एक तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS), दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के गुमनाम रहने वाले नेता। न वे लाइम लाइट में रहते थे, न ही उनके नाम की चर्चा थी। कोई ओडिशा से आया तो कोई हरियाणा से। दिल्ली विधानसभा चुनाव में गुमनाम नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी के बिखराव को ऐसे थामा, जिसके चलते 27 तक चला आ रहा सियासी सूखा खत्म हो गया।
संघ के एक पदाधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि दिल्ली में 1 हजार से ज्यादा बैठकें संघ स्वयंसेवकों ने की है। अरविंदर सिंह लवली की गांधी नगर विधानसभा से लेकर प्रवेश वर्मा की नई दिल्ली विधानसभा तक बीजेपी और संघ की गुपचुप बैठकों ने अरविंद केजरीवाल के AAP सरकार की चूलें हिला दीं।
दिल्ली विधानसभा में संघ नेता तो गुमनाम ही रहे लेकिन बीजेपी के कुछ नाम मीडिया से छिप नहीं सके। उनकी चुपचाप वाली कैंपेनिंग ने कैसे दिल्ली विधानसभा चुनावों की रणनीति बदलकर रख ली, यह जानना बेहद दिलचस्प है। अब ऐसे में जानते हैं कि बीजेपी के वे चेहरे जिनका कोई मजबूत जनाधार नहीं था, जनसभाओं से बचते थे लेकिन चुपके से ही BJP को जिता गए।
पर्दे के पीछे के वे नेता, जिन्होंने दिल्ली जितवा दी!
बैजयंत पांडा: भारतीय जनता पार्टी के महासचिव हैं। उन्हें दिल्ली चुनावों के लिए प्रभारी बनाया गया था। वह भारतीय जनता पार्टी के संगठन प्रभारी रह चुके हैं। बैजयंत ओडिशा के केंद्रपड़ा सीट से लोकसभा के सांसद हैं। जब उन्हें दिल्ली बीजेपी की कमान सौंपी गई तो उन्होंने वादा किया कि 100 फीसदी जीत होगी। ओडिशा में दशकों से सत्ता में रहे नवीन पटनायक की सरकार को बुरी तरह हार दिलाने का श्रेय भी इन्हें ही जाता है। दिल्ली नगर निगम चुनावों में भी बैजयंत पांडा को अहम जिम्मेदारी मिली थी। कहते हैं कि एमसीडी में बीजेपी की और करारी हार होती, अगर बैजयंत पांडा नहीं होते। बैजयंत पांडा ने हरियाणा में भी बीजेपी की वापसी में अहम अहम रोल निभाया था। बैजयंत पांडा, गुमनाम होकर राजनीति करने वाले नेता रहे हैं।
अतुल गर्ग: उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद लोकसभा सीट से अतुल गर्ग भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं। वह दिल्ली चुनाव के सह प्रभारी हैं। संघ में उनकी मजबूत पैठ है। वह टीम योगी आदित्यनाथ में भी अहम पद पर रह चुके हैं। NCR का नेता होने की वजह से दिल्ली के कई इलाके उनके सीधे प्रभाव में रहे। वैश्य वोटरों से लेकर व्यापारी वर्ग तक को उन्होंने बेहद सधे तरीके से साधा। अतुल गर्ग ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कई बैठकें करके उनके वादों को गलत साबित किया। भ्रष्टाचार से लेकर उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षाओं तक को मुद्दा बना दिया। संगठन स्तर पर कई बैठकें की, जिसका नतीजा सबके सामने है।
वीरेंद्र सचदेवा: वीरेंद्र सचदेवा दिल्ली बीजेपी के स्थाई प्रदेश अध्यक्ष हैं। मई 2023 में उन्हें ये जिम्मेदारी मिली। जिम्मेदारी मिलने से पहले वह सफल राजनेता थे लेकिन ऐसा 'जोखिम' भरा पद उन्हें नहीं मिला था। वजह यह थी कि साल 2015 से ही दिल्ली में अरविंद केजरीावल की अजेय छवि बन गई थी। 2015 में 67 सीटें, 2020 में 62 सीटें हासिल करने वाले केजरीवाल को हराना टेढ़ी खीर था। लोगों का कहना था कि पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी और दिल्ली से अरविंद केजरीवाल, बीजेपी के लिए ऐसे नासूर हैं, जिन्हें बीजेपी कभी भर नहीं सकती।
सधी रणनीति से बीजेपी ने दिल्ली में सत्ता परिवर्तन किया। बीजेपी की आंतरिक कलह को दबाने में कामयाब हुए। उन्होंने पूरे चुनाव में पूर्व बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी को साधे रखा, जिससे पूर्वांचली भी सधे रहें और दिल्ली के अन्य वर्ग भी। MCD में मिली हार का बदला लेने और 27 साल का सियासी सूखा खत्म करने में वीरेंद्र सचदेवा का भी अहम रोल रहा।
यह भी पढ़ें: सबसे अमीर कौन? सबसे क्रिमिनल कौन? दिल्ली के नए विधायकों को जानें
प्रवेश वर्मा: प्रवेश वर्मा, साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं। साहिब सिंह वर्मा, दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने सीधे अरविंद केजरीवाल के खिलाफ सियासी मैदान में उतरने का फैसला कहा। वह इस दावे के साथ आए कि अरविंद केजरीवाल को हरा देंगे। कहा गया कि प्रवेश वर्मा, पश्चिम बंगाल का 'नंदीग्राम' अध्याय दिल्ली में गढ़ रहे हैं। प्रवेश वर्मा के इस नैरेटिव का असर दूर तक हुआ। पूरे चुनाव में वह खुद को विजेता दिखाते रहे। खुद को सीएम पद का चेहरा भी प्रोजेक्ट करते रहे। उन्होंने न केवल अपनी विधानसभा में प्रचार किया, बल्कि जंगपुरा और पटपड़गंज जैसी विधानसभा सीटों पर भी दमखम लगाया। चुनाव में सधी रणनीति से उन्होंने भी कमाल किया।
बीएल संतोष: बीएल संतोष बीजेपी के संगठन मंत्री हैं। चाहे यूपी, पश्चिम बंगाल या बिहार का चुनाव हो, चाहे दिल्ली का विधानसभा चुनाव, इस चेहरे पर सबकी निगाहें टिकी होती हैं। मीडिया के सामने बेहद कम आते हैं लेकिन संगठन की राजनीति करते हैं। प्लानिंग ऐसी करते हैं कि विरोधी चित हो जाएं। उन्होंने बीजेपी को संगठन स्तर पर मजबूत किया है। नाराज संघ को मानने वाले बीएल संतोष, ने हर वर्ग को साधने की कोशिश की। बीएल संतोष का संगठन पर मजबूत पकड़ है। दक्षिण भारत हो या उत्तर, हर जगह बीएल संतोष ने सधी रणनीति से चुनावी समीकरण बदले हैं। वह अविवाहित हैं और संघ के पूर्णकालिक प्रचारक रहे हैं।
ये भी पढ़ें-- 'कांग्रेस के हाथ ने दिया BJP का साथ!' कहां-कहां AAP के साथ हुआ खेल?
विष्णु मित्तल: बीजेपी के दिल्ली प्रदेश उपाध्यक्ष रहे हैं। नगर निगम चुनावो में उन्होंने बीजेपी के लिए संगठन स्तर पर काम किया था। वह दिल्ली बीजेपी के प्रदेश कोषाध्यक्ष और राष्ट्रीय संयोजक भी रहे हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बीएल संतोष तक से जुड़े हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में वह फ्रंट फुट पर नहीं आए लेकिन सधे कदमों से पूरी चुनावी रणनीति बदलकर रख दी।
ये भी पढ़ें- AAP की प्रचंड लहर में भी जिन सीटों पर जीती थी BJP, वहां किसकी जीत?
रमेश बिधूड़ी: रमेश बिधूड़ी भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद रहे हैं। वह कालकाजी विधानसभा सीट से चुनाव प्रचार में उतरे। दिल्ली की मौजूदा मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगाया। रमेश बिधूड़ी सिर्फ कालकाजी तक ही सीमित नहीं रहे, उन्होंने गुर्जर बाहुल सीटों पर बहुत सधे तरीके से फील्डिंग की। वह खुद तो चुनाव हार गए लेकिन कई सीटों पर बीजेपी की पैठ मजबूत कर गए। उन्होंने बेहद तल्ख राजनीतिक टिप्पणियां की, जिससे बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी असहज हुआ लेकिन बीजेपी के कोर वोटरों को उनकी बातें अच्छी लगीं।