महाराष्ट्र में 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में बारामती विधानसभा पर सभी की नजरें हैं। बारामती में इस बार अजित पवार के विकास के नारे का मुकाबला शरद पवार की मतदाताओं की भावनात्मक अपील से है, क्योंकि चमचमाती दुकानों और बेदाग सड़कों वाला यह निर्वाचन क्षेत्र अजित पवार के लिए करो या मरो की जंग में तब्दील हो गया है, जहां अधिकांश मतदाताओं ने पहले कभी ऐसा नहीं देखा।

 
एक किसान संदीप जगताप ने कहा कि दादा, जैसा कि लोग अजित पवार को प्यार से कहकर संबोधित करते हैं, एक खास तरह का व्यक्तित्व रखते हैं और वे पहले चुनाव प्रचार में ज्यादा समय बिताने की जहमत भी नहीं उठाते थे, क्योंकि उनकी जीत पहले से तय होती थी।
 
उन्होंने हंसते हुए कहते हैं, "अब वह लोगों को देख के मुस्कुराते हैं, उनके सामने झुकते हैं और हाथ जोड़कर हमसे वोट मांग रहे हैं।" 

 

पवार परिवार ने जान लगा रखी है 

 

उनके मित्र अमोल कुलांगे ने कहा कि इस चुनाव में पवार फैमिली के लोगों की अप्रत्याशित भागीदारी देखी गई है। वह ज्यादातर शरद पवार के पोते युगेंद्र पवार का समर्थन कर रहे हैं, जिन्हें शरद पवार ने उपमुख्यमंत्री के खिलाफ एनसीपी (एसपी) उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है।
 
कुलांगे कहते हैं कि शरद पवार की पत्नी प्रतिभा पवार, जिन्हें पिछले चुनावों में ज़्यादा नहीं देखा गया था, चुनाव प्रचार में उतर आई हैं और परिवार के कुछ अन्य सदस्य भी चुनाव प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।
 
अक्सर ‘साहेब’ के नाम से संबोधित किए जाने वाले चार बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शरद पवार के प्रति पश्चिमी महाराष्ट्र के उनके गढ़ में लोगों का उनके प्रति सम्मान साफ़ झलकता है। लेकिन उनके अलग हुए भतीजे का भी बारामती में अपना कद है। 1991 में अपने भतीजे को अजित पवार को यह विधानसभा क्षेत्र सौंपने के पहले  इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व शरद पवार ने छह बार किया था।

 

क्या अजित पवार का चल पाएगा जादू

अजित पवार अब लगातार आठवीं बार जीत हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं और 2023 में अपने चाचा से अलग होने के बाद पहली बार अविभाजित पार्टी के 53 विधायकों में से 40 के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। उनके गुट को असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के रूप में मान्यता दी गई।
 
बारामती में शिक्षक श्रीकृष्ण बोरकर कहते हैं कि यहां के विकास के पीछे अजित पवार का हाथ है, जिसमें वी पी कॉलेज भी शामिल है, जिसका इन्फ्रास्ट्रक्चर इतना अच्छा है जो कि कहीं और मिलना लगभग असंभव है।
 
हालांकि, जब पुरानी पीढ़ी भी इस बातचीत में शामिल हो जाती है तो तस्वीर एक अलग रंग ले लेती है।
 
लोगों का एक वर्ग अजित पवार की आलोचना करता है कि उन्होंने अपने चाचा की पार्टी पर कब्ज़ा करके सत्तारूढ़ भाजपा से हाथ मिला लिया।
 
60 साल के किसान मोहन अखाड़े का दावा है कि एनसीपी के मुख्य समर्थक कभी भी 'साहेब' को नहीं छोड़ेंगे। उनका कहना है कि अपने भतीजे अजित पवार के इस पद पर चुने जाने से पहले शरद पवार ने ही बारामती को विकास के मॉडल के रूप में विकसित किया था।
 

शरद पवार के साथ है भावनात्मक लगाव

 

83 वर्षीय नेता शरद पवार के साथ लोगों का यह भावनात्मक जुड़ाव ही है जिसने लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले को जीत दिलाई और उनके सामने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को हार का मुंह देखना पड़ा। इस विधानसभा चुनाव में भले ही अजित पवार के सामने युगेंद्र पवार चुनाव लड़ रहे हों लेकिन किसी को भी इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उन्हें ‘साहेब’ और ‘दादा’ के बीच में से किसी को चुनना है।

 

ऐसे मतदाता भी हैं जो कहते हैं कि उन्होंने शरद पवार के प्रति अपनी वफादारी के कारण लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले को वोट दिया था, क्योंकि वे उस वक्त काफी बुरे दौर का सामना कर रहे थे। उनका कहना है कि इस बार वे अजित पवार को वोट देंगे।
 
महाराष्ट्र के सबसे समृद्ध क्षेत्रों में से एक इस विकसित निर्वाचन क्षेत्र में, 'लाडकी बहीण' जैसी नकद हस्तांतरण योजनाओं के आधार पर बनी सरकार के प्रति लोगों का लगाव ज्यादा नहीं दिख रहा है।

 

परिवार विभाजन से खुश नहीं हैं लोग

सत्तारूढ़ महायुति बनाम महा विकास अघाड़ी के बजाय, यहां पर राजनीतिक चर्चा पवार परिवार में विभाजन को लेकर है। लोगों का मानना है कि पवार परिवार का टूटना बारामती के हित में नहीं है।
 
मेहुल शिंदे कहते हैं, "जो भी हारेगा, उसकी बारामती निर्वाचन क्षेत्र में रुचि खत्म हो जाएगी। यह हमारे हित में है कि परिवार एकजुट रहे।"
 
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि 20 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले चुनाव प्रचार के आखिरी दिन 18 नवंबर को शरद पवार अपने संबोधन में लोगों से क्या कहते हैं।

 

शरद पवार की आलोचना से बचते रहे हैं अजित
 
दूसरी ओर, अजित पवार ने हमेशा शरद पवार की तीखी आलोचना करने से परहेज किया है, क्योंकि उन्हें एहसास है कि इससे लोगों में उनके चाचा के प्रति सहानुभूति ही बढ़ेगी।
 
इसके बजाय उन्होंने अक्सर इस बात पर जोर दिया है कि शरद पवार भाजपा से हाथ मिलाने की बातचीत में शामिल थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपना रुख बदल लिया।
 
शरद पवार बारामती के मतदाताओं से क्या कहते हैं या नहीं कहते हैं, इस पर सभी की निगाहें लगी रहेंगी, लेकिन यह स्पष्ट है कि दशकों से चल रहे चुनावों के बाद अंतिम फैसला उनका ही होगा।