वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को 2025-26 का बजट पेश कर दिया। इसके साथ ही उनके नाम एक नया रिकॉर्ड भी दर्ज हो गया। निर्मला सीतारमण देश की पहली वित्त मंत्री हैं, जिन्होंने लगातार 8वीं बार बजट पेश किया। निर्मला सीतारमण ने अपना पहला बजट 2019 में पेश किया था।
इस बार का बजट 50.65 लाख करोड़ रुपये का है। बजट में सरकार ने बताया है कि अगले वित्त वर्ष यानी 2025-26 में उसका खर्चा 50.65 लाख करोड़ रुपये हो सकता है।
मगर क्या बजट को संसद में पेश कर देना ही काफी है या फिर आगे भी कुछ प्रक्रिया है? दरअसल, अभी सिर्फ बजट पेश हुआ है। इसे लागू होने के लिए अभी कुछ और पड़ावों से गुजरना बाकी है।
बजट पेश करने के बाद क्या?
बजट पेश करने के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण दो बिल पेश करेंगी। पहला- फाइनेंस बिल यानी वित्त विधेयक। दूसरा- एप्रोप्रिएशन बिल यानी विनियोग विधेयक। फाइनेंस बिल में सरकार की कमाई का ब्योरा होता है। वहीं, एप्रोप्रिएशन बिल में सरकार के खर्च का हिसाब-किताब बताया जाता है।
उसके बाद क्या?
इन दोनों बिल को संसद से पास करवाना जरूरी है। लोकसभा में इन दोनों बिल का पास होना जरूरी है। इसके बाद इन्हें राज्यसभा में भी भेजा जाता है। चूंकि ये 'मनी बिल' होते हैं, इसलिए इन्हें राज्यसभा की मंजूरी की जरूरत नहीं होती।
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पर ऐसा क्यों?
ऐसा इसलिए क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। सरकारी खजाने में जनता का पैसा है और लोकसभा में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं। इसलिए सरकारी खजाने की पाई-पाई का हिसाब जनता को देना सरकार की जिम्मेदारी है। इसलिए इन बिल को लोकसभा की मंजूरी जरूरी है।
अगर लोकसभा में अटक जाए तो?
वैसे तो आम बजट लोकसभा में आसानी से पास हो जाता है। फिर भी अगर लोकसभा में ये अटकता है तो माना जाता है कि सरकार संकट में है। आजतक कभी भी बजट लोकसभा में अटका नहीं है।
आखिरी में क्या होता है?
संसद से पास होने के बाद 1 अप्रैल से बजट लागू हो जाता है। बाकी बिल की तरह बजट को संसद से पास होने के बाद राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा जाता। बल्कि बजट पेश होने से पहले वित्त मंत्री को राष्ट्रपति से मंजूरी लेनी पड़ती है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद बजट को पेश किया जाता है।
1 अप्रैल से लागू क्यों होता है?
भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। इसकी शुरुआत 1867 में हुई थी। ये परंपरा ब्रिटेन से ही आई है। हालांकि, ब्रिटेन में वित्त वर्ष 6 अप्रैल से 5 अप्रैल तक होता है। अमेरिका में 1 अक्टूबर से 30 सितंबर तक वित्त वर्ष होता है। वहीं, पाकिस्तान में 1 जुलाई से 30 जून तक वित्त वर्ष होता है।