चारों ओर दिल्ली विधानसभा चुनाव की चर्चा हो रही है लेकिन उतनी ही चर्चा यूपी के मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव की भी है जहां पर बीजेपी और समाजवादी पार्टी ने जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है।

 

यह सीट दोनों पार्टियों के लिए नाक का सवाल बनी हुई है इसलिए दोनों पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। समाजवादी पार्टी ने वहां से विधायक रहे अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को टिकट दिया है जबकि बीजेपी ने चंद्रभान पासवान को टिकट दिया है।

कौन-कौन थे दौड़ में

बीजेपी से टिकट के लिए कई नेता दौड़ में थे और पांच लोगों का नाम टिकट के लिए भेजा गया था। इनमें 2017 में हुए यूपी विधानसभा में जीत दर्ज करने वाले बाबा गोरखनाथ, मिल्कीपुर से ही पूर्व विधायक रामू प्रियदर्शी, बीजेपी एससी मोर्चा के कोषाध्यक्ष चंद्रकेश रावत, सुरेंद्र कुमार रावत और कोरी जाति के राधेश्याम त्यागी भी लाइन में थे. त्यागी अयोध्या से लगातार तीन बार बीजेपी के जिला महामंत्री रहे हैं और एससी मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे हैं। इसके अलावा पांचवां नाम चंद्रभानु पासवान का था जिन्हें बीजेपी ने टिकट दिया है।

बीजेपी में फूट की क्या स्थिति

चंद्रभानु पासवान को टिकट दिए जाने के बाद से  बीजेपी में आंतरिक विरोध की स्थिति बन गई। बाबा गोरखनाथ उनको टिकट दिए जाने से काफी नाराज नजर आए। हालांकि, खबरों के मुताबिक ऐसा कहा जा रहा था कि बीजेपी ने एक आंतरिक सर्वे कराया था जिसमें बाबा गोरखनाथ की तुलना में चंद्रभान पासवान को ज्यादातर लोगों ने समर्थन किया था।

 

बीजेपी ने इस कलह से होने वाले नुकसान से बचने के लिए तुरंत जिले के प्रभारी मंत्री सूर्य प्रताप शाही के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल मिल्कीपुर भेजा। शाही ने बाबा गोरखनाथ को मनाने के साथ साथ बीजेपी जिला महामंत्री राधेश्याम त्यागी से भी मुलाकात की।

 

इसके अलावा पार्टी के अन्य जिला पदाधिकारी और मंत्रिगण टिकट न मिलने से नाराज नेताओं को मनाने में लगे हैं। जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, बीकापुर विधायक डॉ. अमित सिंह चौहान, भाजपा जिला अध्यक्ष संजीव सिंह, पूर्व महापौर ऋषिकेश उपाध्याय और महानगर अध्यक्ष अभिषेक मिश्रा ने पूर्व विधायक गोरखनाथ बाबा से मुलाकात कर उपचुनाव में सहयोग की अपील की।

 

उस वक्त तो नेताओं ने इस बारे में कुछ स्पष्ट संदेश नहीं दिया था लेकिन मिल्कीपुर के पूर्व विधायक गोरखनाथ बाबा और पूर्व विधायक रामू प्रियदर्शी ने मुख्यमंत्री से भेंट की। इस दौरान अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष बैजनाथ रावत भी मौजूद रहे। इससे ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि संभवतः बीजेपी की आंतरिक कलह खत्म हो जाएगी।

क्या है जातिगत समीकरण

मिल्कीपुर सीट पर सपा 6 बार जीत दर्ज कर चुकी है। जातीय समीकरण की बात करें तो इस सीट पर 75 हजार ब्राह्मण-गोसाईं, 22 हजार ठाकुर, 18 हजार वैश्य, 57 हजार पासी, 18 हजार कोरी, 16 हजार रैदास, 50 हजार यादव, 23 हजार चौरसिया, 5 हजार पाल, 6 हजार मौर्य, 26 हजार मुस्लिम र 28 हजार अन्य जातियों के लोग हैं।


मिल्कीपुर में करीब 3 लाख 60 हजार मतदाता हैं, इनमें से करीब सवा लाख दलित वोटर हैं। दलितों में भी 55 हजार पासी समुदाय से हैं जो कि काफी निर्णायक हो जाते हैं। इसीलिए दोनों पार्टियों ने इसी समुदाय से कैंडीडेट्स उतारे हैं।

 

इस तरह से अगर पीडीए फॉर्मूला काम करता है तो सपा के लिए राह आसान होगी, क्योंकि इनकी संख्या मिलाकर लगभग दो लाख हो जाती है जो कि कुल वोटों का लगभग दो तिहाई है।

 

ऐसे में बीजेपी का आंतरिक कलह बीजेपी के लिए जीत की राह कठिन कर सकता है। हालांकि, बीजेपी अगर ब्राह्मणों और अन्य सामान्य वर्ग के वोटों को अपने पक्ष में लाने के साथ पासी वोटों को भी खींच पाती है तो इसके लिए रास्ता आसान हो सकता है। 

क्या है सीट का राजनीतिक इतिहास

इस सीट पर बीजेपी सिर्फ दो ही बार चुनाव जीत सकी है। बीजेपी यहां 1991 में चुनाव जीती। उस वक्त बीजेपी की लहर भी थी। इसके बाद बीजेपी यहां से 2017 में जीती। उस वक्त भी यूपी में बीजेपी की लहर थी। 2022 में बीजेपी को फिर से काफी उम्मीदें थीं कि वह इस सीट पर जीत दर्ज कर पाएगी लेकिन ऐसा हो न सका।

 

समाजवादी पार्टी यहां 1996, 2002, 2012 और 2022 में जीत दर्ज कर चुकी है।  

उपचुनाव में क्या रही स्थिति

साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के बाद से यूपी में तब से 18 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें से बीजेपी से सपा ने सिर्फ एक सीट छीनी है जबकि समाजवादी पार्टी से बीजेपी 3 सीटें छीनने में कामयाब रही और एक सीट बीजेपी की सहयोगी अपना दल ने सपा से छीनी।

 

अभी तक के उपचुनावों के बाद सपा की सीटें 109 से घटकर 107 पहुंच चुकी हैं झबकि बीजेपी 255 सीटों से 257 पर पहुंच गई है।

कौन हैं चंद्रभानु पासवान

चंद्रभानु पासवान जिला कार्यसमिति के सदस्य हैं। उनके पास एमकॉम और एलएलबी की डिग्री है। उनकी पत्नी जिला पंचायत सदस्य हैं और पिता ग्राम प्रधान हैं। इस तरह से राजनीति से इनके परिवार का जुड़ाव रहा है।

 

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