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बिहार में नीतीश थे, पश्चिम बंगाल में BJP का खेवनहार कौन? सामने हैं चुनौतियां

पश्चिम बंगाल में साल 2021 में विधानसभा चुनाव हुए थे। दिलीप घोष ने पार्टी की अगुवाई की। अब वह नेपथ्य में हैं और शुभेंदु अधिकारी के कंधों पर चुनाव लड़ने की तैयारी की जा रही है।

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राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा। (Photo Credit: PTI)

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बिहार विधानसभा चुनाव तय करेंगे, भारतीय जनता पार्टी का सियासी भविष्य क्या होगा। टीवी डिबेट से लेकर अखबारों तक में ऐसे कॉलम खूब छपे। सियासी पंडितों ने कहा कि बीजेपी के भविष्य की अग्नि परीक्षा बिहार में होने वाली है। अगर बीजेपी बिहार जीतने में कामयाब होती है तो तभी उसे भविष्य के चुनावों में लाभ मिल सकता है। बीजेपी ने बिहार जीत लिया। बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की सियासी जोड़ी हिट रही। बिहार में नीतीश कुमार का साथ मिला लेकिन बंगाल में बीजेपी के साथ कौन खड़ा है?

पश्चिम बंगाल में अब विधानसभा चुनाव सिर्फ द्विपक्षीय हो गए हैं। एक तरफ सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस है, दूसरी तरफ बीजेपी है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी की कोई सहयोगी राजनीतिक पार्टी नहीं है। घुसपैठ, हिंदुत्व और विकास को चुनावी मुद्दा बनाकर पश्चिम बंगाल यहां सियासत करती है। दिक्कत बस इतनी सी है कि एक तरफ साल 2010 से ही सत्ता में काबिज ममता बनर्जी हैं, दूसरी तरफ कभी न सत्ता में आने वाली भारतीय जनता पार्टी है। टीएमसी के पास चेहरा है, बीजेपी चेहरा ढूंढ रही है।

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पश्चिम बंगाल में BJP के खेवनहार कौन?

  • शमीक भट्टाचार्य: राज्य यूनिट के बीजेपी अध्यक्ष हैं। राज्यसभा सांसद हैं। पार्टी में जमकर सदस्यता अभियान चला रहे हैं। 2026 में होने वाले चुनावों की जिम्मेदारी है। SIR के पक्षधर हैं, हिंदुओं की सुरक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं। सुवेंदु अधिकारी के करीबी हैं। 

    शमीक भट्टाचार्य। (Photo Credit: PTI)
  • सुवेंदु अधिकारी: विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। तृणमूल कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे, ममता बनर्जी के करीबी रहे, अब बीजेपी में हैं। साल 2021 के चुनाव के पोस्टर बॉय रहे हैं। विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को नंदीग्राम से हरा चुके हैं।

    सुवेंदु अधिकारी। (Photo Credit: PTI)

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  • मिहिर गोस्वामी: सुवेंदु अधिकारी के करीबी हैं। विधानसभा में ममता बनर्जी से सीधे टकरा चुके हैं। बीजेपी के फायर ब्रांड नेताओं में गिने जा रहे हैं। 

    मिहिर गोस्वामी। (Photo Credit: PTI)
  • सुकांत मजूमदार: केंद्रीय राज्य मंत्री हैं। राज्य में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में शमिल हैं। वह टीएमसी के खिलाफ सबसे मुखर नेताओं में से एक हैं। 
    सुकांत मजूमदार। (Photo Credit: PTI)

बीजेपी की बंगाल में दुखती रग क्या है?

  • पश्चिम बंगाल में बीजेपी का अपना चेहरा नहीं है। सुवेंदु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस से आए हैं, उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। शुंभेंदु ने नंदीग्राम में ममता बनर्जी को विधानसभा चुनाव में शिकस्त दी थी। शुभेंदु के बढ़ते दखल के बाद दिलीप घोष दरकिनार होते चले गए। दिलीप घोष, 2021 विधानसभा चुनावों के दौरान तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष थे। कैडर मजबूत करने का श्रेय भी उन्हें दिया जा रहा था लेकिन अब वह नेपथ्य में हैं।

  • जुलाई 2025 में शमीक भट्टाचार्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। सुकांत मजूमदार, दिलीप घोष जैसे दिग्गज नेताओं को यह बात अखर गई। शमीक भट्टाचार्य को बिना जनसमर्थन के नेता कहा जा रहा है। फरवरी में अभिजीत गंगोपाध्याय और तापसी मंडल की तल्खी इतनी बढ़ गई कि तापसी ने बगावत ही कर ली। लॉकेट चटर्जी और भारती घोष के बीच तीखी बहस हुई थी। मार्च 2025 में बेहाला में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने हंगामा किया था।

  • पश्चिम बंगाल बीजेपी में गंभीर गुटबाजी सामने आई है। मतुआ समुदाय के प्रभावशाली ठाकुर परिवार में सांसद शांतनु ठाकुर और उनके भाई विधायक सुब्रत ठाकुर के बीच धार्मिक प्रमाणपत्र और मातुआ कार्ड वितरण को लेकर खुला झगड़ा हुआ। सुब्रत ने शांतनु के कार्यक्रम का विरोध किया, जिससे थाकुरबाड़ी में तनाव फैला। टीएमसी ने इसे भुनाते हुए कहा कि बीजेपी मातुआ वोट खो रही है। 

  • पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने जब मई 2025 में ममता बनर्जी से मुलाकात की तो अटकलें लगाईं गईं कि वह टीएमसी में जा रहे हैं। TMC से बीजेपी में आए नेताओं पर भी वह हमला बोलते रहे हैं। बीजेपी के कई नेता टीएम में शामिल हुए हैं। 

सरकार में नहीं आए तो विधायक चल पड़े 

पश्चिम बगाल में 294 विधानसभा सीटें हैं। बहुमत का आंकड़ा 148 है। तृणमूल कांग्रेस के पास 202 सीटें हैं। बीजेपी ने 77 सीटों पर 2021 के चुनाव में जीत हासिल की थी लेकिन विधायकों के जाने से अब सिर्फ 65 विधायक बचे हैं। बीजेपी के पास बहुमत में आने की चुनौती है। 

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चुनौतियां क्या हैं?

बीजेपी के आंतरिक समंजस्य में कमी नजर आ रही है। एक तरफ ममता बनर्जी ने मतदाता सूची संशोधन (SIR) पर केंद्र को घेरना अभी से शुरू कर दिया है, बीजेपी, टीएमसी के खिलाफ रणनीति नहीं बना पाई है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता, टीएमसी से आए नेताओं के साथ सहज नहीं हैं, यह बात कई बार सामने आ चुकी है। शमीक भट्टाचार्य को सबको एकजुट करने की चुनौती है।


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