18 अप्रैल को अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ हुई वेब सीरीज खौफ और यह सिम्पली स्टूपेंडस है, टू से द लीस्ट। रोंगटे खड़े कर देने वाली यह हॉरर सीरीज़ एक यंग लड़की मधु के हॉस्टल में मौजूद एक बुरी ताकत की कहानी को पेश करती है। अमेज़न प्राइम पर इंडियन क्रिएशंस में 3 नाम सबकी जुबां पर रहते हैं – पाताल लोक, मिर्ज़ापुर, फॅमिली मैन- उसी लिस्ट में, न्यूएस्ट एंट्री है खौफ – और माइंड यू, इट विल जस्टिफाई इटसेल्फ! सीरीज अपना नाम तो जस्टिफाई करेगी ही, क्लासिक मानी जाने वाली वेब सीरीज को भी टक्कर देगी – डायरेक्शन, सेट डिजाईन, प्रोडक्शन, फ्रेम दर फ्रेम परफेक्शन, अनसेटलिंग सीन्स, बेहद उम्दा अदाकारी – यू नेम इट और दैट वैरी एलिमेंट इज फेनोमेनल इन द सीरीज!

 

अगर सिनेमा से प्यार है तो गर्व महसूस करेंगे आप कि खौफ इंडियन क्रिएशन है! व्हाट अ सीरीज मैन! स्मिता सिंह जिन्होंने खौफ लिखी है, हैज प्रूव्ड हरसेल्फ येट अगेन! जिन्हें नहीं पता उन्हें बता देते हैं, स्मिता सिंह ने रात अकेली है (वही नेटफ्लिक्स वाली फेमस मूवी स्टारिंग नवाज़ और राधिका आप्टे) लिखी थी। वह सेक्रेड गेम्स की राइटिंग टीम का भी हिस्सा थीं।  

हॉरर की सीमाएं?

 

देखिए अगर कुछ भी डरावना हम रियल लाइफ में अनुभव करें, तो पैरों तले ज़मीन खिसक जाने वाला सीन होता है पर वही चीज़ स्क्रीन पर दर्शाना, उसका एक्सिक्यूशन, इज नॉट ईजी – एट ऑल! एक दर्शक के तौर पर यह बहुत बहुत ज्यादा शॉकिंग है, एक्टचुअली एक प्लीजेंट सरप्राइज कि इस हॉरर सीरीज में डर, थ्रिल, इमोशंस वगैरह को इतनी कंविंसिंगली दर्शाया गया है, जो कि आसान कतई नहीं रहा होगा।

 

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क्लासिक हॉरर मूवीज या शोज की तरह भर-भरकर स्केयर जम्प्स नहीं हैं। अगर हैं तो वे अननेसेसरी नहीं लगते। आप कयास लगा पाएंगे कि यहां कुछ डरावना आ सकता है, आता भी है। पर फिट बैठता है। ज़बरदस्ती स्टफ किया गया नहीं लगता। VFX यूज किए गए हैं शो में सुपरनेचुरल एंटिटी को दिखाने के लिए। ये बेस्ट वीएफएक्स नहीं हैं पर व्यूअर्स को डराने के लिए खौफ वीएफएक्स पर आश्रित है ही नहीं! मेकर्स ने हर चीज़ का इतना ख्याल रखा है कि आप डरेंगे भी, सवाल भी करेंगे, चकित भी होंगे और तारीफ में कसीदे भी पढेंगे ही!
पिक्चराइजेशन बेरंग नहीं। रंग हैं, दिखते भी हैं पर उन रंगों में डलनेस है, जो इस बात को रीइन्फोर्स करती है कि कुछ तो है। कुछ तो सिनिस्टर सा है!

 

 

हॉरर ऐज अ जॉनर काफी टफ है – इसीलिए नहीं कि एक्सपेरिमेंट किया नहीं जा सकता, बल्कि इसीलिए कि एक सेट नॉर्म सफलता बार बार देख चुका है – चीखना, चिल्लाना, इधर उधर दौड़ना (चाहे विक्टिम हो या भूत), स्केयरजम्प्स, दरवाज़े की आवाज़, लाइट्स का जलना-बुझना या ना होना वगैरह! सक्सेस फॉर्मुले सेट हैं - यही कारण है कि मेकर्स हॉरर में एक्सपेरिमेंट करने से कतराते हैं।

 

शायद यही वजह है कि हॉरर बतौर जॉनर, बेहद इंटरेस्टिंग भले हो, पर उसे एक्स्प्लोर कम किया गया है पर जिन्होंने भी ये जुर्रत की – एक्सपेरिमेंट और एक्स्प्लोर किया, किया तो बढ़िया काम – एग्जाम्पल्स हैं हमारे पास... बुलबुल, स्त्री 1 और 2, परी... इसी लिस्ट में एक और नाम ऐड कीजिए – खौफ!

 

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मैं क्लियर कर दूं कि मेंशन किए नामों के अलावा भी बहुत अच्छी हॉरर मूवीज बनी हैं, पर हम बात कर रहे हैं, उन मूवीज की जिनमें हॉरर को एक्स्प्लोर किया गया, डर को अलग तरीके से परोसने की कोशिश की गई – मन में डर बिठाने के कन्वेंशनल तरीकों से हट कर। ऐज ओल्ड मीन्स से अलग डरावने सेटअप्स के लिए भी अलग लेंस डेवलप करने की कोशिश। ऐज अ फिल्ममेकर और अ व्यूअर!
  
शो का स्क्रीनप्ले

 

खौफ आपको चैन से बैठने ही नहीं देगा! यह कहानी जितनी ग्रिपिंग है, उसमें बहुत बड़ा हाथ स्क्रीनप्ले का भी है। 40 से 50 मिनट के 8 एपिसोड्स हैं – स्लो बर्नर भी है सीरीज पर मजाल है कहीं भी ड्रैग लग जाए – सवाल ही नहीं उठता! द शो कीप्स यू हुक्ड – आप जानना चाहते हैं और बताओ और दिखाओ। बिंज वॉच करने के मूड से शायद शुरुआत आप करेंगे नहीं, पर पहला एपिसोड खत्म होते होते आपको समझ आ जाएगा, यह एक बार में ही निपटेगा शो – एक हाइली इंटरेस्टिंग पेज-टर्नर किताब की तरह, जिसे नीचे रखने का मन नहीं करता। बिलकुल वैसे ही, निचले नहीं बैठेंगे इसका फर्स्ट सीजन खत्म किए बगैर!

 

देखिए, शॉर्ट में कहूँ तो खौफ की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है और यह शो इसीलिए भी ख़ास हो जाता है क्योंकि रीसेंट पास्ट में, सेल्यूलॉइड पर हमें लगातार हाइली डिसअपॉइंटिंग फिल्म्स देखने को मिली हैं। ना कहानी अच्छी, ना डायरेक्शन, ना स्क्रीनप्ले और एक्टिंग तो खैर... रहने ही देते हैं पर अच्छे सिनेमा या कंटेंट को तरसती ऑडियंस के लिए खौफ वही है, जो बारिश थी लगान में गांववालों के लिए फिल्म के अंत में तर कर देगी ऑडियंस को! 

 

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सोशल कमेंट्री

 

केवल एक शो के लिहाज़ से कहें अगर हम कि इट्स अ ट्रीट टू वॉच, तो थोडा अनफेयर लगेगा- क्योंकि इतना दर्द, इतना पेन ...स्लोली आपके मन में इंटर करता है। ऐसा नहीं है कि सोशल इश्यूज या कमेंट्री ठक-ठक-ठक करके आपके मुंह पर मारी जा रही है या कोई इन्सान लगातार रोने रो रहा है, अपने दुखड़े रो रहा है, अपनी कहानी बता रहा है – ऐसा है ही नहीं!

ऐसा लगता है कि जब ऐज अ वुमन आप ये सीरीज कंज्यूम करेंगे न तो पूरी दुनिया की औरतें, खासकर इंडियन औरतें उन सब का सबसे बड़ा खौफ। वही जो एक महिला की ज़िन्दगी में रहता है – वह नज़र का, गेज़ का, टच का, हर पॉसिबल सेंस इन्क्लुडिंग द सिक्स्थ सेंस का ...एक्साक्ट्ली वही महसूस होता है। वही डर जो हम रोज़-रोज़ महसूस करते हैं। शायद इतने आदि हो जाते हैं उसके साथ जीने के कि वो कभी-कभी सरफेस करता है, पर रहता हमारे साथ ही है हमेशा और इस डर के खांचे में आप जिस भी केटेगरी का डर डालेंगे, सरप्राइजिंगली एनफ, फिट बैठेगा!

 

ऐसा लगता है यह शो कलेक्टिव वॉइस है एंटायर इंडियन फीमेल पॉपुलेशन की - ऐसा फील होता है।

 

लड़कियों के साथ छेड़छाड़, भद्दे कमेंट्स करना, सेक्सुअल असॉल्ट, मॉलेस्टेशन आदि किसी एक का मुद्दा नहीं है ये, यह हम सब के साथ होता है और सैडली, हम कितना नॉर्मलाइज कर चुके हैं इस चीज़ को। बतौर लड़की या औरत आपकी रीढ़ की हड्डी तक में सिरहन पहुंचा दे – ऐसा डर! खौफ वही डर महसूस कराती है, याद भी दिलाती है। आदमी इस डर को सीरीज के ज़रिए जानेंगे, औरतें इससे रिलेट करेंगी। हॉरर में ऐसा टेक - सुपरनेचुरल और सामाजिक हॉरर्स का ये मिश्रण, विदाउट अ डाउट सराहनीय है पर राइटर की डेप्थ और समझ देखिए आप कि अगर इस शो का जॉनर हॉरर ना भी होता, तो भी आपको अंदर तक हिला कर रख देता खौफ। राइटर की सामजिक मुद्दों पर समझ और पकड़ यह शो बहुत इफ्फेक्टिवली दिखाता है।

 

इन फैक्ट, जो आदमी इसे देखेंगे वो शायद अपने जीवन में मौजूद महिलाओं को और बेहतर समझ पाएंगे। किसी भी सैन इन्सान के सब-कॉन्शस में छप जाएगी ये सीरीज।  

सोचने पर मजबूर करने वाले सीन्स

 

जैसे हमने आपको पहले बताया था खौफ सोशल इश्यूज आपको ज़बरदस्ती नहीं परोसता। सटल तरीके से आपको लड़कियों/औरतों की रोज़मर्रा के स्ट्रगल्स बताता है। नौकरी, सड़क, पब्लिक प्लेसेज हर जगह वे क्या कुछ फेस करती हैं। इतना कि आदत हो जाती है कि ये तो होगा ही। खुद को संभाल के चलते हैं क्योंकि कहीं भी हाथ फेरते इन हैवानों को कोई कुछ कहेगा नहीं। सैड, बट ट्रू… और यह काम यह शो करता है अपने कुछ बेहद अनसेटलिंग सीन्स के ज़रिए…

 

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एक सीन में लड़की डीटीसी बस में ट्रैवल कर रही होती है और एक आदमी लगातार उसके पीछे खड़ा होकर उससे लगातार टकरा रहा होता है। वह विजिब्ली अनकम्फर्टेबल दिखती है और बस उतरकर हॉस्टल पहुंचने की जल्दी में दिखती है। उस ट्रैवल के बाद जब वह बाथरूम में नहाने घुसती है और शीज़ अबाउट टू रिमूव हर टॉप तो उसके टॉप पर उस आदमी का सीमेन लगा होता है! वह सीन आपको शेल शॉक्ड छोड़ देगा कि इतने घिनौने लोग भी होते हैं।

 

सैड बात यह कि क्षण भर के लिए वह परेशान दिखती है और फिर उसे उतार फेंकती है और मूव्स ऑन। वैसे ही जैसे हर लड़की छोटी या बड़ी बदतमीजी से उबारती है खुद को, आदतन?! हाँ! सैड!


पितृसत्ता किस क़दर घर कर चुकी है हम सभी के सिस्टम में कि हम सवाल उठाते नहीं, ये भी कई बार दिखाई देता है। एक औरत अपने बेटे के लड़कियों के छेड़ने को जस्टिफाई करती नज़र आती है। वह कहती है कि मेरे बेटे से दिक्कत हो गई, अपने बाप-भाई के आगे इनकी ज़बान नहीं चलती और शो भरा पड़ा है ऐसी रेफरेन्सेस से। इससे ज्यादा अनसेटलिंग सीन्स की डिटेल दी तो स्पॉइलर्स का खतरा है। इसीलिए नहीं बताएंगे।
  
शानदार अदाकारी

 

लोग शिकायत कर रहे हैं फ्रॉम अ वेरी लॉन्ग टाइम कि अच्छा सिनेमा नहीं बन रहा है अपनी कंट्री में। सेल्यूलॉइड पर हमें बहुत ब्रिलियंट पीसेज ऑफ आर्ट देखने को नहीं मिल रहे और ऑफ कोर्स वी टॉक अबाउट पीपल हू आर नॉट टैलेंटेड, एक्टिंग का अ नहीं पता है उन्हें। बट… यू टॉक अबाउट द एंटायर एनसेंबल कास्ट ऑफ खौफ और यू’ल बी ऑस्ट्रक! व्हाट स्टेलर परफॉर्मन्सेस यार! कितनी ही उम्दा एक्टिंग की है। मोनिका पंवार, जिनके इर्द-गिर्द ये पूरी कहानी घूमती है – आप उनको लीड कह सकते हैं लेकिन जो बाकी कैरेक्टर्स भी हैं उनका भी अच्छा खासा स्क्रीन टाइम है।

 

इन पार्ट्स, आप भूल जाएंगे कि लीड है कौन। कई जगह आपको लगेगा कि शायद रजत कपूर इस शो को लीड कर रहे हैं या मोनिका पंवार कर रही हैं या शायद चुंग कर रही हैं। हर किरदार को पर्याप्त स्क्रीन टाइम दिया है। इतना कि कैरेक्टर्स का बचपन दिखाए बगैर, उनका डेवलपमेंट और बिल्ड-अप आपको समझ आता है। पास्ट-प्रेजेंट का बैक और फोर्थ इन द स्क्रीनप्ले, व्यूअर्स को बांधकर रखता है।

 

यहां हर किसी की अपनी स्टोरी है। एक प्लाट आपको शुरू में समझ में आता है, लगता है शायद यही मेन प्लाट है या होगा पर उसके साथ साथ सब-प्लॉट्स बहुत सारे हैं, वे सब चलते रहते हैं और जैसे परत-दर-परत खुलती है उन छोटी-छोटी कहनियों की, जो सीमिंगली छोटी लग रही थीं पर वे इतनी बड़ी निकलती हैं और अंत में आकर कैसे वे सारी की सारी कहानियां इक्कठी मिश्रित होकर एक बड़ी कहानी के तौर पर हमें परोसी जाती है, आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे! चुम दरंग, रिया शुक्ल, प्रियंका सेतिया, गीतांजलि कुलकर्णी, आशिमा वरदान, रश्मि मान, शालिनी वत्सा… एवरीवन डिड अ फैंटास्टिक जॉब। इतना बढ़िया काम है!

 

यह शो बताता है कि टैलेंट कितना कूट-कूट कर भरा है हमारे देश में और कितने टैलेंटेड लोग हैं अपने यहां। जिनको मौका दिया जाए ना, तो वे लिटरली गर्दा उड़ा दें और सच कहूं तो ये भी बहुत अनजस्टिफाइड लगता है व्हेन यू टॉक अबाउट सच पीसेज और कह दें कि गर्दा उड़ा दिया – क्योंकि इसमें वह नाचना-गाना, ऐक्शन, रोमांस वगैरह नहीं है, जो मास एंटरटेनर्स में होता है। नहीं भाई! गर्दा इसीलिए उड़ाया है क्योंकि यू विल बी ब्लोन – कि कितनी खूबसूरती से ये कहानी परोसी गई है आपको और हर किरदार इतनी जस्टिस करता है यार अपने रोल्स के साथ। इट जस्ट फील्स अमेजिंग!
  
याद रह जाएगी सीरीज

 

जब मैंने एडोलेसेंस भी देखी थी और उसका रिव्यू किया था – उसमें भी मैंने एक बात कही थी - कहानी का, स्क्रीन से रियल लाइफ में आ जाना और द सेम थिंग हैपन्स व्हेन यू वॉच खौफ। 8 एपिसोड लम्बी यह सीरीज है और यह नहीं कहूंगी कि यह बेहद फास्ट-पेस्ड है।


स्लो बर्नर है, इसकी यूएसपी है इसका पेस और वह किसी भी पॉइंट पर ड्रैग नहीं लगता और बिलीव यू मी, इन एवरी एपिसोड देयर’स समथिंग, समथिंग दैट एंटर्स योर लाइफ थ्रू द स्क्रीन। इवन इफ इट इज नॉट रिलेटेबल, वह तब भी इंटर करेगा आपकी लाइफ में और अगर रिलेटेबल है तो सब-कॉन्शस में छप ही जाएगा।

 

ये जो खूबसूरत ट्रांजिशन है न, जो मेकर्स ने किया है, इट जस्ट ब्लोज माय माइंड - वो सीमलेस इंटीग्रेशन है, एंट्री है ट्रांजिशन है... मैं क्या कहूं मेरे पास शब्द कम पड़ रहे हैं। 
  
दिखता है इसीलिए बिकेगा भी!

 

जब खौफ आप देखेंगे, यह सीरीज आपका साथ नहीं छोड़ेग  और टीबीएच, आप चाहेंगे भी नहीं इससे पिंड छुड़ाना और उसकी ठोस वजह शो के विजुअल्स हैं। कुछ-कुछ जगह जो प्रिमाइसेज सेट हैं... हर सीन के लिए जो-जो सेट डिजाइन्स हैं, सब ऑन पॉइंट। कुछ भी मिसप्लेस्ड सा नहीं लगता।

 

जैसे अगर एक हकीम का किरदार है, वह कहाँ से ऑपरेट या करता है। उसके दवाखाने और बाकी कमरों, आंगन की वाइब्स – एक ही घर में होने के बावजूद, कितनी अलग हैं! एक हॉस्टल की कहानी है जो बहुत इम्पोर्टेंट है। कैसी जर्जर हालत में हॉस्टल है। जिस कमरे में भूतिया प्रेसेंस है, उसमें सीलन है, स्मेल है, कुछ ईरी सा है। एक न पचने वाली वाइब है, आउटराइटली नेगेटिव! उस कमरे को देखकर और उसके बाहर कॉरिडोर को भी, जहां यह कमरा नंबर 333 है – कुछ तो अजीब है उसके बारे में… कुछ गलत सा, अनसेटलिंग सा… - यह सब, शो सिर्फ अपने विसुअल्स के ज़रिए ऑडियंस को डिलीवर करता है। हर छोटी चीज़ का ध्यान रखा गया है।
  
निर्भया रिफरेन्स वाला सीन आपका दिमाग हिला देगा – इतना कि आपको सुन्न महसूस होगा। यकीन मानिए, अगर आपके मन में निर्भया के लिए लेशमात्र भी, नाखून बराबर भी संवेदना थी, आपका खून खौला देगा वह सीन। जिस तरह उसे फिल्माया गया है, जैसे बीच में पॉज आते हैं, उस ज़ेहन छलनी कर देने वाले शॉट में जो शांति है, वह भेद देगी आपको अन्दर तक। जिस तरह उस सीन में कैरेक्टर्स रिऐक्ट करते हैं, जो हुआ है उसे समझने में टाइम लेते हैं – आप जुड़ जाएंगे उन किरदारों से क्योंकि आपको भी समय लगेगा, प्रोसेस करने के लिए कि वाकई यही हुआ क्या? वही सब कहा गया क्या...जो मैंने सुना, या मेरी गलतफ़हमी है? क्या वाकई यह रिफरेन्स इस...इस तरीके से इस्तेमाल की गई है?

 

मैं कोई स्पॉइलर्स नहीं दूंगी, बट दिस सीन विल रेंडर यू स्पीचलेस एंड फुल ऑफ इमोशंस। इस सीन में हर सिंगल कास्ट मेम्बर जो उस स्टोरी का हिस्सा है, उन में से हर एक ने अपने किरदार के साथ इन्साफ किया है। कुछ अलग तो करना ही था! हॉरर एक ऐसा फिल्मी जॉनर है जिसने 'स्क्रीम क्वीन' (स्क्रीम क्वीन) जैसी एक खास पहचान को जन्म दिया है। यह शब्द उन महिला कलाकारों के लिए इस्तेमाल होता है जिन्होंने हॉरर या स्लैशर फिल्मों में जबरदस्त प्रदर्शन किया है—खासकर वे किरदार जो डर, आतंक और खतरे के पलों में चीखती नज़र आती हैं। पश्चिम में, जेनेट ली (जेनेट ली) को सायको में उनके मशहूर शावर सीन के लिए जाना जाता है और उनकी बेटी जेमी ली कर्टिस (जेमी ली कर्टिस) को हैलोवीन जैसी फिल्मों से यह टाइटल मिला। भारत में, बिपाशा बसु भी राज और आत्मा जैसी फिल्मों से एक लोकप्रिय ‘स्क्रीम क्वीन’ मानी जाती हैं।

 

इन सभी उदाहरणों में एक सामान्य ट्रॉप देखने को मिलता है—हॉरर फिल्मों में महिला किरदारों को अक्सर डर से चीखते हुए दिखाया जाता है। यह ट्रॉप सिर्फ दर्शकों को डराने के लिए नहीं, बल्कि डर को ‘महिला अनुभव’ के रूप में प्रस्तुत करने का एक तरीका बन गया है। ट्रॉप का मतलब होता है… प्रचलित शैलियों का इस्तेमाल लेकिन लेखक स्मिता सिंह इससे सहमत नहीं थीं। अपने शो 'खौफ' में इस ट्रेंड से हटकर कुछ नया करने की उन्होंने ठानी और बखूबी किया भी। यह बात उन्होंने साझा की थी हिंदुस्तान टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में। स्मिता ने बताया कि वह चाहती थीं कि उनके शो में महिला किरदार सिर्फ डरने वाली या बचाव की मोहताज न हों, बल्कि डर का सामना करने वाली हों। सिर्फ वे लडकियां या महिलाएं नहीं जो डर के इधर उधर भागती दिखाई दें स्क्रीन पर।

 

और अ बिग थैंक्स टू हर! स्मिता के इस नज़रिए ने खौफ में दिखाए हॉरर को केवल ‘चीख और सस्पेंस’ तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अनुभव के रूप में पेश किया — कुछ वैसा ही जैसा हमें द बाबाडूक, हेरेडिटरी या तुम्ब्बड जैसी फिल्मों में देखने को मिलता है - जहां डर बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से आता है।