ट्रांसजेंडर्स को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग को जेंडर ट्रांजिशन सर्जरी कराने वाले व्यक्तियों को नई मार्कशीट और सर्टिफिकेट जारी करने का आदेश दिया है। यह फैसला ट्रांजिशन सर्जरी कराने वाले व्यक्ति की याचिका पर आया है। अदालत ने साफ किया कि शिक्षा विभाग नई मार्कशीट और सर्टिफिकेट जारी करे, जिसमें उनके जेंडर और नाम की सही जानकारी हो।


यह फैसला जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने शरद रोशन सिंह की याचिका पर दिया है। इस याचिका को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने बरेली के माध्यमिक शिक्षा परिषद के क्षेत्रीय सचिव की ओर से 8 अप्रैल को जारी उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें नाम बदलने की उनकी मांग खारिज कर दी गई थी। 


क्षेत्रीय सचिव ने याचिकाकर्ता शरद रोशन के आवेदन को मौजूदा प्रावधानों और सरकारी आदेशों का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था। क्षेत्रीय सचिव का कहना था कि मौजूदा आदेशों में शैक्षणिक दस्तावेजों में लंबे समय के बाद नाम बदलने की प्रक्रिया का प्रावधान नहीं है।

 

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क्या है पूरा मामला?

बरेली के मजिस्ट्रेट ने ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) कानून की धारा 6 के तहत, सर्जरी के बाद शरद के जेंडर ट्रांजिशन को आधिकारिक रूप से मान्यता दे दी थी। साथ ही एक आईडी कार्ड भी जारी कर दिया था।


इसके बाद उन्होंने अपने नए नाम और जेंडर को दिखाने के लिए अपने शैक्षणिक दस्तावेजों में बदलाव का अनुरोध किया था। हालांकि, 8 अप्रैल को क्षेत्रीय सचिव ने उनके इस आवेदन को खारिज कर दिया था।

 

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हाई कोर्ट ने क्या कहा?

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शरद की याचिका पर गुरुवार को फैसला दिया था। हालांकि, इसकी जानकारी अब सामने आई है। हाई कोर्ट ने कहा, 'ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों के लिए 2019 में विशेष कानून बना था। इसकी धारा 20 में प्रावधान है कि इसके प्रावधान मौजूदा समय में लागू किसी भी दूसरे कानून से हटकर होंगे। इसलिए शिक्षा अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के पक्ष में 2019 के कानून के प्रावधानों को लागू न करके एक कानूनी भूल की है।'


हाई कोर्ट ने शिक्षा विभाग को शरद की मार्कशीट और सर्टिफिकेट में बदलाव करने का आदेश दिया है। शरद की ओर से पेश वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया था।