आमतौर पर किसी भी देश में एक ही सेना होती है, जिसका काम देश की सुरक्षा करना होता है। मगर ईरान में ऐसा नहीं है। ईरान में एक और सेना है, जिसे इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) कहा जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसका काम देश की सुरक्षा करने से ज्यादा इस्लाम की सुरक्षा करना है। इसका मकसद इस्लामिक क्रांत को बचाए रखना है। 


साल 1979 में ईरान में जब इस्लामिक क्रांति हुई, तब IRGC को बनाया गया था। उस जमाने में और आज भी कई लोग हैं, जो इस्लामिक क्रांति का विरोध करते आ रहे हैं और कर रहे हैं, IRGC का काम इन्हीं विरोध को खत्म करना है। शुरुआत में यह एक छोटा सैन्य गुट हुआ करता था लेकिन आज ईरान में सबसे ताकतवर IRGC ही है। यह ईरान की सेना से बिल्कुल अलग है। 


ईरान की जो रेगुलर सेना है, वह राष्ट्रपति को रिपोर्ट करती है लेकिन IRGC सीधे सुप्रीम लीडर के प्रति जवाबदेह होती है। यह ईरान की स्पेशल फोर्स है। इसे ऐसे समझ लीजिए कि जब किसी देश में हालात बिगड़ते हैं तो सेना को उतारना हमेशा आखिरी विकल्प होता है। हालांकि, ईरान में जब इस तरह का कुछ होता है तो IRGC को ग्राउंड पर उतारा जाता है। IRGC ईरान की सेना है लेकिन कई देशों ने इसे आतंकी संगठन घोषित किया है। 

 

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1979 की क्रांति और IRGC

1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई। इसने ईरान को रातोरात बदल कर रख दिया। पहले ईरान पश्चिमी देशों की तरह आजाद ख्यालों वाला हुआ करता था लेकिन इस्लामिक क्रांति ने इसे मजहबी जंजीर में जकड़ दिया। इस क्रांति के बाद जब अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी सुप्रीम लीडर बने तो उन्होंने इस्लामिक सिस्टम की रक्षा करने के लिए IRGC बनाई, क्योंकि उन्हें अपनी सेना पर भरोसा नहीं था।


आज IRGC सबसे ताकतवर है और यह सीधे सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई को रिपोर्ट करती है। इसके पास ही ईरान की ताकतवर बैलिस्टिक मिसाइलों का जिम्मा भी है। 

 

लेकिन इसे बनाया क्यों गया?

इस्लामिक क्रांति के तुरंत बाद ही IRGC को बनाया गया था। इसे 'पीपुल्स आर्मी' और 'सिपाह-ए-पासदरन' भी कहा जाता है। IRGC में कोई सैनिक या पारंपरिक लड़ाके नहीं थे, बल्कि वे लोग थे जो इस्लामिक शासन चाहते थे। यह पारंपरिक सेना नहीं है, बल्कि एक वैकल्पिक फोर्स है।


इस्लामिक क्रांति के बाद अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी और मौलवियों ने मिलकर IRGC को बनाया था, ताकि इस्लामिक सिस्टम को बचाया जा सके।


इसे बनाते समय रुहोल्लाह खुमैनी का इरादा था कि IRGC नई सरकार का तख्तापलट होने से बचाए। क्योंकि इससे पहले 1953 में मोहम्मद मोसद्दिक की सरकार का तख्तापलट हो चुका था और उनकी जगह दोबारा रेजा शाह पहलवी को शासन मिल गया था।

 

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IRGC कैसे बनी इतनी ताकतवर?

जब IRGC को बनाया गया था तो इसे ईरान की पारंपरिक सेना के विकल्प के तौर पर देखा गया था। हालांकि, इस्लामिक क्रांति के बाद अगले ही साल ईरान और इराक का युद्ध शुरू हो गया। आठ साल तक चली इस जंग ने IRGC को ईरान की सेना के बराबर लाकर खड़ा कर दिया।


IRGC के पास अपनी आर्मी, नेवी और एयरफोर्स है। यह 'बासिज' को भी कमांड करती है, जो कट्टरपंथी लड़ाकों का गुट है। ईरान-इराक युद्ध में IRGC ने बासिज का बखूबी इस्तेमाल किया था। कई जानकारों का मानना है कि अकेले बासिज में 10 लाख से ज्यादा लड़ाके हैं।


आज IRGC सबसे ताकतवर है। IRGC के पूर्व कमांडर ईरानी सरकार से लेकर संसद तक ताकतवर पदों पर बैठे हैं। ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी IRGC की देखरेख में ही चलता है। आज यह इतनी ताकतवर है कि अगर ईरान भविष्य में परमाणु हथियार बना लेता है तो यह IRGC के पास ही जाएंगे। यानी कि ईरानी सेना को परमाणु हथियार शायद न मिलें लेकिन IRGC पर इनका पूरा कंट्रोल रहेगा।

 

 

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IRGC के पास क्या-क्या है?

  • आर्मीः इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटजिक स्टडीज (IISS) के मुताबिक, IRGC की आर्मी में 1.50 लाख से ज्यादा सैनिक हैं। हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स में इनकी संख्या 1.90 लाख से ज्यादा भी बताई जाती है।
  • नेवीः IRGC की नेवी में 20 हजार से ज्यादा नौसैनिक हैं। यह फारस की खाड़ी और स्ट्रेट ऑफ होरमुज की सुरक्षा करती है। IRGC की नेवी पर तस्करी का आरोप भी लगता रहा है।
  • एयरफोर्सः बैलिस्टिक मिसाइल और ड्रोन पर IRGC की एयरफोर्स का ही कंट्रोल है। इसमें शहाब-3 जैसी मिसाइलें भी हैं, जिसकी रेंज 2,100 किलोमीटर है। इसमें 15 हजार सैनिक हैं। 
  • कुद्स फोर्सः 1980 के दशक में IRGC ने कुद्स फोर्स को बनाया था। यह विदेशी ऑपरेशन विंग है। हमास और हिज्बुल्लाह जैसे ईरान के कथित प्रॉक्सी को भी कुद्स फोर्स समर्थन करती है।
  • बासिज फोर्सः इसे भी इस्लामिक क्रांति के बाद बनाया गया था। अनुमान है कि इसमें 10 से 15 लाख लड़ाके हैं। यह ईरान की आंतरिक सुरक्षा को संभालने का काम भी करती है।
  • थार-अल्लाह हेडक्वार्टरः ईरान में IRGC ने थार-अल्लाह हेडक्वार्टर बनाया था। इसका मकसद तेहरान और उसके आसपास के इलाकों की सुरक्षा करना है। 

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IRGC का काम क्या है?

सेना का ऐसा कोई काम नहीं है, जिसे IRGC नहीं कर सकती। इसे यूं कह लीजिए कि ईरान की पारंपरिक सेना के पास इतनी ताकत नहीं है, जितनी IRGC के पास है। 


माना जाता है कि ईरान अगर कोई भी मिलिट्री ऑपरेशन करता है तो यह IRGC की देखरेख में ही होता है। इसमें ईरान की पारपंरिक सेना का कुछ खास रोल नहीं होता। IRGC की ग्राउंड फोर्स यानी आर्मी ईरान के 31 प्रांतों में एक्टिव है। 


IRGC की पैरामिलिट्री विंग बासिज फोर्स ईरान की आंतरिक सुरक्षा को संभालती है। ईरान में अगर कुछ भी विरोध प्रदर्शन होता है या दंगे भड़कते हैं तो उसे बासिज फोर्स से ही कुचला जाता है। 


IRGC की सबसे ताकतवर फोर्स 'कुद्स फोर्स' को माना जाता है। यह विदेशों में IRGC के ऑपरेशन को अंजाम देती है। ईरान पर आरोप लगते रहे हैं कि मध्य पूर्व में वह अपने प्रॉक्सी के जरिए अस्थिरता का माहौल बनाता रहता है। गाजा में हमास, लेबनान में हिज्बुल्लाह और यमन के हूती विद्रोहियों को भी समर्थन करने का आरोप ईरान पर लगता है। माना जाता है कि यह सारा काम कुद्स फोर्स ही संभालती है। कुद्स फोर्स ही इन लड़ाकों को ट्रेनिंग और हथियार मुहैयार कराती है।

 

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अर्थव्यवस्था में भी दखल

ईरान के राजनीतिक और धार्मिक मामलों में ही IRGC का दखल नहीं है, बल्कि यहां की अर्थव्यवस्था में भी इसकी अच्छी-खासी पैठ है। आज ईरान की अर्थव्यवस्था पर IRGC का अच्छा-खासा कंट्रोल है।


2020 में आई सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (CSIS) की रिपोर्ट बताती है कि आज IRGC ईरान के सभी इकोनॉमिक सेक्टर में काफी ज्यादा कंट्रोल रखती है। ईरान की अर्थव्यवस्था में IRGC का दखल तब शुरू हुआ, जब 1980 के दशक में इराक युद्ध के बाद ईरान में इन्फ्रास्ट्रक्चर को फिर से बनाने का काम इसे सौंपा गया। तब से IRGC ने बैंकिंग, शिपिंग, मैनुफैक्चरिंग और इम्पोर्ट में अपना कंट्रोल बढ़ाया है। IRGC से जुड़ी तेल कंपनियों को सरकारी टेंडरों में बिना बोली लगाए ही कॉन्ट्रैक्ट मिल जाता है।


अर्थव्यवस्था में इतना दखल होने के कारण ही IRGC आज न सिर्फ सबसे ताकतवर बल्कि सबसे समृद्ध सेना भी बन गई है। काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशन (CFR) के मुताबिक, इनसे कमाए पैसों से ही IRGC हथियार खरीदती है, विदेशों में ऑपरेशन को अंजाम देती है और ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी चलाती है। इसके अलावा, युद्ध या किसी संघर्ष की स्थिति में मारे गए कमांडरों के परिवारों को भी IRGC आर्थिक मदद देती है।


रिपोर्ट्स बताती हैं कि IRGC बड़े पैमाने पर ब्लैक मार्केटिंग भी होती है। जानकारों का मानना है कि अमेरिकी प्रतिबंधों ने IRGC को बड़ा फायदा पहुंचाया है। अमेरिकी प्रतिबंधों ने ईरान के कारोबार पर असर डाला, जिसने IRGC को ब्लैक मार्केट में पैठ बढ़ाने में मदद की। ऐसा बताया जाता है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद IRGC ने तेल की तस्करी की, जिससे उसे लाखों डॉलर का मुनाफा हुआ।