ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली ख़ामेनई ने इजरायल के साथ-साथ अमेरिका और पश्चिमी देशों का सिरदर्द बढ़ा दिया है। अमेरिका और इजरायल का मानना है कि ईरान परमाणु बम बनाने के करीब पहुंच गया है। इनका कहना है कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं हो सकते।
ईरान को न्यूक्लियर पावर बनने से रोकने के लिए इजरायल ने उस पर हमला कर दिया है। पांच दिन से इजरायल और ईरान के बीच जंग चल रही है। दोनों तरफ से मिसाइलें दागी जा रहीं हैं। ऐसा भी माना जा रहा है कि आयतुल्लाह अली ख़ामेनई का तख्तापलट करने की कोशिश भी की जा रही है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक इंटरव्यू में कहा कि ख़ामेनई की हत्या से ही संघर्ष खत्म होगा।
ईरान में सबकुछ आयतुल्लाह अली खामनेई ही हैं। आयतुल्लाह अली ख़ामेनई 1989 से ईरान के सुप्रीम लीडर हैं। शिया मुल्क ईरान में आयतुल्लाह सबसे बड़ी पदवी होती है। आयतुल्लाह अली ख़ामेनई से पहले ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी थे। रुहोल्लाह खुमैनी ही थे, जिन्होंने ईरान को रातोरात बदल डाला था। रुहोल्लाह खुमैनी ने ही ईरान में इस्लामिक क्रांति की थी। इस इस्लामिक क्रांति ने ही शाह के शासन का तख्तापलट कर दिया था।
इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि ईरान में इस्लामिक क्रांति करने वाले रुहोल्लाह खुमैनी का कनेक्शन भारत के उत्तर प्रदेश से रहा है। उनके दादा सैयद अहमद मूसवी 'हिंदी' का जन्म यहीं हुआ था, जो बाद में ईरान चले गए थे।
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बाराबंकी के इस गांव में हुआ था जन्म
सैयद अहमद मूसवी 'हिंदी' का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किंतूर गांव में हुआ था। यह लखनऊ से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। उनका जन्म 1790 में हुआ था। अहमद मूसवी अपने नाम के साथ हमेशा 'हिंदी' लगाते थे।
रिपोर्ट के मुताबिक, अहमद मूसवी के पिता दीन अली शाह 18वीं सदी की शुरुआत में ईरान से ही बाराबंकी आए थे।
बाराबंकी से ईरान तक का सफर
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अहमद मूसवी जब 40 की उम्र के थे, तब अवध के नवाब के साथ धार्मिक यात्रा पर इराक गए थे। यहां से ईरान पहुंचे और यहां आकर खुमैन नाम के गांव में बस गए। यहां आने के बाद भी अहमद मूसवी ने 'हिंदी' शब्द का इस्तेमाल जारी रखा।
खोमैन आकर अहमद मूसवी ने यहां घर खरीदा और अपना परिवार बसाया। उन्होंने यहीं की एक महिला से शादी की, जिनसे उन्हें 5 बच्चे हुए। उनके बेटे मुस्तफा ही रुहोल्लाह खुमैनी के पिता हैं। रुहोल्लाह का जन्म 1902 में हुआ था, तब ईरान में कजर राजवंश का शासन था।
1869 में अहमद मूसवी का इंतकाल हो गया। अहमद मूसवी को कर्बला में दफनाया गया था। उन्होंने जीवनभर अपने नाम के साथ 'हिंदी' शब्द का इस्तेमाल जारी रखा। रुहोल्लाह खुमैनी की कई गजलों और कविताओं का टाइटल भी 'हिंद' हुआ करता था। जब रुहोल्लाह 5 साल के थे, तब उनके पिता मुस्तफा की हत्या कर दी गई।
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रुहोल्लाह ख़ामेनई का ईरान में उभार
पिता की हत्या के बाद रुहोल्लाह खुमैनी को उनकी मां और मौसी ने पाला। रुहोल्लाह जब 15 साल के थे, तब उनकी मां और मौसी दोनों की मौत हो गई। 6 साल की उम्र से ही रुहोल्लाह ने कुरान पढ़ना शुरू किया था। मां और मौसी की मौत के बाद रुहोल्लाह को उनके बड़े भाई ने पाला। बचपन से ही रुहोल्लाह का धर्म से लगाव था। मुल्ला अब्दुल कासिम और शेख जाफर से उन्हें इस्लामी शिक्षा मिली।
जब रुहोल्लाह 18 साल के हुए तो इस्फहान के एक मदरसे में उनकी पढ़ाई की व्यवस्था की गई। हालांकि, उन्होंने अराक के मदरसे में पढ़ाई की। यहां आयतुल्लाह शेख अब्दुल करीब हैरी येज्दी से इस्लामी शिक्षा ली और इमाम बने। उन्होंने शरिया की पढ़ाई की और कई किताबें भी लिखीं।
शुरुआत में रुहोल्लाह की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। हालांकि, बाद में मौलवियों के साथ ने रुहोल्लाह को राजनीति की तरफ बढ़ाया। 1940 के दशक में रुहोल्लाह पहले ईरानी मौलवी थे, जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता का खुलकर विरोध किया। उन्होंने 'कशफ-ए असरार' नाम से एक किताब लिखी, जिसमें इस्लाम और शरिया को लेकर काफी कुछ लिखा गया था।
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रुहोल्लाह खुमैनी और इस्लामिक क्रांति
जब रेजा शाह पहलवी का शासन था तो उन्होंने कई सारे बदलाव किए, ताकि ईरान को पश्चिमी मुल्कों की तरह प्रोग्रेसिव बनाया जा सके। शाह पहलवी पश्चिमी सभ्यता की वकालत करते थे। 1963 में रेजा शाह पहलवी ने ईरान की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए व्हाइट रिवॉल्यूशन की शुरुआत की। आर्थिक और सामाजिक सुधार के लिहाज से यह काफी क्रांतिकारी कदम था। हालांकि, यह ईरान को पश्चिमी सभ्यता के करीब ले जा रहा था, इसलिए इसका विरोध भी हुआ।
ईरान में बढ़ते आंदोलन के चलते रेजा शाह पहलवी ने रुहोल्लाह खुमैनी को देश निकाला दे दिया। रुहोल्लाह करीब 14 साल तक पेरिस में रहे। सितंबर 1978 तक आते-आते जनता का गुस्सा फूट पड़ा। शाह के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई। इनका समर्थन किया मौलवियों ने। इन मौलवियों को फ्रांस में बैठे आयतुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी से कमान मिल रही थी। देखते ही देखते ईरान में गृह युद्ध के हालात बन गए। हालात संभलने के लिए देश में मार्शल लॉ लगा दिया गया।
जनवरी 1979 आते-आते ईरान में आंदोलन और भड़क उठा। जनता ने खुमैनी की वापसी की मांग शुरू कर दी। जनता की आवाज दबाने के लिए सेना ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चला दीं। हालात बेकाबू होने के बाद 16 जनवरी 1979 को रेजा पहलवी अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए। ईरान छोड़ने से पहले रेजा पहलवी ने विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री बना दिया।
मार्च 1979 में ईरान में जनमत संग्रह हुआ। इसमें 98 फीसदी से ज्यादा लोगों ने ईरान को इस्लामिक रिपब्लिक बनाने के पक्ष में वोट दिया। इसके बाद ईरान का नाम 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान' हो गया। ख़ामेनई के आने के बाद नए संविधान पर काम शुरू हुआ। नया संविधान इस्लाम और शरिया पर आधारित था। लाख विरोध के बावजूद 1979 के आखिर में नए संविधान को अपना लिया गया। नए संविधान के बाद ईरान में शरिया कानून लागू हो गया।
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रुहोल्लाह बने सुप्रीम लीडर
इस्लामिक क्रांति ने ईरान को पूरी तरह बदल दिया। ईरानियों के लिए यह पूरी तरह से एक अलग ही दुनिया थी। 16 जनवरी 1979 को रेजा शाह पहलवी अमेरिका भाग गए। इसके दो हफ्ते बाद रुहोल्लाह पेरिस से ईरान लौटकर आए।
ईरान वापसी के दौरान जब रुहोल्लाह विमान में थे, तब एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा- 'आप कैसा महसूस कर रहे हैं?' जवाब देते हुए रुहोल्लाह ने कहा 'कुछ भी नहीं'।
वापसी के बाद एक जनसभा को संबोधित करते हुए रुहोल्लाह खुमैनी ने शापोर बख्तियार की सरकार को लेकर कहा, 'मैं उनके दांत खट्टे कर दूंगा।' उन्होंने वादा किया कि एक ऐसी सरकार बनेगी जिसमें ईरानियों के चुने हुए लोग होंगे। रुहोल्लाह ख़ामेनई ने मेहदी बाजारगान को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। अब देश में दो-दो प्रधानमंत्री हो गए थे। धीरे-धीरे सेना से लेकर हर कोई रुहोल्लाह के आगे झुकता गया और ईरान में रुहोल्लाह ख़ामेनई ही सुप्रीम लीडर बन गए।
3 जून 1989 को रुहोल्लाह ख़ामेनई का इंतकाल हो गया। रुहोल्लाह जब तक जिंदा रहे, तब तक ईरान के सुप्रीम लीडर रहे। उनकी मौत के बाद 4 जून को आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनई को अगला सुप्रीम लीडर चुना गया।