दिल्ली की कुर्सी पर कौन बैठेगा? 8 फरवरी को इसका पता चला जाएगा। वोटिंग हो चुकी है। तमाम एजेंसियों के एग्जिट पोल भी आ चुके हैं। ज्यादातर एग्जिट पोल में सत्ता परिवर्तन का अनुमान लगाया गया है। अगर ऐसा होता है तो दिल्ली में 12 साल बाद एक नई सरकार देखने को मिलेगी।


दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर बुधवार को वोट डाले गए थे। चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार 60.42% वोटिंग हुई है। पिछले चुनाव की तुलना में ये लगभग 2 फीसदी कम है। हालांकि, ये आंकड़े अभी फाइनल नहीं हैं और इसमें बदलाव हो सकता है। अभी अगर इसी आंकड़े को फाइनल मानकर चलें तो दिल्ली में 12 साल में ये सबसे कम वोटिंग है।


आमतौर पर जानकार कम वोटिंग को सत्ता पक्ष के लिए अच्छा मानते हैं। अगर वोटिंग ज्यादा होती है तो सरकार बदलने की गुंजाइश बढ़ जाती है। ऐसे में पिछले चुनावों के वोटिंग ट्रेंड्स से समझने की कोशिश करते हैं कि पिछले चुनाव से थोड़ी कम वोटिंग किसके लिए फायदेमंद है?

पिछले 7 चुनाव का वोटिंग पैटर्न क्या कहता है?

1993 का विधानसभा चुनाव

  • वोटिंग पैटर्नः दिल्ली में 37 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए थे। चुनाव ऐसे वक्त हुए थे, जब देश में राम मंदिर आंदोलन चरम पर था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तनाव बना हुआ था। उस चुनाव में दिल्ली में कुल 58.50 लाख वोटर्स थे। इनमें से 61.8% यानी 36.12 लाख ने वोट डाला था। इससे पहले 1951 में जब वोटिंग हुई थी, तब 58 फीसदी वोटर्स ने वोट डाला था।
  • सरकार किसकीः बीजेपी ने लगभग 43 फीसदी वोट हासिल कर 49 सीटें जीती थीं। कांग्रेस ने 14 सीट जीती थीं और उसे 35 फीसदी वोट मिले थे। चुनाव जीतकर बीजेपी ने सरकार बनाई। 5 साल के कार्यकाल में बीजेपी को 3 मुख्यमंत्री बदलने पड़े। पहले मदन लाल खुराना सीएम बने। उनके बाद साहिब सिंह वर्मा सीएम बने। आखिर में सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री बनीं जो महज 52 दिन पद पर रह सकीं।

1998 का विधानसभा चुनाव

  • वोटिंग पैटर्नः दिल्ली में तब कुल 84.20 लाख वोटर्स थे। 1993 की तुलना में लगभग 26 लाख वोटर्स बढ़े थे। हालांकि, वोटिंग प्रतिशत बहुत कम रहा था। तब 48.99 फीसदी यानी 41.24 लाख वोटर्स ने ही वोट किया था। दिल्ली के इतिहास में उसी चुनाव में सबसे कम वोटिंग हुई है।
  • सरकार किसकीः कांग्रेस ने 70 में से 52 सीटें जोरदार वापसी की। कांग्रेस को 47.76 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी को 35.8 फीसदी वोट मिले थे और वो सिर्फ 15 सीट पर सिमट गई थी। शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं।

2003 का विधानसभा चुनाव

  • वोटिंग पैटर्नः कुल 84.48 लाख वोटर्स थे। इनमें से 45.13 लाख यानी 53.42 फीसदी ने वोट डाला था। पुरुष और महिलाओं के वोटिंग प्रतिशत में 4 फीसदी का अंतर था। 55 फीसदी पुरुष और 51 फीसदी महिलाओं ने वोट डाला था।
  • सरकार किसकीः 1998 की तुलना में 2003 में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा था। इसके बावजूद कांग्रेस वापसी करने में कामयाब रही थी। 48 फीसदी वोट हासिल कर कांग्रेस ने 47 सीटें जीत ली थीं। शीला दीक्षित दूसरी बार सीएम बनीं। बीजेपी ने 35 फीसदी वोट पाकर 20 सीटों पर जीत दर्ज की।

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2008 का विधानसभा चुनाव

  • वोटिंग पैटर्नः इस चुनाव में वोटिंग प्रतिशत फिर बढ़ा। 1.02 करोड़ में से 61.76 लाख वोटर्स ने वोट डाला। कुल 57.58% वोटिंग हुई। 58 फीसदी पुरुष और 56 फीसदी महिला वोटरों ने वोट डाला।
  • सरकार किसकीः कांग्रेस ने हैट्रिक लगा दी। हालांकि, कांग्रेस को वोट शेयर और सीट, दोनों में नुकसान हुआ। कांग्रेस ने 40 फीसदी वोट पाकर 43 सीटें जीतीं। शीला दीक्षित तीसरी बार दिल्ली की सीएम बनीं। बीजेपी को 37 फीसदी वोट मिले और उसने 23 सीटें जीतीं। 

2013 का विधानसभा चुनाव

  • वोटिंग पैटर्नः 2008 की तुलना में इस बार 6 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई। कांग्रेस के खिलाफ लोगों में गुस्सा था। कुल 1.19 करोड़ वोटर्स में से 78.33 लाख यानी 65.63% ने वोट दिया।
  • सरकार किसकीः 3 बार से सरकार बना रही कांग्रेस 8 सीट पर सिमट गई। उसे 25 फीसदी से भी कम वोट मिले। बीजेपी ने 34 फीसदी वोट पाकर 31 सीटें जीतीं। इस बार मैदान में नई-नई आम आदमी पार्टी भी थी। AAP को करीब 30 फीसदी वोट मिले और उसने 28 सीटें जीत लीं। किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। चुनाव के बाद AAP और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई। अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। हालांकि, ये सरकार 49 दिन में ही गिर गई।

2015 का विधानसभा चुनाव

  • वोटिंग पैटर्नः दिल्ली के इतिहास में ये पहला चुनाव था, जब वोटिंग प्रतिशत सबसे ज्यादा रहा। तब 1.33 करोड़ वोटर्स थे। इनमें से 89.36 लाख यानी 67.12% ने वोट डाला। पुरुष और महिलाओं के वोटिंग प्रतिशत में भी मामूली सा अंतर रहा है। 67.63 फीसदी पुरुष और 66.49 फीसदी महिलाओं ने वोट दिया था।
  • सरकार किसकीः आम आदमी पार्टी ने 67 सीटें जीतकर न सिर्फ सरकार बनाई, बल्कि रिकॉर्ड भी बनाया। दिल्ली में पहली बार किसी पार्टी ने इतनी ज्यादा सीटें जीती थीं। AAP को 54% से ज्यादा वोट मिले थे। बीजेपी ने लगभग 33 फीसदी हासिल कर 3 सीटें जीतीं। जबकि, कांग्रेस को 10 फीसदी से भी कम वोट मिले और वो एक भी सीट नहीं जीत सकी।

2020 का विधानसभा चुनाव

  • वोटिंग पैटर्नः इस चुनाव में कुल 1.47 करोड़ वोटर्स थे। 2015 की तुलना में वोटिंग में थोड़ी गिरावट आई। उस चुनाव में 62.5 फीसदी वोट पड़े। पुरुष और महिलाओं को वोटिंग प्रतिशत लगभग बराबर रहा। 62.59 फीसदी पुरुष और 62.51 फीसदी महिलाओं ने वोट डाला।
  • सरकार किसकीः एक बार फिर आम आदमी पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही। AAP को 53.57 फीसदी वोट मिले। इस बार पार्टी 70 में से 62 सीट जीतने में कामयाब रही। बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़कर 40.57% पर आ गया। बीजेपी ने 8 सीटें जीतीं। कांग्रेस को 5 फीसदी से भी कम वोट मिले। इस बार भी कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी।

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वोटिंग पैटर्न और सत्ता परिवर्तन

दिल्ली में आखिरी बार जब 2013 में सरकार बदली थी, तब 2008 की तुलना में लगभग 8 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई थी। इससे पहले 1998 में सरकार बदली थी। उस चुनाव में 1993 के मुकाबले लगभग 13 फीसदी कम वोटिंग हुई थी। 


अगर इस पैटर्न को देखा जाए तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल्ली में वोटिंग पैटर्न से बहुत ज्यादा अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। क्योंकि वोटिंग बढ़ती है तब भी सरकार बदल सकती है और घटती है तो भी सरकार बदलने की संभावना होती है। हालांकि, पिछले चुनाव नतीजों से देखा जाए तो अलग ही तस्वीर देखने को मिलती है। कुछ महीने पहले ही हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए थे। दोनों ही जगह पिछले चुनाव की तुलना में कम या लगभग बराबर ही वोटिंग हुई थी और दोनों ही जगह सरकार नहीं बदली। इसी तरह महाराष्ट्र में लगभग 5.5 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई और तब भी वहां सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ।


हालांकि, इस बार एग्जिट पोल में सरकार बदलने का अनुमान लगाया गया है। 11 में से 9 एग्जिट पोल में बीजेपी सरकार बनने का अनुमान लगाया है। सिर्फ दो एग्जिट पोल में ही आम आदमी पार्टी की सरकार बनने का अनुमान है।


अगर सभी एग्जिट पोल का औसत निकाला जाए तो दिल्ली की 70 सीटों में से बीजेपी 39 और आम आदमी पार्टी को 30 सीटें मिल सकती हैं। पिछले दो चुनाव से खाली हाथ रही कांग्रेस इस बार खाता खोल सकती है। कांग्रेस को 1 सीट मिलने का अनुमान है।

 

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किस पार्टी का क्या दांव पर?

आम आदमी पार्टी

- चुनौती क्याः पिछले दो चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत पाकर सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी को इस बार कड़ी टक्कर मिली है। पार्टी के बड़े नेताओं में शामिल मनीष सिसोदिया की सीट तक बदलनी पड़ी। पार्टी के लिए सबसे बड़ी चिंता कांग्रेस का प्रदर्शन है।


- कामयाब हुई तोः तमाम बड़े नेताओं के जेल जाने और एंटी-इन्कंबेंसी के बावजूद जीत मिलने पर पार्टी की साथ न सिर्फ दिल्ली में बढ़ेगी, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी रुतबा बढ़ेगा। चुनावी जीत से संदेश जाएगा कि केजरीवाल और सिसोदिया जैसे नेताओं पर शराब घोटाले के जो आरोप लगे हैं, उसे जनता की अदालत ने खारिज कर दिया है।


- कामयाबी नहीं मिली तोः संदेश जाएगा कि जिस दिल्ली से आम आदमी पार्टी का उदय हुआ, वहीं पार्टी हार गई। बीजेपी के पास AAP को भ्रष्टाचार में घेरने का एक और मौका मिल जाएगा। सबसे बड़ी बात कि दूसरे राज्यों में पार्टी का विस्तार करने की महत्वाकांक्षा को झटका लगेगा। साथ ही पार्टी को एकजुट रख पाना सबसे बड़ी चुनौती होगी।

बीजेपी

- चुनौती क्याः 27 साल से बीजेपी दिल्ली में सरकार नहीं बना पाई है। उसके लिए ये चुनाव 'करो या मरो' की स्थिति वाला है। बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। AAP का मुकाबला करने के लिए लुभावने वादे भी किए।


- कामयाब हुई तोः चुनाव में जीत मिली तो 27 साल बाद बीजेपी दिल्ली की सत्ता पर काबिज होगी। प्रधानमंत्री मोदी का कद और बढ़ेगा। बीजेपी के लिए ये सबसे बड़ी राहत इसलिए भी होगी, क्योंकि 2014 के बाद पार्टी कई राज्यों में जीती है लेकिन दिल्ली में उसे तमाम कोशिशों के बाद हार का ही सामना करना पड़ा है।


- कामयाबी नहीं मिली तोः अगर बीजेपी सरकार बनाने लायक सीटें नहीं ला पाती है तो पार्टी की छवि प्रभावित होगी। संदेश जाएगा कि अरविंद केजरीवाल का मुकाबला करने के लिए बीजेपी के पास अभी भी कोई मजबूत चेहरा नहीं है। सबसे बड़ा झटका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को लगेगा।

कांग्रेस

- चुनौती क्याः 15 साल तक दिल्ली की सत्ता में रही कांग्रेस पिछले दो चुनाव से एक भी सीट नहीं जीत सकी। ये चुनाव अस्तित्व की लड़ाई की तरह है। कांग्रेस के पास अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाना सबसे बड़ी चुनौती है।


- कामयाब हुई तोः अगर कांग्रेस चुनाव में खाता खोल लेती है और उसका वोट प्रतिशत भी बढ़ता है तो ये उसके लिए बड़ी उपलब्धि होगी। इससे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की साथ भी बढ़ेगी। माना जाएगा कि राहुल और प्रियंका के प्रचार में उतरने से दिल्ली पर उसका असर हुआ।


- कामयाबी नहीं मिली तोः अगर इस बार भी कांग्रेस 0 पर ही रहती है तो इसका असर न सिर्फ दिल्ली बल्कि बाकी राज्यों पर भी पड़ेगा। माना जाएगा कि अब भी दिल्ली में कांग्रेस की वही स्थिति है जो ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में है। कांग्रेस का वोट शेयर 5 फीसदी से भी कम हो गया है। अगर ये और नीचे जाता है या मामूली बढ़त होती है तो ये उसके लिए निराशाजनक होगा।