बंटवारे के बाद पहली बार पाकिस्तान में संस्कृत भाषा पढ़ाई जाएगी। पंजाब के प्रांत के दो विश्वविद्यालय में इसका अध्ययन कराने का निर्णय लिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संस्कृत पाठ्यक्रम शुरू करने वाले इन शिक्षण संस्थान में एक सरकारी और दूसरा प्राइवेट विश्वविद्यालय है। फिलहाल संस्कृत में तीन महीने का कोर्स संचालित किया जा रहा है। आने वाले समय में महाभारत और गीता को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने की तैयारी है। दोनों विश्वविद्यालयों ने संस्कृत पाठ्यक्रम में दाखिला प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
पाकिस्तान ने संस्कृत भाषा को अपनी साझा विरासत बताया और इसी का हवाला देकर लाहौर के सरकारी पंजाब विश्वविद्यालय और प्राइवेट लाहौर प्रबंधन विज्ञान विश्वविद्यालय (एलयूएमएस) में संस्कृत पाठ्यक्रम की शुरुआत की। अभी पंजाब विश्वविद्यालय में तीन और एलयूएमएस में आठ छात्र संस्कृत का अध्ययन कर रहे हैं।
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पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि अभी विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा में एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी करवाया जा रहा है। इसमें 10 छात्र हैं। 2010 के बाद यहां ग्रीक, लैटिन और हिब्रू भाषा को पढ़ाना शुरू किया गया। उनके मुताबिक पंजाब विश्वविद्यालय में अभी 12 विदेशी भाषाओं को पढ़ाया जा रहा है। इनमें से एक हिंदी का अध्यापन 1947 से किया जा रहा है।
प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार के मुताबिक सबसे पहले लाहौर प्रबंधन विज्ञान विश्वविद्यालय ने प्रथम और द्वितीय कोर्स की शुरुआत की। इसके बाद पंजाब विश्वविद्यालय ने संस्कृत कोर्स लाॉन्च किया। उनका कहना है कि मौजूदा कोर्स सिर्फ संस्कृत का बुनियाद ज्ञान कराता है। अगर अच्छी पकड़ बनानी है तो कम से कम तीन साल का समय देना होगा। एक छात्र को सात स्तर से गुजरने के बाद ही संस्कृत का अच्छा खासा ज्ञान होगा। उनका कहना है कि अगर विश्वविद्यालय ने संस्कृत का तीन वर्षीय कोर्स लॉन्च किया तो उसमें गीता और महाभारत को भी शामिल किया जा सकता है।
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प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार का कहना है कि बंटवारे के बाद पाकिस्तान में संस्कृत पढ़ाने वाला कोई नहीं बचा था। इसके अधिकांश जानकार भारत जा चुके थे। मगर पंजाब विश्वविद्यालय के अभिलेखागार में संस्कृत का विशाल साहित्य अब भी है। इस वजह से नए डीन ने संस्कृत पढ़ाने का निर्णय लिया। विश्वविद्यालय में मौजूद इतने बड़े संस्कृत साहित्य को अभी तक कोई इस्तेमाल नहीं कर सका है। इसमें क्या है, इसकी भी जानकारी नहीं मिल सकी है। अब संस्कृत के छात्रों की मदद से इन प्राचीन साहित्य के बारे में जानकारी मिल सकती है।
