बिहार के मुंगेर जिला का इतिहास हजारों साल पुराना है। महाभारत के दिग्विजय पर्व में मोडा-गिरी का उल्लेख है। चीनी यात्री ह्वेंग सांग ने भी इस इलाके का खास जिक्र किया है। ऋग्वेद के मुताबिक मुंगेर की स्थापना प्रसिद्ध मुनि मुद्गल ऋषि ने की थी। पाल वंश के दूसरे शासक धर्मपाल ने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया। इसके अलावा अन्य पाल राजाओं ने मुंगेर से शिलालेख जारी किए। 1225 में बखियार खिलजी का मुंगेर क्षेत्र में कब्जा हुआ। बाद में यह इलाका बंगाल के सुल्तान के अधीन आ गया। यहां अंग्रेजों का भी शासन रहा। 1973 में भागलपुर से अलग करके अंग्रेजों ने मुंगेर नाम से नया जिला बनाया था। आजादी के बाद मुंगेर जिले का कई बार विभाजन हुआ। जमुई, खगड़िया, शेखपुरा, लक्खीसराय और बेगूसराय इसी से निकलकर जिला बने।

 

मुंगेर जिला मुख्यालय गंगा नदी से घिरा है। यहां के रेल इंजन कारखाना, आईटीसी कंपनी और गन फैक्ट्री ने जिले को अलग पहचान दिलाई। अगर सियासत की बात करें तो शुरुआत में जिले में कांग्रेस का प्रभाव रहा। बाद में समाजवादी दलों ने अपनी पकड़ मजबूत की। मुंगेर लोकसभा सीट में कुल छह विधानसभा सीटें आती हैं, लेकिन जिले के अतंर्गत सिर्फ तीन सीटें हैं। इसमें तारापुर, जमालपुर और मुंगेर शामिल है और मौजूदा समय में कांग्रेस, बीजेपी और जदयू का कब्जा है। जेडीयू नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मुंगेर से लोकसभा सदस्य हैं।

राजनीतिक समीकरण

केंद्रीय मंत्री ललन सिंह मुंगेर से सांसद हैं। जिले की तीन विधानसभा सीटों में से दो पर जेडीयू की पकड़ मजबूत है। बीजेपी का खास प्रभाव नहीं है, लेकिन जेडीयू के सहारे उसकी भी नैया पार लग जाती है। मुख्य मुकाबला जेडीयू और आरजेडी के बीच देखने को मिलता है। 

 

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तारापुर विधानसभा सीट पर शकुनी चौधरी के सियासी दबदबे से हर कोई वाकिफ है। उनके पुत्र सम्राट चौधरी बीजेपी में है। तारापुर से शकुनी चौधरी छह और उनकी पत्नी एक बार विधायक रहे। बासुकीनाथ राय, तारिणी प्रसाद सिंह और मेवालाल चौधरी ने दो-दो बार जीत हासिल की। विधानसभा क्षेत्र में कुशवाहा समुदाय का प्रभुत्व है। 6.8 फीसद मुस्लिम और 15.1 प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाता हैं।

 

मुंगेर विधानसभा सीट पर जनता दल से अधिक चेहरों पर भरोसा जताती है। रामदेव सिंह यादव यहां से जीत की हैट-ट्रिक लगाने वाले पहले नेता थे। मोनाजिर हसन अलग-अलग दलों से लगातार चार बार विधायक बने। 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रणव कुमार यादव ने जीत हासिल की। हालांकि 2000 से 2015 तक मुख्य मुकाबला आरजेडी और जेडीयू के बीच रहा। सियासी समीकरण की बात करें तो यहां 12.5 फीसद यादव मतदाता हैं। वहीं मुस्लिमों की हिस्सेदारी 13 फीसद है। 9.63 प्रतिशत अनुसूचित जाति के वोटर्स हैं। 

 

जमालपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल 4 नेताओं का दबदबा रहा है। इन पर जनता ने खूब भरोसा जताया। पहले तीन चुनाव में योगेंद्र महतो ने जीत हासिल की। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के बीपी यादव ने कांग्रेस का विजयी रथ रोका। 1969 में सीपीई की टिकट पर राम बालक सिंह विधायक बने। सुरेश कुमार सिंह ने दो बार जीत हासिल की। जमालपुर विधानसभा सीट पर उपेंद्र प्रसाद वर्मा का सियासी दबदबा दो दशक तक रहा। 1980 से 2000 तक वे पांच बार विधायक रहे। 2005 से 2015 तक जेडीयू का कब्जा रहा। जेडीयू नेता शैलेश कुमार लगातार चार बार विधानसभा चुनाव जीते। जमालपुर में 15.61 फीसद अनुसूचित जाति, 2.43 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 12.3 फीसद यादव मतदाता हैं। 3.7 फीसद मुस्लिम वोटर्स हैं।

 

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विधानसभ सीटें

तारापुर विधानसभा: विधानसभा क्षेत्र में समाजवादी विचारधारा के दलों का दबदबा है। 2010 से जेडीयू लगातार चुनाव जीत रही है। बीजेपी को आज भी अपनी पहली जीत की तलाश है। 2021 के उपचुनाव में जेडीयू के राकेश कुमार सिंह ने तारापुर से विधानसभा चुनाव जीता था। 1952 से विधानसभा सीट अस्तित्व में है। जेडीयू चार और समता पार्टी को दो बार जीत मिली। आरजेडी भी जीत की हैट-ट्रिक लगा चुकी है। पांच चुनाव जीतने वाले कांग्रेस आखिरी बार 1990 में जीती थी। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, शोषित दल, जनता पार्टी, सीपीआई और निर्दलीय प्रत्याशी एक-एक बार विधायक रह चुके हैं। 

 

जमालपुर विधानसभा: तारापुर की तरह जमालपुर विधानसभा सीट पर भी जेडीयू का दबदबा रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस के अजय कुमार सिंह ने उसके विजयी अभियान को थाम दिया। 2005 से 2015 तक जेडीयू नेता शैलेश कुमार चार बार विधायक बने। पिछले चुनाव में उन्हें  4,432 मतों से हार का सामना करना पड़ा। 1952 से 1962 तक कांग्रेस लगातार तीन चुनाव जीती। 63 साल बाद 2020 में उसे चौथी जीत मिली। 17 चुनाव में से कांग्रेस और जेडीयू को चार-चार और जनता दल को दो बार जीत मिली। इसके अलावा लोकदल, आरजेडी, बीजेएस, सीपीआई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के खाते में एक-एक जीत आई। 

 

मुंगेर विधानसभा: इस विधानसभा सीट पर समाजवादी दलों का दबदबा देखने को मिलता है। मगर 2020 में बीजेपी ने पहली जीत हासिल की। उससे पहले यहां आरजेडी और जेडीयू के बीच कांटे की टक्कर होती थी। मुंगेर से तीन बार चुनाव जीतने वाली कांग्रेस आखिरी बार 1972 में अपना विधायक बना पाई थी। अगर जीत की बात करें तो मुंगेर विधानसभा सीट पर जेडीयू और आरजेडी को तीन-तीन बार और जनता पार्टी व जनता दल को दो-दो बार जीत मिली। सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ, लोकदल और बीजेपी को एक-एक बार जीत मिली।

जिले का प्रोफाइल

मुंगेर जिले का कुल क्षेत्रफल 1419.7 वर्ग किलोमीटर है। यहां की कुल आबादी 13.67 लाख है। नौ प्रखंड वाले जिले की साक्षरता दर 76.87 फीसद है। मुंगेर में तीन नगर पालिका और कुल 923 गांव हैं। जिले की कानून व्यवस्था 19 थानों से संचालित की जाती है। मुंगेर के उत्तर में खगड़िया और बेगूसराय हैं। पश्चिम में लखीसराय और जमुई जिले की सीमा लगती है। दक्षिण में बांका जिला पड़ता है। पूर्व में जिले की सीमा भागलपुर से लगती है। 

 

कुल विधानसभा सीटें: 3

बीजेपी: 1
कांग्रेस: 1
जेडीयू: 1