बिहार के कैमूर जिले में स्थित चैनपुर विधानसभा क्षेत्र अपनी भौगोलिक विविधता और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है। चैनपुर, चंद, अधौरा और भगवानपुर ब्लॉकों को मिलाकर बना यह इलाका समतल मैदानों से लेकर दक्षिण में फैले कैमूर पठार तक फैला हुआ है। दुर्गावती और कर्मनाशा नदियों की मौजूदगी की वजह से यह काफी कृषि प्रधान क्षेत्र है। भले ही चैनपुर में कोई शहरी केंद्र नहीं है, लेकिन इसका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व गहरा है।
कभी ‘मलिकपुर’ नाम से जाना जाने वाला यह गांव 1600 के दशक में बसा था और शेरशाह सूरी के दामाद बख्तियार खान का मकबरा इसकी पहचान हैं। मुगल काल में चैनपुर एक समृद्ध जागीर रहा और ‘चैनपुर की रानी का किला’ इसकी शाही विरासत का प्रतीक है। कृषि, इतिहास और सामुदायिक विविधता से घिरा चैनपुर आज भी ग्रामीण बिहार की सामाजिक-राजनीतिक जमीनी तस्वीर को प्रस्तुत करता है।
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मौजूदा समीकरण
1951 में स्थापित चैनपुर विधानसभा क्षेत्र, सासाराम लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है और बिहार के उन चुनिंदा इलाकों में से है जहां मतदाता जातीय समीकरण से ज्यादा उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि पर भरोसा करते हैं। पूरी तरह ग्रामीण इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति के मतदाता करीब 21%, अनुसूचित जनजाति 9.38% और मुस्लिम वोटर लगभग 9.7% हैं, जो चुनावी गणित में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
राजनीतिक रूप से चैनपुर किसी एक पार्टी का गढ़ नहीं रहा है। यहां कांग्रेस, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी, बीजपी, बीएसपी और आरजेडी—सभी ने कभी न कभी जीत का स्वाद चखा है, जबकि वाम दलों और जेडीयू को अभी तक सफलता नहीं मिल सकी। इस क्षेत्र की राजनीति ‘पार्टी से पहले व्यक्ति’ के सिद्धांत पर चलती रही है।
यहां के दो बड़े नाम — लालमुनी चौबे और महाबली सिंह — चैनपुर की राजनीति के ध्रुव रहे हैं। चौबे ने लगातार चार बार जीत हासिल की, पहले जनसंघ, फिर जनता पार्टी, और बाद में बीजेपी से, बिना दल-बदल के। वहीं महाबली सिंह ने 1995 से 2005 के बीच चार बार विधायक बने — पहले बीएसपी से दो बार, फिर आरजेडी से दो बार — पर 2015 में जेडीयू के टिकट पर पराजित हो गए।
2020 में क्या स्थिति रही
पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीएसपी के मोहम्मद जमा खान ने जीत हासिल की थी। उन्हें कुल 95,245 वोट मिले थे जो कि कुल वोटों का 46.2 प्रतिशत था। दूसरे स्थान पर बीजेपी के बृज किशोर बिंद रहे जिन्हें 70,951 वोट मिले थे। कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा था। वह चौथ स्थान पर रही जबकि तीसरे स्थान पर एक निर्दलीय प्रत्याशी नीरज पाण्डेय का रहा था।
2015 के चुनाव में बीजेपी के बृज किशोर बिंद ने जीत दर्ज की थी लेकिन दूसरे स्थान पर रहे बीएसपी के जमा खान से लगभग 600 वोट ही ज्यादा उन्हें मिले थे। हालांकि अगर इस साल जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन होता तो दोनों का वोट मिलाकर करीब 88,000 हो जाता।
हालांकि, जनसुराज ने इस बार यहां से लालमुनी चौबे के बेटे हेमंत चौबे तो टिकट दे दिया है जो कि समीकरण बदल सकते हैं। लालमुनी चौबे का इस सीट पर दबदबा रहा है।
विधायक का परिचय
जमा खान ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के हलफनामे के मुताबिक अपना व्यवसाय कृषि बताया है। साथ ही अपने साथी के व्यवसाय को शून्य दर्शाया है। साथ ही संपत्ति की बात करें तो उन्होंने अपनी संपत्ति लगभग साढ़े पच्चीस लाख रुपये घोषित कर रखी है। वहीं, देनदारियां लगभग 30 लाख रुपये की हैं।
शिक्षा की बात करें तो वह 12वीं पास है, जो कि उन्होंने 1989 में वाराणसी के आदर्श इंटर कॉलेज से पूरी की। क्रिमिनल रिकॉर्ड की बात करें तो उनके ऊपर ढेर सारे मामले दर्ज हैं जिनमें हत्या के प्रयास से लेकर अधिकारियों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन से रोकने तक के मामले शामिल हैं। इसके अलावा दंगा फैलाने, शांति भंग करने और घातक हथियार से लैस होने के भी मामले शामिल हैं।
जमा खान ने एक बयान काफी विवादित हुआ था जब उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि उनके पूर्वज हिंदू थे। इस दौरान उन्होंने कहा था कि हमारे खानदान के आधे लोग आज भी हिंदू हैं और प्यार मोहब्बत बना हुआ है।
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विधानसभा का इतिहास
1952- गुप्तनाथ सिंह (कांग्रेस)
1962- मंगल चरण सिंह (कांग्रेस)
1969- बद्री सिंह (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी)
1972- लालमुनी चौबे (भारतीय जनसंघ)
1977- लालमुनी चौबे (जनता पार्टी)
1980- लालमुनी चौबे (बीजेपी)
1985- परवेज़ अहसान खान (कांग्रेस)
1990- लालमुनी चौबे (बीजेपी)
1995- महाबली सिंह (बीएसपी)
2000- महाबली सिंह (बीएसपी)
2005- महाबली सिंह (आरजेडी)
2009- महाबली सिंह (बीजेपी)
2010- बृज किशोर बिंद (बीजेपी)
2015- बृज किशोर बिंद (बीजेपी)
2020- मोहम्मद ज़मा खान (बीएसपी)