महंगाई कोई हमारे देश में ही नहीं बढ़ रही है, बल्कि यह पुरी दुनिया के लोगों की समस्या हो गई है। बढ़ने वाली महंगाई के लिए देश की सरकारें तो जिम्मेदार होती ही हैं लेकिन अब महंगाई बढ़ाने में आम लोगों के साथ-साथ प्रकृति का भी हाथ है। हम यह कोई मनगढ़ंग बात नहीं बोल रहे हैं, बल्कि यूरोपीयन सेंट्रल बैंक के साथ छह यूरोपीय रिसर्च संगठन बोल रहे हैं। ऐसे में दुनियाभर में बढ़ने वाली महंगाई को लेकर जब परेशान हुए हैं तो अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इसके पीछे की वजह ढूंढने की कोशिश की है। रिसर्च में ऐसा खुलासा हुआ है कि इससे कोई भी अछूता नहीं रह पाएगा।
दरअसल, यूरोपीयन सेंट्रल बैंक के साथ छह यूरोपीय रिसर्च संगठनों ने एक शोध प्रकाशित किया है। यह शोध संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के सामने इसी महीने जारी किया जाएगा। अब यह शोध United Nations Food Systems Summit में सामने रखा जाएगा। यह समिट 27 से 29 जुलाई तक इथियोपिया के अदीस अबाबा आयोजित किया जाएगा। समिट का आयोजन इथियोपिया और इटली संयुक्त रूप से कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि इस शोध में क्या निकलकर सामने आया है...
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जलवायु परिवर्तन क्या कर रहा है?
अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की इस टीम ने सोमवार को इस शोध को जारी किया है। इसमें सामने आया है कि दक्षिण कोरिया की पत्तागोभी, ऑस्ट्रेलिया का सलाद पत्ता, जापान का चावल, ब्राजील की कॉफी और घाना का कोकोआ, भारत का आलू उन खाने वाले पदार्थों में शामिल है जिनकी कीमतें साल 2022 के बाद बेतहाशा बढ़ी हैं। इस बेतहाशा महंगाई के पीछे और कुछ नहीं बल्कि चरम पर पहुंच चुका जलवायु परिवर्तन है।
घाना-आइवरी कोस्ट में भीषण गर्मी
शोध में बताया गया है कि घाना और आइवरी कोस्ट में भीषण गर्मी के बाद कोकोआ की बहुत कम पैदावार हुई। इसका असर ये रहा कि अप्रैल 2024 में वैश्विक कोकोआ की कीमतों में 280 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। वहीं, 2022 में ऑस्ट्रेलिया में आई बाढ़ के बाद लेट्यूस (सलाद का पत्ता) की कीमतों में 300 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। शोध में देखा गया है कि ज्यादातर मामलों में खाद्य पदार्थों की कीमतों में हुई बढ़ोतरी भीषण गर्मी के तुरंत बाद हुई है। इसमें बताया गया- सितंबर 2024 में दक्षिण कोरिया में गोभी की कीमतों में 70 फीसदी, सितंबर 2024 में जापान में चावल की कीमतों में 48 फीसदी और 2024 की शुरुआत में भारत में आलू की कीमतों में 81 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
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इसके अलावा शोध में बताया गया है कि अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में हुई बढ़ोतरी सूखा पड़ने की वजह से हुई है। जैसे- ब्राजील में 2023 में बारिश ना होने की वजह से भीषण सूखा पड़ा, जिसके बाद अगले ही साल दुनियाभर में कॉफी की कीमतों में 55 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई। वहीं, इथियोपिया में 2022 में पड़े सूखे की वजह से वहां सभी खाने वाली चीजों की कीमतों में 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
बार्सिलोना सुपरकंप्यूटिंग सेंटर की तरफ से रिपोर्ट जारी करने वाले लेखक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ ने अपने शोध के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जब तक हम शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक नहीं पहुंच जाते, तब तक चरम मौसम और भी बदतर होता चला जाएगा। उन्होंने कहा कि लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़ और सूखा पहले से ही फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है और दुनिया भर में खाद्य पदार्थों की कीमतों को बढ़ा रहा है।
गर्मी के आगे भी दुनिया
कोट्ज़ ने आगे कहा, 'लोग इस बात को सबसे पहले प्रमुखता से देख रहे है कि जलवायु प्रभावों की वजह से गर्मी बढ़ रही है, जबकि लोग खाने वाली चीजें की बढ़ रही हैं कीमतें को दूसरे नंबर पर रख रहे हैं।' उन्होंने यह भी बताया कि जब खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ती हैं तो सबसे पहले कम आय वाले परिवार सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
चुनावों में महंगाई प्रमुख मुद्दा
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब हाल के सालों में दुनिया भर में होने वाले चुनावों में महंगाई एक प्रमुख मुद्दा है। महंगाई ही एक ऐसी चीज है जो सीधे तौर पर वोटरों के जीवन को प्रभावित करती है। जापान में पिछले हफ्ते चुनाव हुए। जब वोटर बूथ पर मतदान करने के लिए गए तो उनके दिमाग में चावल की बढ़ी हुई कीमतें थीं। 2024 में अमेरिका और इंग्लैंड और 2023 में अर्जेंटीना में संपन्न हुए चुनावों में भी लोगों ने महंगाई को लेकर वोट किया। इन देशों में वोटरों के लिए मंहगाई सबसे बड़े मुद्दों में से एक था।
शोक की को-राइटर में से एक ऊर्जा और जलवायु खुफिया यूनिट की एम्बर सॉयर ने बताया कि इंग्लैंड में जलवायु परिवर्तन की वजह से 2022-2023 के बीच खाने वाली चीजों के दाम में हर महीने 482 डॉलर की बढ़ोतरी हुई। उन्होंने आगे कहा कि पिछले साल ब्रिटेन और इंग्लैंड में भारी बारिश की वजह से फसलों को काफी नुकसान पहुंचा था।
बता दें कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत, दुनियाभर की सरकारों ने 2019 से 2030 तक जलवायु संकट को बढ़ावा देने वाले वैश्विक उत्सर्जन में 2.6 फीदसी की कटौती करने की प्रतिबद्धता जताई है।
