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तरकुलहा देवी मंदिर: गोरखपुर का ऐसा मंदिर जहां दी जाती थी अंग्रेजों की बलि

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित तरकुलहा देवी मंदिर अपनी पौराणिक कथा के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इस मंदिर की कथा बाबा गोरखनाथ जी और अंग्रेज शासकों से जुड़ी है।

Tarkulha Devi Temple

तरकुलहा देवी मंदिर: Photo Credit: Social Media

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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित तरकुलहा देवी मंदिर पूर्वांचल क्षेत्र में प्रमुख आस्था का केंद्र माना जाता है। घने तारकूल के पेड़ों से घिरे इस प्राचीन शक्ति-पीठ को लेकर क्षेत्र में ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं, जिसकी वजह से हर साल लाखों श्रद्धालु यहां मत्था टेकने आते हैं। माना जाता है कि इस स्थान पर देवी स्वयं प्रकट हुई थीं और तब से यह स्थल सिद्ध शक्तियों और तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है।

 

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक सिद्ध योगी जिन्हें कई परंपराओं में बाबा गोरखनाथ बताया गया है, उन्होंने इसी स्थान पर तपस्या की थी। उन्हीं की साधना से प्रसन्न होकर देवी भगवती ने तारकूल के वृक्ष के नीचे अपना आवास बनाया। तब से यह स्थान 'तरकुलहा' देवी के नाम से विख्यात हो गया।

 

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मंदिर से जुड़ी मुख्य मान्यताएं

  • तरकुलहा देवी को अत्यंत जागृत देवी माना जाता है।
  • मंदिर में स्थित देवी भक्तों की संकटों से रक्षा, मनोकामना पूरी करने और जीवन के संकट दूर करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • इस मंदिर में दूर-दूर से भक्त बलिदान, धूप-दीप और विशेष पूजा करने आते हैं।
  • माना जाता है कि देवी साधकों को तांत्रिक सिद्धियां और सुरक्षा प्रदान करती हैं।

मंदिर की विशेषताएं

  • यह मंदिर घने तारकूल (ताड़) के पेड़ों से घिरे जंगल में स्थित है, इसी वजह से देवी का नाम तरकुलहा पड़ा।
  • मंदिर परिसर में प्राकृतिक ऊर्जा और आध्यात्मिक ऊर्जा बहुत तेज मानी जाती है।
  • चैत्र नवरात्रि और नवरात्रि में यहां विशाल मेला लगता है।
  • पास में बहने वाली नदी और जंगल इस स्थान को और ज्यादा पवित्र बनाते हैं।

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मंदिर की पौराणिक कथा

देवी तरकुलहा मंदिर से जुड़ी प्रमुख कथा गोरखनाथ जी और उनके शिष्य बाबा गोरखनाथ पंथ के सिद्ध साधकों से जुड़ी है।

प्रमुख कथा – बाबा गोरखनाथ और तरकुल वृक्ष की कहानी

 

कहानी के अनुसार, बहुत समय पहले इस स्थान पर एक तारकूल (ताड़) का विशाल पेड़ था। यह क्षेत्र घना जंगल था और लोगों को यहां से गुजरने में डर लगता था। उस समय आसपास के लोग इस जगह पर भूत-प्रेत, विपत्ति और बाधाओं से परेशान रहते थे।

 

इसी दौरान बाबा गोरखनाथ जी ने कठोर तपस्या की और उस ताड़ के पेड़ के नीचे देवी भगवती का आह्वान किया। देवी प्रकट हुईं और बोलीं, 'यह स्थान अब मेरा आवास रहेगा। जो भी श्रद्धा से यहां आएगा, उसकी रक्षा होगी और उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी।'

 

इस मंदिर को लेकर एक कहानी प्रचलित है कि यहां एक बधु सिंह नाम का व्यक्ति रहता था। स्वतंत्रता संग्राम के समय वह यहां से गुजरने वाले अंग्रेज का सिर काटकर माता को समर्पित करता था। कुछ मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि गर्भवती महिलाओं की विशेष मनोकामना यहां पूरी होती है। बेटी की सुख-समृद्धि और परिवार की सुरक्षा के लिए यहां पूजा की जाती है।

मंदिर कब बना और किसने बनवाया?

  • इस स्थान पर देवी तरकुलहा की पूजा प्राचीन समय से होती आ रही है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 18वीं–19वीं शताब्दी के दौरान का बताया जाता है।
  • स्थानीय राजाओं, जमींदारों और गोरखनाथ पीठ के साधुओं ने मिलकर इसे एक मंदिर के रूप में स्थापित किया। बाद के वर्षों में सरकार और स्थानीय लोगों ने इसे पुनर्निर्मित कराया। आज यहां मुख्य गर्भगृह, विशाल प्रांगण, यज्ञशाला, नदी तट और श्रद्धालुओं के लिए धर्मशाला आदि विकसित किए गए हैं।

क्यों इतना प्रसिद्ध है तरकुलहा देवी मंदिर?

  • यहां की शक्ति बहुत जागृत मानी जाती है।
  • तांत्रिक और सिद्ध साधक यहां साधना करते हैं।
  • नवरात्रि में लाखों भक्त यहां आते हैं।
  • माता की कृपा से कठिन संकट दूर होने की मान्यता प्रसिद्ध है।
  • यह मंदिर गोरखनाथ पीठ की परंपरा से भी जुड़ा है।
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