2005 में हॉलीवुड फिल्म 'Excorcism of Emily Rose' आई थी, जो सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है। बहुत डरावनी और भुताहा होने के कारण यह फिल्म बहुत कम लोगों ने ही देखा है। जिस लड़की पर यह फिल्म बनाई गई उसका नाम था ऐनालीस माइकल। महज 23 साल की जर्मन महिला की मौत कुपोषण के कारण हो गई थी। माना जाता है कि मौत से पहले एक साल के भीतर ऐना पर 67 कैथोलिक भूत-प्रेत भगाने की रस्में की गई थी। इसके लिए अदालत ने ऐना के माता-पिता और पादरी को लापरवाही से हत्या का दोषी ठहराया था।
इस फिल्म के अनुसार, ऐना पर लगभग 6 लोगों की आत्माएं आती थी। जर्मनी तानाशाह एडॉल्फ हिटलर, रोमन सम्राट नीरो, यीशु का शिष्य यहूदा, कैन आदम का बेटा, ईसाई धर्मशास्त्र, लूसिफर और पादरी वैलेन्टिन फ़्लेशमैन। ऐना इन सभी की आवाजें निकाल लेती थी, लेकिन सवाल है कि क्या सच में ऐना के अंदर कोई भूत घुसा हुआ था। किसी इंसान पर भूत-प्रेत का कब्जा कर लेने का असली कारण मल्टीपल पर्सनेलिटी डिसॉर्डर होता है। साइंटफिक टर्म में समझें तो एक इंसान में एक से अधिक पर्सनेलिटी का होना। इसे अब DID यानी डिसोसिएटिव आइडिंटी डिसॉर्डर कहते है।
क्या होता है DID?
भारत में भी इस डिसॉर्डर को अक्सर भूत-प्रेत का वास समझकर तंत्र-मंत्र से जोड़ दिया जाता है, लेकिन अगर इसे ध्यान से समझें तो यह एक मानसिक बीमारी के कारण होती है जिसका नाम डिसोसिएटिव आइडेंटिटि डिसऑर्डर है। पहले इसे मल्टीपल पर्सनालिटी डिसॉर्डर कहा जाता था।
क्यों होती है यह बीमारी?
डिसोसिएटिव आइडेंटिटि डिसऑर्डर एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जिसमें एक इंसान के दो या उससे ज्यादा व्यक्तित्व रहते हैं। इसमें होने वाली परेशानी को डिसोसिएशन कहते है। ऐसी बीमारी होने का सबसे बड़ा कारण ट्रॉमा को माना जाता है। आसान भाषा में समझें तो बचपन में किसी तरह का शारीरिक, मानसिक या यौन उत्पीड़न शोषण हुआ है तो वो इस बीमारी का शिकार हो सकता है।
क्या 2005 की फिल्म में इस बीमारी को दिखाने की कोशिश की गई?
वो कहावत तो सुनी होगी जो दिखता है वो बिकता है। अब अगर एमिली का सही मेडिकेशन किया जाता तो शायद वो आज हमारे बीच होती है। हालांकि, हॉलीवुड हो या बॉलीवुड फिल्में अधिकत्तर पैसे कमाने के जरिए से तैयार की जाती है और फिल्मों में DID के मरीज की पर्सनालिटी को एक भूत या राक्षस जैसे दिखाने की कोशिश की जाती है। हालांकि, असलियत कुछ और ही होती है।
भारत में DID के मरीजों की स्थिति बेहद खराब
हमारे देश में ऐसे मरीजों को पागल और भूत का नाम दे दिया जाता है। यहां इस बीमारी को लेकर लोग बिल्कुल भी जागरूक नहीं है। अधिकत्तर ऐसे मामले ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल जाएंगे। गांवों में कई लोग किसी न किसी तरह के ट्रॉमा से गुजर रहा होता हैं।
DID का इलाज है
डीप साइकोथेरेपी, फैमिली थेरेपी और मेडिटेशन जैसे ट्रीटमेंट से DID के पेशंट की मदद की जा सकती है। इसमें दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। मरीजों को ट्रॉमा से ट्रिगर न होने की भी ट्रेनिंग दी जाती है।