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पंजाब यूनिवर्सिटी से फिर शुरू हुई दिल्ली और पंजाब की लड़ाई, समझिए पूरी कहानी

पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में सीनेट चुनावों की घोषणा को लेकर छात्र और पंजाब के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन पंजाब और दिल्ली की एक ओर लड़ाई में तबदील होते हुए दिखाई दे रहे हैं।

Panjab University Chandigarh Protest

पंजाब यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन, Photo Credit: Social Media

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चंडीगढ़ में स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी इन दिनों पंजाब और दिल्ली की लड़ाई का नया अड्डा बन गई है। पंजाब के राजनेताओं से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और यूनिवर्सिटी के छात्र पंजाब के हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इससे पहले केंद्र सरकार ने पंजाब यूनिवर्सिटी की सीनेट के चुनाव करवाने की जगह सदस्यों को नॉमिनेटेड करने के आदेश जारी किए थे। इसके बाद से ही छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं और केंद्र सरकार पर एक बार फिर पंजाब के साथ धोखा करने का आरोप लगा रहे हैं। पंजाब यूनिवर्सिटी ही नहीं हरियाणा के साथ पानी विवाद से लेकर राजधानी चंडीगढ़ को लेकर चल रहे विवाद पर भी प्रदर्शनकारी सरकार से सवाल कर रहे हैं। 

 

पहले भी केंद्र सरकार कई बार यूनिवर्सिटी की सीनेट में ग्रेजुएट कॉस्टिटुएंसी यानी चुनकर आए हुए प्रतिनिधियों के बजाय प्रशासन की ओर से नॉमिनेटेड प्रतिनिधियों को शामिल करने की कोशिश कर चुकी है। इस बार भी सीनेट चुनावों का शेड्यूल जारी करने के बजाय सरकार ने एक अधिसूचना जारी की और सीनेट में नोमीनेटेड सदस्यों को शामिल करने की जानकारी दी। पंजाब के लोगों का मानना है कि केंद्र सरकार यूनिवर्सिटी की सीनेट को भंग करके इस यूनिवर्सिटी को केंद्रीय यूनिवर्सिटी बनाना चाहती है। 

 

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समझिए पूरा विवाद

पंजाब यूनिवर्सिटी आजादी से पहले 1882 में पंजाब के लाहौर में स्थापित की गई थी और यह भारत की पहली टीचिंग यूनिवर्सिटी थी। आजादी के बाद पंजाब के लोगों के सहयोग से इस यूनिवर्सिटी को पहले हिमाचल के सोलन और अंत में चंडीगढ़ के सेक्टर-14 और 25 में स्थापित किया गया। पंजाब और हरियाणा के विभाजन के बाद यूनिवर्सिटी को लेकर विवाद शुरू हो गया था और विभाजन के कुछ समय बाद हरियाणा के कॉलेजों को यूनिवर्सिटी से अलग कर दिया गया था। इसके बाद से यह यूनिवर्सिटी एक इंटर स्टेड बॉडी है जिसको केंद्र सरकार और पंजाब सरकार फंड देती हैं।

 

 

यूनिवर्सिटी की नीति सीनेट बनाती है, जिसमें ज्यादातर प्रतिनिधि चुनावों के जरिए आते हैं। पंजाब यूनिवर्सिटी ऐक्ट 1947 के मुताबिक, यूनिवर्सिटी को उसकी सीनेट चलाती है। साल 2021 में भी  बड़े प्रदर्शन के बाद सीनेट चुनाव हुए थे। इसके बाद सीनेट का कार्यकाल 31 अक्टूबर 2024 को समाप्त हो गया है लेकिन सीनेट का चुनाव अब तक नहीं हुआ है। पिछले साल शीतकालीन सत्र में कांग्रेस नेता और चंडीगढ़ सांसद मनीष तिवारी ने संसद में सीनेट चुनाव करवाने की मांग रखी थी। 28 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी करके ग्रेजुएट कोंस्टीटूएंसी को खत्म कर दिया यानी अब सरकार जिसे नोमिनेट करेगी वह सीनेट में बैठेगा। 

विरोध का कारण

पंजाब के लोग इस यूनिवर्सिटी को स्टेट यूनिवर्सिटी बनाना चाहते हैं और केंद्र सरकार इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा देना चाहती है। केंद्र सरकार कई बार कोशिश करने के बाद भी विरोध के कारण इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी नहीं बना पाई। अब लोगों का कहना है कि सीनेट को भंग करके केंद्र सरकार पिछले दरवाजे से यूनिवर्सिटी पर कब्जा कर रही है। केंद्र सरकार पर आरोप है कि इस यूनिवर्सिटी को दिए जाने वाले फंड के अपने हिस्से में भी केंद्र सरकार ने कटौती की है। इसके अलावा पंजाब के लोग इस यूनिवर्सिटी में हिंदी थोपे जाने का भी आरोप लगाते रहे हैं। लोगों का मानना है कि अगर पंजाब यूनिवर्सिटी केंद्रीय यूनिवर्सिटी बन गई तो यहां पंजाबी भाषा के बजाय हिंदी को तरजीह दी जाएगी। 

 

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पंजाब VS दिल्ली में तबदील हुई लड़ाई

पंजाब यूनिवर्सिटी की यह लड़ाई अब यूनिवर्सिटी के छात्रों की लड़ाई ना रहकर पूरे पंजाब की लड़ाई बन चुकी है। पंजाब की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेता यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ प्रदर्शन में शामिल हो चुके हैं। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी, अकाली दल की सांसद हरसिमत कौर और सुखबीर सिंह बादल, हिमाचल के मंत्री विक्रमादित्य सिंह समेत कई बड़ी राजनीतिक हस्तियां छात्रों के प्रदर्शन को समर्थन दे चुकी हैं।

 

पंजाब के किसान संगठन, सामाजिक संगठन, कार्यकर्ता, कई वकील, प्रोफेसर समेत पंजाबी फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री से सरतिंदर सरताज, बब्बू मान जैसे सेलिब्रिटी भी इस धरने में शामिल हो चुके हैं। सभी ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर पंजाब के खिलाफ साजिश के तहत यूनिवर्सिटी की सीनेट को भंग करने का आरोप है। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि अगर केंद्र सरकार सीनेट चुनाव नहीं करवाती तो किसान आंदोलन की तरह ही प्रदर्शन होगा।

 

 

पंजाब यूनिवर्सिटी के इस मुद्दे के साथ-साथ अब पंजाब-हरियाणा पानी विवाद और राजधानी चंडीगढ़ पर अधिकार को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद भी इस प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं। हालांकि, यह प्रदर्शनकारियों की प्राथमिक मांग नहीं है। इन प्रदर्शनों में शामिल छात्र 'मीठी धुन रबाब दी, पंजाब यूनिवर्सिटी पंजाब दी' और 'सुहा फूल गुलाब दा, चंडीगढ़ पंजाब दा' जैसे नारे लगा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार ने पहले पंजाब से राजधानी छीन ली और अब पंजाब के लोगों के संघर्ष से बनी यूनिवर्सिटी को भी पंजाब से छिना जा रहा है। वहीं, पंजाब की राजनीतिक पार्टियां भी एक दूसरे पर इस प्रदर्शन के बहाने निशाने साध रही हैं। बीजेपी के नेता इस मुद्दे से असहज महसूस कर रहे हैं।

 

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10 नवंबर को हुआ था बड़ा प्रदर्शन

पंजाब यूनिवर्सिटी बचाओ मोर्चा के नाम से छात्र और पंजाब के लोग इस प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं। 20 नवंबर को हजारों की तादाद में लोगों ने पंजाब से चंडीगढ़ कूच किया और पुलिस के लाठीचार्ज के बावजूद यूनिवर्सिटी में जाकर विरोध प्रदर्शन किया। चंडीगढ़ की एसएसपी प्रदर्शनकारियों को रोकती रह गईं लेकिन प्रदर्शनकारी यूनिवर्सिटी का गेट तोड़कर अंदर चले गए। केंद्र सरकार ने इस प्रदर्शन से पहले ही केंद्र सरकार ने अपने फैसले को वापस ले लिया था।

 

 

इसके बाद भी छात्रों ने 10 नवंबर के प्रदर्शन की कॉल को रद्द नहीं किया और पूरे चंडीगढ़ को जाम कर दिया था। वाइस चांसलर रेणु विग ने जल्द चुनाव करवाने का आश्वासन दिया है लेकिन पंजाब यूनिवर्सिटी बचाओ मोर्चा के सदस्यों की मांग है कि यूनिवर्सिटी सीनेट चुनाव का शेड्यूल जारी करे। छात्रों ने दिसंबर में होने वाली परीक्षाओं के बहिष्कार के साथ-साथ बड़े विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है। यूनिवर्सिटी ने 20 नवंबर तक सारी परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। पंजाब यूनिवर्सिटी बचाओ मोर्चा अब 18 नवंबर को बड़ी बैठक करेगा, जिसमें आगे की रणनीति तय होगी। 


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