पांच दिन के संघर्ष के बाद ईरान ने इजरायल के खिलाफ युद्ध का एलान कर दिया है। अभी तक इजरायल ने ईरान के 1100 ठिकानों पर बमबारी की है। उधर, ईरान भी हाइफा, तेल अवीव समेत इजरायल के तमाम शहरों पर बैलेस्टिक मिसाइल दाग रहा है। इजरायल और ईरान की जंग में तीन नाम सबसे अधिक चर्चा में हैं। पहला- बेंजामिन नेतन्याहू, दूसरा- आयतुल्लाह सय्यद अली खामेनई और तीसरा नाम डोनाल्ड ट्रंप का है। ट्रंप और नेतन्याहू ने सीधे तौर पर आयतुल्लाह अली खामेनई की हत्या की धमकी दी। मगर 86 वर्षीय ईरान के सर्वोच्च नेता ने अमेरिका और इजरायल के सामने झुकने से मना कर दिया है। आज कहानी आयतुल्लाह अली खामेनई और उनके दुश्मनों की।
आयतुल्लाह अली खामेनई का जन्म 19 अप्रैल 1939 को ईरान के मशहद में हुआ था। वह अपने माता-पिता की दूसरी संतान हैं। अली खामेनेई के पिता सैयद जवाद खामेनेई ईरान के प्रसिद्ध धर्मगुरु थे। अली खामेनई का घर मशहद के गरीब मोहल्ले में था और घर में सिर्फ एक कमरा था। अली खामेनई के पिता का जन्म इराक के नजफ शहर में हुआ था। बचपन में ही अपने परिवार के साथ ईरान के तबरेज आ गए थे। बाद में उनका परिवार मशहद आ गया था। अली खामेनई ने धर्मशास्त्र की पढ़ाई की है। ईरान में राजशाही के खिलाफ माहौल बनाने में खामेनई के भूमिका अहम थी।
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पहलवी शासन में हुई गिरफ्तारी
इमाम खुमैनी के साथ खामेनई ने इस्लामिक क्रांति का बिगुल बजाया। 1964 में पहलवी शासन ने खामेनई को उनके भाषणों की वजह से गिरफ्तार किया। उन्हें कजल किले की जेल में रखा गया। यहां राजनैतिक कैदियों को रखा जाता था। 1967 में अली खामेनई को तीसरी बार गिरफ्तार किया गया। 11 सदस्यीय ग्रुप का सदस्य होने के आरोप में उन्हें 6 महीने की सजा भी हुई। हालांकि वह कभी अदालत में पेश नहीं हुए। पहलवी शासकों और खामेनई के बीच 36 का आंकड़ा रहा है।
1979 में बने आईआरजीसी के सुपरवाइजर
इमाम खुमैनी ने 12 जनवरी 1979 को इस्लामी क्रांति परिषद के गठन का किया। इसमें अली खामेनई को भी सदस्य बनाया गया। इस्लामिक क्रांति के बाद अली खामेनेई को रक्षा मंत्रालय में क्रांति मामलों का डायरेक्टर बनाया गया। उन्हें सुरक्षा कमीशन का भी सदस्य बनाया गया। 24 नवंबर 1979 को उन्हें राष्ट्रीय आर्काइव और आईआरजीसी का सुपरवाइजर बनाया गया। बाद में उन्होंने जम्हूरी इस्लामी पार्टी का गठन किया। 1981 में पहली बार अली खामेनई को पार्टी का महासचिव बनाया गया। इसी साल उन्हें ईरान का राष्ट्रपति बनाया गया। 1985 में दूसरी बार राष्ट्रपति बने। 1987 में अली खामेनई ने अपनी पार्टी को खत्म करने का एलान किया।
1881 में हुआ जनलेवा हमला
1980 में पहली बार अली खामेनई ने संसदीय चुनाव लड़ा और तेहरान सीट से चुनाव जीते। 18 जनवरी 1980 को अली खामेनई ने पहली बार तेहरान में जुमे की नमाज पढ़ाई। 27 जून 1981 में तेहरान की अबूजर मस्जिद में अली खामेनई पर जानलेवा हमला किया गया।
न्यूज कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते वक्त खामेनई के पास रखे टेप रिकॉर्डर में जोरधार धमाका हुआ था। इस हमले में वह बाल-बाल बच तो गए लेकिन उनका दायां हाथ पैरालाइज हो गया और एक कान से कम सुनाई देना लगा। हमले का आरोप मुजाहिदीन-ए-खल्क (MEK) पर लगाया गया। इस संगठन की खामेनई से नहीं बनती है। दअसल, यह संगठन ईरान में इस्लामी शासन के खिलाफ था।
जंग का पुराना अनुभव
अली खामेनई को जंग का पुराना अनुभव है। 1980 में जब ईरान और इराक के बीच जंग छिड़ी तो खामेनई मोर्चे पर तैनात रहते थे। खामेनई को जंग का कितना अनुभव है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह 8 साल राष्ट्रपति रहे। इनमें से सात साल जंग में ही बीते। साल 1989 में अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी की मौत के बाद अली खामेनेई को ईरान का सुप्रीम लीडर बनाया गया। तब से वह इस पद पर हैं।
खामेनई के परिवार में ही कलह
अली खामेनई की दु्श्मनी न केवल इजरायल और अमेरिका से है बल्कि उनके रिश्तेदार भी उनकी शासन व्यवस्था की खिलाफत करते हैं। खामेनई की बहन भी उनकी आलोचक हैं। खामेनई के पिता की पहली पत्नी से तीन बेटियां थीं। सभी की मौत हो चुकी है। दूसरी पत्नी से मोहम्मद, अली खामेनई, बद्री, हादी और हसन का जन्म हुआ। हसन को छोड़कर अली खामेनई के सभी भाई मौलवी हैं। हसन ईरान के तेल और संस्कृति मंत्रालय में काम कर चुके हैं।
भाई मोहम्मद दक्षिणपंथी
अली खामेनई और भाई मोहम्मद खामेनेई के बीच नहीं पटती है। मोहम्मद को दक्षिणपंथी माना जाता है। 1981 में मीर हुसैन मुसावी के प्रधानमंत्री बनने के खिलाफ मोहम्मद ने मतदान किया था। उनको 98 अन्य सांसदों का साथ मिला था। सात सांसदों को साथ मोहम्मद ने एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने ईरान के विदेश मंत्री अली अकबर वेलयाती को संसद में पेश करने और 1986 में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट मैकफारलेन की तेहरान यात्रा से जुड़े सवालों के जवाब मांगे थे।
भाई हादी खामेनई भी आलोचक
अली खामेनई के भाई हादी खामेनई भी उनके आलोचक हैं। हादी को वामपंथी आंदोलन का सदस्य माना जाता है। वह अली खामेनई के विरोधी हैं। जहान इस्लाम और हयात नो नाम से उन्होंने समाचार पत्रों का प्रकाशन किया। मगर बाद में इन पर भाई अली खामेनई ने प्रतिबंध लगा दिया। जब मोहम्मद खातमी ईरान के राष्ट्रपति थे तब हादी पर सेना ने कई बार सादे कपड़ों में हमला भी किया। 2009 के राष्ट्रपति चुनाव में हादी ने मीर हुसैन मौसवी का समर्थक किया था।
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बहन बद्री से नहीं बनती
1980 के दशक में अली खामेनई की बहन बद्री खामेनई और उनके पति शेख अली तेहरानी उनकी सरकार की आलोचना रहीं। बाद में तहरानी को इराक भागना पड़ा था। 1995 में ईरान लौटने पर बद्री के पति को 20 साल की सजा सुनाई गई। हालांकि 10 साल बाद रिहा कर दिया गया। साल 2022 में तेहरानी की मौत हो चुकी है। बद्री ईरान में भाई खामेनई के निरकुंश शासन की आलोचना करती हैं। उन्होंने कई बार खुले पत्र भी लिखे। ईरान में विरोध प्रदर्शनों के दमन की निंदा करती हैं। वह इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स यानी आईआरजीसी के भी खिलाफ हैं।
ननिहाल भी पक्ष में नहीं
अली खामेनई की मां खदीजा मिरदामादी का संबंध ईरान के मिरदामादी परिवार से है। वह अयातुल्ला हाशेम नजफाबादी मिरदामादी की बेटी थीं। यह परिवार भी अली खामेनई के शासन की खिलाफत करता है। अली खामेनई के मामा हुसैन मिरदामादी धर्मशास्त्र के प्रोफेसर रह चुके हैं। 2009 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने अली खामेनई के खिलाफ कई पत्र लिखे। साल 2014 में हुसैन के पत्रकार बेटे सिराजुद्दीन मिरदामादी को गिरफ्तार कर लिया गया। ईरान की सरकार ने उन्हें छह साल की सजा सुनाई। पांच साल तक पत्रकारिता करने पर रोक लगा दी। 2009 में खामेनई के एक और मामा को ईरान छोड़ना पड़ा। वह अब ब्रिटेन में रहते हैं।