डिजिटल हो चुकी दुनिया में कई कंपनियां ऐसी हैं जो इंटरनेट आधारित काम करती हैं। जैसे कि कैब सर्विस देने वाली कंपनियां, फूड या ग्रोसरी डिलीवरी वाली कंपनियां और अलग-अलग सर्विस देने वाली कंपनियां। बीते कुछ ही साल में बनी ये कंपनियां खूब चर्चा में रहती हैं। कभी ये कंपनियां शेयर मार्केट में उतरने के लिए IPO लाती हैं तो कभी भारी-भरकम इन्वेस्टमेंट झटक लेती हैं। इस सबके बावजूद कई चर्चित कंपनियां हजारों करोड़ के घाटे में चल रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्विगी, ओला, फोनपे और फार्मइजी जैसे स्टार्टअप हजारों करोड़ के घाटे में चल रहे हैं। इसके बावजूद ये कंपनियां अपना काम करती जा रही हैं लेकिन बंद नहीं हो रही हैं।

 

ज्यादातर ई-कॉमर्स और डिजिटल टेक आधारित कंपनियां पिछले कुछ साल में इसी मॉडल पर काम कर रही हैं। फंड के दुरुपयोग के मामले में भी आए हैं और इसके चलते BYJU's जैसी कंपनियां डूबने के कगार पर भी पहुंच गई हैं। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि जिसने कंपनी शुरू की, उसने अच्छा मुनाफा कमा लिया और बाद में अपने शेयर बेचकर निकल गए। 

 

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घाटे में चल रही हैं दिग्गज कंपनियां

 

अगर आप इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और उसकी मदद से शॉपिंग, पेमेंट, खाने का ऑर्डर आदि करते हैं तो आप स्विगी, ओला, बिग बास्केट, फोनपे और फार्मइजी जैसी कंपनियों के नाम जरूर जानते होंगे। Inc42 ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि 2025 में ये सभी दिग्गज कंपनियां हजारों करोड़ के घाटे में हैं।

 

स्विगी कुल 3116 करोड़, ओला 2276 करोड़, बिग बास्केट 2006 करोड़, फोनपे 1727 करोड़ और फार्मइजी 1516 करोड़ के नुकसान में है। इनके अलावा, फ्लिपकार्ट 1494, पेटीएम 663 करोड़ और ATHER 812 करोड़ के घाटे में चल रही है। इसके बावजूद ये कंपनियां लगातार विस्तार कर रही हैं और अपने ग्राहकों को सेवाएं भी दे रही हैं।

घाटे वाली कंपनियां बंद क्यों नहीं होतीं?

 

कारोबार की दुनिया में यह माना जाता है कि अगर कंपनी अपनी कमाई से ज्यादा खर्च अपने विस्तार में कर रही है तो उसके सफल होने के चांस ज्यादा हैं। हालांकि, अगर यही खर्च सही से मैनेज नहीं हो पाता है तो कंपनियां डूब भी जाती हैं। 

 

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इसे हम स्विगी के उदाहरण से समझते हैं। 31 मार्च 2023 को खत्म हुए वित्त वर्ष में स्विगी ने 5361 करोड़ रुपये कमाए लेकिन उसका खर्च 8886 करोड़ रहा। यानी 3524 करोड़ का नुकसान हुआ। इसी तरह 2024 में स्विगी ने कुल 7016 करोड़ रुपये कमाए और 8802 करोड़ रुपये खर्च किए यानी 1785 करोड़ का नुकसान हुआ। अगर कमाई के आंकड़े को देखा जाए तो स्विगी की कमाई एक साल में लगभग 1700 करोड़ से ज्यादा बढ़ी। 

 

अब लोगों के मन में सवाल उठता है कि जब कंपनी की कमाई ही कम थी तो ज्यादा खर्च कैसे कर दिए? इसके दो तरीके हो सकते हैं। पहला- कंपनी किसी से कर्ज ले। दूसरा- कंपनी में कोई शख्स या वेंचर कैपिटलिस्ट निवेश करे। स्विगी के साथ दूसरा केस हुआ। साल 2023 में जब कंपनी को3524 करोड़ का नुकसान हुआ, उसी साल स्विगी ने 700 मिलियन डॉलर यानी लगभग 6300 करोड़ रुपये की फंडिंग जुटाई। इसी तरह कंपनी ने 2024 में एक बार 200 मिलियन डॉलर और एक बार 530 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई। 

 

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2025 में स्विगी ने क्वालिफाइड इंस्टिट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP) के जरिए लगभग 10 हजार करोड़ रुपये जुटाए। यानी जितने का घाटा हुआ उससे ज्यादा का निवेश कहीं न कहीं से आ गया और कंपनी अपना विस्तार करती गई।

घाटे वाली कंपनियों में निवेश क्यों करते हैं लोग?

 

असल में मार्केट में नया बिजनेस और नया आइडिया लेकर उतरे लोग लोगों को भरोसा दिलाते हैं कि उनका आइडिया आगे चलकर प्रॉफिट कमाएगा। ऐसे केस में निवेश की गई पूंजी कई गुना बढ़ जाने के चांस होते हैं। यही वजह है कि वेंचर कैपिटलिस्ट के अलावा आम लोग भी ऐसी कंपनियों में निवेश करते हैं। इसका एक उदाहरण आप NVIDIA की ग्रोथ में देख सकते हैं।

 

फॉर्चून की एक रिपोर्ट बताती है कि 2014 में जिन लोगों ने एनवीडिया के शेयर में 10 हजार डॉलर लगाए थे, 2024 में उनकी यह रकम 125,796 डॉलर तक पहुंच गई। यानी 10 साल में 12 गुना से ज्यादा। यह तो शेयर होल्डर्स का हाल है। आम तौर पर कोई कंपनी एक अच्छी ग्रोथ हासिल करने के बाद ही मार्केट में उतरती है और उससे पहले वेंचर कैपिटलिस्ट ही उसमें पैसे लगाते हैं। ऐसे में उनकी हिस्सेदारी में जो बढ़ोतरी होती है, वह कई गुना बढ़ जाती है। हालांकि, इस खेल में रिस्क भी कई गुना ज्यादा होता है।