उम्र कोई 12-13 साल। एक रिश्तेदार की शादी में जाना था। लड़के का मन नहीं था। चाचा ने रिश्वत दी। ऑफर था- 'अगर शादी में चलेगा, तो फिल्म दिखाऊंगा।' लड़का मान गया। लुधियाना का मिनर्वा सिनेमा हॉल। जहां फिल्म लगी थी 1948 की शहीद और पर्दे पर थे दिलीप कुमार। दिलीप कुमार का जादू ऐसा चढ़ा कि लड़का घर में छिप-छिपकर शहीद के सीन दोहराने लगा।
जिंदगी का अब एक्के मकसद था- दिलीप कुमार बनना।
कट टू ईयर 1953, गांव का वह लड़का बंबई पहुंचा और सीधा गया पाली हिल। एक बॉलीवुड ऐक्टर के घर। सोचा, यहां भी गांव जैसा होगा। घर खुले रहते होंगे। गेट खुला था। कोई गार्ड नहीं। वह सीधे अंदर चला गया। सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंच गया। एक कमरा दिखा। दरवाजा खोला। अंदर एक दुबला-पतला नौजवान सो रहा था। आहट से उसकी नींद खुली। वह शख्स दिलीप कुमार थे। दिलीप कुमार ने देखा, एक अजनबी उनके बेडरूम में खड़ा उन्हें घूर रहा है। वह जोर से चिल्लाए, 'कौन हो तुम?'
लड़के की सिट्टी-पिट्टी गुम। वह इतना डरा कि उल्टे पांव सीढ़ियों से भागा और बंगले से निकलकर ही रुका। यह कहानी उसी लड़के की है। जो अपने आइडल के बेडरूम से तो भाग आया था लेकिन एक दिन खुद लाखों का आइडल बनने वाला था। यह कहानी है धरमिंदर सिंह देओल की। जो पंजाब के एक गांव से बंबई आया। सपना था बस एक फ्लैट और एक फिएट कार लेकिन वह बना हिंदुस्तान का सबसे बड़ा सुपरस्टार। यह कहानी उस He-Man की है, उस फैमिली मैन की है और उस अनरेवॉर्डेड ऐक्टर की है, जिसने 60 साल से ज्यादा हिंदी सिनेमा के दिल पर राज किया।
यह किस्सा है हिंदी सिनेमा के ही मैन धरमिंदर सिंह देओल का लेकिन बंबई पहुंचने से पहले। यह कहानी पंजाब की मिट्टी से शुरू होती है। वह मिट्टी, जिसे धरम पाजी कभी नहीं भूले।
पंजाब से बिमल रॉय की माछ तक
यह कहानी शुरू होती है 8 दिसंबर 1935 से। पंजाब का लुधियाना जिला। एक छोटा सा गांव, नसराली। यहीं धरमिंदर सिंह देओल का जन्म हुआ। पिता थे केवल किशन सिंह, स्कूल हेडमास्टर। मां थीं सतवंत कौर। पिता की नौकरी जहां लगती, परिवार वहीं चल पड़ता तो धरम का ज्यादातर बचपन बीता साहनेवाल गांव में। उनके सबसे करीबी दोस्तों में से एक, शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं, 'धरम आज भी वही टिपिकल जाट है। पंजाब का खरा आदमी। दिल का साफ।' धरम भी उस मिट्टी को कभी नहीं भूले।
राजीव विजयकर अपनी किताब 'Dharmendra: Not Just a He-Man' में एक शानदार किस्सा बताते हैं। साल 2002 में धर्मेंद्र लगभग 40 साल बाद अपने बचपन के गांव लालतों कलां लौटे। रात के 9:30 बज रहे थे। गांव सो चुका था। धर्मेंद्र ने एक किसान का दरवाजा खटखटाया। एक औरत बाहर आई। धर्मेंद्र ने पूछा, 'राम सिंह का घर कहां है?' राम सिंह, वह शख्स जिनके घर में धर्मेंद्र का परिवार कभी किराए पर रहता था। उस औरत ने सुपरस्टार को पहचान लिया। वह उनका हाथ पकड़कर अंदर ले गईं।
दो मिनट। खबर आग की तरह फैल गई। 'धरम आया है!' जो गांव 10 बजे सो जाता था, वह जाग गया। मेले जैसा माहौल हो गया। लोग अपने घरों से दूध, जलेबियां, सरसों का साग और मक्की की रोटी ले-लेकर आने लगे। धर्मेंद्र एक खाट पर बैठ गए। जब उनके पुराने मकान मालिक राम सिंह आए, तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने धर्मेंद्र को उनके पिता की एक पुरानी तस्वीर भेंट की। धर्मेंद्र उस तस्वीर को देखकर रो पड़े। वह अपने बचपन के एक दोस्त सुरजीत सिंह के घर भी गए, जिनका देहांत हो चुका था। वहां जाकर उन्होंने सुरजीत की बीवियों और बेटियों को शगुन के पैसे दिए।
मिट्टी का आदमी, यह हेडमास्टर का बेटा, मायानगरी बंबई कैसे पहुंच गया? इसकी शुरुआत भी एक फिल्मी सीन की तरह हुई। एक रिश्वत से। धरम तब कोई 12-13 साल के थे। एक रिश्तेदार की शादी में जाना था लेकिन धरम का मन नहीं था। उनके चाचा ने लालच दिया। 'अगर शादी में चलेगा, तो फिल्म दिखाऊंगा।' धरम मान गए। लुधियाना का मिनर्वा सिनेमा हॉल। फिल्म लगी थी 1948 की शहीद और पर्दे पर थे दिलीप कुमार बस। उस एक फिल्म ने लड़के की जिंदगी का मकसद तय कर दिया। वह फिल्म उनके दिमाग पर छा गई। उन्हें लगता था कि वह और फिल्म का हीरो राम, भाई हैं। वह घर में छिप-छिपकर शहीद के सीन करने लगे। उन्हें राम बनना था। उन्हें दिलीप कुमार बनना था।
पिताजी चाहते थे कि बेटा प्रोफेसर बने लेकिन बेटे का सपना। बहुत मामूली था। जैसा उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में बताया, 'मेरी भगवान से बस एक ही दुआ थी कि जैसे मेरे आइडल्स की तस्वीरें हर जगह लगी हैं, मेरी भी लग जाएं।' यह सपना पूरा करने के लिए धर्मेंद्र मां का आशीर्वाद लेकर बंबई पहुंच गए लेकिन यहां मायूसी हाथ लगी।
युवा धर्मेंद्र ने कुछ दिन धक्के खाए। रिजेक्शन झेला। दिलीप साहब के बंगले में घुसने वाला किस्सा हमने शुरुआत में सुनाया था, वह इसी बंबई की पहली यात्रा के दौरान हुआ। अपने आइडल से मिलने में नाकाम रहने के चलते धर्मेंद्र बहुत दुखी हुए और वापस पंजाब लौट आए।
हालांकि, बाद में फिल्मफेयर कॉन्टेस्ट के दौरान दिलीप कुमार की बहन फरीदा ने धर्मेंद्र की मुलाकात अपने भाई से करवाई । इसके बाद यह दोस्ती लम्बे समय तक कायम रही। धर्मेंद्र ताउम्र दिलीप कुमार के फैन रहे। 2021 में जब दिलीप कुमार का निधन हुआ, तो धर्मेंद्र खूब रोए। दिलीप साहब को श्रद्धांजलि देती उनकी तस्वीरें देखकर कोई भी बता सकता था कि दिलीप कुमार का धर्मेंद्र के लिए क्या कद था।
इंदिरा टुडे से बातचीत के दौरान वह दिलीप साहब को याद करते हुए कहते हैं, 'मेरे लिए वह खुदा थे, उनके घर को देखकर ही सजदा कर लेता था जैसे तीरथ हो मेरे लिए, जिस दिन वह मिले मैं उनका वह मेरे हो गए।’ बहरहाल, वापस कहानी पर लौटें तो बंबई में फेल होने के बाद धर्मेंद्र वापिस पंजाब लौटे और 1954 में उनकी शादी प्रकाश कौर से हो गई। उन्होंने एक अमेरिकन ड्रिलिंग कंपनी में मैकेनिक की नौकरी कर ली। 1957 में उनके पहले बेटे, अजय सिंह देओल यानी सनी देओल का जन्म हुआ। जिंदगी पटरी पर थी लेकिन दिल में वह शहीद वाली आग अभी भी जल रही थी।
एक दिन वह अपनी मां को फिल्म दिखाने ले गए। उनकी मां ने कहा, 'तू बंबई फिल्म इंडस्ट्री में ही कोई जॉब के लिए अप्लाई क्यों नहीं करता? शायद तब तेरे पिता जी भी इतना गुस्सा नहीं करेंगे।' धरम ने सोचा, 'ऐक्टर की जॉब के लिए अप्लाई कैसे करते हैं?' तभी किस्मत ने इशारा किया। उनकी नजर फिल्मफेयर मैगजीन के एक ऐड पर पड़ी। फिल्मफेयर यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स टैलेंट कॉन्टेस्ट। नए चेहरों की तलाश। धरम ने सोचा, यह रही जॉब एप्लीकेशन!। वह फौरन पास के कस्बे मनेर कोटला गए। वहां स्टूडियो था, John & Sons। तस्वीरें खिंचवाईं। फॉर्म भरा और बंबई भेज दिया।
कई दिन बीत गए। कोई जवाब नहीं आया। धरम को लगा, यह मौका भी गया। वह फ्रस्ट्रेशन में गए और अपने बाल एकदम छोटे कटवा लिए और तभी चिट्ठी आई। उनका दोस्त साइकिल पर भागा-भागा आया। उन्हें बंबई के फाइनल राउंड के लिए बुलाया गया था। फर्स्ट क्लास ट्रेन का टिकट। फाइव स्टार होटल में रहना। सब फिल्मफेयर की तरफ से। धरम बंबई पहुंचे लेकिन यहां एक पेच था। उन्होंने जो तस्वीरें भेजी थीं, वे लंबे बालों में थीं और अब वह पहुंच गए थे छोटे बालों में। विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन पर उन्हें फिल्मफेयर की गुलशन इविंग रिसीव करने आई थीं। वह धरम को पहचान ही नहीं पाईं!। बाद में धरम ने बताया, 'मैं गांव से आया था। जब उन्होंने हाथ बढ़ाया, तो मैंने शरमाते-शरमाते अपना हाथ आगे किया। मैं तो शरमा भी जाता था।'
यह शर्मीला लड़का अब कॉन्टेस्ट के फाइनल में था। जज थे बिमल रॉय और गुरु दत्त। यहां एक और किस्सा हुआ। धर्मेंद्र रिजल्ट का इंतजार कर रहे थे। घबराए हुए। तभी बिमल रॉय के असिस्टेंट देबू सेन ने उन्हें बुलाया, 'बिमल दा बुला रहे हैं।' धर्मेंद्र अंदर गए। बिमल रॉय ने उन्हें अपने बंगाली अंदाज में धरमेंदु बुलाया। उन्होंने कहा, 'आओ धरमेंदु। मेरी बीवी ने माछ भेजा है। चलो, लंच करो।'एक लेजेंड, एक स्ट्रगलर के साथ अपना लंच शेयर कर रहा था। धर्मेंद्र के गले से निवाला नहीं उतर रहा था। वह टेंशन में थे। तभी बिमल रॉय ने मछली खाते-खाते, बड़े आराम से कहा, टऔर धरमेंदु, तुम बंदिनी कर रहा है।' धर्मेंद्र का हाथ रुक गया। उन्होंने बाद में कहा, 'अब मैं खुशी के मारे नहीं खा पा रहा था!' धर्मेंद्र कॉन्टेस्ट जीत गए। उन्हें लगा, बस। अब तो लाइफ सेट है लेकिन बंबई में इतनी आसानी से लाइफ सेट नहीं होती।
गैराज, फ्रंटियर मेल और आठ आने का कर्ज
कॉन्टेस्ट जीतने के बाद भी, धर्मेंद्र को दो साल तक धक्के खाने पड़े। वह वर्सोवा में एक गैराज के ऊपर, एक छोटे से कमरे में रहते थे। कई-कई दिन खाना तक नहीं मिलता था। वह वर्सोवा से पैदल चलकर जुहू होते हुए, दादर के स्टूडियोज तक जाते थे। धर्मेंद्र बताते थे कि जुहू में जिस बंजर जमीन को वह रोज पैदल पार करते थे, आज उनका बंगला वहीं है।
यह वह दौर था, जब उनकी दोस्ती मनोज कुमार से हुई। धरम उन्हें मन्नो बुलाते, मनोज कुमार उन्हें धरमू बुलाते। उनके साथ एक तीसरा स्ट्रगलर भी था - शशि कपूर। मनोज कुमार कहते हैं, 'शशि, राज कपूर का भाई था लेकिन उसने कभी स्टार जैसा बर्ताव नहीं किया। हम तीनों साथ में काम मांगने जाते थे और दिल में यह होता था कि हममें से किसी एक को भी ब्रेक मिल जाए।'
स्ट्रगल इतना लंबा हो गया कि धरम का धीरज जवाब दे गया। एक दिन मनोज कुमार को धर्मेंद्र का खत मिला। लिखा था, 'मैं फ्रंटियर मेल से वापस जा रहा हूं।' मनोज कुमार भागे-भागे माटुंगा गए। देखा, धरम ने बैग पैक कर लिए थे। उन्हें दिल्ली में एक नौकरी मिल गई थी। धरम ने कहा, 'कुछ नहीं होगा यहां। मैं वह नौकरी भी खो दूंगा।' मनोज कुमार अड़ गए, टकहीं नहीं जाना! दो महीने रुक! तेरा सारा खर्चा मैं उठाऊंगा!'
धर्मेंद्र रुक गए और कुछ ही दिन बाद, उन्हें एक फिल्म मिली लेकिन किस्मत देखिए। फिल्म की शूटिंग शुरू हुई और धर्मेंद्र को जॉन्डिस हो गया। वजन गिर गया। गाल पिचक गए। वह आर्मी अफसर के रोल में बहुत बीमार लग रहे थे। प्रोड्यूसर ने 10 दिन इंतजार किया और फिर उन्हें फिल्म से निकाल दिया।
बिमल रॉय की बंदिनी अभी शुरू नहीं हुई थी। धर्मेंद्र हार मान चुके थे और तब उनकी जिंदगी में एक शख्स आया। डेंटल सर्जन, अर्जुन हिंगोरानी। यह वही हिंगोरानी थे, जो स्ट्रगल के दिनों में धरम को जेब में एक रुपया होने पर आठ आने दे दिया करते थे। अर्जुन हिंगोरानी ने धर्मेंद्र को उनकी पहली फिल्म ऑफर की- 'दिल भी तेरा हम भी तेरे'। धर्मेंद्र आखिर तक कहते रहे, 'आज भी अर्जुन जी कमरे में आ जाएं, तो मैं उठकर उनके पैर छूता हूं।'
साल 1960। पहली फिल्म का प्रीमियर। धर्मेंद्र वर्सोवा से अंधेरी पैदल गए। वहां से ट्रेन पकड़कर सेंट्रल टॉकीज पहुंचे। फिल्म शुरू हुई। धर्मेंद्र का रोल सेकंड लीड था। असली हीरो बलराज साहनी थे लेकिन अपनी पहली ही फिल्म में उन्हें एक बॉक्सर का रोल मिला। मर्दानगी का टैग, पहली ही फिल्म से जुड़ गया। धर्मेंद्र ने खुद को पर्दे पर देखा और इंटरवल में ही, वह थिएटर से भाग गए।
उन्होंने बाद में बताया, 'मैं इतना डिप्रेस हो गया कि मैं सब छोड़कर घर जाना चाहता था। मैंने सोचा, क्या मैं यह करने आया हूं? मुझे अपनी परफॉरमेंस बिलकुल पसंद नहीं आई!' अगले हफ्ते, स्क्रीन अखबार ने रिव्यू दिया: 'नया लड़का धरमिंदर। ठीक-ठाक काम किया है। थोड़ी और ट्रेनिंग मिली, तो अच्छा कर लेगा।'
ठीक-ठाक। वह लड़का, जो कॉन्टेस्ट जीता था। जो बिमल रॉय की फिल्म साइन कर चुका था। वह अपनी पहली परफॉरमेंस से इतना डिप्रेस था कि भाग गया और इंडस्ट्री को उसका नाम समझने में भी वक्त लग गया।
'दिल भी तेरा हम भी तेरे' में उनका नाम क्रेडिट्स में लिखा था Dharmender। दो साल बाद, 1962 में फिल्म आई शादी। उसमें नाम हो गया Dharmendra। आखिरकार 1962 में ही सूरत और सीरत और अनपढ़ जैसी फिल्मों से नाम फिक्स हुआ - Dharmendra।
नाम फिक्स हो गया। पैसा भी ठीक ठाक कमाना शुरू कर दिया। धर्मेंद्र खार में 180 रुपये महीने पर एक फ्लैट में किराए पर रहने लगे। उस जमाने में यह बड़ी रकम थी। फ्लैट मिलते ही उन्होंने अपने मां-बाप, पत्नी प्रकाश कौर और बेटे अजय को बंबई बुला लिया। यहां भी एक मजेदार किस्सा है। उनकी मां तो फौरन आने को तैयार थीं लेकिन उनके पिता, हेडमास्टर केवल किशन सिंह, अभी भी नाराज थे। वह नाराज थे कि बेटे ने उनका प्रोफेसर बनने का सपना तोड़ दिया था। धर्मेंद्र ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की। एक दिन उन्होंने अपने पिता को फोन किया और कहा, 'पिताजी, आप नाराज मत हो। मैंने अपनी एक फिल्म में एकेडमिक टाइप का, प्रोफेसर जैसा रोल किया है।' यह सुनकर उनके पिता और भड़क गए। वह फोन पर चिल्लाए, 'उल्लू के पट्ठे! मेरा मतलब असली प्रोफेसर से था!'
खैर, पिता का गुस्सा ज्यादा दिन नहीं रहा। वह मान गए और पूरा परिवार बंबई शिफ्ट हो गया। धर्मेंद्र का करियर अब सेट हो गया था। 1961 में आई 'शोला और शबनम'। यह उनकी पहली बड़ी हिट थी। और फिर 1963 में बिमल रॉय ने अपना वादा निभाया। वह फिल्म रिलीज हुई, जिसका वादा उन्होंने माछ खाते-खाते किया था - बंदिनी।
He-Man नाम कैसे मिला?
बिमल रॉय की बंदिनी में धर्मेंद्र ने एक सीरियस, सेंसिटिव राइटर का रोल किया था। इसमें उनकी परफॉरमेंस की बहुत तारीफ हुई लेकिन वह हीरो अभी नहीं बने थे। 1964 में धर्मेंद्र ने वह किया, जो कोई रोमांटिक हीरो करने से डरता। वह आई मिलन की बेला में विलेन बन गए। फिल्म सुपरहिट हुई। कहा जाता है कि इसी फिल्म से राजेंद्र कुमार इतने इम्प्रेस हुए कि जब फूल और पत्थर बन रही थी, तो उन्होंने ही ओ पी रल्हन को धर्मेंद्र का नाम सजेस्ट किया था।
1964 में ही धर्मेंद्र ने तब तक के करियर की सबसे बड़ी फिल्म की- हकीकत। यह फिल्म, इंडो-चाइना वॉर पर बनी थी। इसमें धरम ने कैप्टन बहादुर सिंह का रोल किया। एक ऐसा सोल्जर, जो अपनी बटालियन को बचाने के लिए जान दे देता है। इस रोल में धर्मेंद्र ने वह जान डाली कि उस वक्त के आर्मी चीफ, जनरल जयंतो नाथ चौधरी ने उनकी परफॉरमेंस देखकर कहा था, 'Realistic and convincing' और जब फिल्म में कैप्टन बहादुर सिंह की मौत होती है, तब बैकग्राउंड में वह गाना बजता है, जो अमर हो गया- 'कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों।'
धर्मेंद्र हिट हो रहे थे लेकिन उन्हें उनकी असली पहचान मिली 'फूल और पत्थर' से। साल 1966 में आई इस फ़िल्म से हिंदुस्तान को एक नया शब्द दिया - He-Man और यह He-Man का टैग किसी फाइट सीन से नहीं मिला। यह मिला एक शर्टलेस सीन से। रात का सीन। मीना कुमारी बिस्तर पर सोने का नाटक कर रही हैं। धर्मेंद्र, नशे में धुत, शर्टलेस, कमरे में आते हैं। मीना कुमारी डर जाती हैं कि अब क्या होगा। धर्मेंद्र उनके पास आते हैं, झुकते हैं और धीरे से उन्हें कंबल ओढ़ा देते हैं। बस। इस एक सीन ने मर्दानगी की परिभाषा बदल दी। यह वह मर्द था, जो फौलादी था लेकिन औरतों का रखवाला भी था। The He-Man। इस फ़िल्म ने धर्मेंद्र को उनका पहला फिल्मफेयर बेस्ट ऐक्टर नॉमिनेशन दिलाया लेकिन फूल और पत्थर सिर्फ एक हिट फिल्म नहीं थी। यह एक रिश्ते की मिसाल भी थी। एक ऐसा रिश्ता, जिसने धर्मेंद्र का करियर बनाया। वह थीं मीना कुमारी। ट्रेजेडी क्वीन।
मीना कुमारी और धर्मेंद्र की मुलाकात 1964 में फिल्म 'मैं भी लड़की हूं' के सेट पर हुई। मीना कुमारी तब तक बहुत बड़ी स्टार बन चुकी थीं लेकिन धर्मेंद्र का भोलापन मीना कुमारी को भा गया। राजीव विजयकर अपनी किताब में लिखते हैं कि यह रिश्ता बहुत कॉम्प्लेक्स था। यह सिर्फ एक अफेयर नहीं था। मीना कुमारी को धर्मेंद्र में एक ऐसा शख्स दिखा, जो उनकी स्टार इमेज के पीछे के इंसान को देखता था और धर्मेंद्र को मीना कुमारी में एक मेंटॉर और एक दोस्त मिला। मीना कुमारी ने धर्मेंद्र का करियर संवारने में बहुत मदद की। वह प्रोड्यूसर्स से सिफारिश करतीं कि धर्मेंद्र को उनकी फिल्मों में लिया जाए। पूर्णिमा, काजल जैसी फिल्में उन्हें मीना कुमारी की वजह से मिलीं।
और फिर आई फूल और पत्थर। डायरेक्टर थे ओ. पी. रल्हन। रल्हन ने फिल्म की कहानी मीना कुमारी को सुनाई। मीना कुमारी को कहानी पसंद आई लेकिन उन्होंने एक शर्त रख दी। 'मैं यह फिल्म तभी करूंगी, जब मेरा हीरो धर्मेंद्र होगा।' रल्हन चौंक गए। धर्मेंद्र तब तक B-लिस्ट हीरो थे और यह एक बड़ा प्रोजेक्ट था लेकिन मीना कुमारी अड़ गईं। रल्हन को मानना पड़ा और इस एक फैसले ने धर्मेंद्र की किस्मत हमेशा के लिए बदल दी। He-Man का जन्म हो चुका था।
He-Man, अनुपमा और 1967 का दौर
साल 1966 में आई फिल्म 'फूल और पत्थर' ने धर्मेंद्र को He-Man बना दिया। वह रातों-रात सुपरस्टार थे लेकिन 1966 में धर्मेंद्र ने जो किया, वह उनकी असली रेंज दिखाता है। एक तरफ, वह फूल और पत्थर के रफ-एंड-टफ, शर्टलेस He-Man शाका थे। दूसरी तरफ, वह क्रिसमस पर रिलीज हुई ब्लॉकबस्टर 'आए दिन बहार के' के रोमांटिक हीरो थे और तीसरी तरफ? वह थे ऋषिकेश मुखर्जी की अनुपमा के बेहद सेंसिटिव राइटर। जो आदमी He-Man बनकर हिट हो रहा था, वही उसी साल एक सीरियस, सेंसिटिव राइटर बनकर भी हिट हो रहा था। यह था उनका असली टैलेंट।
आए दिन बहार के का एक बड़ा मजेदार किस्सा है। यह धर्मेंद्र की आशा पारेख के साथ पहली फिल्म थी। आशा पारेख ने भी इस फिल्म का एक किस्सा सुनाया। वह धर्मेंद्र के साथ काम करने में थोड़ी झिझक रही थीं। उन्होंने सुना था कि धर्मेंद्र सेट पर शराब पीते हैं। उन्होंने प्रोड्यूसर जे ओम प्रकाश से कहा, 'अगर वह शराब पीकर आए, तो मैं शूटिंग नहीं करूंगी।' ओम प्रकाश ने धर्मेंद्र को यह बात बताई। धरम पाजी ने वादा किया, 'जब तक आशा जी के साथ शूटिंग करूंगा, शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा।' उन्होंने अपना वादा निभाया।
शूटिंग दार्जिलिंग में हो रही थी। एक सीन में आशा पारेख को धर्मेंद्र को धक्का देकर एक बर्फीली ठंडी झील में गिराना था। धरम जी उस पानी में कांप गए। जब उन्हें बाहर निकाला गया, तो वह ठंड से नीले पड़ गए थे। यूनिट वालों ने उन्हें ब्रांडी से रगड़ा और पीने के लिए भी ब्रांडी दी। आशा पारेख ने हंसते हुए बताया, 'उन्होंने ब्रांडी पीने के लिए मेरी तरफ इजाजत मांगते हुए देखा!' यह उनकी दोस्ती की शुरुआत थी।
1966 में ही एक और इमोशनल किस्सा पूरा हुआ। गुरु दत्त वाला। फिल्म थी बहारें फिर भी आएंगी। गुरु दत्त इस फिल्म के प्रोड्यूसर और ऐक्टर थे लेकिन फिल्म पूरी होने से पहले ही उनका देहांत हो गया। फिल्म अटक गई। गुरु दत्त के राइटर अबरार अल्वी, जिन्होंने फिल्मफेयर कॉन्टेस्ट में धर्मेंद्र का स्क्रीन टेस्ट लिया था, उन्होंने धर्मेंद्र को अप्रोच किया। अल्वी ने उन्हें एक इमोशनल चिट्ठी लिखी, 'अगर तुमने यह रोल नहीं किया तो यह बैनर मर जाएगा, कैमरे बिक जाएंगे।' धर्मेंद्र उस वक्त तक फूल और पत्थर के बाद बड़े स्टार बन चुके थे। उन्होंने फौरन हां कर दी। उन्होंने गुरु दत्त का अधूरा रोल निभाया। हालांकि, बहारें फिर भी आएंगी 1966 में उनकी अकेली फ्लॉप फिल्म थी लेकिन धर्मेंद्र ने अपना वह कर्ज चुका दिया, जो वह शायद कभी भूले नहीं थे।
1966 ने धर्मेंद्र को सुपरस्टार बना दिया लेकिन हिंदी सिनेमा एक अजीब पहेली है। यहां हर शुक्रवार, किस्मत बदलती है। जो सुपरस्टार 1966 में 8 में से 6 हिट दे रहा था, वह 1967 में अचानक लड़खड़ा गया। 1967 में धर्मेंद्र की 4 फिल्में आईं और चारों फ्लॉप हो गईं। चंदन का पलना और मझली दीदी मीना कुमारी के साथ थीं, दोनों पिट गईं। मझली दीदी तो खुद ऋषिकेश मुखर्जी ने डायरेक्ट की थी, अनुपमा के बाद। यह भी नहीं चली। इंडस्ट्री में लोग बातें करने लगे। क्या He-Man का जादू एक साल में ही खत्म हो गया?
1968 में तूफान वापस आया और इस बार तूफान का नाम था आंखें। यह 1968 की सबसे बड़ी हिट थी। यह डायरेक्टर रमानंद सागर की पहली जासूसी, स्पाई-थ्रिलर थी। रामानंद सागर यह फिल्म 1966 से पहले प्लान कर रहे थे। तब धर्मेंद्र बड़े स्टार नहीं थे तो सागर उन्हें कास्ट करने में झिझक रहे थे लेकिन 1966 में जैसे ही फूल और पत्थर ने बॉक्स ऑफिस पर आग लगाई, रामानंद सागर ने तय कर लिया कि हीरो तो यही होगा। नतीजा, फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई और 'फूल और पत्थर' वाला संयोग फिर से हुआ। आंखें 1968 की सबसे बड़ी हिट थी और इसमें भी धर्मेंद्र के ऊपर एक भी लिप-सिंक गाना नहीं था।
1968 में सिर्फ आंखें ही नहीं चली। एक और फिल्म थी जिसने गोल्डन जुबली मनाई - शिकार। इस फिल्म का एक खास कनेक्शन था। इसे डायरेक्ट किया था आत्मा राम ने। जो गुरु दत्त के भाई थे। यह फिल्म गुरु दत्त के बैनर के तहत बनी थी। यानी, जिस गुरु दत्त के बैनर की बहारें फिर भी आएंगी फ्लॉप हो गई थी, उसी बैनर ने आखिरकार उन्हें एक बड़ी सुपरहिट फिल्म दे दी। शिकार के सेट पर ही धर्मेंद्र और संजीव कुमार की दोस्ती हुई और यह दोस्ती इतनी पक्की हो गई कि जब धर्मेंद्र ने अपनी पहली होम प्रोडक्शन फिल्म 'सत्यकाम' बनाने का फैसला किया, तो सेकंड लीड के लिए उन्होंने सीधे संजीव कुमार को साइन कर लिया।
1967 के झटके के बाद, 1968 ने धर्मेंद्र को वापस बॉलीवुड के सिंहासन पर बिठा दिया था और अब मुकाबला एक नए फिनोमेनन से होने वाला था।
सत्यकाम की हार और Dream Girl की जीत
1968 में आंखें और शिकार के बाद, धर्मेंद्र वापस टॉप पर थे लेकिन साल बदल गया था और हवा भी बदल रही थी। इसी साल इंडस्ट्री में एक नया तूफान आया। नाम था - राजेश खन्ना। आराधना रिलीज हो चुकी थी। लड़कियां उनके लिए पागल थीं। पहली बार हिंदी सिनेमा में किसी के लिए सुपरस्टार शब्द का इस्तेमाल किया गया। पूरा देश एक आदमी के पीछे दीवाना था।
दूसरी तरफ 1969 में धर्मेंद्र ने अपने दोस्त संजीव कुमार और अपने फेवरेट डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी के साथ सत्यकाम फिल्म की। यह धर्मेंद्र की पहली होम प्रोडक्शन थी। यह ऋषिकेश मुखर्जी की अपनी जिंदगी की सबसे फेवरेट फिल्म थी और यह शायद धर्मेंद्र की जिंदगी की बेस्ट परफॉरमेंस थी। उन्होंने सत्यप्रिया का रोल किया एक ऐसा आइडियलिस्ट, जो कभी झूठ नहीं बोलता। एक ऐसा आदमी जो एक रेप विक्टिम से शादी करता है और उसके बच्चे को अपना नाम देता है। धर्मेंद्र ने इस रोल में अपनी जान डाल दी लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गई। पब्लिक को अपना He-Man इतना सीधा-सादा, सत्यवादी पसंद नहीं आया। सत्यकाम का फ्लॉप होना ही वह बड़ा झटका था, जिसके बाद धर्मेंद्र ने तय कर लिया कि आर्ट-सिनेमा बहुत हो गया। अब वह सिर्फ और सिर्फ कमर्शियल फिल्में ही करेंगे।
1970 में उनकी दो फिल्में एक साथ आईं - शराफत और तुम हसीन मैं जवां। दोनों फिल्में सुपरहिट रहीं और दोनों फिल्मों में एक बात कॉमन थी। हीरोइन - हेमा मालिनी। He-Man की जिंदगी में Dream Girl की ऑफिशियल एंट्री हो चुकी थी।
1971 में धर्मेंद्र ने साबित कर दिया कि वह सिर्फ He-Man नहीं हैं। वह The Star हैं। इसी साल एक बड़ी इंटरेस्टिंग फिल्म आई। गुड्डी। यह जया भादुड़ी की लॉन्च फिल्म थी। इसकी कहानी बहुत मजेदार थी। गुड्डी नाम की एक लड़की है, जो फिल्मी दुनिया की दीवानी है और उसका क्रश है, सुपरस्टार धर्मेंद्र। इस फिल्म में धर्मेंद्र ने कोई किरदार नहीं निभाया। उन्होंने धर्मेंद्र का ही रोल किया। वह खुद हीरो बने। यह एक बहुत बड़ा रिस्क था लेकिन ऋषिकेश मुखर्जी को अपने दोस्त पर भरोसा था।
फिल्म के राइटर गुलजार ने एक किस्सा बताया था। उन्होंने कहा, 'मेरी जो ओरिजिनल कहानी थी, उसमें लड़की का नाम गुड्डो था और वह दिलीप कुमार की दीवानी थी।' ऋषि दा ने कहा, टनहीं, हमें आज के जमाने का कोई टॉप हीरो चाहिए।' गुलजार बताते हैं, तब सिर्फ दो ही ऑप्शन थे: राजेश खन्ना और धर्मेंद्र। दोनों ने मिलकर धर्मेंद्र को चुना। गुड्डी हिट रही।
हालंकि 1971 का असली धमाका गुड्डी नहीं थी। वह थी मेरा गांव मेरा देश। इस फिल्म की कहानी थी: एक रिटायर्ड आर्मी मेजर, एक छोटे-मोटे चोर अजीत को पकड़ता है। उसे जेल भिजवाता है। सजा पूरी होने के बाद, मेजर उसे अपने फार्म पर काम देता है। उस गांव पर डाकू जब्बर सिंह का आतंक है और फिर अजीत उस गांव को जब्बर से बचाता है। यह कहानी कुछ जानी-पहचानी लगी?
चार साल बाद, 1975 में, हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी फिल्म 'शोले' रिलीज हुई। 'मेरा गांव मेरा देश' और 'शोले' में इतने इत्तेफाक हैं कि उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
मेरा गांव मेरा देश का विलेन था डाकू जब्बर सिंह, जिसे विनोद खन्ना ने निभाया। शोले का विलेन था गब्बर सिंह, जिसे अमजद खान ने निभाया।
मेरा गांव मेरा देश में धर्मेंद्र का किरदार अजीत, मुश्किल फैसले लेने के लिए सिक्का उछालता है। शोले में अमिताभ बच्चन का किरदार जय, यही काम करता है।
मेरा गांव मेरा देश में एक रिटायर्ड आर्मी मेजर है, जिसने जंग में एक टांग खो दी थी। शोले में एक रिटायर्ड पुलिसवाला है, जिसने डाकू से लड़ते हुए अपने दोनों हाथ खो दिए थे।
दोनों ही फिल्मों में ये रिफॉर्मर दो छोटे-मोटे चोरों को डाकू से लड़ने के लिए हायर करता है।
मेरा गांव मेरा देश की सफलता ने साबित कर दिया कि राजेश खन्ना को टक्कर देने वाला अगर कोई है तो वह धर्मेंद्र न हैं। बाकायदा 1972 में तो धर्मेंद्र ने राजेश खन्ना पर निर्णायक बढ़त बना ली। यह वह साल था जब राजेश खन्ना की कई फिल्में फ्लॉप हुईं, और धर्मेंद्र ने जो छुआ, वह सोना हो गया।
और इसी साल, धर्मेंद्र ने एक ऐसा फैसला लिया, जिसने शायद हिंदी सिनेमा की तकदीर बदल दी। एक डायरेक्टर थे प्रकाश मेहरा। वह धर्मेंद्र के पास एक स्क्रिप्ट लेकर आए। एक गुस्सैल, चुप रहने वाले पुलिस इंस्पेक्टर की कहानी। फिल्म का नाम था जंजीर। धरम पाजी को कहानी जमी नहीं। उन्होंने फिल्म रिजेक्ट कर दी। यह फिल्म अमिताब बच्चन के पास गई और एंग्री यंग मैन का जन्म हुआ।
इधर धर्मेंद्र रुके नहीं। 1972 में उन्होंने हेमा मालिनी के साथ दो फ़िल्में की और दोनों हिट रही। पहले आई सीता और गीता। डायरेक्टर थे रमेश सिप्पी। राइटर थे सलीम-जावेद। धर्मेंद्र इसमें राका बने थे। एक सड़क छाप आर्टिस्ट। यह 1972 की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी और साल के आखिर में आई राजा जानी। यह फिल्म भी जबरदस्त हिट साबित हुई। राजा जानी के साथ, धर्मेंद्र-हेमा मालिनी की जोड़ी ने एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया, जो शायद ही कभी टूटा हो। यह इस जोड़ी की एक साथ पांचवीं फिल्म थी और पांचों की पांचों सुपर-डुपर हिट थीं। शराफत, तुम हसीन मैं जवां, नया जमाना, सीता और गीता, और राजा जानी।
आसमान पर He-Man
1973 में धर्मेंद्र नाम का तूफान अपने पीक पर था। उस साल धर्मेंद्र की 9 फिल्में रिलीज हुईं। उन 9 में से सिर्फ 2 फ्लॉप हुईं और 4 तो सुपर-डुपर हिट थीं। एक फिल्म आई ब्लैकमेल। डायरेक्टर थे विजय आनंद। यह फिल्म फ्लॉप हो गई लेकिन इस फिल्म ने धर्मेंद्र को एक ऐसा गाना दिया, जो अमर हो गया। 'पल पल दिल के पास।' यह गाना इतना आइकॉनिक बना कि दशकों बाद, जब धर्मेंद्र के पोते करण देओल की पहली फिल्म आई, तो उसका टाइटल भी यही रखा गया।
फिर आई यादों की बारात। खोया-पाया ड्रामा। तीन बिछड़े हुए भाई। धर्मेंद्र सबसे बड़े भाई बने, जो क्रिमिनल बन गया था और फिर वही पुराना टोटका। फूल और पत्थर, आंखें की तरह, यादों की बारात जैसी सुपरहिट म्यूजिकल फिल्म में भी, धर्मेंद्र के ऊपर एक भी लिप-सिंक गाना नहीं था! इसी फिल्म में एक और मजेदार चीज हुई। फिल्म के यादगार गाने 'यादों की बारात' में जो बच्चा गिटार बजा रहा था, वह था आमिर खान और जो छोटी बच्ची बनी थीं, वह थीं पद्मिनी कोल्हापुरे।
1973 खत्म होते-होते, धर्मेंद्र उस चोटी पर पहुंच चुके थे, जहां कोई और नहीं था। 1974 का साल आने वाला था और यह He-Man और ड्रीम गर्ल की जोड़ी का पीक होने वाला था। 1973 के बंपर साल के बाद, 1974 ने He-Man और ड्रीम गर्ल की जोड़ी को बॉलीवुड के इतिहास की सबसे भरोसेमंद जोड़ी बना दिया। उस साल धर्मेंद्र ने 5 फिल्में कीं। दो हेमा मालिनी के साथ और तीन सायरा बानो के साथ। नतीजा? हेमा मालिनी के साथ दोनों फिल्में हिट। सायरा बानो के साथ तीनों फिल्में फ्लॉप।
हेमा मालिनी के साथ आईं दो फिल्में - पत्थर और पायल और दोस्त। यह इस जोड़ी की एक साथ सातवीं और आठवीं सुपरहिट फिल्म थी। दोस्त का किस्सा बहुत दिलचस्प है। यह फिल्म डायरेक्ट की थी दुलाल गुहा ने। इसमें धर्मेंद्र ने एक आइडियलिस्ट यानी आदर्शवादी इंसान का रोल किया था। यह रोल कुछ-कुछ सत्यकाम जैसा था और सत्यकाम का जो हश्र हुआ था, उससे धर्मेंद्र बुरी तरह डरे हुए थे। दोस्त में शत्रुघ्न सिन्हा ने उनके क्रिमिनल दोस्त का रोल किया था और ईमानदारी से कहें तो शत्रुघ्न सिन्हा का रोल धर्मेंद्र के रोल पर भारी पड़ा था। धर्मेंद्र को पक्का यकीन था कि यह फिल्म भी सत्यकाम की तरह पिट जाएगी। वह इतने डरे हुए थे कि फिल्म की रिलीज के वक्त वह मुंबई में थे ही नहीं। वह भागकर कश्मीर में शूटिंग करने चले गए थे।
शुक्रवार को फिल्म रिलीज हुई। शनिवार, रविवार बीत गया। सोमवार को कश्मीर में किसी ने उन्हें बताया, 'धरमजी, दोस्त तो मैसिव हिट हो गई है। सारे शो हाउसफुल जा रहे हैं!' धर्मेंद्र को यकीन नहीं हुआ। वह खुद चुपके से एक थिएटर में गए और पब्लिक के साथ बैठकर फिल्म देखी। जब उन्होंने देखा कि लोग फिल्म को कितना पसंद कर रहे हैं, तो वह हैरान रह गए। वह अगली सुबह की पहली फ्लाइट पकड़कर मुंबई भागे और एयरपोर्ट से सीधे पहुंचे डायरेक्टर दुलाल गुहा के घर।
दुलाल गुहा के बेटे, पुतुल गुहा ने वह सुबह याद करते हुए बताया, 'सुबह के 9 बज रहे थे। दरवाजे की घंटी बजी। मैंने दरवाजा खोला, तो सामने धरमजी खड़े थे। साफ दिख रहा था, उन्होंने पूरी रात नींद नहीं ली है। वह घर में आए और मेरे पिता को पुकारने लगे। जैसे ही मेरे पिता जी बाहर आए, धरमजी उनके पैरों पर गिर पड़े और बच्चों की तरह रोने लगे। वह रोते हुए बस एक ही बात कह रहे थे- मैं तो समझ गया था कि ये फिल्म भी सत्यकाम की तरह पिट जाएगी लेकिन आपने मुझे बचा लिया।' वह एक सुपरस्टार थे लेकिन एक फ्लॉप से आज भी इतना डरते थे।
उसी वक्त धर्मेंद्र के भाई कंवर अजीत सिंह भी वहां पहुंचे। उन्होंने दुलाल गुहा के हाथ में 50,000 रुपए कैश रखे। यह कोई इनाम नहीं था। ये अगली फिल्म के लिए साइनिंग अमाउंट था। धर्मेंद्र के भाई ने दुलाल गुहा को वहीं एक लाइन की कहानी सुनाई। 'एक ट्रक ड्राइवर है। उसकी मां मरते-मरते उसे बताती है कि वह एक बहादुर पुलिसवाले का बेटा है, जिसके परिवार को एक डाकू ने मार डाला था।' दुलाल गुहा ने कहानी सुन ली और इस तरह, दोस्त की कामयाबी के आंसुओं से, धर्मेंद्र की अगली ब्लॉकबस्टर फिल्म प्रतिज्ञा का जन्म हुआ।
1974 खत्म हो चुका था। 1975 आने वाला था। यह वह साल था, जो धर्मेंद्र को हिंदी सिनेमा के इतिहास में हमेशा के लिए अमर करने वाला था। इस साल हेमा मालिनी के साथ उनकी दो और फिल्में रिलीज होने वाली थीं। एक, प्रतिज्ञा और दूसरी- शोले।
जट यमला, वीरू और प्यारे मोहन
1975 वह साल था, जो धर्मेंद्र को हिंदी सिनेमा के इतिहास में हमेशा के लिए अमर करने वाला था। इस साल तीन फिल्में आईं, जिन्होंने धर्मेंद्र को He-Man से Every-Man बना दिया। वह एक्शन, कॉमेडी, ड्रामा, सब कुछ थे। शुरुआत हुई जून में फिल्म प्रतिज्ञा से। यह वही फिल्म थी, जो दोस्त की कामयाबी के बाद, डायरेक्टर दुलाल गुहा के पैरों पर रोते-रोते साइन की गई थी। प्रतिज्ञा एक ब्लॉकबस्टर बनी और इस फिल्म ने धर्मेंद्र को उनका सबसे आइकॉनिक डांस नंबर दिया। 'मैं जट यमला पगला दीवाना।'
यह गाना बना तो सबने सोचा, इसे कोरियोग्राफ कौन करेगा? डायरेक्टर दुलाल गुहा के बेटे पुतुल गुहा ने इसका किस्सा बताया है, 'डैड ने सोचा, धरमजी तो डांसर हैं नहीं। वह तो बस हाथ-पैर हिला देते हैं।' उन्होंने इस गाने के लिए हिंदी सिनेमा का सबसे नामी डांसर बुलाया लेकिन कोई वेस्टर्न डांसर नहीं। उन्होंने बुलाया, गोपी कृष्ण को। गोपी कृष्ण, जो कथक और भरतनाट्यम के उस्ताद थे। एक क्लासिकल डांसर, एक जाट नॉन-डांसर को सिखाने आया और नतीजा? पुलुत गुहा कहते हैं, 'धरमजी ने बस उन्हें कॉपी किया। धरम जी का वह हाथ-पैर हिलाने का स्टाइल आज भी 'आइकॉनिक' माना जाता है।
प्रतिज्ञा लेकिन बस ट्रेलर थी। 15 अगस्त 1975 को शोले रिलीज हुई और इतिहास बन गई। शोले की कहानी तो सब जानते हैं लेकिन शोले बनने की कहानी, धर्मेंद्र के बिना अधूरी है। जब डायरेक्टर रमेश सिप्पी और राइटर सलीम-जावेद कास्टिंग कर रहे थे, तो एक पेच फंस गया। पहले सोचा गया कि धर्मेंद्र ठाकुर का रोल करेंगे। वह उस रोल के लिए परफेक्ट थे लेकिन सलीम-जावेद ने रमेश सिप्पी को एक बात बताई, 'अगर धर्मेंद्र ठाकुर बनेगा तो वीरू का रोल संजीव कुमार करेंगे। और कहानी के हिसाब से, वीरू को ही बसंती मिलेगी।'
यह वह दौर था, जब धर्मेंद्र और हेमा मालिनी का प्यार परवान चढ़ रहा था और यह भी वह दौर था, जब संजीव कुमार ने भी हेमा मालिनी को प्रपोज कर दिया था। धर्मेंद्र यह मीटिंग सुन रहे थे। जैसे ही उन्होंने सुना कि संजीव कुमार को हेमा के साथ रोमांस करने का मौका मिलेगा, वह फौरन बोल पड़े, 'नहीं! ठाकुर का रोल नहीं। मैं वीरू बनूंगा!' वह किसी भी कीमत पर, पर्दे पर हेमा मालिनी को किसी और के साथ रोमांस करते नहीं देख सकते थे।
और इस तरह, हिंदी सिनेमा को जय-वीरू की वह आइकॉनिक जोड़ी मिली। शोले की शूटिंग के किस्से तो और भी मजेदार हैं। एक सीन था, जिसमें वीरू बसंती को रिवॉल्वर चलाना सिखा रहा है। धर्मेंद्र को हेमा के पीछे खड़े होकर, उनके हाथों पर अपना हाथ रखना था। यह धर्मेंद्र के लिए जन्नत जैसा मोमेंट था। जैसे ही सीन शुरू होता, लाइटमैन चिल्लाता, 'Cut! लाइट खराब हो गई!' टेक रीसेट होता। फिर सीन शुरू होता। धर्मेंद्र फिर से हेमा के पीछे। कैमरामैन चिल्लाता, 'Cut! रिफ्लेक्टर ठीक करो!' बार-बार यही होने लगा।
बाद में पता चला कि ये कोई इत्तेफाक नहीं था। यह He-Man की शरारत थी। धर्मेंद्र ने लाइट क्रू के लड़कों को घूस दी थी। वह हर टेक के बाद उन्हें 20-20 रुपए देते थे ताकि वह शॉट को फ्लब यानी खराब कर दें और धर्मेंद्र को अपनी ड्रीम गर्ल को पकड़कर खड़े रहने का थोड़ा और वक्त मिल जाए। कहा जाता है कि सिर्फ इस एक सीन के लिए, धरम पाजी ने उस जमाने में 2000 रुपये लुटा दिए थे लेकिन शोले के सेट पर सिर्फ शरारतें नहीं हो रही थीं। धर्मेंद्र उस वक्त एक मुश्किल दौर से गुजर रहे थे। वह पहले से शादीशुदा थे और हेमा मालिनी से उनका प्यार गहराता जा रहा था। इस तनाव का असर उन पर दिखने लगा था कि शोले की शूटिंग के दौरान वह दिन में भी शराब पीने लगे थे। एक रात, वह इतने परेशान हुए कि खुद को सजा देने के लिए, रामनगर में अपने होटल से पैदल ही सेट तक चल पड़े। रात के अंधेरे में। अगली सुबह पूरी यूनिट घबरा गई। हीरो गायब है! काफी ढूंढने के बाद, धर्मेंद्र एक मेकअप रूम में एक बच्चे की तरह सोते हुए मिले। हेमा मालिनी के साथ पांच साल प्रेम प्रसंग चलने के बाद आखिरकार 1980 में धर्मेंद्र और हेमा ने शादी कर ली। धर्मेंद्र पहले से शादीशुदा से थे इसलिए इस शादी को लेकर कई अफवाहें भी हैं। मसलन राम कमल मुखर्जी की लिखी हेमा मालिनी की बायोग्राफी ‘Hema Malini: Beyond the Dream Girl’, के अनुसार, उस समय ये बातें उड़ीं थीं कि चूंकि हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत धर्मेंद्र दो शादी नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया था।
ऐसी बातें भी उठी थीं कि दोनों ने अपना नाम दिलावर और आएशा रख लिया था। ऑफिसियल मैरिज से पहले 1979 में ही दोनों ने निकाह कर लिया थी। यह बात भी अफवाहों से कही जाती है। इस मामले ने बाद में तूल भी पकड़ा जब 2004 में धर्मेंद्र लोकसभा चुनाव में उतरे। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि संपत्ति का डिक्लेरेशन करते हुए धर्मेंद्र ने केवल पहली परनी प्रकाश कौर की संपत्ति डिक्लेअर की थी। हेमा और धर्मेंद्र से इस बाबत पूछा गया तो दोनों इसे अपनी निजी जिंदगी का हिस्सा बताया। आउटलुक मैगज़ीन से बात करते हुए धर्मेंद्र ने तब कहा था, 'ऐसे कोई भी आरोप गलत है। मैं ऐसा आदमी नहीं जो स्वार्थ के लिए धर्म बदल ले।'
कुल मिलकर बात ये कि हेमा मालिनी से शादी के बाद धर्मेंद्र दो परिवारों के हो गए। एक शादी प्रकाश कौर से - जिन्हें उन्हें आलरेडी दो बेटे थे - सनी और बॉबी और दूसरी शादी से दो बेटियां - ईशा और अहाना। धर्मेंद्र के करियर पर वापस लौटते हैं। 1975 में शोले के अलावा धर्मेंद्र ने एक और कल्ट क्लासिक फिल्म की। इसी साल आई ऋषिकेश मुखर्जी की चुपके चुपके। वह बने प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी, जो भेस बदलकर बनता है ड्राइवर प्यारे मोहन। धर्मेंद्र के साथ ये बात थी की वह शुद्ध हिंदी नहीं बोल पाते थे पंजाबी एक्सेंट में परिचय को प्रीचय बोलते थे। ऋषि दा ने कहा, टअच्छा? तुम परिचय को प्रीचय बोलोगे? रुको।' और उन्होंने चुपके-चुपके में उनसे इतनी शुद्ध हिंदी बुलवाई कि धरम पाजी भी तौबा कर गए। चुपके चुपके भी सुपरहिट रही। 1975 ने यह साबित कर दिया था। धर्मेंद्र सिर्फ He-Man नहीं थे। वह He-Man थे, वह कॉमेडी-Man थे, और वह Every-Man थे। एक ऐसा तूफान, जो अब रुकने वाला नहीं था।
धरम-वीर से शालीमार तक
1975 जैसा साल दोबारा आना मुमकिन नहीं था। शोले, प्रतिज्ञा, चुपके चुपके। एक ही साल में तीन आइकॉनिक फिल्में देने के बाद, धर्मेंद्र आसमान पर थे लेकिन 1976 उनके लिए एक हल्का साल साबित हुआ और इसी साल वह रिकॉर्ड टूटा, जो धर्मेंद्र और हेमा मालिनी ने मिलकर बनाया था। इस जोड़ी ने एक साथ 11 सुपरहिट फिल्में दी थीं। 1976 में फिल्म आई मां। यह एक इमोशनल कहानी थी जिसमें जानवर भी थे। फिल्म नहीं चली और यह धर्मेंद्र-हेमा जोड़ी की पहली फ्लॉप फिल्म बनी। 11 हिट्स के बाद, 12वीं फिल्म फ्लॉप हुई।
गनीमत थी कि मां से पहले, चरस रिलीज हो गई थी। यह इस जोड़ी की 11वीं हिट थी, जो लकीर को टूटने से बचा गई। चरस को रामानंद सागर ने डायरेक्ट किया था। यह एक ड्रग कार्टल की कहानी थी, जिसे विदेश में शूट किया गया। फिल्म जुबली हिट थी लेकिन इसका बजट इतना ज्यादा था कि प्रोड्यूसर के लिए यह बस एक एवरेज सफलता ही मानी गई। राजीव विजयकर अपनी किताब 'Dharmendra: Not Just a He-Man' में बताते हैं कि प्रोड्यूसर ने 1977 में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को यह कहकर लॉस क्लेम किया था कि फिल्म फ्लॉप हो गई है। 41 साल बाद, 2017 में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने ये फ्रॉड पकड़ा और तब जाकर ये सर्टिफाई हुआ कि चरस असल में एक फायदे का सौदा थी।
1976 हल्का था लेकिन 1977 में खेल फिर से बदल गया। अब मैदान में एक नया खिलाड़ी था, जो तूफान बन चुका था - अमिताभ बच्चन। 1977 की सबसे बड़ी हिट थी अमर अकबर एंथनी। यह वह साल था, जब अमिताभ बच्चन ने धर्मेंद्र को पछाड़ दिया और धर्मेंद्र दूसरे नंबर पर पहुंच गए लेकिन यहां भी एक गजब का ट्विस्ट था। 1977 की सबसे बड़ी हिट अमिताभ की थी लेकिन दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी हिट धर्मेंद्र के नाम थीं - धरम-वीर और चाचा-भतीजा और इन तीनों फिल्मों का डायरेक्टर एक ही आदमी था - मनमोहन देसाई।
धरम-वीर आज भी धर्मेंद्र की सबसे चहेती फिल्मों में से एक है। इसमें वह एक राजकुमार बने थे, जो लोहार के घर पलता है और रोमन ग्लेडिएटर जैसे कपड़े पहनता है। इस फिल्म का एक और किस्सा है। फिल्म में धर्मेंद्र के बचपन का रोल, एक 9 साल के बच्चे ने निभाया था। वह बच्चा था, धर्मेंद्र का अपना बेटा - बॉबी देओल। 1977 तक धर्मेंद्र टॉप पर थे। अमिताभ से मुकाबला कड़ा था लेकिन वह रेस में बने हुए थे लेकिन 1978 और 1979 उनके लिए सुस्त साल रहे। इसी दौर में धर्मेंद्र ने थोड़ी लापरवाही बरती। वह एक साथ 'दर्जनों' फिल्में साइन करने लगे। नतीजा यह हुआ कि 1978 में उनकी अपनी होम प्रोडक्शन, रोमांटिक कॉमेडी दिल्लगी भी फ्लॉप हो गई।
1978 का सबसे बड़ा झटका और धर्मेंद्र के करियर की सबसे बड़ी डिजास्टर थी शालीमार। यह एक इंडो-अमेरिकन को-प्रोडक्शन फिल्म थी। 70mm। 6-ट्रैक स्टीरियोफोनिक साउंड। इसमें हॉलीवुड के बड़े एक्टर्स थे, जैसे रेक्स हैरिसन। बजट बहुत बड़ा था लेकिन फिल्म इतनी बुरी पिटी कि न वह इंडिया में चली, न इंडिया के बाहर। 1979 भी बस ठीक-ठाक ही रहा। दिल का हीरा और कर्तव्य जैसी फिल्में आईं, जिन्होंने अच्छा बिजनेस किया, बहुत अच्छा नहीं। धर्मेंद्र के करियर का सबसे शानदार दशक, एक उथल-पुथल भरे मोड़ पर खत्म हो रहा था और 1980 का दशक शुरू होने वाला था।
20 फिल्में, 4 घंटे की रील और रफी साहब की आस
1980 का दशक शुरू हो चुका था। शोले और धरम-वीर के बाद, मल्टी-स्टारर फिल्मों का चलन शुरू हो गया था। ऐक्टर्स एक साथ 10-15 फिल्में साइन कर रहे थे। सबको लगता था कि एक फिल्म में जितने ज्यादा बड़े हीरो होंगे, फिल्म उतनी ही सेफ होगी लेकिन इसका असर स्क्रिप्ट पर पड़ रहा था। हीरोज के Ego बड़े हो रहे थे। उन्हें बराबर स्क्रीन-टाइम चाहिए था, बराबर गाने चाहिए थे, बराबर फाइट सीन चाहिए थे। फिल्में अब कहानी के लिए नहीं, बिजनेस प्रपोजल के तौर पर बन रही थीं और धर्मेंद्र, जो उस वक्त के सबसे बड़े स्टार्स में से एक थे, इस ट्रेंड का शिकार होने वाले थे।
1980 का साल चार बड़ी फिल्मों के साथ शुरू हुआ। अली बाबा और 40 चोर। यह एक बहुत बड़ा एक्सपेरिमेंट थी। यह एक इंडो-रशियन को-प्रोडक्शन थी। 70 mm में। इंडिया में इसे एवरेज सक्सेस कहा गया क्योंकि इसका बजट बहुत भारी-भरकम था लेकिन रूस में यह एक बड़ी हिटी साबित हुई।
अली बाबा तो फिर भी चल गई लेकिन 1980 की दूसरी बड़ी 70mm फिल्म, द बर्निंग ट्रेन, बॉक्स ऑफिस पर जलकर खाक हो गई। यह एक डिजास्टर थी। इसके बाद आई राम बलराम। शोले और चुपके चुपके के बाद, धरम और अमिताभ बच्चन एक बार फिर साथ थे। इसने डीसेंट बिजनेस किया लेकिन जितना पैसा लगा था, उतना नहीं कमा पाई। इसे भी फेलियर ही माना गया। 80 के दशक की शुरुआत, He-Man के लिए थोड़ी डांवाडोल थी।
1981 में भी यही सिलसिला जारी रहा और इस साल का एक किस्सा, 80 के दशक की पूरी कहानी बयां कर देता है। फिल्म थी क्रोधी। यह धर्मेंद्र की होम प्रोडक्शन थी। इसे डायरेक्ट करने के लिए बुलाया गया सुभाष घई को। घई उस वक्त कालीचरण और कर्ज जैसी हिट्स दे चुके थे। घई बताते हैं, 'मैं ये स्क्रिप्ट अमिताभ बच्चन के साथ बनाना चाहता था लेकिन धर्मेंद्र ने मुझे अपने घर की छत पर बुलाया और पूछा, Do you have a story?' घई ने जैसे ही स्क्रिप्ट सुनाई, धर्मेंद्र का चेहरा चमक उठा। वह बोले, 'I will produce it!'
फिर वही 80 के दशक वाली प्रॉब्लम शुरू हुई। घई कहते हैं, 'वह मेरी जिंदगी की बेस्ट स्क्रिप्ट थी लेकिन धर्मेंद्र उस वक्त 20 फिल्में एक साथ कर रहे थे। वह मुझे शूटिंग के लिए वक्त नहीं दे रहे थे।' फिल्म एक सिंपल कहानी से बढ़कर 9-स्टार वाली मल्टी-स्टारर बन गई। शशि कपूर, हेमा मालिनी, जीनत अमान, मौशुमी। सब आ गए। घई बताते हैं, 'जस्टिफाई करने के लिए, हमें गाने डालने पड़े। फिल्म इतनी लंबी हो गई कि फाइनल रील 4 घंटे 30 मिनट की थी! मैंने धरमजी से कहा, कुछ तो गलत हो रहा है। मैंने री-शूट के लिए कहा लेकिन प्रोड्यूसर के पास पैसे नहीं थे।'
घई के मुताबिक, 'रंजीत मेरे पास आकर रोते थे। धर्मेंद्र जानते थे कि मैं किस तकलीफ से गुजर रहा हूं, वह भी मेरे पास आकर रो पड़ते थे।' क्रोधी बुरी तरह फ्लॉप हो गई। ये सुभाष घई की 4 हिट्स के बाद पहली फ्लॉप थी। 1981 में ही एक और फिल्म आई, आस पास। यह फिल्म आज एक बहुत ही इमोशनल वजह से याद की जाती है। यह वह फिल्म है, जिसमें मोहम्मद रफी का रिकॉर्ड किया गया, आखिरी मुकम्मल गाना था। रफी साहब रिकॉर्डिंग स्टूडियो से निकल रहे थे। तभी म्यूजिक डायरेक्टर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने उन्हें वापस बुलाया। सिर्फ चार लाइनें गवाने के लिए। वे लाइनें थीं, 'तेरे आने की आस है दोस्त। शाम फिर क्यों उदास है दोस्त?' ये लाइनें फिल्म में एक गमगीन धर्मेंद्र पर फिल्माई गईं, जो अपनी महबूबा को खो चुका है। रफी साहब उन चार लाइनों को गाकर घर गए और फिर कभी स्टूडियो वापस नहीं लौटे। 1961 में शोला और शबनम से शुरू हुए एक सुनहरे सफर का ये दुखद अंत था।
रजिया की हार और बेताब की जीत
1981 का क्रोधी वाला डिजास्टर 1982 में भी जारी रहा। धर्मेंद्र ने उस साल 8 फिल्में कीं लेकिन सिर्फ एक फिल्म, गजब, थोड़ी बेहतर चली। राजपूत, तीसरी आंख, बदले की आग। सब मल्टी-स्टारर फिल्में थीं, जो आईं और चली गईं। यह वह दौर था जब धर्मेंद्र-हेमा की गोल्डन जोड़ी भी फ्लॉप होने लगी थी। 1982 में धरम-हेमा ने 4 फिल्में साथ में कीं - राजपूत, बगावत, सम्राट और दो दिशायें। चारों फ्लॉप रहीं। He-Man का स्टारडम अब ढलान पर था। 1983 में धर्मेंद्र ने हेमा मालिनी के साथ रजिया सुलतान की। यह फिल्म लॉन्च हुई थी 1974 में और रिलीज हुई 1983 में। लगभग 10 साल इसे बनने में लगे। जब तक यह रिलीज हुई, यह पूरी तरह से आउटडेटेड हो चुकी थी और इसकी लंबाई, 4 घंटे 20 मिनट। He-Man धर्मेंद्र इसमें सुल्तान के गुलाम याकूत बने थे और सुल्तान थीं, हेमा मालिनी लेकिन इस बार, बॉलीवुड की यह गोल्डन जोड़ी भी इस भारी-भरकम, स्लो फिल्म को नहीं बचा पाई।
यह अकेली डिजास्टर नहीं थी। 1983 में ही आई कयामत। यह हॉलीवुड की क्लासिक Cape Fear की रीमेक थी। यह भी एक स्टार-स्टडेड फिल्म थी, जो बुरी तरह फ्लॉप हुई। इस फिल्म से जुड़ा एक बड़ा मजेदार किस्सा है। धर्मेंद्र यह फिल्म अपनी मां के साथ देख रहे थे। फिल्म में एक सीन आता है, जहां धर्मेंद्र का किरदार, शत्रुघ्न सिन्हा के किरदार को धमकाते हुए कहता है, 'रेप क्या चीज है, मैं तुम्हें सिखाऊंगा।' उनकी मां, जो साथ में फिल्म देख रही थीं, ये सुनते ही हैरान रह गईं। राज सिप्पी याद करते हैं, 'उनकी मां इंटरवल में शॉक की हालत में बाहर आईं।' धर्मेंद्र को भागकर अपनी मां के पास जाना पड़ा। उन्हें समझाना पड़ा, 'मां, यह मैं नहीं बोल रहा, यह स्क्रिप्ट है। यह तो बस एक रोल है।' उन्हें अपनी मां को शांत कराना पड़ा।
पूरे साल में सिर्फ एक फिल्म, नौकर बीवी का, एवरेज बिजनेस कर पाई। 1983 का साल एकदम नाकाम रहा लेकिन 1983 ही धर्मेंद्र 'द फादर' के लिए उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा साल था। इसी साल धर्मेंद्र ने, एक प्रोड्यूसर के तौर पर, अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा जुआ खेला। उन्होंने अपने बेटे, अजय सिंह देओल को लॉन्च किया। जिन्हें आज हम सनी देओल के नाम से जानते हैं। फिल्म का नाम था बेताब।
धर्मेंद्र ने कोई कसर नहीं छोड़ी। डायरेक्टर हायर किया राहुल रवैल को। म्यूजिक दिया R D बर्मन ने और सारे गाने ब्लॉकबस्टर हुए। और स्क्रिप्ट? स्क्रिप्ट लिखी जावेद अख्तर ने। सलीम-जावेद की जोड़ी टूटने के बाद, यह जावेद अख्तर की पहली सोलो स्क्रिप्ट थी। बेताब 1983 की सबसे बड़ी सुपर-हिट्स में से एक बनी। He-Man का बेटा, अब खुद एक एक्शन हीरो बन चुका था।
बेताब से जुड़ा एक मजेदार किस्सा भी है। फिल्म में जो बच्चा यंग सनी देओल का रोल कर रहा था, उसके गानों के लिए एक बच्चे ने अपनी आवाज दी थी। उस बच्चे का नाम था - सोनू निगम और किसे पता था कि यही सोनू निगम, लगभग 28 साल बाद, 2011 में, देओल्स की कमबैक फिल्म यमला पगला दीवाना का सुपरहिट टाइटल ट्रैक 'मैं जट यमला पगला दीवाना' गाएगा। किस्मत का यह खेल, गजब का था।
खैर, 1983 में बेटा तो स्टार बन गया लेकिन बाप का क्या? 1984 में धर्मेंद्र के करियर का रिजेक्शन फेज और भी गहरा गया। उस साल उनकी जागीर, जीने नहीं दूंगा, राज तिलक और बाजी जैसी बड़ी-बड़ी, मल्टी-स्टारर फिल्में रिलीज हुईं और सब की सब फेल रहीं।
14 साल का वनवास और घास खाने की मजबूरी
1980 और 1990 का दशक। हिंदी सिनेमा बदल रहा था। अब एंग्री यंग मैन का दौर जा रहा था और लवर बॉय का दौर आ रहा था। खानों की तिकड़ी इंडस्ट्री पर छा रही थी। यह रोमांटिक, म्यूजिकल सिनेमा का दौर था। इसमें He-Man के ऐक्शन के लिए कोई जगह नहीं थी। A-ग्रेड डायरेक्टर्स के फोन आने बंद हो गए थे। इस दशक में धर्मेंद्र ने कई हिट फ़िल्में दीं। लोहा, इंसानियत के दुश्मन, आग ही आग, वतन के रखवाले, हुकूमत - ये तमाम हिट फ़िल्में आईं लेकिन ये सब B-ग्रेड एक्शन फिल्में थीं। A ग्रेड का एक्टर अब B ग्रेड फ़िल्में करने को मजबूर था।
धर्मेंद्र लेकिन धर्मेंद्र थे। अगर ऐक्टर के तौर पर दरवाजे बंद हो रहे थे, तो उन्होंने प्रोड्यूसर बनकर दरवाजा तोड़ दिया। 1990 में उन्होंने अपने बेटे सनी देओल के लिए एक फिल्म प्रोड्यूस की। घायल। यह फिल्म एक ब्लॉक बस्टर साबित हुई। इसने न सिर्फ सनी देओल के करियर को एक नई जिंदगी दी, बल्कि नेशनल अवॉर्ड भी जीता। बाप ने बेटे के लिए वह कर दिखाया, जो वह खुद के लिए नहीं कर पा रहे थे। 1995 में, उन्होंने यही काम अपने दूसरे बेटे, बॉबी देओल के लिए किया। उन्होंने बॉबी को बरसात से लॉन्च किया और वह फिल्म भी एवरेज बिजनेस कर गई।
एक प्रोड्यूसर के तौर पर धरम पाजी का सिक्का चल गया लेकिन। एक एक्टर के तौर पर? यह वह दौर था, जब वह बस फिसलते जा रहे थे। इक्का-दुक्का फिल्में थीं, जो ठीक-ठाक रहीं। 1990 में नाका बंदी आई, जिसने औसत कारोबार किया और 1998 में वह सलमान खान की फिल्म प्यार किया तो डरना क्या में काजोल के गुस्सैल बड़े भाई बने। वह फिल्म जुबली हिट रही लेकिन अब वह सोलो हीरो नहीं थे। वह कैरेक्टर एक्टर बन चुके थे। और इन कुछ ठीक-ठाक फिल्मों के बीच, फ्लॉप्स का एक समंदर था। कल की आवाज, BR चोपड़ा की बड़ी फिल्म थी, पिट गई। हमला, N चंद्रा जैसे बड़े डायरेक्टर के साथ थी, वह भी पिट गई। 1996 में आतंक रिलीज हुई। यह फिल्म 70 के दशक में Jaws की इंडियन रीमेक की तरह शुरू हुई थी। 20 साल बाद रिलीज हुई और बुरी तरह डूब गई।
और फिर वह हुआ, जिसने He-Man के फैन्स का दिल तोड़ दिया। 1999। धर्मेंद्र ने रॉक बॉटम हिट कर दिया। उन्होंने B-ग्रेड और C-ग्रेड फिल्में साइन करनी शुरू कर दीं। 1999 में वह B-ग्रेड फिल्मों के बादशाह कहे जाने वाले कांति शाह के साथ मुन्नीबाई में नजर आए। इसके बाद लाइन लग गई। मेरी जंग का ऐलान, जल्लाद नंबर 1, जगीरा। ये वे फिल्में थीं, जिनमें अननोन हीरोइनें होती थीं, अजीबोगरीब स्टंट होते थे और He-Man की बची-खुची इज्जत दांव पर लगी होती थी।
सवाल यह था कि क्यों? धर्मेंद्र, एक लेजेंड, ये सब क्यों कर रहे थे?
इसके तीन बड़े कारण बताए जाते हैं।
पहला: कहा जाता है कि उन्हें पंजाब से आए अपने विशाल कुनबे को सपोर्ट करना था।
दूसरा: वह अपना स्टेट-ऑफ-द-आर्ट स्टूडियो बना रहे थे। पैसा पानी की तरह बह रहा था।
तीसरा: A-ग्रेड डायरेक्टर्स ने उन्हें काम देना बंद कर दिया था। 90 का दौर रोमांटिक गानों का था। वह शाहरुख, सलमान, आमिर का था। He-Man का एक्शन अब डेटेड हो चुका था। जो ऑफर आया, वह करना पड़ा।
इस दौर ने उनके फैन्स को सबसे ज्यादा नाराज किया। घायल के डायरेक्टर, राजकुमार संतोषी, जो धरम पाजी के बहुत बड़े फैन थे, उन्होंने गुस्से में लेकिन दिल से एक बात कही। संतोषी ने कहा, 'मैं साफ-साफ कहता हूं। हिंदी में एक कहावत है- शेर भूखा मरेगा लेकिन घास नहीं खाएगा। मुझे लगता है, धरमजी ने वह घास खा ली। ये सब मुझे इसलिए दुख देता है क्योंकि मैं उनका फैन हूं। उन्होंने 25 साल जो कमाया, वह सब डुबो दिया। प्रॉब्लम यह है कि धरमजी चालाक इंसान नहीं हैं। वह बहुत इमोशनल हैं। उनके आस-पास चापलूस भरे रहते हैं, जो उनका फायदा उठाते हैं। उन्हें खराब प्रपोजल में फंसा देते हैं।'
क्यूट ही मैन
2003 तक आते-आते, He-Man का 14 साल का वनवास खत्म हो रहा था। परिवार ने फैसला कर लिया था। सनी और बॉबी ने कमान संभाल ली थी। उन्होंने तय किया, "Papa, no more B-grade films' यह He-Man की इज्जत का सवाल था। A-ग्रेड स्क्रिप्ट की तलाश शुरू हुई लेकिन असली कमबैक से पहले, एक और झटका लगा। 2004 में धर्मेंद्र ने एक फिल्म साइन की, किस किस की किस्मत। रोल अच्छा था लेकिन हीरोइन थीं मल्लिका शेरावत। मल्लिका उन दिनों मर्डर जैसी फिल्मों की वजह से सेक्स सिंबल बनी हुई थीं। He-Man को सेक्स कॉमेडी में देखना, उनके लॉयल फैन्स के लिए एक और झटके जैसा था। फिल्म नहीं चली।
इस फिल्म के बाद धर्मेंद्र तीन साल के ब्रेक पर चले गए। 2004 में ही उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा। राजस्थान के बीकानेर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वह 2009 तक सांसद रहे हालांकि संसद का कम ही रुख किया इसलिए कई बार आलोचना भी हुई।
MP रहते हुए ही धरम पाजी ने फिल्मों में अपना कमबैक किया। आखिरकार 2007 में, जिसका उन्हें कबसे इंतजार था। एक अच्छी स्क्रिप्ट मिल गई। डायरेक्टर थे अनिल शर्मा। हुकूमत वाले। देओल्स के फेवरेट। फिल्म का नाम था अपने। यह पहली बार था, जब धरम पाजी, सनी और बॉबी। तीनों देओल एक साथ पर्दे पर आ रहे थे।
अनिल शर्मा ने इस फिल्म का एक बड़ा इमोशनल किस्सा सुनाया है। अनिल शर्मा स्क्रिप्ट सुनाने पहुंचे। 'मेरी स्क्रिप्ट फैमिली वैल्यूज पर बहुत हाई थी।' जैसे-जैसे अनिल शर्मा कहानी सुनाते, धरम पाजी अजीब सी हरकत करने लगे। वह बार-बार 'एक्सक्यूज मी' कहकर वॉशरूम जाने लगे। अनिल शर्मा को लगा, शायद उन्हें स्क्रिप्ट पसंद नहीं आ रही लेकिन फिर अनिल शर्मा को अहसास हुआ। कि उन्हें बार-बार रोना आ रहा था।
वह He-Man, जो पर्दे पर फौलाद था, वह एक स्क्रिप्ट सुनकर बच्चों की तरह रो रहा था। जब नैरेशन खत्म हुआ, धरम पाजी ने अपनी पत्नी प्रकाशजी को फोन किया और कहा, 'प्रकाश, मेरी पिच्चर हो गई!' अनिल शर्मा कहते हैं, 'उस वक्त उनके चेहरे पर जो एक्सप्रेशन था, वह मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता।' अपने रिलीज हुई और हिट रही।
और जैसा कि कहावत है, जब किस्मत मेहरबान होती है, तो छप्पर फाड़ के देती है। 2007 में सिर्फ अपने नहीं आई। इसी साल, अपने के कुछ ही हफ्तों के अंदर, दो और फिल्में रिलीज हुईं। पहली थी लाइफ इन अ मेट्रो। डायरेक्टर थे अनुराग बसु। इसमें धर्मेंद्र ने एक 60+ साल के आदमी का रोल किया, जो 40 साल बाद अपने पहले प्यार से मिलता है। अनुराग बसु ने कहा, 'ये रोल बहुत रिस्की था। धर्मेंद्र मेरी पहली और आखिरी पसंद थे और मैं लकी था कि वह अच्छी स्क्रिप्ट के लिए लालची थे। मैं जब घबराते हुए उनके पास गया, तो उन्होंने फौरन हां कर दी।' फिल्म को क्रिटिक ने खूब सराहा।
इसके बाद आई जॉनी गद्दार। डायरेक्टर थे श्रीराम राघवन। यह उनकी डेब्यू फिल्म थी। राघवन ने कहा, 'मैं तो डर रहा था कि इतना बड़ा एक्टर मेरी फिल्म में काम क्यों करेगा लेकिन जब हम मिले तो वह मुझे ही मेरे काम पर इनपुट देने लगे। वह अपने आइडियाज लेकर आए।'
यमला पगला दीवाना से रॉकी और रानी तक
2007 ने He-Man का कमबैक तो कर दिया था। फैन्स खुश थे लेकिन धरम पाजी को एक बात खटक रही थी। उन्होंने कहा, 'मेरे फैन्स मुझसे अपसेट थे कि मैंने उन्हें अपने में रुला दिया। वे चाहते थे कि मैं उन्हें हंसाऊं तो हमने फैसला किया कि अब एक कॉमेडी बनाएंगे।' एक यंग राइटर, जसविंदर सिंह बाठ, कहानी लेकर आए। देओल परिवार को कहानी पसंद आ गई लेकिन यहां फिर पेच फंस गया। उन्हें कोई प्रोड्यूसर नहीं मिल रहा था। कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं था। तब, एक प्रोड्यूसर सामने आया। नितिन मनमोहन। वह रिस्क लेने को तैयार हो गए। फिल्म का नाम रखा गया 'यमला पगला दीवाना'।
14 जनवरी 2011। फिल्म रिलीज हुई और यह सुपरहिट साबित हुई। हालांकि, इसके बाद देओल परिवार ने एक गलती कर दी। वही गलती, जो 80 के दशक में उनसे हुई थी। हद से ज्यादा महत्वाकांक्षा। 2013 में वह 'यमला पगला दीवाना 2' लेकर आए। इस बार, वह कहानी को पंजाब से निकालकर UK ले गए। बजट बड़ा हो गया। स्केल बड़ा हो गया लेकिन फिल्म की आत्मा छोटी हो गई। नतीजा? फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गई।
2018 में देओल्स ने एक और कोशिश की। यमला पगला दीवाना फिर से। यह फिल्म क्यों बनी? सनी देओल ने इसका बड़ा इमोशनल कारण बताया। उन्होंने कहा, 'पापा को खुश करने के लिए, उन्हें उस डिप्रेशन से निकालने के लिए, यह फिल्म बनी।' इस बार, उन्होंने अपने सारे कनेक्शन इस्तेमाल किए। धर्मेंद्र के पुराने दोस्त, शत्रुघ्न सिन्हा को बुलाया गया। रेखा को बुलाया गया। सलमान खान को तक बुलाया गया लेकिन यह फिल्म भी नहीं चली।
धर्मेंद्र के अंदर का अभिनेता शायद थक रहा था लेकिन वह इंसान कभी नहीं थका। जब ये सब कमबैक की लड़ाइयां चल रही थीं, तब असली धर्मेंद्र क्या कर रहे थे? वह बंबई के शोर-शराबे से दूर, लोनावला में अपने फार्महाउस पर थे। वह He-Man, जिसने 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, वह वहां अपनी गायों को चारा खिला रहा था। वह अपनी फसलों की देखभाल कर रहा था। वह वापस धरमिंदर सिंह देओल बन गया था। वह किसान, जो वह हमेशा से थे।
और शायद, जब एक एक्टर सब कुछ छोड़ देता है, तभी किरदार उसे ढूंढते हुए आते हैं। 2023 में धर्मेंद्र 87 साल के हो चुके थे। डायरेक्टर करण जौहर उनके पास एक रोल लेकर आए। फिल्म थी रॉकी और रानी की प्रेम कहानी। धर्मेंद्र ने एक बार फिर पर्दे पर वापसी की और क्या वापसी की! पूरी फिल्म एक तरफ और धर्मेंद्र का वह एक सीन एक तरफ। 87 साल की उम्र में, He-Man ने अपनी पुरानी को-स्टार, शबाना आजमी के साथ, एक ऑन स्क्रीन किस किया। पूरे देश में हेडलाइंस बन गईं। गरम धरम इज बैक! इत्तेफाक देखिए कि वह एक्टर जो जिंदगी भर किसिंग सीन से दूर भागता रहा, एक किसिंग सीन के चलते हिट हो गया वह भी 87 की उम्र में।
He-Man नहीं, Man की कहानी
अभी तक जो कहानी हमने सुनाई वह एक्टर धर्मेंद्र की है। लेकिन इस एक्टर के पीछे छिपे एक इंसान भी छिपा है।कुछ क़िस्सों से समझिए। पहला किस्सा। महेश भट्ट सुनाते हैं। बात है 1972 की। फिल्म थी दो चोर। महेश भट्ट उस फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर थे। गोवा में शूटिंग चल रही थी। एक सीन में धर्मेंद्र को ट्रक ड्राइवर का भेस बदलना था। यूनिट सेट पर पहुंची और तब पता चला कि कन्फ्यूजन में धर्मेंद्र का वह ट्रक ड्राइवर वाला कॉस्ट्यूम होटल में ही छूट गया है। सेट पर हड़कंप मच गया। होटल सेट से बहुत दूर था। कॉस्ट्यूम लाने-ले जाने में घंटों लगते। प्रोड्यूसर को लाखों का नुकसान होता। महेश भट्ट, जो उस वक्त एक यंग असिस्टेंट थे, डरते-डरते धर्मेंद्र के पास गए। धर्मेंद्र उस वक्त सुपरस्टार थे। चाहते तो आसमान सिर पर उठा लेते। उन्होंने बस पलटकर पूछा, 'बेटा क्या है?'
महेश भट्ट ने पूरी कहानी बताई कि कैसे उनकी गलती से कॉस्ट्यूम छूट गया। धर्मेंद्र ने एक पल के लिए महेश भट्ट को देखा। फिर चारों तरफ नजर घुमाई। पास ही एक असली ट्रक ड्राइवर खड़ा था। धर्मेंद्र उसके पास गए। उन्होंने उस ड्राइवर के कंधे पर हाथ रखा और उससे उसकी ऑलिव ग्रीन कुर्ता कुर्ता और पगड़ी मांगी और बस। उन्होंने वह कुर्ता-पगड़ी पहनी और शॉट दे दिया। एक सुपरस्टार ने एक छोटे से असिस्टेंट डायरेक्टर की गलती को ढंकने के लिए, एक असली ट्रक ड्राइवर के कपड़े पहन लिए। महेश भट्ट कहते हैं, "Only a man of the soil could have done this!'
दूसरा किस्सा। J P दत्ता का। 1985। फिल्म थी गुलामी। J P दत्ता की यह पहली फिल्म थी। प्रोड्यूसर हबीब नाडियाडवाला के पास पैसे खत्म हो गए थे। राजस्थान का लंबा शूट बाकी था। दत्ता साहब घबरा गए कि फिल्म बंद हो जाएगी। उन्होंने डरते-डरते धर्मेंद्र को जाकर सच-सच बता दिया, 'धरमजी, मेरे पास आपको देने के लिए फीस नहीं है।ट धर्मेंद्र उस वक्त के सबसे बड़े स्टार थे। उन्होंने दत्ता से कहा, 'तुम फिक्र मत करो। पैसे जब आएं तब दे देना।' दत्ता बताते हैं, 'जब धर्मेंद्र जैसे बड़े स्टार ने अपनी फीस माफ कर दी, तो बाकी एक्टर्स—स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह, मिथुन भी मान गए।' दत्ता कहते हैं, 'मैं आज जहां हूं, उसका क्रेडिट धरमजी को जाता है।'
धर्मजी को आज बॉलीवुड में एक लीजेंड की तरह जाना जाता है लेकिन इस लीजेंड के दिल में भी एक दर्द छिपा था। धरम पाजी की जिंदगी की सबसे बड़ी ट्रेजेडी। धर्मेंद्र ने एक बार खुद कहा था, 'I would keep getting suits stitched to be ready for an award, but ended up never winning anything। I only got Lifetime Achievement awards।' सोचिए। सत्यकाम, चुपके चुपके, शोले, गुलामी, हथियार। एक भी फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट ऐक्टर का अवॉर्ड नहीं मिला।
उनके दिल में ये दर्द हमेशा रहा कि दुनिया ने उन्हें He-Man तो माना पर ऐक्टर नहीं माना। जब उनसे उनकी बेस्ट परफॉरमेंस के बारे में पूछा जाता, तो वह हमेशा सत्यकाम का नाम लेते थे। वह उस फिल्म का क्लाइमैक्स याद करते थे, 'मेरा किरदार कैंसर से मर रहा था। वह अपनी आवाज खो चुका था। उसे सिर्फ अपनी आंखों से अपनी तकलीफ बयान करनी थी। एक सीन में, मेरी पत्नी पेपर्स लेकर आती है ताकि मैं अपने बेटे को अपना नाम दे सकूं लेकिन मैं पेपर्स फाड़ देता हूं।' धर्मेंद्र कहते थे, टबिना एक शब्द बोले, उस औरत के लिए अपनी आंखों में प्यार और शुक्रगुजारी दिखाना वह बहुत मुश्किल सीन था।'
वह He-Man जो इतना टीम प्लेयर था और वह ऐक्टर जो Unrewarded रह गया। यही दो पटरियां थीं, जिन पर धर्मेंद्र की जिंदगी की ट्रेन दौड़ी।
आज, जब हम 60 साल के इस सफर को पलट कर देखते हैं, तो क्या दिखता है? एक लड़का, जो लुधियाना के मिनर्वा सिनेमा में शहीद देखकर हीरो बनने का सपना देखता है। वह He-Man, जो फूल और पत्थर से इंडस्ट्री का ट्रेंडसेटर बनता है। वह लवर बॉय, जो शोले के सेट पर अपनी ड्रीम गर्ल के लिए 2000 रुपए की घूस देता है। वह Unrewarded Actor, जिसे सत्यकाम के लिए कोई अवॉर्ड नहीं मिला। वह फैमिली मैन जो रजिया सुल्तान की डिजास्टर के साल में, बेताब जैसी ब्लॉकबस्टर से अपने बेटे को लॉन्च करता है और वह लेजेंड, जो 75 की उम्र में यमला पगला दीवाना बनकर लौटता है, और 87 की उम्र में एक kiss से ट्रेंडिंग हो जाता है।
वह सिर्फ He-Man नहीं हैं। वह सिर्फ एक Actor नहीं थे। वह थे धर्मेंद्र।
