झारखंड का जिक्र आते ही लोग इसके साथ एक और शब्द जोड़ते हैं, आदिवासी बाहुल राज्य। यह सच है कि झारखंड में आदिवासी समुदाय की संख्या अन्य समुदायों की तुलना में ज्यादा है लेकिन झारखंड के सामाजिक ताने-बाने में और भी कई समुदाय आते हैं. साल 2000 में बिहार से अलग हुआ ये राज्य जितना प्राकृतिक रूप से संपन्न है, उतना ही सांस्कृतिक रूप से भी। यहां की आदिवासी संस्कृति, दुनियाभर को लुभाती रही है। लेकिन ये भी सच है कि झारखंड में सिर्फ आदिवासी नहीं रहते। अन्य राज्यों की तरह यहां भी जाति, समुदाय और धर्म पर राजनीति होती है। चुनावों में ऐसे कई मुद्दे होते हैं, जिन्हें राजनीतिक पार्टियां भुनाने की कोशिश भी करती हैं। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आदिवासी बाहुल इस राज्य का सामाजिक तानाबाना कैसा है।

झारखंड आदिवासी बाहुल राज्य है। आदिवासी का शाब्दिक अर्थ है अज्ञात काल से किसी विशेष जगह पर रहने वाले लोग। संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा मिला है। आदिवासी अपनी परंपराओं और संस्कृतियों को आदिकाल से सहेजकर रखते हैं, जिसकी झलक, उनके सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मिल जाती है। डॉ. रामदयाल मुंडा ट्राइबल वेलफेयर रिसर्च इंस्टीट्यूट ने साल 2011 में एक आंकड़ा तैयार किया था, जिसमें आदिवासी आबादी का जिक्र था। झारखंड में आदिवासियों समुदाय की कुल संख्या 8645042 है। यह राज्य की कुल आबादी का 26.21 प्रतिशत है। इनसे अलग, साल 2011 की जनगणना में आए आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 7087068 लोग आदिवासी समुदाय से आते हैं। झारखंड की कुल 26,945,829 आबादी में से 26.3 प्रतिशत लोग आदिवासी समुदाय से आते हैं।  91.7 प्रतिशत लोग गांवों में रहते हैं। लोहरदगा और पश्चिमी सिंघभूम जैसे जिलों में आदिवासी आबादी 41.8 से 44.6 प्रतिशत के बीच में है।

झारखंड में कितने हैं आदिवासी जातियां?

झारखंड की 32 आदिवासी जनजातियों के नाम मुंडा, संताल (संथाल या सौतार), उरांव, खड़िया, गोंड, कोल, कनबार, सावर, असुर, बैगा, बंजारा, बथूड़ी, बेदिया, बिंझिया, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, चिक बड़कई, गोराइत, हो, करमाली,खरवार, खोंड, किसान, कोरा, कोरबा, लोहरा, महली, माल पहाड़िया, पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया और भूमिज है। ये आंकड़े झारखंड के राजकीय वेबसाइट, झारखंड सरकार से लिए गए हैं। 

झारखंड की 91.7 प्रतिशत आदिवासी जनता गांवों में रहती है। झारखंड में आदिवासियों के कुल 32 मुख्य समुदाय हैं। हर समुदाय की स्वतंत्र संस्कृति है। आदिवासियों को 4 प्रमुख समूहों में बांटा जा सकता है। कुछ समुदाय, शिकार पर निर्भर थे। इनमें बिरहोर, कोरवा और खड़िया जनजाति आती है। सौरिया और पहाड़िया जनजाति अब पूरी तरह कृषि पर निर्भर है। कारीगर जनजातियों में महली, लोहरा, करमाली, चिकबड़काई आते हैं। संथाल, मुंडा, उरांव, हो, भूमिज जैसी जनजातियां खेती-किसानी से जुड़ गई हैं।

झारखंड में क्या हैं जातीय समीकरण?

झारखंड में आदिवासी समुदाय से जुड़े आकंड़े तो राज्य सरकार के पास हैं लेकिन अन्य जातियों के बारे में सिर्फ अनुमान ही लगाया गया है। अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स और सर्वे में दावा किया जाता है कि झारखंड में अनुसूचित जाति की आबादी 12 प्रतिशत है, जनजाति की आबादी 26 प्रतिशत है और सामान्य वर्ग की आबादी 16 प्रतिशत है। झारखंड में ओबीसी समुदाय की संख्या 46 प्रतिशत है। आबादी समाज के नेताओं का दावा है कि उनकी आबादी 50 प्रतिशत है। पिछड़ी जातियों में कुड़मी समुदाय के लोगों की आबादी 16 प्रतिशत है। झारखंड में 14 प्रतिशत यादव, 14 प्रतिशत बनिया और तेली-साहू समुदाय के 22 प्रतिशत लोग रहते हैं। सामान्य जातियों की आबादी 16 प्रतिशत है, जिनमें 5 प्रतिशत ब्राह्मण आबादी है। बजे 11 प्रतिशत में भूमिहार, राजपूत और कायस्थ समाज के लोग आते हैं।  

झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग के साल 2011 के आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में हिंदुओं की आबादी करीब 67.83 प्रतिशत है। मुस्लिम आबादी 15.53 प्रतिशत, ईसाई 4.30 प्रतिशत, सिख 0.22 प्रतिशत, बौद्ध, 0.3 प्रतिशत, जैन 0.5 प्रतिशत और अन्य धर्मों के 12.84 प्रतिशत लोग रहते हैं। 0.21 प्रतिशत ऐसे भी लोग हैं जो अपने आपको किसी धर्म का हिस्सा नहीं मानते हैं। झारखंड की कुल आबादी 3.3 करोड़ है, वहीं साक्षरता दर 66.41 प्रतिशत है। झारखंड में लिंगानुपात 948 है। यानी 1000 लड़कों पर 948 लड़कियां।

झारखंड में महिला साक्षरता दर 55.42 प्रतिशत है, वहीं भारत में यह आंकड़ा 64.63 है। पुरुष साक्षरता दर 76.84 है, वहीं देश में ये आंकड़ा 80.88 प्रतिशत है। कुल साक्षरता दर 66.41 प्रतिशत है, वहीं देश की साक्षरता दर 72.98 है। 
 
झारखंड गावों का प्रदेश है। यहां की शहरी आबादी 24.05 प्रतिशत है, वहीं ग्रामीण आबादी 75.95 प्रतिशत है। साल 2011 के आंकड़ों के मुताबिक कुल 12776486 लोग शहरों में रहते हैं, वहीं ग्रामीण आबादी करीब 4153829 है। शहरों में महिलाओं की संख्या 12278587 है, वहीं गांव में यह आंकड़ा 3779232 है। शहरों में साक्षरता दर जहां 82.26 प्रतिशत है, वहीं ग्रामीण इलाकों में यह दर 61.11 प्रतिशत है। 

झारखंड विधानसभा का गुणा गणित क्या है?
झारखंड के कुल 24 जिलों में  81 विधानसभा सीटें हैं। झारखंड में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए खुल आरक्षित सीटों की संख्या 37 है। 28 सीटें आदिवासियों (जनजाति) के लिए आरक्षित हैं, वहीं 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए। 

झारखंड में SC/ST वर्ग के लिए आरक्षित सीटों का आंकड़ा क्या है?
अनुसूचित जनजाति (ST)
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या कुल 28 है। बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा, घटशिला, पोटका, सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसावां,तमाड़, तोरपा, खूंटी, खिजरी,मांडर, सिसई, गुमला, बिशुनपुर, सिमडेगा, कोलेबिरा, लोहरदगा और मनिका आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटें हैं।

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें 
झारखंड में 9 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं। देवघर, सिमरिया, चतरा,जमुआ, चंदनकियारी, जुगलसाई, कांके, लातेहार और छतरपुर विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें हैं। 

झारखंड के शीर्ष पद तक, किन जातियों-जनजातियों के पहुंचे लोग?
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी थे। वे भी आदिवासी समाज से आते थे। उनके बाद अर्जुन मुंडा, शीबू सोरेन, मधू कोड़ा, हेमंत सोरेन, रघुवर दास और चंपाई सोरेन मुख्यमंत्री रहे। खास बात ये थी कि रघुवर दास के अलावा कोई और अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। रघुवर दास इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो तेली समुदाय से आते थे और आदिवासी नहीं थे। यहां की राजनीति में ओबीसी वर्ग का बोलबाला रहा है।