अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दो सिद्धांत हैं। पहला मेक अमेरिका ग्रेट अगेन और दूसरा अमेरिका प्रथम। उनकी प्राथमिकता में रेसिप्रोकल टैरिफ है, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) के फंड को रोकना है। अफ्रीकी देशों को अमेरिका जिस तरह की मानवीय मदद दशकों से करता आया है, डोनाल्ड ट्रम्प के सलाहकारों को उस पर भी आपत्ति है। 

डोनाल्ड ट्रम्प रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की बात करते हैं। आसान भाषा में इसे 'जैसे को तैसा' टैक्स कह सकते हैं। एक देश द्वारा दूसरे देश पर उसी तरह का कर लगाना जैसा कि वह देश उस पर लगाता है। इसे रिवेंज टैक्स भी कहते हैं।

डोनाल्ड ट्रम्प हर बार कहते हैं कि चीन, भारत, कनाडा और मेक्सिको जैसे देश अगर अमेरिकी उत्पादों पर महंगा टैरिफ लगाते हैं तो अमेरिका भी वैसा ही टैक्स लगाएगा। इन देशों की आर्थिक स्थितियों, मुद्रा के मूल्य, विकास सबको नजर अंदाज करके वह अपने रुख पर अडिग हैं।

यह भी पढ़ें: करोडों की फंडिंग, ट्रम्प के बयान, भारत में शोर, USAID की इनसाइड स्टोरी

डोनाल्ड ट्रम्प BRICS देशों को धमकी देते हैं कि अगर डॉलर के खिलाफ BRICS के देश कोई वैकल्पिक मुद्रा लेकर आते हैं तो इन देशों पर वह 150 प्रतिशत टैक्स लगा देंगे। उनका रुख लगातार ऐसा है कि वह कई देशों की नजर में खटक रहे हैं। ब्राजील, मेक्सिको, कनाडा, चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे बड़े बाजार, ट्रम्प से दूर हो सकते हैं।

कौन सी वजहें हैं जिसकी वजह से BRICS मजबूत हो सकता है?
डोनाल्ड ट्रम्प चाहते हैं कि दुनिया सिर्फ डॉलर में वैश्विक व्यापार करे। वह डॉलर का प्रभुत्व बरकरार रखना चाहते हैं। डॉलर पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता होने की वजह से देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। अमेरिका कभी टैरिफ लगाने की धमकी देता है, कभी प्रतिबंध लगाने की। उनका यह रवैया BRICS देशों को पास ला सकता है।

भारत दुनिया में अपनी शर्तों पर व्यापार करता है। यूरो, युआन से लेकर रूबल तक में भारत भुगतान करता है। अमेरिका को यह बात खटकती है। भारत और चीन दोनों अपनी शर्तों पर व्यापार करते हैं। दोनों देश स्थानीय मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा देना चाहते हैं। 

यह भी पढ़ें: गीता पर शपथ कानूनी रूप से मान्य? अमेरिका समेत इन देशों में परंपरा कायम


अमेरिका अमेरिका रूस, ईरान, चीन, वेनेजुएला, क्यूबा जैसे देशों पर लगातार आर्थिक प्रतिबंध लगाता रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस को SWIFT बैंकिंग सिस्टम से बाहर करने जैसी कार्रवाइयों से कई देशों ने चिंता जताई है। अमेरिका आए दिन किसी देश पर प्रतिबंध लगाने या टैरिफ बढ़ाने की धमकी देता है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ BRICS देशों के नेता। (File Photo: PIB)

विश्व बैंक और IMF जैसे संगठनों पर अमेरिका और यूरोप का दबदबा है। विकासशील देश इनसे फंड हासिल करने के लिए झूझते हैं। BRIC का न्यू डेवलेपमेंट बैंक एक विकल्प बन रहा है। शंघाई में इस बैंक का मुख्यालय है। चीन और रूस के खिलाफ अमेरिका की आलोचना मुखर है। भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश अमेरिका के इस रवैये से बचना चाहते हैं। BRICS अमेरिका को संतुलित करने का एक बेहतर कवायद है। 

यह भी पढ़ें: ट्रंप का USAID पर बड़ा एक्शन, 2 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाला


अमेरिका दशकों से तेल व्यापार को डॉलर में ही करने का दबाव डालता रहा है। चीन, रूस, ईरान और खाड़ी देश अब स्थानीय मुद्राओं में व्यापार की दिशा में बढ़ रहे हैं। BRICS देश 'डी-डॉलराइजेशन' को बढ़ावा दे सकते हैं। अगर ट्रम्प अपना रुख नहीं बदलते हैं तो BRICS देश ऐसा कर सकते हैं।

BRICS क्या है?
BRICS ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और UAE का संगठन है। दुनिया के टॉप दिग्गज देशों के गठबंधन G-7 की तुलना में इन देशों ने नया विकल्प बनाया था। इन 10 देशों में दुनिया की आधी आबादी रहती है। शुरुआत में ब्राजील, रूस, भारत और चीन जैसे देशों ने पहली रूस में इस गठबंधन को लेकर बैठक की थी। पहला समिट 2006 में हुआ था। सितंबर 2006 में BRIC अस्तित्व में आया। पहली बार BRIC के मतं्रियों की बैठक 16 जून 2009 को हुई। BRICS के देश दुनिया के 29.3 प्रतिशत जमीन पर काबिज हैं।

क्या हो सकता है BRICS का भविष्य?
अमेरिका की डॉलर-आधारित अर्थव्यवस्था, सैन्य मनमानी, पश्चिमी वर्चस्व को बढ़ाने की वकालत, दोहरे मापदंडों को अपनाने की आदत कुछ ऐसी वजहें हैं, जिनकी वजह से दुनिया अमेरिका का विकल्प तलाशने की ओर बढ़ सकती है। BRICS जैसे संगठनों की इसमें भूमिका अहम होगी। 

साल 2024 की BRICS समिट। (Photo Credit: BRICS)

डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका फर्स्ट नीति में भरोसा रखते हैं। वह चाहते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था, उद्योग और नौकरियों में अमेरिकियों को प्राथमिकता मिले। वह पश्चिमी और यूरोपीय देशों के साथ भी जैसे का तैसा रुख रखना चाहते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प दुनिया से कट रहे हैं, चीन दुनिया में विस्तार की योजना बना रहा है। चीन बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) जैसे प्रोजेक्ट की ओर आगे बढ़ रहा है।

यह भी पढ़ें: 'वे हमारा फायदा उठाते हैं', USAID-टैरिफ पर ट्रंप ने फिर भारत को सुनाया


जिन देशों पर ट्रम्प का रवैया सख्त हो रहा है, वहां चीन अपने नए प्रोजेक्ट लॉन्च कर रहा है। जैसे मेक्सिको और कनाडा पर अमेरिका ने टैरिफ वार छेड़ा तो चीन इसे भुनाने में जुटा है। चीन के पास सस्ती इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, ऑटो पार्ट्स, स्टील और टेक्सटाइल आपूर्ति करने की क्षमता है। मेक्सिको और कनाडा को चीन कच्चे माल और पार्ट्स देने का विक्रेता बन सकता है। वैश्विक बाजार में चीन का दबदबा बढ़ सकता है। 

अमेरिका को 'ग्रेट' बनाने के लिए ट्रम्प कर क्या रहे हैं?

डोनाल्ड ट्रम्प ने अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे प्रवासियों के बच्चों को जन्म के आधार पर मिलने वाली नागरिकता को खत्म करने का आदेश दिया है। उनका कहना है कि इससे अवैध प्रवासन रुक जाएगा। डेमोक्रेटिक पार्टी और कई राज्यों ने इसे संविधान के 14वें संशोधन का उल्लंघन बताया है।

20 से ज्यादा राज्यों ने इस फैसले को चुनौती दी है। डोनाल्ड ट्रम्प ने WHO से बाहर निकलने का फैसला किया है। उन्होंने इससे बाहर निकलने के लिए एग्जीक्युटिव ऑर्डर साइन किए हैं। इस कदम से वैश्विक स्वास्थ्य संकटों में अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठे हैं।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प। (Photo Credit: PTI)

डोनाल्ड ट्रम्प ने थर्ड जेंडर को नहीं मानते। वह अवैध घुसपैठ के खिलाफ हैं। वह अवैध प्रवासियों को ऐसे डिपोर्ट कर रहे हैं जिसे अपमानजनक कहा जा रहा है। अवैध शरणार्थियों को अपराधियों की तरह हथकड़ियों में बांधकर उनके देश भेजा जा रहा है। इस नीति से भारत भी प्रभावित है। उनकी आलोचना हो रही है कि वह इतना क्रूर तरीका क्यों अपना रहे हैं, दूसरी तरफ उनके समर्थकों का कहना है कि यह ट्रम्प की अमेरिका फर्स्ट नीति का हिस्सा है।