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सिर्फ 1 सीट ने बचाई लाज, वरना CM तो छोड़ो, नेता विपक्ष भी नहीं बन पाते तेजस्वी

एक सीट ने न केवल आरजेडी बल्कि तेजस्वी यादव की लाज बचा ली। अगर अबकी एक भी सीट घटती तो आरजेडी को आधिकारिक तौर पर नेता प्रतिपक्ष का पद भी नहीं मिल पाता।

RJD leader Tejashwi Yadav.

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव। (Photo Credit: PTI)

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बिहार विधानसभा चुनाव के इतिहास में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को दूसरी बार सबसे खराब हार का सामना करना पड़ा है। 2010 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी को 22 सीटों पर जीत मिली थी। ठीक 10 साल बाद उसे सिर्फ 25 सीटों पर कामयाबी मिली है। 2010 में आरजेडी का वोटबैंक करीब 18.8 फीसद था। मगर अबकी उसे करीब 23 फीसद वोट मिले। पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी को 23.5 फीसद वोट मिले थे। तब विधानसभा में उसके विधायकों की संख्या 75 थी। मगर अबकी सिर्फ .5 फीसद कम वोट मिले है। नतीजा यह हुआ कि उसके 50 विधायक घट गए। बमुश्किल से आरजेडी के खाते में नेता विपक्ष का पद आया है।

कैसे तय होता है नेता विपक्ष?

बिहार विधानसभा में कुल 243 सदस्य होते हैं। बहुमत का आंकड़ा 122 है। एनडीए इससे काफी आगे निकल चुका है। उसके पास 202 नंबर हैं। महागठबंधन की सरकार बनाने का दावा करने वाले तेजस्वी यादव के लिए यह नतीजे किसी झटके से कम नहीं है। एक समय तो यह लग रहा था कि नेता विपक्ष भी जोड़ तोड़ से बनाना पड़ेगा। मगर बिहार ने आरजेडी को उतना जनादेश दे दिया है कि वह अपने दम पर नेता विपक्ष बना सकते हैं।

 

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विधानसभा के 10 फीसद या उससे अधिक सदस्यों वाले दल को ही नेता प्रतिपक्ष का पद मिलता है। इसे ऐसे समझिए कि बिहार विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 243 है। इसका 10 प्रतिशत 24.3 होगा। यानी जिस दल के पास 25 या उससे अधिक विधायक होंगे, वहीं नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करेगा। अबकी बार आरजेडी को नपी-तुली 25 सीटें मिली हैं। अगर एक सीट भी कम होती तो नेता प्रतिपक्ष का पद भी हाथ से चला जाता। 

आंकड़े से समझिए, आरजेडी ने कब कैसे प्रदर्शन किया?

2000 विधानसभा चुनाव: आरजेडी को सबसे अधिक 124 सीटों पर जीत मिली थी। बीजेपी 67 और नीतीश कुमार की समता पार्टी सिर्फ 34 सीटों पर कब्जा जमा पाई थी। कांग्रेस के खाते में 23 सीटें आई थीं। आरजेडी को करीब 28.3 फीसद वोट मिले थे। 

 

फरवरी 2005: इस विधानसभा चुनाव में आरजेडी 75 सीटों पर जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी। जेडीयू को 55 और बीजेपी को 37 सीटों से संतोष करना पड़ा था। आरजेडी का वोट सिर्फ 3.2 फीसद घटा था। उसे कुल 25.1 प्रतिशत वोट मिले थे। छह महीने बाद दोबारा विधानसभा चुनाव होने पर आरजेडी का वोटबैंक 1.6 फीसद गिरा (23.5) नतीजा यह हुआ कि पार्टी 75 से 54 सीटों पर आ गई।

 

2010 चुनाव: बिहार में एनडीए को सबसे प्रचंड जीत साल 2010 में मिली थी। उस वक्त गठबंधन ने 206 सीटें जीती थीं। आरजेडी को अपने इतिहास में सबसे कम 22 सीटें इसी साल मिली थी। उसका वोट बैंक भी घटकर 18.8 फीसद पर पहुंच गया था। 115 सीटों पर जीतने वाली जेडीयू सबसे बड़ी और 91 सीटों के साथ बीजेपी दूसरी बड़ी पार्टी बनी थी। इस चनाव में कांग्रेस को चार सीटों पर कामयाबी मिली थी। 

 

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2015 चुनाव: गजब तथ्य यह है कि 2010 में आरजेडी 18.8 फीसद वोट के साथ सिर्फ 22 सीटों पर ही जीती थी। वहीं 2015 में उसे इतना ही वोट मिला। मगर उसकी सीटें 22 से 80 पर पहुंच गई। जेडीयू ने 71, बीजेपी ने 53 और कांग्रेस ने 27 सीटों पर कब्जा जमाया था। 

 

2020 विधानसभा: पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने 75 सीटों पर जीत हासिल करके सबसे बड़ी पार्टी बनी। बीजेपी को 74 सीटें मिली थीं। मगर दोनों के वोट शेयर में काफी अंतर था। आरजेडी को जहां 23.5 तो बीजेपी को 19.8 फीसद वोट मिले थे। जेडीयू 43 सीटों पर जीती थी। 9.6 फीसद वोट शेयर के साथ कांग्रेस ने 19 सीटें अपने खाते में डाली थी।

 


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