हिमाचल प्रदेश के ऊपरी शिमला क्षेत्र में स्थित चौपाल और चूड़धार की पहाड़ियों में आज भी ऐसी आस्था बसती है, जो सिर्फ पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि लोगों का जीवन और संस्कृति बन चुकी है। इन्हीं मान्यताओं के केंद्र में हैं, पूज्यनीय शिरगुल देवता, जिन्हें स्थानीय लोग नागों के अधिपति, न्यायदाता और अदृश्य रूप से रक्षा करने वाले देव के रूप में पूजते हैं। माना जाता है कि जंगलों, पहाड़ों और कठिन रास्तों पर चलते समय शिरगुल देवता अपने भक्तों की रक्षा स्वयं करते हैं।
हिमाचल प्रदेश के चौपाल और चूड़धार में देवता का नाम श्रद्धा के साथ लिया जाता है और मंदिरों में रोजाना सैकड़ों लोग अपनी समस्याएं लेकर पहुंचते हैं। कहते हैं कि शिरगुल देवता ने नागवंश में जन्म लिया और चूड़धार की ऊंचाइयों पर कठोर तप कर अलौकिक शक्तियां प्राप्त कीं। स्थानीय पौराणिक कथाओं में उनका वर्णन दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाले और सर्प-दंश से रक्षा करने वाले देवता के रूप में मिलता है। आज भी यहां मंदिरों में बजने वाला गज्जा (ढोल), उठने वाली देवपालकी और देववाणी के समय लोगों में अपार श्रद्धा और ऊर्जा जगाते हैं।
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शिरगुल देवता की विशेषता
सर्पों के देवता और नागों के अधिपति
शिरगुल देवता को नागों का देवता माना जाता है। ऐसा मानते हैं कि वह सर्प-दंश, विष, रोग और अचानक घटनाओं से रक्षा करते हैं।
न्याय के देवता
चौपाल और चूड़धार क्षेत्र में शिरगुल देवता को न्याय देने वाले देव के रूप में पूजते हैं। लोग अपने विवाद और समस्याएं देवता के दरबार में रखते हैं और मानते हैं कि देवता न्याय अवश्य दिलाते हैं।
अलौकिक शक्ति और चमत्कारों के देवता
मान्यता है कि शिरगुल देवता अचानक प्रकट होकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। कई लोग बताते हैं कि वन्य क्षेत्र, पहाड़ी रास्तों या खतरों में अदृश्य रूप में उनका साथ मिलता है।
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चूड़धार पर्वत के रक्षक
चूड़धार की ऊंचाइयों पर कई स्थानीय लोगों का मानना है कि शिरगुल देवता पहाड़ की नकारात्मक ऊर्जा, आपदाओं और दुष्ट ताकतों से सुरक्षा करते हैं।
शिरगुल देवता से जुड़ी मान्यता
भक्तों की रक्षा
माना जाता है कि शिरगुल देवता अपने भक्तों को विष, सर्प-दंश, काले जादू और अदृश्य बाधाओं से सुरक्षित रखते हैं।
सच्ची मनोकामना पूरी होना
जो भी व्यक्ति सत्यनिष्ठा से शिरगुल देवता से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है, ऐसी मान्यता है।
देव परंपरा में विशेष स्थान
हिमाचल की देव संस्कृति में शिरगुल देवता सबसे प्राचीन और प्रभावशाली देवताओं में गिने जाते हैं। उनका देव–रथ चलना, गज्जा (ढोल) बजना और देववाणी सुनना स्थानीय लोगों के लिए शुभ माना जाता है।
विवाद समाधान
स्थानीय गांव के विवाद, जमीन के झगड़े या पारिवारिक समस्याएं भी देवता के दरबार में रखी जाती हैं।
शिरगुल देवता की पौराणिक कथा
शिरगुल देवता को कई जगह गुग्गा वीर या गुग्गा जाहरवीर के नाम से भी जाना जाता है।
नागवंशी जन्म
कथा के अनुसार, शिरगुल देवता का जन्म नागवंश में हुआ। मान्यता के अनुसार, उनमें बाल्यकाल से ही अद्भुत शक्ति थी और वह नागों पर पूर्ण नियंत्रण रखते थे।
शिव व नागराजा की कृपा
कहा जाता है कि भगवान शिव और नागराजा ने उन्हें वरदान दिया था कि वह मानवों और नागों दोनों के रक्षक रहेंगे।
दुष्ट शक्तियों का अंत
कथाओं में आता है कि हिमालय के इस क्षेत्र में एक समय दुष्ट शक्तियों और अदृश्य प्राणियों का प्रभाव था। शिरगुल देवता ने इन्हें परास्त किया और लोगों को भय से मुक्त कराया।
चूड़धार पर्वत में तपस्या
कहते हैं कि शिरगुल देवता ने चूड़धार पर्वत पर घोर तपस्या की थी। मान्यता है कि वहीं से उन्होंने अपने अलौकिक शक्तियों को प्राप्त किया।
अमरत्व का वरदान
तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं ने उन्हें अमरत्व और अदृश्य रूप में भक्तों की रक्षा करने का वरदान दिया था।