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तिरहुत और मगध के चुनावी नतीजे NDA और महागठबंधन के लिए इतने अहम क्यों?

बिहार में दूसरे फेज के लिए चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है। एनडीए और महागठबंध दोनों के लिए तिरहुत और मगध का चुनाव काफी अहम है।

Nitish Kumar and tejashwi yadav : Photo Credit: PTI

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव : Photo Credit: PTI

संजय सिंह: दूसरे चरण के चुनाव की तैयारी में सभी दलों ने चुनाव प्रचार के अंतिम दिन पूरी ताकत झोंक दी है। चुनाव 11 नवंबर को होना है। यह चुनाव 20 जिले के 122 विधानसभा क्षेत्र में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेगा। राजनीति के जानकार बताते हैं कि तिरहुत की 40 और मगध के 26 सीटों का परिणाम तय करेगी कि सत्ता एनडीए या महागठबंधन के हाथ में रहनेवाली है। 

 

2020 के चुनाव में तिरहुत की पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर और मधुबनी की 40 सीटों में से 31 पर एनडीए ने जीत दर्ज कराई थी और इसके साथ ही बड़ी बढ़त हासिल की थी। वहीं मात्र नौ सीट जीतने वाला महागठबंधन सत्ता से दूर हो गया था। उधर मगध क्षेत्र के गया, नवादा, औरंगाबाद, अरवल और जहानाबाद की कुल 26 सीटों में से 20 पर महागठबंधन ने जीत दर्ज कराई थी। एनडीए के खाते में मात्र 6 सीट आई थी।

 

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तिरहुत एनडीए का गढ़

यदि एनडीए तिरहुत में अपने गढ़ को बचाए रखने और मगध में महागठबंधन के गढ़ को तोड़ने में सफल रहा तभी सत्ता के करीब पहुंच पाएगी। उसके उलट महागठबंधन को भी तिरहुत क्षेत्र में एनडीए के किलाबंदी में सेंधमारी करनी होगी और मगध के इलाके में अपना गढ़ बचाना होगा। उधर शाहाबाद के रोहतास और कैमूर की सभी 11 सीटों पर महागठबंधन ने जीत हासिल की थी। यदि एनडीए सत्ता का रास्ता आसानी से तय करना चाहती है तो महागठबंधन के किले को तोड़ना होगा। वहीं महागठबंधन को अपनी किलेबंदी इन जिलों में मजबूत करनी होगी। सीमांचल की 24 सीटों पर भी दोनों गठबंधनों की कड़ी नजर है। सरकार किसी की बने पर इन सीटों को जीतना जरुरी है। 

सीमांचल भी खास

पिछले चुनाव में सीमांचल में 8 सीटों पर बीजेपी, 4 पर जेडीयू, 5 पर कांग्रेस तथा आरजेडी और भाकपा माले का एक एक सीट पर कब्जा था। जबकि एआईएमआईएम के खाते में 5 सीटें गई थीं। बाद में इसके 4 विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे। दोनों गठबंधनों ने अपने-अपने किले को बचाने और दूसरे के किले में सेंधमारी करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। आज शाम से दूसरे चरण के चुनाव प्रचार का शोर थम गया है। अब सारा नजारा 14 नवंबर के बाद सामने आएगा।

जाति का भी समीकरण 

चुनाव प्रचार के दौरान भले ही विभिन्न राजनीतिक दलों ने स्थानीय व राष्ट्रीय मुद्दे को मतदाताओं के समक्ष रखा हो, लेकिन अंततः बात जातीय गोलबंदी पर ही आकर रुक जाती है। चुनाव प्रचार के दौरान सभी घटक दलों ने अपनी-अपनी पूरी ताकतें झोंकी थी, लेकिन प्रचार के मामले में महागठबंधन से एनडीए आगे रहा। 

 

राजनीतिक दलों ने चुनाव जीतने के लिए जातीय समीकरण का भी पूरा-पूरा ख्याल रखा। इस काम को दोनों गठबंधनों ने बखूबी निभाया। दूसरे चरण में भी रिकार्ड मतदान की तैयारी दोनों गठबंधनों की ओर से की जा रही है। दूसरे चरण में 122 सीटों पर चुनाव होना है। इनमें से 32 सीटें ऐसी है जहां एक ही जाति के उम्मीदवार आमने-सामने होंगे। जानकारी के अनुसार नरपतगंज, बेलहर, नवादा और बेलागंज की चार विधानसभा सीटों पर यदुवंशी बनाम यदुवंशी के बीच मुकाबला होगा। इसी तरह अररिया, जोकीहाट, बहादुरगंज और अमौर विधानसभा की सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी अपनी ही बिरादरी के उम्मीदवार को पछाड़ने के लिए पूरी ताकत झोकेंगे।

 

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दूसरे चरण में तीन-तीन सीटों पर धानुक बनाम धानुक, पासवान बनाम पासवान, राजपूत बनाम राजपूत और मुसहर बनाम मुसहर के बीच मुकाबला होगा। उधर दो-दो सीटों पर ब्राह्मण, वैश्य, रविदास जाति के प्रत्याशी आपस मे भिड़ेंगे। एक एक सीट पर पातर, खड़बाल, संथाल, कुशवाहा और भूमिहार प्रत्याशी भी अपनी ही जाति के प्रतिद्वंदियों को पराजित करने में लगे हैं।

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