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गुरु तेग बहादुर की याद में क्यों मनाते हैं शहीदी दिवस? कहानी जानिए

गुरु तेग बहादुर, सिख धर्म के 9वें गुरु का बलिदान दिवस 24 नवंबर को माना जाता है। इस साल यूपी और दिल्ली में छुट्टी 25 नवंबर को होने के कारण इसे आज मनाया जा रहा है।

Sisganj Sahib Gurudwara

सीस गंज साहिब, Photo Credit- Wikipedia

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गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के 9वें गुरु थे। उन्हें पूरे भारत में हिंद की चादर के नाम से भी जाना जाता है। सिख धर्म में 24 नवंबर का विशेष महत्व है। इस दिन लोग उनके बलिदान को याद करते हैं। इस साल उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बलिदान दिवस के लिए छुट्टी 25 नवंबर को दी गई है इसलिए इसे आज के दिन मनाया जा रहा है। 

 

शहीदी दिवस को गुरु तेग बहादुर जी की शहादत और उनकी दी हुई शिक्षाओं को याद करते हैं। इस दिन देशभर के गुरुद्वारों में कीर्तन, अरदास और सेवाभाव के कार्य किए जाते हैं।

 

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गुरु तेग बहादुर का जन्म

गुरु तेग बहादुर, गुरु हरगोबिंद जी (सिखों के छठे गुरु) के सबसे छोटे बेटे थे। उनका जन्म 18 अप्रैल 1621 को अमृतसर में हुआ था। 1665 में वह सिखों के नौवें गुरु बने और 10 वर्षों तक समाज को धर्म और सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए लोगों को प्रेरित किया। इस साल गुरु तेग बहादुर का 350 वां शहीदी दिवस मनाया जा रहा है।

 

गुरु तेग बहादुर जब 13 साल के थे तो उन्होंने करतारपुर की लड़ाई में मुगलों के खिलाफ तलवार उठाई थी। उनके साहस को देखते हुए उनके पिता ने उनका नाम बदल दिया। बचपन में उनका नाम त्यागमल था जिसे बदलकर गुरु तेग बहादुर रख दिया गया।

9वें गुरु के रूप में मान्यता

गुरु तेग बहादुर का ज्यादा जीवन बकाला में बिता। वहीं सिखों के 8 वें गुरु, गुरु हरकिशन जी के निधन के बाद उनको 9वें गुरु के रूप में मान्यता मिली। बाद में उन्होंने 1665 में शिवालिक की पहाड़ियों के पास आनंदपुर साहिब की स्थापना की। इसे शांति का शहर भी कहा जाता है।

 

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'हिंद की चादर'

17 वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब ने कश्मीरी पंडितों पर जबरन इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव बनाया था जिसका कश्मीरी पंडितों ने विरोध जताया था। ऐसे में कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर से मिले। उन्होंने इन लोगों से मिलने के बाद उनके साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया।

 

औरंगजेब ने उनको जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए दबाव बनाया था। उन्होंने इस्लाम धर्म अपनाने से साफ मना कर दिया था। इसके बाद 1675 में औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में उनको सार्वजनिक रूप से शहीद कर दिया गया। आज उसी जगह पर शीश गंज गुरुद्वारा है। उनके बलिदान को याद रखने के लिए उन्हें हिंद की चादर भी कहा जाता है।

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