दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी के बीच जीत-हार का अंतर बेहद कम रहा है। जिस पार्टी ने साल 2020 के विधानसभा चुनावों में 62 सीटें जीती थीं, वही पार्टी महज 22 सीट पर सिमट गई है। भारतीय जनता पार्टी ने 48 सीटें जीतने के साथ बहुमत से सत्ता में वापसी की है।
भारतीय जनता पार्टी 27 साल से सत्ता के लिए दिल्ली में तरस रही थी। बीजेपी की आखिरी मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज थीं, जिसके बाद शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल ने ऐसा व्यूह रचा कि 27 साल के लिए बीजेपी का दिल्ली से वनवास हो गया। लोकसभा सीटें बीजेपी जीतती रही लेकिन विधानसभा में प्रदर्शन बेहद खराब रहा।
साल 2013 में आम आदमी पार्टी का उदय कांग्रेस के लिए अंत बना। कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध भी आम आदमी पार्टी ने ही लगाई। जो AAP का कोर वोट बैंक है, वही कांग्रेस का। दोनों पार्टियों का गठबंधन न होना भी बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा। कई सीटों पर जीत-हार के अंतर ऐसे ही हैं। ऐसे में अब यह जानना दिलचस्प होगा कि AAP की हार के और BJP की जीत के अहम फैक्टर्स क्या रहे, जिन्होंने पूरी बाजी ही पलट दी।
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BJP ने 27 साल बाद कैसे हासिल की जीत?
बीजेपी ने निगेटिव कैंपेनिंग के साथ अपनी शुरुआत की और अंतिम दौर में पॉजिटिव कैंपेनिंग पर शिफ्ट हो गई। पहले बीजेपी ने AAP सरकार की खामियां गिनाईं, यमुना की गंदगी से लेकर आयुष्मान भारत योजना को मंजूरी न देने वाले फैसले तक पर अरविंद केजरीवाल को घेरा। वहीं अरविंद केजरीवाल अपनी उपलब्धियां गिनाते रहे। अंतिम दौर के रण में अरविंद केजरीवाल की कैंपेनिंग निगेटिव हुई। वह यमुना में जहर फैलाने की बात कर रहे थे, बीजेपी पर गुंडागर्दी के आरोप लगा रहे थे। वोटरों के मन में यह बैठा कि अब अरविंद केजरीावल सिर्फ राजनीति कर रहे हैं, जनहित के मुद्दे उनके प्रचार से गायब है। वहीं बीजेपी अपनी जनकल्याणकारी योनजाओं का जिक्र हर रैली में करने लगी। इससे भी वोटर प्रभावित हुए।

शीशमहल, भ्रष्टाचार, गंदगी, वे मुद्दे जिन्होंने AAP का किया नुकसान
बीजेपी ने शीशमहल का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। बीजेपी ने कहा कि शीशमहल में जनता के पैसे लगे, अरविंद केजरीवाल ने अपने लिए राजमहल बनवाया। जिस सादगी की राजनीति से वह सत्ता में आए थे, उसी की उन्होंने धज्जियां उड़ा दीं। खुद भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से राजनीति में उतरे लेकिन उसी में उन पर बेहद संगीन आरोप लगे। उनकी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जेल में गया।
अरविंद केजरीवाल खुद जेल गए, उनके डिप्टी मनीष सिसोदिया जेल में गए, सत्येंद्र जैन जेल गए और संजय सिंह जैसे नेताओं ने भी महीनों की जेल काटी। दिल्ली में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने मिलकर ऐसा नैरेटिव गढ़ा कि एक बड़े तबके को लगने लगा कि आम आदमी पार्टी के नेताओं ने भ्रष्टाचार किया है।
अरविंद केजरीवाल के कोर वोटर निम्न मध्यम वर्गीय परिवार रहे हैं। बीजेपी ने इसी पर काम किया है। जब केंद्रीय बजट में 12 लाख रुपये सालाना की आय करमुक्त की गई, मध्यम वर्ग को यह बजट बेहद रास आया। चुनाव के कुछ दिन पहले आए इस बजट ने भी बीजेपी की राह आसान कर दी। बीजेपी का मध्यम वर्ग पर भरोसा बढ़ गया।

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दिल्ली में खराब टूटी-फूटी सड़कें, नाले, गंदगी हर जगह की सच्चाई है। एमसीडी पर आम आदमी पार्टी ही काबिज है, फिर भी काम नहीं हुआ है। ऐसे में बीजेपी ने अपनी विधानसभाओं में भी इसे मुद्दा बनाया। बीजेपी ने 8वें पे कमीशन का ऐलान भी किया, जिसका असर सरकारी कर्मचारियों पर हुआ।

बीजेपी ने लोक-लुभावने वादे किए। महिलाओं को 2500 रुपये प्रतिमाह देने से लेकर आयुष्मान भारत के तहत 10 लाख रुपये के मुफ्त इलाज तक की योजनाओं ने लोगों का दिल जीता। एक यह भी संदेश देने की कोशिश हुई कि दिल्ली में बीजेपी की सरकार रहेगी तो एलजी और सरकार में कोई टकराहट भी नहीं होगी।
कहां चूक गई AAP, किन गलतियों को नहीं सुधार पाए अरविंद केजरीवाल?
आम आदमी पार्टी के खिलाफ बीजेपी ने जमकर कैंपेनिंग की। आम आदमी ने दोहरे मोर्च पर सियासी लड़ाई लड़ी। जिस कांग्रेस के साथ इंडिया ब्लॉक गठबंधन में AAP ने समझौता किया था, उसी से लड़ाई थी। दोनों का वोटबैंक भी वही था। बीजेपी ने आम आदमी पार्टी की जन कल्याणकारी योनजाओं की खामियां गिनाईं, मोहल्ला क्लीनिक की दुर्दशा दिखाई, खराब सड़कें, गंदा पानी और सीवर का मुद्दा उठाया, जिस पर आदमी पार्टी बचाव नहीं कर पाई। वजह यह थी कि दिल्ली एमसीडी की कमान भी आम आदमी पार्टी के पास ही थी।
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आम आदमी पार्टी ने यमुना के पानी को लेकर आरोप लगाया कि हरियाणा सरकार जहर छोड़ रही है। पूरे चुनाव में बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल को यमुना पर घेरा। उनके आरोपों के बाद लगने लगा कि अरविंद केजरीवाल भी यमुना पर सिर्फ सियासत कर रहे हैं, वह अपना वादा नहीं पूरा कर पाए तो ठीकरा बीजेपी पर फोड़ रहे हैं। इस योजना ने भी उनके खिलाफ ही काम किया। हरियाणा बॉर्डर से सटे इलाकों में अरविंद केजरीवाल का प्रदर्शन बेहद खराब रहा, इसका नतीजा भी भुगतना पड़ा।

सादगी, कट्टर ईमानदार से लेकर भ्रष्ट नेता तक, AK के किरदार पर चोट!
अरविंद केजरीवाल राजनीति में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर आए थे। उनकी छवि ईमानदार नेता वाली रही है। वह खुद को कट्टर देशभक्त और ईमानदार बताते थे। यह छवि तब बिगड़ी जब कथित आबकारी नीति घोटाले में उनका नाम उछला। जिस शिक्षामंत्री के एजुकेशन मॉडल की तारीफ वह कर रहे थे, उसकी खामियां सामनी आईं। मनीष सिसोदिया तक को आबकारी नीति घोटाले का सूत्रधार कहा गया। ईडी ने अरविंद केजरीवाल को घोटाले का सरगना तक बता दिया। प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास जैसे पुराने सहयोगियों ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ जमकर बोला, जिसकी वजह से उनकी छवि और धूमिल हुई।

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ब्रांड केजरीवाल पर भारी पड़ा ब्रांड मोदी!
एक तरफ उनकी लड़ाई 'ब्रांड मोदी' से थी, जिन्होंने साल 2024 में थोड़े नुकसान के बाद चुनावों में भरपूर भरपाई की। हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक जीत के समीकरण साधे, दूसरी तरफ अरविंद केजरीवा की 'ब्रांड केजरीवाल' वाली छवि कमजोर पड़ गई। दिल्ली चुनाव में नरेंद्र मोदी के अलावा कोई चेहरा नहीं था, अरविंद केजरीवाल जिन चेहरों को आगे करके चुनाव लड़ रहे थे, उनमें ज्यादातर चेहरों पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप थे।

BJP ने चुनाव में जो नजरिया AAP के खिलाफ सेट किया, अरविंद केजरीवाल की टीम, उसका काट ढूंढ नहीं सकी। नतीजा चुनाव में दिखा। AAP और बीजेपी के बीच वोट शेयर का ज्यादा अंतर नहीं है। आम आदमी पार्टी को कुल 43.47 प्रतिशत वोट पड़े हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी को कुल 45.56 प्रतिशत वोट पड़े हैं। 2 प्रतिशत के अंतर से दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी के कुछ वादे ऐसे थे, जिन्होंने लोगों को प्रभावित किया और AAP की जमीन खिसक गई।