बिहार के जमुई जिले में स्थित सिकंदरा विधानसभा सीट राजनीतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण है। 2011 की जनगणना के अनुसार, इसकी कुल जनसंख्या 1,48,711 है, जिसमें जनघनत्व 1,530 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। लिंगानुपात 936 महिलाएं प्रति 1,000 पुरुषों का है, जो क्षेत्रीय सामाजिक संतुलन को दर्शाता है। यहां 25,454 परिवार 68 गांवों में बसे हैं, जहां चार गांवों की आबादी 200 से कम और सात गांवों में 5,000 से अधिक है; दो गांव तो 10,000 से ऊपर के हैं। स्थानीय भाषा मैथिली है, जबकि हिंदी और उर्दू भी प्रचलित हैं। निकटवर्ती शहर जमुई, लखीसराय, शेखपुरा और बरहिया हैं, तथा यह लखीसराय-नवादा सीमाओं से सटा हुआ है। इसका नाम सिकंदर लोदी से जुड़ा माना जाता है, जो कि इसकी ऐतिहासिकता को दर्शाता है।
शिक्षा इस क्षेत्र की बड़ी चुनौतियों में से एक है। यहां की कुल साक्षरता दर मात्र 48.93% है, जिसमें पुरुष 57.77% और महिलाएं 39.50% है। धार्मिक रूप से, सिकंदरा जैनियों का प्रमुख तीर्थ है। लचुआर गांव में 1874 का भव्य जैन मंदिर और 65 कमरों वाली धर्मशाला है, जो क्षत्रिय कुंड ग्राम (भगवान महावीर का जन्मस्थल) का प्रवेश द्वार है। यहां 2,600 वर्ष पुरानी 250 किग्रा. काले पत्थर की महावीर मूर्ति स्थापित है।
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मौजूदा राजनीतिक समीकरण
1962 में स्थापित यह अनुसूचित जाति (SC) आरक्षित सीट जमुई लोकसभा का हिस्सा है। राजनीतिक परिदृश्य विविधतापूर्ण रहा—कांग्रेस ने 5, भाकपा और जेडीयू ने 2-2 बार जीत हासिल की; एसएसपी, जनता पार्टी, कोशल पार्टी, लोजपा, हम और एक निर्दलीय ने भी एक-एक बार सफलता पाई।
इस सीट पर देखा जाए तो एनडीए का दबदबा रहा है क्योंकि साल 2005 और 2010 में लोक जनशक्ति पार्टी और जेडीयू का कब्जा रहा जबकि पिछली बार एचएएम जीती। व्यक्ति की बात करें तो रामेश्वर पासवान इस सीट पर जीतते रहे हैं। वह इस सीट से सात बार विधायक रहे हैं।
2020 की स्थिति
पिछले विधानसभा चुनाव में एचएएम के प्रफुल्ल कुमा माझी ने इस सीट से जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल 47,061 वोट मिले थे जो कि कुल वोटों का 30.7 प्रतिशत था। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी सुधीर कुमार को हराया था जिन्हें 41,556 वोट मिले थे। इस तरह से जीत का अंतर बहुत ज्यादा भी नहीं था।
हालांकि, इस बार एनडीए के लिए इस सीट पर जीत दर्ज करना आसान हो सकता है क्योंकि उसे महागठबंधन की आपसी फूट का फायदा मिल सकता है। दरअसल, इस सीट से महागठबंध के दो प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। आरजेडी से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी मैदान में हैं जबकि कांग्रेस से विनोद चौधरी अपनी ताकत आजमा रहे हैं। ऐसे में अगर इन दोनों के बीच टिकट बंटता है, जैसा कि पूरी संभावना है तो बीजेपी के जीतने की संभावना काफी बढ़ जाएगी। एनडीए ने एक बार फिर से प्रफुल्ल माझी पर ही भरोसा जताया है जो कि अपने द्वारा किए गए विकास कार्यों की दुहाई देकर वोट मांग रहे हैं। इसके अलावा वह जनता में महागठबंधन के ऊपर निशाना साधने से भी नहीं चूकते हैं।
विधायक का परिचय
प्रफुल्ल कुमार मांझी (जन्म 1967) हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) [HAM(S)] के टिकट पर 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सुधीर कुमार को 5,505 वोटों से हराकर जीते थे। 2025 के आगामी चुनाव में भी वे ही पार्टी से उम्मीदवार हैं।
मांझी ग्रेजुएट हैं, जिन्होंने लखीसराय के एक कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। पेशे से वे सामाजिक कार्यकर्ता और किसान हैं, जो स्थानीय स्तर पर दलित-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत करने के लिए जाने जाते हैं। उन्हें जीतन राम मांझी का काफी करीबी माना जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की तरह वे भी मुसहर (SC) समुदाय से आते हैं।
संपत्ति के दृष्टिकोण से, 2020 के हलफनामे के अनुसार उनकी कुल चल-अचल संपत्ति लगभग 25 लाख रुपये है, जिसमें कृषि भूमि और बैंक बैलेंस शामिल हैं। उनके नाम पर कोई बड़ा कर्ज नहीं है। आपराधिक मामलों की बात करें तो उनके खिलाफ कोई बहुत बड़ा केस दर्ज नहीं है। हालांकि, उनकी पार्टी के प्रमुख जीतन राम मांझी की जातिगत टिप्पणियों (जैसे सवर्णों को 'विदेशी' कहना) का इनकी भी राजनीति पर विपरीत असर पड़ा।
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विधानसभा का इतिहास
1962- मुश्ताक अहमद शाह (कांग्रेस)
1967- एस. विवेकानंद (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1969- रमेश्वर पासवान (कांग्रेस)
1972- रमेश्वर पासवान (कांग्रेस)
1977- नगिना चौधरी (जनता पार्टी)
1980- रमेश्वर पासवान (निर्दलीय)
1985- रमेश्वर पासवान (कांग्रेस)
1990- चंदन कुमार (सीपीआई)
1995- चंदन कुमार (कोशल पार्टी)
2000- रमेश्वर पासवान (लोक जनशक्ति पार्टी)
2005- रमेश्वर पासवान (जेडीयू)
2010- सुधीर कुमार (कांग्रेस)
2015- सुधीर कुमार (कांग्रेस)
2020- प्रफुल्ल कुमार मांझी (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा)
