महाराष्ट्र में अंतिम दौर का नामांकन हो चुका है। राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से ऐसी कई सीटें हैं, जहां का सियासी गुणा-गणित ऐसा है, जिसे देखकर खुद प्रत्याशी ही हैरान हैं। कुछ सीटों पर ऐसी दोस्ताना लड़ाई हो रही है, जिसकी वजह से उम्मीदवार खुद पशोपेश में आ गए हैं। प्रत्याशियों को भी उम्मीद है कि 4 नंवबर तक कुछ ऐसा हो सकता है, जिसकी वजह से ये मुश्किलें खत्म हों। 4 नवंबर ही नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख है। राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी (BJP) 152 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

 

एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व वाली शिवसेना 80 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अजित पवार के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP)  52 सीटों पर अपना दम ठोक रही है। महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन राज्य में कांग्रेस का दबदबा रहेगा। कांग्रेस ने 101 सीटों पर लड़ने का फैसला किया है। उद्धव ठाकरे के नेतृ्त्व वाली शिवसेना (UBT) को 96 सीटें मिली हैं, वहीं शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (SP) को 87 सीटें मिली हैं। महा विकास अघाड़ी ने 2 सीटें समाजवादी पार्टी (SP) और सीपीआई (एम) के लिए छोड़ दी हैं।


अब पेच कहां फसा है?
कांग्रेस ने मिराज विधानसभा सीट से मोहन वानखेड़े को टिकट दिया है, वहीं शिवसेना (UBT) ने तानाजी सतपुते को उतार दिया है। इस सीट से बीजेपी के सुरेश खाड़े विधायक हैं। सोलापुर दक्षिण सीट भी बीजेपी के कब्जे में है। शिवसेना और कांग्रेस ने अमर पाटिल और दिलीप माने का नाम ऐलान किया है। कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) पंढारपुर विधानसभा में भी उम्मीदवार उतार दिए हैं। कांग्रेस ने भागीरथ भालके और शिवसेना (यूबीटी) ने अनिल सावंत को उतारा है। साल 2019 में एनसीपी नेता भरत भालके यहां से चुनाव जीते थे, लेकिन उनके निधन के बाद ये सीट साल 2021 के उपचुनाव में बीजेपी ने जीत ली थी।

संगोला में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने दिलीप सुलुंखे को उतारा है, वहीं एमवीए पार्टी के सहयोगी दल पीजेंट वर्कर्स पार्टी (PWP) ने डॉ. बाबा साहेब देशमुख को उतार दिया है। इस सीट से शाहजीबापू पाटिल विधायक हैं। वे एकनाथ शिंदे गुट में हैं। परांदा विधानसभा से उद्धव ठाकरे ने पूर्व विधायक ध्यानेश्वर पाटिल के बेटे रंजीत को उतारा है, वहीं एनसीपी (एसपी) ने राहुल मोटे को उतारा है। यह शिंदे गुट के मंत्री तानाजी सावंत की सीट है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ इन्हीं सीटों पर बवाल है। कांग्रेस और शिवसेना में दिग्रस विधानसभा सीट को लेकर भी ठनी है।

शिवसेना इस सीट से पवन जायसवाल को उतारना चाहती है, वहीं मनिकराव ठाकरे पर कांग्रेस दांव लगाना चाहती है। शिवसेना (शिंदे) नेता संजय राठौड़ इस सीट से विधायक हैं। 

धारावी में भी कुछ ऐसा ही मामला है। कांग्रेस ने इस सीट से वर्षा गायकवाड़ की बहन ज्योति को इस सीट से उतारा है, वहीं शिवसेना (यूबीटी) ने इस सीट से बाबूराव माने को टिकट दिया है। वर्षा गायकवाड़ का इस सीट पर 2004 से ही कब्जा है। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक बयान में कह दिया है कि दोस्तों के बीच कोई लड़ाई नहीं होगी, इसे सुलझा लिया जाएगा। 


महायुति में भी ठीक नहीं हैं हालात
ऐसा नहीं है कि दिक्कतें सिर्फ एमवीए में ही हैं। महायुति में हालात और भी बुरे हैं। मनखुर्द-शिवाजीनगर, पुरंदर, मोर्शी, डिंडोरी और आष्टी विधानसभा सीट में भी यही खेल हुआ है। एनसीपी (अजित) ने मनखुर्द-शिवाजीनगर सीट से नवाब मलिक को उतारा है, वहीं शिंदे की शइवसेना ने इस सीट से सुरेश पाटिल को उतारा है।  पुरंदर से अजित पवार ने संभाजी जेंदे को टिकट दिया है, वहीं शिंदे गुट ने विजय शिवतारे पर भरोसा जताया है। 

मोर्शी विधानसभा सीट पर बीजेपी ने उमेश यावलकर को टिकट दिया है, वहीं एनसीपी ने इस सीट से देवंद्र भुयार को उतार दिया है। डिंडोरी में एनसीपी ने नरहरि जिरवाल को टिकट दिया है, शिवसेना ने धनराज माहले को उतारा है। आष्टी में बालासाहेब अजाबे को को एनसीपी ने टिकट दिया है, वहीं बीजेपी ने सुरेश दास को उतारा है। 

इतने भ्रम में कैसे आ गई हैं पार्टियां?
महायुति और महाविकास अघाड़ी गठबंधन की पार्टियों में जैसे-तैसे सीट का बंटवारा तो हो गया, सबने इन सीटों पर नामांकन भी दाखिल कर दिया है। जिन सीटों पर गठबंधन के सहयोगी दल ही एक-दूसरे के खिलाफ आ गए हैं, वहां समझौता नहीं हो पाया तो सियासी लड़ाई ही दिलचस्प हो जाएगी। इस दोस्ताना जंग में फायदा किसी और को हो जाएगा।