16 जज और 14 राजदूत समेत 272 लोगों ने राहुल गांधी को क्यों लिखी चिट्ठी?
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी बार-बार चुनाव आयोर पर 'वोट चोरी' का आरोप लगा रहे हैं। इसे लेकर अब देशभर के 272 प्रतिष्ठित नागरिकों ने खुला पत्र लिखा है।

राहुल गांधी को 272 प्रतिष्ठित नागरिकों को चिट्ठी लिखी है। (Photo Credit: PTI)
लोकसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी अपने टिप्पणियों को लेकर मुसीबत में फंसते नजर आ रहे हैं। चुनावी रैलियों में राहुल गांधी जिस तरह से कथित 'वोट चोरी' चुनाव आयोग को बार-बार निशाना बना रहे हैं, उसे लेकर अब देशभर के 272 प्रतिष्ठित नागरिकों ने उन्हें खुला पत्र लिखा है। इसमें आरोप लगाया है कि राहुल गांधी चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।
राहुल गांधी के नाम जिन 272 नागरिकों ने चिट्ठी लिखी है, उनमें 16 जज, 123 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स, 14 एंबेसेडर और आर्म्ड फोर्सेस के 133 रिटायर्ड अफसर शामिल हैं।
राहुल गांधी के नाम लिखे खुले पत्र में इन्होंने लिखा है कि भारत के लोकतंत्र पर जहरीली बयानबाजी से हमला हो रहा है। कुछ नेता रणनीति के तहत निराधा आरोपों का सहारा ले रहे हैं। इस चिट्ठी में यह भी कहा कि राहुल गांधी दावा कर रहे हैं कि उनके पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि चुनाव आयोग वोट चोरी में शामिल हैं।
यह चिट्ठी ऐसे समय लिखी गई है जब हाल ही में बिहार के चुनाव में विपक्षी महागठबंधन पूरी तरह साफ हो गया है। कांग्रेस सिर्फ 6 सीटों पर सिमटकर रह गई है। इन नतीजों के बाद से ही कांग्रेस 'वोट चोरी' और SIR पर सवाल उठा रही है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि SIR की बदौलत एनडीए ने चुनाव जीता है।
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खुले पत्र में क्या-क्या लिखा है? 5 पॉइंट्स में समझें
- अब चुनाव आयोग की बारी है: इस चिट्ठी में लिखा है, 'हर इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं कि भारत के लोकतंत्र पर बल प्रयोग से नहीं, बल्कि उसकी आधारभूत संस्थाओं के खिलाफ जहरीली बयानबाजी से हमला हो रहा है। कुछ राजनेता अपनी नाटकीय राजनीतिक रणनीति के तहत भड़काऊ लेकिन निराधार आरोपों को सहारा लेते हैं। भारतीय सशस्त्र बलों के पराक्रम और उपलब्धियों और न्यायपालिका, संसद और संवैधानिक पदाधिकारियों की निष्पक्षता पर सवाल उठाकर उन्हें कलंकित करने की कोशिशों के बाद अब चुनाव आयोग की बारी है कि उसकी ईमानदारी और प्रतिष्ठा पर षड़्यंत्रकारी हमले हों।'
- सरकारी कर्मचारियों को धमका रहे हैं: इसमें लिखा है, 'लोकसभा में विपक्ष के नेता ने चुनाव आयोग पर बार-बार हमला किया है और दावा किया है कि उनके पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि चुनाव आयोग वोट चोरी में शामिल है। भद्दी भाषा का उपयोग करते हुए वह कहते हैं कि उनके पास ऐसा एटम बम है कि जब वह फटेगा तो चुनाव आयोग को छिपने की जगह नहीं मिलेगी। उन्होंने धमकी भी दी है कि इस काम में जो भी शामिल है, वह उसे नहीं छोड़ेंगे। उनका कहना है कि चुनाव आयोग देशद्रोह कर रहा है। वह यह धमकी भी दे चुके हैं कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त रिटायर हो जाते हैं तो वह उनका पीछा करेंगे। लेकिन इतने आरोप लगाने के बावजूद न तो उन्होंने कोई औपचारिक शिकायत दर्ज कराई और न कोई हलफनामा दिया। इससे साफ होता है कि वह अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं और बिना सबूत के आरोप लगाकर सरकारी कर्मचारियों को धमका रहे हैं।'
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- बीजेपी की B-टीम बनने का आरोप लगा रहे: चिट्ठी में आगे लिखा है, 'कांग्रेस और बाकी राजनीतिक पार्टियों के कई वरिष्ठ नेता, वामपंथी NGO और कुछ सुर्खियों बटोरने वाले लोग भी इसी तरह की आक्रामक भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग बीजेपी की B-टीम बन गया है। ऐसी तीखी बयानबाजी भावनात्मक रूप से प्रभावशाली हो सकती है लेकिन यह जांच के सामने नहीं टिक पाती, क्योंकि चुनाव आयोग ने अपनी SIR की पद्धति को सार्वजनिक किया है। इससे पता चलता है कि आरोप सिर्फ संस्थाओं पर राजनीतिक हताशा थोपने की कोशिश है।'
- चुनावी हार का गुस्सा है: चिट्ठी में लिखा है, 'इस तरह का बर्ताव गुस्से को दिखाता है। बार-बार चुनावी हार से उपजा गुस्सा और निराशा, जिसमें जनता से जुड़ने की कोशिश नहीं होती। जब राजनेता लोगों से कट जाते हैं तो अपनी विश्वसनीयता को फिर से बनाने की बजाय संस्थाओं पर हमला करने लगते हैं। विडंबना यह है कि जब कुछ राज्यों में चुनावी नतीजे उनके हित में होते हैं तब आयोग की आलोचना नहीं करते। लेकिन जब नतीजे उनके अनुकूल नहीं होते तो आयोग खलनायक बन जाता है। यह एक बहाना है ताकि यह दिखाया जा सके कि हार राजनीति के कारण नहीं, बल्कि साजिश के कारण हुई है।'
- चुनाव आयोग एक संरक्षक है: 3 पन्नों की इस चिट्ठी में आगे लिखा है, 'चुनाव आयोग की बात आते ही देश टीएन शेषन और एन गोपालास्वामी जैसे लोगों को भी याद किया जाता है, जिनेक अडिग नेतृत्व ने चुनाव आयोग को एक मजबूत संवैधानिक प्रहरी में बदल दिया। उन्होंने सुर्खियों के पीछे भागने की बजाय नियमों को निष्पक्षता से और लगातार लागू किया। उनके नेतृत्व में आयोग को नैतिक और संस्थाक, दोनों ताकतें मिलीं। वह अब सिर्फ एक दर्शक नहीं, बल्कि संरक्षक बन गया है। वह भारत की जनता के प्रति जवाबदेह था, न कि राजनीतिक दलों के प्रति।'
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लोगों से अपील- आयोग के साथ खड़े हों
272 प्रतिष्ठित नागिरकों की ओर से लिखे गए इस खुले पत्र में देश के लोगों से चुनाव आयोग के साथ मजबूती से खड़े होने की अपील की गई है। इसमें लिखा है, 'अब समय आ गया है कि लोग चुनाव आयोग के साथ मजबूती से खड़े हों, चापलूसी के लिए नहीं, बल्कि अपने सिद्धांत के लिए। समाज को मांग करनी चाहिए कि राजनीतिक दल इस संस्थान की गरिमा को बेबुनियाद आरोपों और नाटकीय दावों से नुकसान पहुंचाना बंद करें।'
इस चिट्ठी में SIR की प्रक्रिया को जायज ठहराते हुए लिखा है, 'हमारी वोटर लिस्ट में किसकी जगह होनी चाहिए? फर्जी या नकली वोटर्स, गैर-नागरिक और वे लोग जिनकी भारत के भविष्य में कोई जगह नहीं है। ऐसे लोगों को हमारे चुनाव तय करने की अनुमति देना राष्ट्र की संप्रभुता और स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है।'
चिट्ठी में लिखा है, 'दुनियाभर में लोकतंत्र अवैध अप्रवासन को कड़ाई से नियंत्रित करते हैं। अमेरिका अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट करता है और उन्हें वोट देने से रोकता है। ब्रिटेन अवैध प्रवासियों के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाता है। ऑस्ट्रेलिया डिटेंशन लागू करता है। जापा और साउथ कोरिया तुरंत डिपोर्टेशन की प्रक्रिया अपनाते हैं। जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों ने नियम सख्त किए हैं। अगर दूसरे देश अपने चुनावों की पवित्रता को इतनी दृढ़ता से बचा सकते हैं तो भारत को भी हक है। हमारी वोटर लिस्ट की पवित्रता कोई दलगत मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जरूरत है।'
इस चिट्ठी में आखिरी में लिखा है कि भारत का लोकतंत्र मजबूत है। भारत की संस्थाओं को राजनीतिक मुक्केबाजी का निशाना नहीं बनाया जा सकता।
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