असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व शर्मा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें कुछ बच्चे असम के पारंपरिक थिएटर आर्ट 'भाओना' कर रहे हैं। यह असम के पारंपरिक नृत्य 'अंकिया नाट' का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि इस तरह के पल देखकर हम आश्वस्त हो जाते हैं कि असम की सांस्कृतिक विरासत सुरक्षित हाथों में है और यह हमारे बच्चों के माध्यम से जीवित है। भाओना असम की संस्कृति का एक अहम हिस्सा है और इसमें कलाकार मनोरंजन के माध्यम से लोगों तक धार्मिक संदेश पहुंचाते हैं। 

 

भाओना असम का एक पारंपरिक धार्मिक थिएटर कला का रूप है। इस कला की उत्पत्ति 15वीं-16वीं शताब्दी में वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव ने की थी। इसे 'अंकिया नाट' कहा जाता है और इसको करने की प्रक्रिया को भाओना कहा जाता है। इसे दृश्य-श्रव्य यानी एक ऐसे माध्यम के रूप में तैयार किया गया था जिसमें सुनने के साथ-साथ दिखाकर भी लोगों तक संदेश पहुंचाया जा सके। इसमें कलाकार गीत, पारंपरिक म्यूजिक डिवाइस और ड्रेस का उपयोग करके पौराणिक कथाओं को दिखाते हैं।

 

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ऐसे किया जाता है भाओना

भाओना में धार्मिक और पौराणिक कथाओं को नाटक के रूप में दिखाया जाता है। इसमें कहानी के साथ-साथ डांस भी होता है। इसे करने के लिए पारंपरिक ड्रेस पहनकर कलाकार तैयार होते हैं। इसके बाद स्टेज पर साहित्यिक भाषा ब्रजवाली और असमिया भाषा में बातचीत करते हैं और गाना गाते हुए डांस करते हैं। इस पूरी परफॉर्मेंस में एक 'सूत्रधार' होता है। यह सबसे प्रमुख भूमिका निभाता है और श्लोकों का पाठ करते हुए कहानी सुनाता है। इसमें जो कलाकार होते हैं वह स्थानीय चीजों से बने मुखौटे भी पहनते हैं। कलाकार कहानी के अनुसार, बातचीत करते हैं और नाटके के अनुसार ही डांस भी करते हैं। इसमें सूत्रधार बीच-बीच में लोगों को कहानी से जोड़ता है और भूमिका समझने में मदद करता है।

 

कब किया जाता है भाओना

भाओना असम की संस्कृति का एक अहम हिस्सा है और इसे हर जगह लोग अलग-अलग समय पर करते हैं। कुछ लोग खास आयोजनों में भोआा करते हैं तो कुछ लोग अब संस्कृति को बचाने के लिए भाओना के लिए अलग से आयोजन करते हैं।भाओना की कहानी लंबी भी हो सकती है। इसलिए कई बार इसे रामायण की तरह कुछ दिनों तक एक निर्धारित समय पर भी किया जाता है।

 

असम के बारेसहरीया में भाओना हर 5 से 6 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। पारंपरिक रूप से इसे चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। आजकल असम में लोग आंधी से बचने के लिए इसे फागुन (फरवरी-मार्च) की पूर्णिमा को भी आयोजित करने लगे हैं। हालांकि, भाओना के लिए कोई निर्धारित नियम नहीं है। इसे पूरे साल कभी भी आयोजित किया जा सकता है लेकिन लोग अपनी क्षेत्रीय परंपराओं के मुताबिक ही इसे करते हैं। 

 

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भाओना की बदलती भाषा

भाओना एक पारंपरिक नाट्य कला है और तेजी से बदलते इस दौर में प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए भाओना में कई बदलाव किए गए हैं। भाओना पारंपरिक रूप से नामघर यानी असमिया प्रार्थना घर में किया जाता था लेकिन अब इसे अलग-अलग मंचों पर किया जाने लगा है। इसके अलावा इसकी भाषा में भी बदलाव किया जा रहा था। पहले यह सिर्फ ब्रजवाली में किया जाता था लेकिन अब इसमें असमिया, उड़िया, बंगाली, मैथली आदि भाषाओं को भी जोड़ लिया गया है। कुछ कलाकार इस कला को इंटरनेशनल लेवल तक पहुंचाने के लिए इसको इंग्लिश में भी करते हैं। अब भारत और दुनिया के कई हिस्सों में कलाकार भाओना का प्रदर्शन करते हैं।