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बिहार में बढ़े मतदान से किसे नफा-नुकसान, क्या कहते हैं पिछले 6 चुनाव के आंकड़े

बिहार विधानसभा चुनाव में अबकी बंपर वोटिंग हुई। चुनाव विश्वेषक अपने-अपने हिसाब से अनुमान लगाने में जुटे हैं। मगर आज जानते हैं बिहार के पिछले छह चुनाव के वोटिंग पैटर्न को। मतदान घटने और बढ़ने में किसे नफा नुकसान उठाना पड़ा।

Bihar Elections 2025.

बिहार चुनाव 2025। (Photo Credit: PTI)

बिहार की जनता ने पहले चरण के चुनाव में रिकॉर्ड मतदान किया। 18 जिलों की कुल 121 सीटों पर 64.66 प्रदेश का सियासी पारा बढ़ा दिया है। माना जा रहा है कि महिला मतदाताओं की भागेदारी से वोटिंग प्रतिशत में उछाल आया है। बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल भी कहते हैं कि महिला मतदाताओं ने बेहद उत्साह के साथ बड़ी संख्या में मतदान में भाग लिया। मतदान के साथ ही पहले चरण के कुल 1,314 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। बढ़े मतदान का सभी सियासी दल अपने-अपने हिसाब से विश्लेषण करने में जुटे हैं। विपक्ष का कहना है कि अधिक मतदान सत्ता विरोधी लहर का प्रतीक है तो वहीं सत्ता पक्ष का दावा है कि यह मतदान सरकार के पक्ष में है। मगर सियासी बयानबाजी के इतर हम साल 2000 के बाद बिहार में हुए सभी विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करेंगे। यह भी जानेंगे कि मतदान घटने और बढ़ने का असर क्या हुआ है और किसको कितना फायदा पहंचा? 

 

 

2000 विधानसभा चुनाव: आरजेडी ने कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। 28.3 फीसद वोट के साथ आरजेडी ने सबसे अधिक 124 सीटों पर जीत दर्जकर बहुमत का आंकड़ा छू लिया। दो सीटों पर सीपीएम को भी जीत मिली थी। बीजेपी को 14.6 फीसद वोट और 67 सीटें मिलीं। जेडीयू सिर्फ 21 सीटों पर जीती थी। 2000 में बिहार में कुल 62.6% वोटिंग हुई थी। 

 

फरवरी 2005: पांच साल बाद बिहार विधानसभा चुनाव में वोटिंग सिर्फ 46.5% हुई। यानी 2000 के मुकाबले 16.5 फीसद कम। अब विश्लषकों का मानना है कि कम वोटिंग का अर्थ यह है कि सत्ता विरोधी लहर नहीं है। सरकार की वापसी हो सकती है। अगर इस फॉर्मूले पर फरवरी 2005 का विधानसभा चुनाव फिट नहीं बैठता है। मतदान में आई कमी का नतीजा यह हुआ कि किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। पांच साल पहले 124 सीट जीतने वाली आरजेडी 75 सीटों पर सिमट गई, जबकि उसके वोट प्रतिशत में सिर्फ 2.2 फीसद की गिरावट आई। बीजेपी को करीब 3.4 फीसद वोट का नुकसान हुआ और जेडीयू को 9.5 फीसद की बढ़त मिली। वह 2000 के मुकाबले 21 से 55 सीटों पर पहुंच गई। 


नवंबर 2005 चुनाव: त्रिशंकु विधानसभा के कारण बिहार को छह महीने में दूसरी बार चुनाव का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में तो 2000 और फरवरी 2005 के मुकाबले और भी कम मतदान हुआ। महज 45.8% लोगों ने वोटिंग की। बावजूद इसके आरजेडी सत्ता में वापसी नहीं कर सकी। इसकी वजह यह थी कि उसका वोट बैंक सिर्फ छह महीने में 25.1 से घटकर 23.5 प्रतिशत रह गया। जबकि फरवरी में जेडीयू को 14.6 और नंवबर में 20.5 फीसद वोट मिले। पार्टी छह महीने में 55 से 75 सीटों पर पहुंच गई। बीजेपी का वोट शेयर 4.6 फीसद बढ़कर 15.6 हुआ तो उसकी सीटें भी 37 से 55 हो गईं। इस चुनाव में एनडीए की जीत के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और तब से आज तक इस पद पर काबिज हैं।


2010 विधानसभा चुनाव: इस चुनाव में पिछले चुनाव यानी नवंबर 2005 के मुकाबले 7.1 फीसद (52.7%) अधिक मतदान हुआ। अधिक मतदान को सत्ता विरोधी लहर का संकेत माना जाता है। मगर 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव ने सभी पॉलिटिकल पंडितों के इस दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया। बता दें कि नवंबर 2005 में बिहार में 45.8% और 2010 के विधानसभा चुनाव में 52.7% वोटिंग हुई थी। नतीजे आने पर जेडीयू 115 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। पांच साल में उसका वोट शेयर 2.1 फीसद बढ़कर 22.6 प्रतिशत हो गया। बीजेपी का वोट 0.9 फीसद बढ़ा। मगर छोटे से मार्जिन का असर यह हुआ कि 2005 के नवंबर महीने में 55 सीट जीतने वाली बीजेपी इस बार 91 सीटों पर कमाल खिला चुकी थी। 

 

आरजेडी पांच साल बाद भी बढ़े वोट को अपनी तरफ कन्वर्ट करने में विफल रही। 2010 में उसका वोट शेयर 23.5 से घटकर 18.8 प्रतिशत ही रह गया। पार्टी सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई। एनडीए गठबंधन को 206, आरजेडी-एलजेपी को 25 और कांग्रेस को सिर्फ 4 सीटों पर जीत मिली।

 

2015 विधानसभा: इस चुनाव में जेडीयू ने एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा। 2010 के मुकाबले 4.3 फीसद अधिक मतदान हुआ। जेडीयू का वोट शेयर 22.6 से घटकर 17.3 फीसदी हो गया। उसकी सीट भी 115 से आकर 71 पर सिमट गई। आरजेडी का वोट शेयर 18.8 फीसदी ही रहा, लेकिन उसकी सीटें 2010 की 22 के मुकाबले 2015 में 80 तक पहुंच गईं। बीजेपी का वोट बैंक 16.5 से 25 फीसद तक पहुंचा, तब भी उसे 38 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। मतलब साफ है कि नीतीश के अलग होने के बाद भी बीजेपी को बढ़े हुए मतदान का साथ मिला, लेकिन यह सीटों पर कन्वर्ट नहीं हो सका। नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बनाई।

 

2020 विधानसभा चुनाव: 2010 में 57 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। 2010 में 1.7 अधिक यानी कुल 58.7% मतदान हुआ। आरजेडी को 4.7 फीसद अधिक यानी कुल 23.5 प्रतिशत वोट मिले। पार्टी का वोट तो बढ़ा लेकिन उसकी पांच सीटें घट गईं। 2015 में आरजेडी ने 80 सीटों पर जीती थी। 2020 में यह आंकड़ा 75 पर अटक गया। बीजेपी का करीब 5.2 फीसद (19.8%) वोट शेयर घटा, लेकिन पांच साल में उसकी सीट 53 से बढ़कर 74 हो गईं। पांच साल में जेडीयू का वोट शेयर 17.3 से घटकर 15.7 हो गया। नतीजा यह हुआ कि उसकी सीटें 71 से घटकर 43 पर सिमट गईं। कांग्रेस का वोट 2.8 फीसद बढ़ा लेकिन 2015 की 27 सीटों के मुकाबले 2020 में उसे सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत मिली। 

पिछले चुनाव में पहले चरण की 121 सीटों पर क्या हुआ था? 

2020 के चुनाव में पहले चरण की 121 सीटों पर आरजेडी को बढ़त मिली थी। उनसे 42 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। 32 सीटों के साथ बीजेपी दूसरे स्थान पर रही। जेडीयू को 23 विधानसभा क्षेत्र में कामयाबी मिली थी। कांग्रेस 8, वामदल 11 और वाईपी को 4 सीटों पर जीत मिली थी। एक सीट पर चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी जीती थी। 


नोट: आंकड़े इंडिया वोट्स से जुटाए गए हैं।

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