रूस के साथ यात्री विमान बनाने की डील, क्या है SJ-100; भारत को क्या फायदा होगा?
भारत और रूस पहली बार मिलकर यात्री विमान बनाएंगे। 27 अक्टूबर को एचएएल और रूस की यूएसी के बीच अहम समझौता हुआ। पश्चिमी देशों से मिले झटके के बाद रूस ने भारत की तरफ कदम बढ़ाया है। यह नई साझेदारी एविएशन क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला सकती है।

एसजे-100 विमान। ( Photo Credit: Rostec)
27 अक्टूबर को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने रूसी कंपनी यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (UAC) के साथ एक बड़ी डील की। इसके तहत भारत में सुखोई सुपरजेट 100 यात्री विमान का उत्पादन करने पर सहमति बनी। तीन दशक बाद यह पहली बार होगा जब भारत में ही एक यात्री विमान का पूरी तरह से प्रोडक्शन होगा। अभी तक यात्री विमान के मामले में भारत की निर्भरता काफी हद तक बोइंग और एयरबस जैसी दिग्गज कंपनियों पर है। मगर रूस के साथ हुआ यह समझौता न केवल भारत के एविएशन सेक्टर, बल्कि दोनों देशों के रिश्तों में भी बड़ा बदलाव लाएगा। अगर सब कुछ ठीक रहा था 2030 तक भारत में पहले विमान का उत्पादन शुरू हो जाएगा। ऐसे में आइये जानते हैं कि रूस के इस विमान में क्या खास है, यह कितना सुरक्षित है और इस डील से दोनों देशों को क्या फायदा होगा?
रूस की कुल नौ एयरलाइंस सुखोई सुपरजेट-100 विमान का इस्तेमाल करती हैं। अगर वैश्विक स्तर की बात करें तो अभी तक दुनियाभर के 16 वाणिज्यिक एयरलाइंस के पास ऐसे 200 से अधिक विमान हैं। यह विमान दो इंजन वाला है। इसका उत्पादन रूस की यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (UAC) करती है।
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एसजे-100 विमान में क्या खास?
सुखोई सुपरजेट 100 एक आधुनिक, लेकिन कम दूरी का यात्री विमान है। यह 103 यात्रियों के साथ करीब 3,500 किलोमीटर तक की यात्रा करने में सक्षम है। सुपरजेट में दो एवियाडविगेटल पीडी-8 इंजन लगे हैं। रूसी कंपनी ने विमान को इस तरीके से डिजाइन किया है कि यह बड़े यात्री विमानों की तरह ही आरामदायक है। एडवांस्ड एयरोडायनेमिक्स और मॉर्डन साइड-स्टिक कॉकपिट विमान को और भी खास बनाता है।
भारत के मौसम के अनुकूल है विमान
विमान में लगे रडार बेहद दमदार हैं। यह मौसम से जुड़ी कोई भी हलचल पता लगाने में सक्षम है। इसमें कैट IIIA ऑटोलैंड क्षमता और एडवांस्ड नेविगेशन सिस्टम भी है। भारत के मौसम में यह विमान फिट बैठेगा। विमान को -55 डिग्री सेल्सियस से 45 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में उड़ाया जा सकता है। बोइंग और एयरबस की तुलना में विमान का रखरखाव और ऑपरेशन बेहद किफायती है।
पश्चिमी पुर्जों को हटा रूस ने बनाया स्वदेशी विमान
रूस एसजे-100 विमान का उत्पादन पहले पश्चिमी देशों से आने वाले पार्ट्स की मदद से करता था। मगर 2022 में यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिया और विमान के पार्ट्स की आपूर्ति रोक दी। पहले विमान में फ्रांसीसी एसएएम146 इंजन लगता था। मगर अब रूस खुद का इंजन इस्तेमाल कर रहा है। इसके अलावा उसने विमान में इस्तेमाल होने वाले 40 विदेशी पार्ट्स को भी हटा दिया है। अब नया विमान पूरी तरह से मेड इन रूस है।
मार्च महीने में हुई विमान की टेस्टिंग
विमान को पूरी तरह से स्वदेशी बनाने के बाद रूस ने सुखोई सुपरजेट-100 की एसजे-100 नाम से री-ब्रांडिंग की। इसी साल के मार्च महीने में विमान ने पहली टेस्टिंग उड़ान भरी। रोस्टेक के मुताबिक रूस के कोम्सोमोल्स्क-ऑन-अमूर शहर में विमान की टेस्टिंग उड़ान करीब 40 मिनट तक चली। इस दौरान विमान 9800 फुट की ऊंचाई पर 500 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ रहा था।
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250 विमानों को मिला डॉलर
अभी इस विमान को करीब 200 टेस्टिंग उड़ान से गुजरना होगा। अगर सबकुछ ठीक रहा तो दिसंबर तक रूस को प्रमाणन मिल सकता है और अगले साल यानी 2026 से विमान की डिलीवरी शुरू होने की उम्मीद है। अभी तक रूस के एअरोफ्लोत समूह ने 34 विमानों का ऑर्डर दिया है। कंपनी की योजना के मुताबिक 2030 तक 142 विमान डिलीवर करने का लक्ष्य है। फिलहाल 250 विमानों का ऑर्डर मिल चुका है।
भारत और रूस का क्या फायदा?
एएएल ने साल 1961 से 1988 के बीच लाइसेंस के तहत एवरो एचएस-748 विमानों का निर्माण किया। इसके बाद यह पहली बार होगा जब भारत अपने यहां पूरी तरह से यात्री विमान का प्रोडक्शन करेगा। इस समझौते से न केवल भारत बल्कि रूस को भी फायदा होगा। एसजे-100 विमान कार्यक्रम का हिस्सा बनने से एचएएल को विमान तकनीक में महारत हासिल होगी। पश्चिमी देशों की कंपनियों पर निर्भरता कम होगी। घरेलू मांग के मुताबिक विमानों की आपूर्ति हो सकेगी। मेक इन इंडिया कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा।
रूस को फायदा यह होगा वह भारत की उत्पादन क्षमता का लाभ उठा सकता है। उन देशों में भी विमान की आपूर्ति कर सकेगा, जहां उस पर प्रतिबंध लगे हैं। एचएएल भी लंबे समय से पश्चिमी विमानों का लाइसेंस के तहत प्रोडक्शन करता रहा है। उसके पास भी अच्छा खासा कौशल है। इसके अलावा रूस भारतीय इंजीनियरिंग और तकनीक का भी लाभ उठा सकेगा। उसकी प्रोडक्शन लाइन व्यापक होगी। अधिक विमानों का उत्पादन हो सकेगा। इससे एक समय में अधिक आपूर्ति हो सकेगी।
सवालों के घेरे में विमान की सुरक्षा
सुरक्षा मामले में दुनियाभर के विशेषज्ञ इस रूसी विमान पर सवाल खड़े करते हैं। उनका मानना है कि विमान का सुरक्षा रिकॉर्ड ठीक नहीं है। देश की सिविल एविएशन सेफ्टी एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य रहे कैप्टन मोहन रंगनाथन ने बीबीसी से बातचीत में बताया कि मैं इसे लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हूं। कुछ लोग कह सकते हैं कि हाल में बोइंग के भी हादसे हुए हैं, लेकिन इन दोनों की तुलना नहीं की जा सकती।' साल 2012, 2019 और 2024 में एसजे-100 विमान कई बार हादसे का शिकार हुआ। इसमें यात्री और चालक दल की जान भी गई।
कितना बड़ा है विमानन बाजार?
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार हैं। पिछले साल करीब 35 करोड़ से ज्यादा लोगों ने हवाई यात्रा की। भारत में अभी कुल 163 एयरपोर्ट है। देश के छोटे शहरों के बीच बढ़ती एयर कनेक्टिविटी की वजह से कम दूरी के विमानों की मांग बढ़ी है। एक अनुमान के मुताबिक आने वाले समय में घरेलू मांग के कारण 200 से अधिक विमानों की जरूरत होगी। पड़ोसी देशों के बीच एयर कनेक्टिविटी के लिए 350 से अधिक विमानों की जरूरत होगी।
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