बलूचिस्तान में वह हुआ है, जिसके बारे में शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के लड़ाकों ने मंगलवार को क्वेटा से पेशावर जा रही 'जाफर एक्सप्रेस' को हाईजैक कर लिया।
ट्रेन में करीब 500 यात्री सवार थे। कइयों को रिहा किया जा चुका है तो कइयों को छुड़ा लिया गया है। हालांकि, अब भी 200 से ज्यादा यात्री बंधक हैं। इनमें से कई पाकिस्तानी सरकार और सेना के कर्मचारी भी हैं। BLA ने धमकी दी है कि अगर कोई सैन्य कार्रवाई होती है तो बंधकों की हत्या कर दी जाएगी।
BLA की तीन बड़ी मांगें हैं। पहली- पाकिस्तान की जेलों में बंद बलूचों को रिहा किया जाए। दूसरी- बलूचिस्तान से पाकिस्तानी सरकार या सुरक्षा एजेंसी के नुमांइदे वापस जाएं। और तीसरी- चीन के CPEC प्रोजेक्ट को बंद किया जाए।
लगभग 3.5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। यह पूरा इलाका कोयला और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, बावजूद इसके यह सबसे पिछड़ा है। बलूचिस्तान में BLA और पाकिस्तानी सेना के बीच आए दिन टकराव होता रहा है। मगर इस टकराव की जड़ क्या है? इसे समझने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना होगा।
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जिन्ना ने की थी आजादी की वकालत!
बंटवारे के वक्त बलूचिस्तान में 4 रियासतें- कलात, खारान, लॉस बुला और मकरान हुआ करती थीं। इनके पास तीन विकल्प थे। पहला- पाकिस्तान के साथ जाना। दूसरा- भारत में आ जाना। और तीसरा- आजाद रहना। तीन रियासतों- खारान, लॉस बुला और मकरान ने पाकिस्तान में जाने का विकल्प चुना।
हालांकि, कलात के उस वक्त के 'खान' मीर अहमद यार खान ने आजादी का रास्ता चुना। दरअसल, 1876 की एक संधि ने कलात को कुछ विशेषाधिकार दे दिए थे। इसलिए कलात पर पाकिस्तान या भारत में से किसी एक को चुनने का दबाव नहीं बनाया जा सकता था।
4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक हुई। इस बैठक में कलात के खान मीर अहमद, मोहम्मद अली जिन्ना और जवाहरलाल नेहरू मौजूद थे। इस बैठक में जिन्ना ने कलात के आजाद रहने के फैसले का समर्थन किया। बैठक में सहमति बनी कि 5 अगस्त 1947 को कलात आजाद हो जाएगा। इसके साथ ही इसमें खारान, लॉस बुला और मकरान का भी विलय किया जाएगा, ताकि एक पूर्ण बलूचिस्तान बनाया जा सके। यह सबकुछ जिन्ना की सहमति से हो रहा था।
11 अगस्त 1947 को कलात और मुस्लिम लीग के बीच एक संधि हुई। इसके तहत कलात को एक आजाद मुल्क के तौर पर मान्यता मिली। 15 अगस्त 1947 को कलात ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी।
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और जिन्ना ने घोंपा पीठ पर छुरा!
कलाक के खान मीर अहमद और जिन्ना के बीच अच्छी दोस्ती थी। मीर अहमद को उम्मीद थी कि जिन्ना से दोस्ती की बदौलत उन्हें वह सारे इलाके भी मिल जाएंगे, जिनपर ब्रिटेन ने कब्जा कर लिया था। हालांकि, मीर अहमद की यह उम्मीद जल्द ही टूट गई।
अक्टूबर 1947 में मीर अहमद जब कराची आए तो उनका स्वागत 'बलूचिस्तान के राजा' के तौर पर हुआ। हालांकि, परंपरा के अनुसार उनकी अगवानी में न तो गवर्नर जनरल पहुंचे और न ही प्रधानमंत्री।
ताज मोहम्मद अपनी किताब 'बलूच नेशनलिज्मः इट्स ओरिजन एंड डेवलपमेंट अपटू 1980' में बताते हैं कि अक्टूबर 1947 में हुई बैठक में जिन्ना ने मीर अहमद को पाकिस्तान में शामिल होने को कहा था। हालांकि, खान ने इसे नहीं माना था।
इसके बाद खान पर पाकिस्तान में शामिल होने का दबाव बढ़ता जा रहा था। मीर अहमद ने अपने कमांडर इन चीफ को हथियार और गोला-बारूद जमा करने को कहा था। हालांकि, कहीं से भी कोई मदद नहीं मिल रही थी।
इस बीच 18 मार्च 1948 को जिन्ना ने खारान, लॉस बेला और मकरान के अलग होने की घोषणा कर दी। यह सब पाकिस्तान का हिस्सा बन गए। इससे मीर अहमद और कलात अकेले पड़ गए।
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क्या भारत में शामिल होना चाहते थे खान?
कलात के खान मीर अहमद अकेले पड़ गए थे और उनके पास कोई रास्ता बचा नहीं था। 26 मार्च 1948 को पाकिस्तान की सेना ने कलात को घेर लिया था।
ऐसा कहा जाता है कि पाकिस्तानी सेना कलात के खान को अगवा कर कराची ले गई थी। यहां उनसे जबरदस्ती में पाकिस्तान में विलय के दस्तावेज पर दस्तखत करवाए गए। इसके साथ ही कलात भी पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। बलूचिस्तान की आजादी मात्र 226 दिन की रही।
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फिर शुरू हुई आजादी की लड़ाई
जिन्ना ने जबरदस्ती और धोखे से बलूचिस्तान को हड़पा था। नतीजा यह हुआ कि विलय के दस्तावेज पर दस्तखत होने के साथ ही बलूचिस्तान की आजादी की जंग भी शुरू हो गई।
1948 में ही मीर अहमद के भाई प्रिंस अब्दुल करीम की अगुवाई में विद्रोह शुरू हुआ। पाकिस्तानी सेना ने इसे दबा दिया और प्रिंस करीम को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद 1958, 1962 और 1973-77 में भी विद्रोह हुआ और हर पाकिस्तानी सेना ने इसे कुचल दिया।
2005 में बलूच आंदोलन ने तब और जोर पकड़ा, जब बलूचिस्तान के पूर्व गवर्नर नवाब अकबर खान बुगती ने पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ हथियार उठा लिए। इससे पहले ही साल 2000 में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) का गठन हुआ था और आंदोलन तेज हो गया।
बलूचिस्तान में आज के वक्त कई संगठन हैं, जो आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार इन्हें आतंकी संगठन बताती है।
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर प्रांत है। यहां 590 करोड़ टन का खनिज भंडार है। अनुमान है कि अकेले बलूचिस्तान में 40 करोड़ टन सोना छिपा है। इसके अलावा कोयला और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधन भी यहां मौजूद हैं। बावजूद इसके बलूचिस्तान काफी पिछड़ा प्रांत हैं।