साल 1988 में पाकिस्तान के पेशावर में आतंकी ओसामा बिन लादेन ने एक संगठन खड़ा किया। नाम था अल कायदा। इसी संगठन ने 11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर सबसे बड़ा आंतकी हमला किया। जिसे दुनिया 9/11 के नाम से जानती हैं। हमले में 3,000 लोगों की मौत से पूरा अमेरिका हिल उठा। यह पहली ऐसी घटना थी, जिसके बाद पूरी दुनिया अल कायदा के नाम से रूबरू हुई। अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन की ख्वाहिश रही है कि वह एक इस्लामिक देश की स्थापना करे। मगर उसका यह सपना पूरा होता, उससे पहले ही 2 मई 2011 को अमेरिकी सेना ने पाकिस्तान के एबटाबाद में उसे मार गिराया।
अब लादेन की मौत के 14 साल बाद अल कायदा अफ्रीका में वह काम करने जा रहा है, जिसे वह अफगानिस्तान में भी नहीं कर सका। जल्द ही उसकी एक खुद मुख्तार सरकार बनने जा रही है। जहां उसका ही कानून होगा, उसकी ही कोर्ट होगी और पुलिस भी उसी की होगी। अल कायदा से जुड़े संगठन ने अफ्रीकी देश माली की राजधानी बामको की घेराबंदी कर दी है और किसी भी समय यहां की मौजूदा सैन्य सरकार ढह सकती है। आइये जानते हैं आजादी से विद्रोह तक माली की पूरी कहानी।
यह भी पढ़ें: डरा पाकिस्तान, ख्वाजा आसिफ बोला- दो फ्रंट में उलझाने की तैयारी में भारत
संकट में घिरी माली की राजधानी
जमात नुसरत उल-इस्लाम वा अल-मुस्लिमीन (JNIM) अल कायदा से जुड़ा संगठन है। इसके लड़ाके माली की राजधानी बामाको की तरफ बढ़ रहे हैं। राजधानी के अंदर जाने वाले तेल टैंकरों को लड़ाकों ने रास्ते में ही रोक दिया है। कई ड्राइवरों को मार दिया गया तो कुछ का अपहरण कर लिया गया है। इस कारण राजधानी में तेल संकट पैदा हो गया है।
कितने बिगड़ चुके हालात?
माली में अधिकांश ईधन की खपत आइवरी कोस्ट, मॉरिटानिया और सेनेगल के रास्ते से होती है। मगर जिहादियों ने इन मार्गों पर नाकेबंदी कर दी है। तेल की कमी की वजह से राजधानी में अंधेरा छाया है। कई हिस्सों में बिजली गुल है। पेट्रोल पंपों पर लंबी-लंबी कतारें लगी हैं। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि दुकानें और स्कूल पूरी तरह से बंद हैं। अगर एक जगह से दूसरी जगह जाना है तो आपको कोई वाहन नहीं मिलेगा।
कई देशों की सलाह, तुरंत छोड़ें माली
हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि एक हफ्ते में अमेरिका के विदेश विभाग ने दूसरी बार अपने नागरिकों को एडवाइजरी जारी की है। इसमें सभी अमेरिकी नागरिकों से वाणिज्यिक विमान के सहारे तुरंत माली छोड़ने को कहा गया है। अमेरिका के अलावा इटली, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने नागरिकों को तत्काल माली छोड़ने की सलाह दी है। अधिकारियों का कहना है कि माली में हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं। किसी भी वक्त राजधानी बामाको पर आंतकियों का कब्जा हो सकता है।
तो माली भी बन जाएगा सीरिया और अफगानिस्तान!
अगला एक हफ्ता माली के लिए बेहद अहम है। अभी लोग पहले से जमा वस्तुओं पर अपना जीवन यापन करने में जुटे हैं। जब यह सामान खत्म होगा तो उसके बाद सबसे भयावाह स्थिति सामने आएगी। अगर माली का आखिरी किला बामाको भी ढह जाता है तो यह अफगानिस्तान और सीरिया के बाद जिहादी सरकार वाला दुनिया का तीसरा देश होगा।
2021 में अमेरिका की वापसी के बाद से अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार है। पिछले साल सीरिया में आतंकी संगठनों ने राष्ट्रपति बशर अल असद को पद से हटाया दिया। अब वहां की सत्ता पर पूर्व आतंकी अबू मोहम्मद अल-जोलानी का कब्जा है। मगर अब दुनिया उन्हें अहमद अल-शरा के नाम से जानती है।
सीरिया और अफगानिस्तान में शरिया कानून लागू है। अगर माली भी ढहता है तो वहां भी सख्त शरिया कानून होगा। इसकी वजह यह है कि अभी जिन इलाकों में जेएनआईएम का कब्जा है, वहां वह अपनी अदालतों के माध्यम से ड्रेस कोड लागू कर रहा है। उल्लंघन करने पर लोगों को सजा दे रहा है।
एक दशक से जिहादियों से जूझ रहा माली
माली में साल 2012 में एक सैन्य तख्तापलट हुआ था। इस वजह से शासन प्रशासन में एक खालीपन पैदा हुआ तो चरमपंथी संगठनों को सिर उठाने का मौका मिला। यह देश पिछले एक दशक से जिहादी विद्रोह से जूझ रहा है। अब तक हजारों लोगों की जान जा चुकी है। लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है।
साल 2014 में विद्रोह को दबाने के उद्देश्य से माली की तत्कालीन सरकार ने उसी फ्रांस की सेना को बुलाया, जिससे 55 साल पहले आजादी मिली थी। एक तरफ विद्रोह, राजनीतिक अस्थिरता, कट्टरपंथ ने वहां की सरकार को कमजोर किया तो दूसरी तरफ फ्रांस के खिलाफ जनभावना तेजी से भड़की। नतीजा यह हुआ कि 2020 और 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद फ्रांस की सेना को 2022 में माली छोड़ना पड़ा।
कैसे बढ़ी अल कायदा के सहयोगी जेएनआईएम की ताकत?
माली की नई सरकार ने पश्चिमी देशों से रिश्ता तोड़ लिया। कई देशों को अपने दूतावास तक खाली करने पड़े। रूस से करीबी होने के कारण ट्रंप ने अमेरिकी सहायता रोक दी। आर्थिक संकट और संसाधनों की कमी के कारण माली के कई हिस्सों में सैन्य सरकार की पकड़ ढीली हुई तो कट्टरपंथी संगठनों को बढ़ने का मौका मिला। हालात यह हो गए कि माली की कई सड़कों पर जिहादी संगठन जेएनआईएम का कब्जा हो गया। वह टोल टैक्स वसूलने लगा। इससे उसकी शक्ति और बढ़ गई। आज यह जिहादी समूह माली में सोने की खदान, अदालतें और स्कूल चला रहा है।
माली की सरकार ने रूस से मिलाया हाथ
आतंकियों से निपटने के लिए माली की सैन्य सरकार ने रूस के वैगनर समूह को अपने यहां बुलाया। साल 2021 में वैगनर ग्रुप के करीब 2000 लड़ाके माली पहुंचे। इनका मुख्य टास्क जमात नस्र अल-इस्लाम वाल मुस्लिमीन (JNIM) और इस्लामिक स्टेट को ठिकाने लगाना था। मगर भाड़े की सैनिक खरीदना ही माली को भारी पड़ गया। अगर माली ने वैगनर की जगह अपने नागरिकों को ट्रेनिंग दी होती तो आज लड़ाई की सूरत कुछ और होती, ऐसा कई विश्वेषकों का मानना है।
क्या वैगनर समूह ने दिया माली को धोखा?
- माली की सैन्य सरकार ने रूस के वैगनर समूह पर खूब भरोसा किया। मगर उसने आतंकी संगठनों के साथ वैसी लड़ाई नहीं लड़ी,जैसी उससे अपेक्षा थी। एसीएलईडी के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2021 और जून 2023 तक वैगनर ने कुल 298 बड़े हमले को अंजाम दिया। इनमें से सिर्फ 21 प्रतिशत जेएनआईएम और 6 प्रतिशत इस्लामिक स्टेट साहेल के खिलाफ थे। बाकी 69 फीसद हमले माली के नागरिकों पर हुए।
- एक अन्य आंकड़ा बताता है कि दिसंबर 2022 तक वैगनर और जेएनआईएम के बीच सिर्फ 9 बार मुठभेड़ हुई। वहीं आईएस साहेल के खिलाफ सिर्फ एक एनकाउंटर को अंजाम दिया गया। इससे साफ पता चलता है कि वैगनर ग्रुप ने आतंकियों से सीधी लड़ाई लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। नतीजा यह हुआ कि आंतकी संगठनों को माली में पैर जमाने का मौका मिल गया।
एक मौलवी ने कैसे गिराईं दो सरकारें?
2020 के जून महीने में माली के लोगों, धार्मिक गुट और विपक्षी दलों ने एक गठबंधन बनाया। दुनिया इसे एफ-आरएफपी के नाम से जानती हैं। इस गठबंधन ने तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहि बाउबकर कीता के खिलाफ व्यापाक विरोध प्रदर्शन किया। उन पर भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था बिगाड़ने का आरोप लगाया। विपक्षी गठबंधन का सबसे चर्चित चेहरा महमूद डिको था। डिका माली का शक्तिशाली लेकिन विवादित मौलवी है। 2020 में कीता की सरकार गिराने में इस मौलवी की भूमिका सबसे अहम थी। वह ऐसा ही कारनामा साल 1991 में तत्कालीन राष्ट्रपति मूसा त्राओरे के खिलाफ भी कर चुका था।
एक साल में दूसरा तख्तापलट
माली के एक पूर्व मंत्री के मुताबिक इमाम महमूद डिको चाहता है कि माली शरिया कानून के तहत एक इस्लामी देश बने। उसने ऐसा ही एक बयान साल 2020 में दिया था। मौलवी के बयान के दो महीने के अंतर ही कीता की सरकार गिर गई और सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया। सेना के कैप्टन असिमी गोइता के कहने पर बाह नदाव को राष्ट्रपति बनाया गया। एक साल के भीतर दूसरा तख्तापलट हुआ। अबकी बार कमान खुद असिमी गोइता ने संभाली।
तो मौलवी के कहने पर बनेगा इस्लामिक देश
दो सरकारों को गिराने में अहम भूमिका निभाने वाले मौलवी महमूद डिको की असिमी गोइता से भी नहीं बनी। 2023 में सरकार से मतभेद और राजनयिक पासपोर्ट खोने के बाद से वह अल्जीरिया में रह रहा है। अब खबर है कि अल कायदा से जुड़े जिहादी संगठन जेएनआईएम ने डिको से संपर्क किया है। उसे माली वापस बुलाया गया है। कहा जा रहा है कि आतंकी संगठन माली सरकार के बजाय मौलवी डीको से बात करके ही इस्लामिक देश का गठन करेगा।
यह भी पढ़ें: 'हमला करने की तैयारी करो', अब नाइजीरिया पर क्यों भड़के ट्रंप?
दो करोड़ से ज्यादा आबादी वाला माली पश्चिम अफ्रीका का अहम देश है। यह चारों तरफ से जमीन से घिरा है। इसकी कोई सीमा समुद्र से नहीं लगती है। साल 1960 में माली को फ्रांस से आजादी मिली। मगर पाकिस्तान की तरह यहां की शासन व्यवस्था में हमेशा ही सेना का खूब दखल रहा है। यही वजह है कि पाकिस्तान में तीन और माली में अब तक पांच तख्तापलट हो चुके हैं। माली पिछले 5 वर्षों में तीसरे सफल तख्तापलट के नजदीक है।
माली में कब-कब हुआ तख्तापलट?
- पहला तख्तापलट: 19 नवंबर 1968 को माली में पहला सफल तख्तापलट हुआ। सेना के समर्थन से राष्ट्रपति मोदीबो कीता को जेल में डाल दिया गया।
- दूसरा तख्तापलट: 26 मार्च 1991 को माली ने दूसरी बार तख्तापलट का सामना किया। इसको भी सेना का समर्थन प्राप्त था। राष्ट्रपति मूसा त्राओरे को जेल भेजा गया था।
- तीसरा तख्तापलट: माली में करीब 20 साल तक शांति रही। मगर 22 मार्च 2012 को तीसरी बार तख्तापलट हुआ। राष्ट्रपति अमादौ तौमानी टूरे की सत्ता ढह गई।
- चौथा तख्तापलट: 18 अगस्त 2020 को कई दिनों के विरोध प्रदर्शन के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीता को सेना ने पद से हटा दिया।
- पांचवां तख्तापलट: 21 मई 2021 को माली की सेना ने अपनी ही सरकार का तख्तापलट कर दिया। राष्ट्रपति बाह नदाव की जगह कैप्टन असिमी गोइता नए राष्ट्रपति बने।
अफ्रीका महाद्वीप में अब तक कितने तख्तापलट?
अफ्रीका सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के मुताबिक माली में 2012 से अब तक कुल 17,700 से अधिक मौतें हुई हैं। इनमें से दो-तिहाई से ज्यादा मौतें 2020 के बाद हुई हैं, मतलब तख्तापलट के बाद। दरअसल, हुआ यह कि माली में लोकतांत्रिक सरकार ढहने के बाद प्रशासन में खाली जगह पैदा हुई। इसका फायदा जिहाजी संगठन ने उठाया। उसने माली के कुछ क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाना शुरू किया और आज यह इतना बढ़ा संगठन बन चुका है कि उसके आगे सैन्य सरकार भी बौनी लगने लगी है।
पॉवेल और थाइन के आंकड़ों के मुताबिक 1950 के बाद से दुनिया भर में 492 बार तख्तापलट की कोशिश की गई। इनमें 245 कोशिशें सफल रहीं। सबसे अधिक 220 बार तख्तापलट का प्रयास अफ्रीका महाद्वीप में किया गया। इनमें से 109 बार सफलता मिली। अफ्रीका महाद्वीप में कुल 54 देश हैं। इनमें से 45 में कम से कम एक बार तख्तापलट हो चुका है।
