अरावली की पहाड़ियों को लेकर कई दिनों से सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पर बवाल चल रहा है। दावा किया जा रहा है कि अरावली को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया है, जिससे इसकी 90 फीसदी पहाड़ियों पर अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो अपने X अकाउंट पर 'अरावली बचाओ' के मैसेज के साथ तस्वीर भी लगा ली है। सोशल मीडिया पर भी 'सेव अरावली' ट्रेंड कर रहा है और लोग इसे बचाने के लिए कैंपेन चला रहे हैं।
अरावली को लेकर हाल ही में जो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, उसे लेकर दिल्ली से लेकर हरियाणा और राजस्थान में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। शनिवार को गुरुग्राम में कई पर्यावरण एक्टिविस्ट और उदयपुर में वकीलों ने विरोध प्रदर्शन किया।
गुरुग्राम में पर्यावरण एक्टिविस्ट ने केंद्रीय मंत्री राव नरबीर सिंह के घर के बाहर प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने 'सेव अरावली, सेव फ्यूचर' और 'नो अरावली, नो लाइफ' लिखे प्लेकार्ड भी दिखाए।
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'अरावली को प्रोटेक्टेड एरिया घोषित किया जाए'
गुरुग्राम में प्रदर्शन कर रहे एक प्रदर्शनकारी ने कहा, 'यह फैसला खनन और व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा देगा, जिससे अरावली की प्राकृतिक सुंदरता खत्म हो जाएगी। हमारा मानना है कि यह फैसला इसके इकोलॉजिकल बैलेंस के लिए खतरनाक हो सकता है।'
प्रदर्शन कर रहे एक्टिविस्ट का कहन है कि अरावली रेंज दिल्ली-एनसीआर के लिए एक नैचुरल शील्ड की तरह काम करती है और प्रदूषण और पानी के संकट को रोकने में अहम भूमिका निभाती है।
उन्होंने मांग की कि सरकार अरावली को पूरी तरह से प्रोटेक्टेड एरिया घोषित करे और इसके संरक्षण के लिए एक सख्त और स्पष्ट नीति लाए।
एक प्रदर्शनकारी संजिति ने कहा, 'विकास ने नाम पर प्रकृति से समझौता नहीं किया जा सकता, क्योंकि अरावली का संरक्षण आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा है। हवा में जहर धीरे-धीरे फैल रहा है।'
इसी तरह उदयपुर में भी बड़ी संख्या में वकील सड़कों पर उतरे और विरोध प्रदर्शन किया। वकीलों ने कहा कि राजस्थान और उदयपुर का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा, जब अरावली को संरक्षित किया जाएगा। एक वकील मनीष शर्मा ने कहा, 'सरकार को अरावली के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए तुरंत और ठोस कदम उठाने चाहिए।'
वकीलों ने उदयपुर कोर्ट कॉम्प्लेक्स से जिला कलेक्ट्रेट तक मार्च किया। उन्होंने राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए एक ज्ञापन भी सौंपा।
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इस पर बवाल क्यों मचा है?
पर्यावरण मंत्रालय ने अरावली पहाड़ी और रेंज की नई परिभाषा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे 20 नवंबर को मंजूरी दे दी। अरावली रेंज दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में 692 किलोमीटर तक फैली है।
नई परिभाषा कहती है कि जिन पहाड़ियों की ऊंचाई 100 मीटर या उससे ज्यादा होगी, उसे ही अरावली पहाड़ियां माना जाएगा। इसी तरह दो या उससे ज्यादा ऐसी पहाड़ियां जो 500 मीटर के दायरे में होंगी, वह अरावली रेंज में आएंगी।
राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत का कहना है कि अरावली रेंज सिर्फ पहाड़ियां नहीं हैं, बल्कि यह एक 'सुरक्षा कवच' है। उनका कहना है कि अरावली को '100 मीटर' की ऊंचाई तक सीमित करना, बाकी 90% पहाड़ियों के लिए 'मौत का फरमान' जैसा है।
अरावली रेंज की सिर्फ 8 से 10% पहाड़ियां ही 100 मीटर या इससे ज्यादा ऊंची हैं। अशोक गहलोत का कहना है कि राजस्थान में 90% अरावली पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंची हैं। उन्होंने कहा, 'इन्हें परिभाषा से बाहर करने का मतलब इनका कानूनी सुरक्षा कवच हटाना है। इसका सीधा मतलब है कि इन इलाकों में वन संरक्षण कानून लागू नहीं होगा, जिससे बिना रोक-टोक के माइनिंग की जा सकेगी।'
उनका कहना है कि अरावली एक दीवार है जो थार रेगिस्तना को फैलने से रोकती है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि 10 से 30 मीटर की छोटी पहाड़ियां भी धूल भरी आंधियां रोकने में उतनी ही असरदार होती हैं। उन्होंने कहा, 'इन छोटी पहाड़ियों को माइनिंग के लिए खोलना, दिल्ली और पूर्वी राजस्थान में रेगिस्तान को बुलावा देने जैसा है।'
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अरावली को काटा जाता है तो इससे थार रेगिस्तान से धूल भरी आधियां दिल्ली-एनसीआर तक पहुंच जाएंगी। इतना ही नहीं, गरम हवाएं भी आएंगी जिससे दिल्ली-एनसीआर में गर्मी खूब बढ़ जाएगी।
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क्या अब तक अरावली सुरक्षित थी?
2 अरब साल पुरानी अरावली की पहाड़ियां 4 राज्यों में कई जिलों तक फैली हैं। राजस्थान के 19, हरियाणा के 7, गुजरात के 4 और दिल्ली तक फैली हैं।
अब तक अरावली की कोई एक परिभाषा नहीं थी और हर राज्य अपने-अपने हिसाब से नियम बनाते थे। इसे लेकर विवाद भी होता था। अब एक ही परिभाषा होगी। इस पर ही सारा बवाल हो रहा है।
माना जा रहा है कि परिभाषा बदलने से अब अरावली में बड़े पैमाने पर माइनिंग करने की इजाजत मिल जाएगी। हालांकि, अरावली में पहले से ही बड़े पैमाने पर माइनिंग हो रही है।
मई 2025 में पीपुल्स फॉर अरावली कलेक्टिव ने पर्यावरण मंत्रालय और हरियाणा सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें कहा गया था कि हरियाणा में 7 में से 2 जिलों- चरखी दादरी और भिवानी जिलों में लाइसेंस वाली माइनिंग एक्टिविटीज ने ज्यादा इकोलॉजिकल विरासत को खत्म कर दिया है। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम, नूंह और फरीदाबाद में अरावली में माइनिंग पर रोक लगा दी थी लेकिन इसके बावजूद यहां खनन होता रहा। अवैध खनन अभी भी बेखौफ चल रहा है। महेंद्रगढ़ जिले में भी खनन ने भारी तबाही मचाई है।
पिछले कुछ दशकों में पूरी अरावली रेंज में पहाड़ियों का विनाश इतने बड़े पैमाने पर हुआ है कि अरावली में 12 से ज्यादा बड़ी दरारें पड़ गई हैं, जो राजस्थान में अजमेर से झुंझनू और हरियाणा के महेंद्रगढ़ तक फैली हुई हैं। इन दरारों से थार रेगिस्तान की धूल दिल्ली-एनसीआर में उड़कर आ रही है, जिससे यहां प्रदूषण की समस्या और बढ़ रही है।
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अवैध खनन पहुंचा रहा नुकसान
अरावली में कई दशकों से खनन हो रहा है। लाइसेंस लेकर तो खनन हो ही रहा है। साथ ही साथ अवैध खनन भी बड़े पैमाने पर हो रहा है।
2018 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 1967 से लेकर 50 साल में अवैध खनन से अरावली को बहुत नुकसान पहुंचा है। राजस्थान के अलवर जिले में आने वाली अरावली की 128 में से 31 पहाड़ियां अवैध खनन के कारण पूरी तरह खत्म हो चुकी हैं। इन पहाड़ियों में 10 से 12 बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई है।
कमेटी ने रिपोर्ट में यह भी कहा था कि राजस्थान के कम से कम 15 जिलों में अवैध खनन खूब हो रहा है, जिसमें अलवर और सीकर सबसे ज्यादा प्रभावित जिले हैं। इतना ही नहीं, 50 सालों में राजस्थान में अरावली की 25 फीसदी पहाड़ियां बर्बाद हो चुकी हैं।
इसी तरह हरियाणा में भी अवैध खनन के कारण अरावली पहाड़ियों को नुकसान पहुंच रहा है। जंगल के जंगल काट दिए जा रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा में फॉरेस्ट कवर सिर्फ 3.6% है, जो देश में सबसे कम है।
'100 मीटर' वाली परिभाषा के दायरे में राजस्थान की सिर्फ 10 फीसदी पहाड़ियां ही आती हैं। हरियाणा और दिल्ली में तो एक भी पहाड़ी इस दायरे में नहीं आती।
2022 में CAG ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राजस्थान में माइनिंग के लिए दिए गए 80 फीसदी लाइसेंस की जांच की जानी चाहिए। जबकि, गुजरात के 10 फीसदी, हरियाणा के 7 फीसदी और दिल्ली के 3 फीसदी लाइसेंस की जांच होनी चाहिए।
इतना अवैध खनन और कटाई के बावजूद अरावली की पहाड़ियां अभी भी नैचुरल शील्ड बनी हुई हैं। अरावली के जंगल गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में बारिश बढ़ाते हैं और सूखे को रोकते हैं। ग्राउंडवाटर लेवल को बनाकर रखती हैं। तापमान को कंट्रोल करके रखती हैं।
अगर अरावली की नई परिभाषा के हिसाब से खनन और कटाई की इजाजत दे दी जाती है तो इससे पर्यावरण पर बुरा ही नहीं, बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
