वैज्ञानिक रूप से बदलाव भी आता है। जेनेटिक डिसऑर्डर का 4 से 7 प्रतिशत का खतरा किसी को कम लग सकता है। किसी को ज्यादा लेकिन पाकिस्तान में ऐसे कई परिवार हैं जिनमें कई बच्चे पैदा हुए और सभी जेनेटिक डिसऑर्डर के साथ। कोई देख नहीं सकता, कोई चल नहीं सकता, कोई सुन नहीं सकता, कोई जन्म से मानसिक रूप से विकलांग है तो कोई उम्र बढ़ने के साथ इन विकृतियों का शिकार हो गया। 

 

कई ऐसे बच्चे भी हुए जिनके पैदा होते ही उनकी किडनी फेल हो गई या किसी और कारण से उनकी जान चली गई। पाकिस्तान की तुलना में दक्षिण भारत में ये संख्या कम हो सकती है लेकिन रिस्क तो वहां भी है। अब साउथ इंडिया हो या पाकिस्तान, सवाल है कि जब मेडिकल साइंस हमें इन खतरों के बारे में आगाह कर रहा है तो फिर क्या सिर्फ कल्चर और अपनी सहूलियत के नाम पर हम यह रिस्क ले सकते हैं? और जो ले रहे हैं क्या उनको अपनी अगली पीढ़ी के लिए इस तरह की किस्मत लिखने का अधिकार है? सवाल तो बनता है… 


बीबीसी की एक रिपोर्ट में इस ओर भी इशारा किया गया है कि पाकिस्तान के कई परिवार अपने बच्चों को कजिन मैरिज के लिए फोर्स करते हैं। कई दूसरे रिपोर्ट्स से यह भी पता चलता है कि कई मामलों में यह ऑनर किलिंग तक पहुंचा।

क्या है समाधान?

 

अब इस मामले को ऐसे भी समझ लेते हैं कि दो कजिन ने आपस में शादी करने का फैसला कर ही लिया है या उनकी शादी करा ही दी गई है तो? इस स्थिति में उनके बच्चों के भविष्य को कैसे सुरक्षित किया जा सकता है? इस बारे में Seeds of Innocense & HomeIVF की फाउंडर डॉक्टर गौरी अग्रवाल खबरगांव को बताती हैं कि ऐसे मामले में पैरेंट्स को करियर जेनेटिक टेस्टिंग की सलाह दी जाती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि दोनों में जेनेटिक डिसऑर्डर या किसी गंभीर बीमारी वाले जीन तो नहीं। अगर ऐसा होता है तो उन्हें बच्चे के लिए IVF जैसी तकनीक का सहारा लेने को कहा जाता है।

 

हालांकि, पाकिस्तान में अब कजिन मैरिज को लोग नकार रहे हैं। खासकर जेनजी। हालांकि, यह प्रक्रिया बहुत धीमी है। इतनी कि यहां अब भी बस फर्स्ट कजिन मैरिज की ही बात हो रही है लेकिन फर्स्ट कजिन मैरिज को नकारना इस समस्या का एक सिरा है। इसकी जड़ों में है- Consanguineous marriage। यानी नजदीक के ब्लड रिलेशन में होने वाली शादियां हैं- जैसे भतीजी या भांजी से शादी। बेहतर तो इसको माना जाता है कि लोग कुछ पीढ़ी पीछे तक के ब्लड रिलेशन में शादी से बचें और अगर पूरी तरह से मेडिकल साइंस को सच मानकर आगे बढ़ा जाए, यानी विज्ञान को ही सच मान लें तो- इस पूरी चर्चा में शादी या प्रेम कोई समस्या ही नहीं है। असल समस्या है- बच्चे और उनकी सेहत। इसको और सरल करें तो किन्हीं ऐसे दो लोगों को आपस में बच्चे पैदा नहीं करने चाहिए- जिनमें जेनेटिक डिसऑर्डर वाले किसी जीन की सेम कॉपीज होने की संभावना हो और वह पता चलेगा- करियर जेनेटिक टेस्टिंग से।

बैन होनी चाहिए कजिन मैरिज?

 

8वीं से11वीं शताब्दी में कैथोलिक चर्च ने Consanguineous marriage पर सख्ती से पाबंदी लगा दी थी लेकिन तब इसका कोई मेडिकल कारण नहीं था। बल्कि तब चर्च को यह लगा था कि समाज बुद्धि-विवेक और शक्ति-संपत्ति के मामले में सीमित होता जा रहा है इसलिए लोगों को बाहर निकलने और नए लोगों के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया। कई और कारण भी थे।

 

19वीं सदी के अंत तक अधिकतर पश्चिमी देशों ने कजिन मैरिज को नकारना शुरू कर दिया था लेकिन Middle East और South Asia में यह अब भी अस्तित्व में है। चीन ने 1981 में इसको बैन कर दिया था। यहां थर्ड डिग्री तक यानी तीन पीढ़ी पीछे तक के ब्लड रिलेशन में शादी नहीं की जा सकती। दक्षिण कोरिया में तो कुछ समय तक सेम सरनेम और एक वंश के लोगों के बीच भी शादी पर रोक थी लेकिन बाद में इसको बदला गया। वर्तमान में आठवीं डिग्री यानी कई पीढ़ी पहले तक के ब्लड रिलेशन में शादियों पर रोक है।
 
पिछले साल खबर आई थी कि उज्बेकिस्तान की सरकार कजिन मैरिज पर बैन लगाने की तैयारी कर रही है। हालांकि, यह नियम अब तक लागू नहीं हुआ है लेकिन इसका कारण बच्चों में हो रहे जेनेटिक डिसऑर्डर को ही बताया गया है। अमेरिका के अलग-अलग राज्यों में इसको लेकर अलग कानून है। ब्रिटेन भी उन देशों में से एक है जहां इस मामले को लेकर हाल ही में चर्चा हुई। वहां रहने वाले वाले करीब 55 प्रतिशत ब्रिटिश पाकिस्तानियों ने अपने फर्स्ट कजिन से शादी की है। पूरे देश में यह आंकड़ा तीन प्रतिशत का है। पिछले साल यहां भी एक कंजर्वेटिव सांसद ने फर्स्ट कजिन मैरिज को बैन करने की मांग उठाई थी लेकिन यह कानून बनने तक नहीं पहुंच पाया। कई लोगों ने इसका विरोध किया था। जिस परंपरा ने हैब्सबर्ग जैसे राजवंश को खत्म कर दिया। उसको बैन करना चाहिए या नहीं यह तो पॉलिसी मेकर्स और कानून बनाने वाले जानें।