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माड़वी हिड़मा की मौत, कमजोर PLGA, क्या सच में टूट गई माओवाद की रीढ़?

माड़वी हिड़मा की कहानी सुकमा जिले के पुर्वती गांव से शुरू हुई और खत्म अल्लूरी सीताराम राजू जिले के मारेदुमिल्ली में हुई। दंडकारण्य में अब सिर्फ उसके किस्से गूंज रहे हैं।

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बस्तर के भीतर जंगलों में भी सुरक्षा बलों ने कैंप बनाए हैं। (Photo Credit: MHA)

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माड़वी हिड़मा। माओवादियों के रेड कॉरिडोर में शायद ही कोई ऐसा हो, जिसे इस नाम के बारे में न पता हो। उसकी पहचान पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के खूंखार कमांडर और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के सेंट्रल कमेटी मेंबर से कहीं ज्यादा थी। माड़वी हिड़मा, बस्तर के जंगलों का मिथकीय चरित्र बन गया था। सुकमा जिले के पुर्वती गांव से निकलकर उसकी प्रसिद्धि आंध्र प्रदेश तक फैली थी। 

छत्तीसगढ़ में कई नक्सली हुए लेकिन ऐसा नक्सली, जो माओवाद का थिंकटैंक बन गया हो, कम देखा गया है। माड़वी हिड़मा ने एक सामान्य माओवादी कैडर के तौर पर भर्ती हुआ, PLGA कमांडर बना फिर माओवादियों के सर्वोच्च कमेटी, सेंट्रल कमेटी मेंबर तक पहुंचा। यहां तक पहुंचने तक उसने भारत के सुरक्ष बलों को जो जख्म दिए हैं, उन्हें इतिहास नहीं भूल पाएगा। माओवादी इतिहास का सबसे कुख्यात कॉमरेड रहा है। 

माओवादी संगठन के भीतर कैडरों के नाम बदले जाते हैं। माड़वी हिड़मा के कई नाम थे। आंध्र प्रदेश में उसे लोग हिदमाल्लु के तौर पर जानते थे। एक नाम संतोष भी था। वह जिस पुवर्ती गांव से आता है, वहां 12 से ज्यादा कुख्यात नक्सलियों का घर हुआ करता था। हिड़मा के भाई का घर आज भी इसी गांव में पड़ता है, जहां वह 30 साल से ज्यादा वक्त तक कभी गया ही नहीं। उसका भाई, वहां खेती-किसानी करता है। सुरक्षा बल हिड़मा की मां के पास पहुंचे थे। उन्होंने अपील की थी कि वह मुख्य धारा में लौट आए। मां ने कहा था कि मजदूरी करके खा लेंगे लेकिन लौट आ। माड़वी हिड़मा ने हथियार नहीं छोड़े और मारा गया।

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खत्म हो गया माड़वी हिड़मा का खेल

माड़वी हिड़मा को आंध्र प्रदेश की स्पेशल पुलिस फोर्स 'ग्रेहाउंड्स' ने मरेदुमिल्ली जंगल में घेर लिया था। 2 दशक तक सुरक्षा बलों को जख्म दे रहा हिड़मा घिर चुके थे। उसके कई साथी पकड़े जा चुके थे, 5 साथी ढेर हो चुके थे। सुरक्षाबलों ने निशाना बनाकर उसे भी ढेर कर दिया। उसके साथ उसकी पत्नी मादकम राजे भी मारी गई। उसके सुरक्षाकर्मी और साथी भी मारे गए। माड़वी हिड़मा कम दल-बल के साथ ठिकाना बदल रहा था क्योंकि दंडाकरण्य जोन में सुरक्षा बल नक्सल विरोधी अभियानों को लगातार अंजाम दे रहे थे। नक्सलियों के टॉप कमांडर सरेंडर कर रहे थे या मारे जा रहे थे। बासवराज की मौत और भूपति के सरेंडर के बाद भूपति को लगने लगा था कि छत्तीसगढ़ अब उसके लिए सुरक्षित नहीं रह गया है।

माओवादियों का हिंसक कमांडर आखिर मरा कैसे?

माओवादियों के सरेंडर से माड़वी हिड़मा को यह अंदाजा हो गया था कि छत्तीसगढ़ में रहना सुरक्षित नहीं है। वह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सीमा के बीच फैले जंगलों में छिपकर आगे बढ़ रहा था। इन्हीं जंगलों में उसका ठिकाना था। माड़वी हिड़मा को सुरक्षाबलों को मारने और हर बार बच निकलने में महारत हासिल थी। उसे पकड़ने में आ रही सबसे बड़ी बाधा यह थी कि उसका चेहरा किसी ने नहीं देखा था। एक फोटो जो उसकी कही जाती है, वह कई साल पुरानी थी, जब वह मारा गया तो खुद सुरक्षाबलों को वक्त लगा यह पहचानने में कि हिड़मा ही मारा गया है। माओवाद विरोधी अभियानों की वजह से छत्तीसगढ़ में उसका टिकना संभव नहीं था। वह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सीमा के जंगलों में छिपकर आगे बढ़ रहा था। उसके साथ पहले जो दल-बल चल रहा था, इस मुठभेड़ में नजर नहीं आया। उसे ग्रेहाउंड्स के जवानों ने ढेर कर दिया। 

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बस्तर के IG री सुंदरराज (Photo Credit: PTI)

जीते-जी मिथक बन गया था हिड़मा

माड़वी हिड़मा, सेंट्रल कमेटी मेंबर, CPI माओवादी:-
मैं अकेला रह जाऊं तब भी लड़ता रहूंगा।

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के भीतर के कैडर ही यह आरोप लगाते रहे हैं कि स्थानीय लोगों को दरकिनार कर, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के नेताओं को पार्टी में बड़े पदों पर भर्ती किया जाता है। माड़वी हिड़मा ने इसे गलत साबित किया। वह बस्तर का पहला ऐसा आदिवासी था, जो माओवादियों का नेता बन गया था।  माओवादी गांवों में पैठ बनाने के लिए हर वर्ग को साधते हैं। उनके निशाने पर बच्चे भी होते हैं। माओवादी इसे बाल संगम का नाम देते हैं। सुरक्षा बलों की मानें तो इनका काम होता है कि जब सुरक्षा बलों के जवान गांव या जंगली इलाकों में दस्तक दें तो माओवादियों को सचेत कर दें। माओवादी नेताओं का मत अलग है।

बाल संगम में बच्चों को माओवादी साहित्य पढ़ाया जाता है, उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। माओवाद के सिद्धांत बताए जाते हैं। साल 1991 में हिड़मा, बाल संगम में शामिल हुआ था। 17 साल की उम्र में माड़वी हिड़मा पार्टी में भर्ती हुआ था, 3 दशक तक माओवाद का सबसे कुख्यात चेहरा बना रहा। माड़वी हिड़मा सेंट्रल एक सामान्य कैडर से सेंट्रल कमेटी तक पहुंच गया था। माओवादियों के बड़े नेता तेलुगू भाषी रहे हैं लेकिन हिड़मा गोंडी बोलता था। उसने हिंदी सीखी और पार्टी में बड़ा कद हासिल किया। साल 2009 में माड़वी हिड़मा पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी बटालियन नंबर 1 का कमांडर बना था। वह बस्तर का था, माओवादी समर्थकों में उसकी लोकप्रियता बढ़ती गई। उसने सुरक्षाबलों को एक से बढ़कर एक जख्म दिए। 

दंडकारण्य के जंगलों में अब CRPF के कैंप हैं। (Photo Credit: MHA)

माड़वी हिड़मा के गुनाह, जिन्होंने दहलाया बस्तर

साल 2009 में जब वह PLGA बटालियन का कमांडर बना। उसकी नीति अलग थी। जो माओवादी सिर्फ IED ब्लास्ट कर सुरक्षा बलों को अपना शिकार बनाते थे, माड़वी ने पूरी रणनीति बदल दी। PLGA का एक काम हथियार बनाना भी था। उसने संगठन में हथियारबंद ट्रेनिंग पर जोर दिया। उसने IED बम प्लांट करके मारने की जगह सुरक्षाबलों से सीधे भिड़ने का विकल्प चुना। 

माड़वी हिड़मा के गुनाह क्या थे?

  • चिंतलनार-ताड़मेटला कांड: 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा के चिंतलनार-ताड़मेटला में 76 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे। माड़वी हिड़मा इस सैन्य ऑपरेशन के पीछे था। 6 अप्रैल की सुबह जवान ताड़मेटला में जवान नक्सल विरोधी अभियानों के लिए निकले थे। नक्सली जवानों की गतिविधियों पर नजर रख रहे थे। हिड़मा की अगुवाई में सैकड़ों माओवादियों ने सुरक्षाबलों को घेरकर हमला बोल दिया। इस हमले में 76 जवान शहीद हो गए, 8 नक्सली मारे गए थे। हिड़मा इस हमले का सबसे बड़ा चेहरा बना।
  • झीरम घाटी हमला: साल 2013 में करीब लगभग 33 लोग मारे गए, जिनमें कांग्रेस नेता नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल शामिल थे। हिड़मा इस वारदात में भी शामिल रहा है।
  • बुर्कापाल हमला: 24 अप्रैल, 2017 को सुरक्षा बलों के 72 जवानों वाला एक संयुक्त गश्ती दल सुकमा के बुर्कापाल में सड़क परियोजना की सुरक्षा कर रहा था। अचानक 200-250 माओवादियों के समूह ने जवानों पर हमला बोला, 25 जवान शहीद हो गए। यह दूसरा सबसे खतरनाक हमला था। इस हमले में भी हिड़मा का नाम था। 
  • भेज्जी हमला: सुकमा के भेज्जी में 12 मार्च 2017 को एक नक्सली हमला हुआ। हमले में CRPF के 12 जवान शहीद हुए थे। माड़वी हिड़मा भी इस हमले के लिए जिम्मेदार माना गया। 
  • तेकुलगुड़ेम हमला: 2021 में जिले के तेकुलड़ेम में नक्सली हमला हुआ था। हमला माड़वी हिड़मा के निर्देश पर हुआ था।
  • 26 से ज्यादा हमलों का मास्टरमाइंड:  माड़वी हिड़मा 26 से ज्यादा बड़े नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड रहा है। 260 से ज्यादा जवान और 81 से ज्यादा आम लोगों लोगों की हत्याओं के आरोप उस पर लगे हैं। अब दंतेवाड़ा के जंगलों से उसका आतंक खत्म हो गया है।  

क्या 31 मार्च 2026 तक तक खत्म हो जाएगा नक्सलवाद?

  • आंध्र प्रदेश पुलिस ने बुधवार को कृष्णा, एलुरु, NTR विजयवाड़ा, काकीनाडा और डॉ. बीआर अंबेडकर कोनासीमा जिलों से 50 CPI (माओवादी) ऑपरेटिव्स को गिरफ्तार किया है। दक्षिण बस्तर और दंडकारण्य नेटवर्क में माओवादी सिमट रहे हैं।  

  • सीनियर माओवादी लीडर, लॉजिस्टिक्स एक्सपर्ट, कम्युनिकेशन ऑपरेटिव्स और हथियारबंद प्लाटून मेंबर, पार्टी मेंबर शामिल हैं। कई CPI माओवादी पार्टी के सेंट्रल कमेटी मेंबर माड़वी हिड़मा के करीबी रहे हैं। माड़वी हिड़मा नक्सलवाद का सबसे बड़ा चेहरा था।

  • केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक नक्सल मुक्त भारत का अभियान रखा है। हर दिन नक्सली मारे जा रहे हैं। सुकमा में बुधवार को ही 7 बड़े माओवादी लीडर मारे गए हैं। सरकार माओवादियों से हथियार छोड़कर मुख्य धारा में आने की अपील कर रही है। जो सरेंडर नहीं कर रहे हैं, मारे जा रहे हैं।

हिड़मा बच क्यों जाता था?

हिड़मा PLGA का टॉप कमाडंर रहा है। वह सेंट्रल कमेटी मेंबर था। उसके इर्दगिर्द 3 लेयर की सुरक्षा थी। 150 से ज्यादा जवान उसके साथ रहते थे। बस्तर और दंडकारण्य का कोना-कोना उसने छान रखा था। आदिवासी युवाओं का एक बड़ा हिस्सा उसे पसंद करता था। गांव वाले कभी डर, कभी दोस्ती की वजह से उसकी मदद करते थे। जब-जब उसे पकड़ने सुरक्षा बल पहुंचे, वह भागने में कामयाब रहा, मुठभेड़ में भारी पड़ा। वहां के स्थानीय लोग हिड़मा को अलर्ट कर देते थे। दंडकारण्य के जंगल आज भी मुख्यधारा से कटे हैं। जंगल हैं, पहाड़ हैं, झरने हैं। यहां तक सुरक्षाबलों का पहुंचना मुश्किल था। नक्सलियों के कई कैंप जंगल के भीतर बने हैं, जहां हथियारों का भंडार है। कम संख्या में जवान पहुंच नहीं सकते थे, ज्यादा में हमले का जोखिम बना रहता था। 

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मारा कैसे गया हिड़मा?

साल 2017 में सुकमा हमले के बाद सेना ने अपनी रणनीति बदल दी। जंगलों के अंदर कैंप बनाए गए। 87 से ज्यादा कैंप जंगल में बन चुके हैं। पहले 40-45 किलोमीटर की दूरी थी, इसे घटाकर 10 से 20 किलोमीटर के भीतर कैंप बनाए गए। छोटे-छोटे ऑपरेशन हुए। स्थानीय आदिवासियों की भर्ती बढ़ाई गई। डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड और बस्तर फाइटर्स के जवान जंगल को नक्सलियों की तरह ही जानते हैं। उन्हें स्थानीय भाषा आती है, स्थानीय सपोर्ट भी है। 

साल 2024 से ही सुरक्षा बल हिड़मा की तलाश में लगे थे। बसवराज मारा जा चुका था, भूपति जैसे कुख्यात नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया था। अब सबसे बड़ा चेहरा हिड़मा ही बचा था। उसी की तलाश में जवान लगे थे। बस्तर छोड़कर हिड़मा आंध्र प्रदेश की ओर खिसकने लगा था। वह बटालियन से अलग हो चुका था। अपनी सुरक्षा लगातार घटा रहा था। वह छत्तीसगढ़ से बाहर निकलकर आंध्र प्रदेश के जंगलों में बसना चाह रहा था लेकिन ग्रेहाउंड्स को भनक लग चुकी थी। आखिरकार वह घेरकर मारा गया। 

यह तस्वीर माड़वी हिड़मा की बताई जाती जो कई साल पुरानी है।

कितने दिन जिंदा रहेगा माओवाद?

माड़वी हिड़मा की मौत से बहुत पहले ही माओवादी संगठन कमजोर हो चुका था। मई 2025 में जनरल सेक्रेटरी नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू मारा गया था। पिछले दो साल में 5 सेंट्रल कमेटी मेंबर मारे गए। बसवाराज खत्म हो गया। चंद्रन्ना, भूपति और रुपेश ने सरेंडर किया। कोई बड़ी भर्ती नहीं हो पाई। विचारधारा के स्तर पर माओवादी दो गुटों का सामना कर रहे हैं। एक गुट चाहता है कि अब समय संविधान के दायरे में रहकर आंदोलन करने का है। एक गुट सशस्त्र आंदोलन का पक्षधर है। माओवादियों की सेंट्रल कमेटी में शामिल रूपेश खुद कह रहा है कि संवैधानिक दायरे में ही लड़ाई लड़नी चाहिए, हथियार छोड़ना ही होगा।

सुरक्षाबल लगातार एंटी नक्सल ऑपरेशन चला रहे हैं। (Photo Credit: PTI)

हिड़मा से बड़े माओवादी कौन हैं, जिनकी है तलाश?

आंध्र प्रदेश के मारेडुमिल्ली में बुधवार को मुठभेड़ के दौरान सात माओवादी मारे गए हैं। इंटेलिजेंस ADG महेश चंद्र लड्ढा ने बुधवार को कहा, '7 नक्सली मारे गए हैं। मृतकों में 3 महिला माओवादी भी शामिल हैं। मेतुरी जोखा राव उर्फ ​​शंकर भी मारा है। शंकर, श्रीकाकुलम रहने वाला था। वह आंध्र ओडिशा सीमा का प्रभारी था। वह हथियार बनाने का एक्सपर्ट था।'

पुलिस का कहना है कि अब बस दो बड़े नाम बचे हैं। थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवजी और मिसिर बेसरा उर्फ सुनिर्मल। दोनों बुजुर्ग हैं और बीमार चल रहे हैं। दोनों अब पार्टी के थिंकटैंक हैं लेकिन हिड़मा की तरह हिंसक गतिविधियों में खुद शामिल नहीं हैं। 

किस उम्मीद में हैं सुरक्षाबल?

बस्तर के आईजी सुंदरराज पी बार-बार दोहरा रहे हैं कि उनका लक्ष्य 'इलाका साफ करो, कैंप बनाओ, फिर विकास लाओ' है। बस्तर के जंगल दशकों से सुरक्षा बलों के लिए मौत की राह रहे हैं, वहां अब कई कैंप हैं, स्कूल हैं, सड़कें पहुंचाईं जा रही हैं, अस्पताल खोले जा रहे हैं। आदिवासियों को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिशें की जा रहीं हैं।

आंध्र प्रदेश के DGP हरीश कुमार गुप्ता ने मंगलवार को माड़वी हिड़मा की मौत के बाद कहा था, 'माओवादियों को हथियार छोड़ना होगा, मुख्य धारा का हिस्सा बनें। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें मरना होगा। हम 31 मार्च 2026 तक नक्सलियों को खत्म कर देंगे।' 

माड़वी हिड़मा की मौत से क्या बदलेगा?

गृह मंत्रालय ने मार्च 2026 तक माओवाद खत्म करने की डेडलाइन रखी है। पुलिस और सुरक्षा बलों के अधिकारी दावा कर रहे हैं माड़वी हिड़मा की मौत के बाद उसकी बटालियन के पास सरेंडर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। पार्टी के सीनियर नेता सरेंडर कर चुके हैं या मारे जा चुके हैं। अब माओवादियों की सेंट्रल कमेटी टूट गई है। हो सकता है कि आने वाले कुछ दिनों में देवजी और मिसिर बेसरा भी पकड़ लिए जाएं। अगर ये दोनों नेता भी पकड़े जाते हैं तो फिर माओवाद खत्म होने की स्थिति में आ जाएगा, लेकिन एक पुरानी कहावत है, 'विचारधाराएं कभी खत्म नहीं होती हैं।' माओवाद का सशस्त्र आंदोलन भले ही खत्म हो जाए, माओवाद को मिटने में वक्त लग सकता है। 


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