भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल की जंग नहीं छिड़ी थी। जंग होने के आसार भी नहीं थे। चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से घिरे भारत को जरूरत महसूस हुई कि एक मिसाइल सेना के पास ऐसी भी होनी चाहिए, जिसे कहीं से भी दागा जा सके, जिसके लिए सरहद की दीवारों को पार करना, कुछ नैनो सेकेंड्स का खेल हो। साल 1998 में भारत इस दिशा में आगे भी बढ़ गया। भारत की नई राह से पहले की कहानी, 80 के दशक में कुछ ऐसे चेहरों ने लिखी थी, जिन्हें लोग आज भी बेहद सम्मान से याद करते हैं।

साल 1983 में भारत के सुरक्षा तंत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई। भारत की बढ़ती सैन्य जरूरतों के मद्देनजर देश गाइडेड मिसाइल डेवलेपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) पर आगे बढ़ा। प्रोजेक्ट का मकसद मिसाइल क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना था। भारत को जरूरत ऐसे मिसाइल की थी, जिसके कहीं से भी दागा जा सके। तीनों सेनाएं जिसका इस्तेमाल कर सकें। यह वही दौर था, जब खाड़ी के देशों ने खुद को युद्ध में झोक लिया था, क्रूज मिसाइल सिस्टम की ओर दुनिया तेजी से बढ़ने लगी थी। 

कैसे भारत ने हासिल किया ब्रह्मोस?
भारत भी नए दौर के हथियार चाहता था। भारत ने अपने पुराने दोस्त रूस पर भरोसा किया। रूस जाकर मिसाइल को भारत में बनाने की रणनीति तैयार होने लगी। इस रणनीति की अगुवाई कर रहे थे डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) के चीफ डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम। 1980 के दशक में उन्होंने जिस इटिग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलेपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) की शुरुआत की थी, अब उसे साकार करने का वक्त आ गया था। 

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क्यों भारत ने इस मिसाइल के बारे में सोचा?
साल 1991 में खाड़ी के देशों की जंग में टॉमहॉक मिसाइलों का भरपूर इस्तेमाल हुआ। ये अमेरिकन मिसाइलें सफल रहीं। अमेरिका ने इन पर खूब भरोसा जताया। भारत की सीमाई जरूरतों को देखते हुए इससे भी घातक मिसाइल तैयार करने के लिए तब वैज्ञानिकों ने मन बनाया। करगिल वॉर से ठीक एक साल पहले 1998 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने रूस के साथ इंटर-गवर्नमेंटल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए। यहीं नींव पड़ी 'ब्रह्मोस एयरोस्पेस' की।

ब्रह्मोस मिसाइल। (Photo Credit: PTI)

नदियों से क्या है ब्रह्मोस का रिश्ता?
यह मिसाइल DRD और रूस की NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया की संयुक्त पहल थी। इस मिसाइल का नाम भारत की विशाल ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मॉस्कवा नदी के नाम पर रखा गया। दो नदियों के संयुक्त नामों के नाम पर इस मिसाइल का नाम पड़ा, जिसकी वजह से एशिया में भारत का सैन्य तंत्र बेहद मजबूत हुआ।  

डील कब हुई?
यह समझौता 12 फरवरी 1998 को मास्को हुआ था। इस समझौते पर भारत की ओर से तत्कालीन DRDO प्रमुख डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और रूस की ओर से अलेक्जेंडर नाज़ारकिन ने हस्ताक्षर किए। तब अलेक्जेंडर  NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया के प्रतिनिधि थे। इस तरह से ब्रह्मोस एयरोस्पेस संयुक्त उद्यम की स्थापना हुई। इस प्रोजेक्ट में भारत की 50.5% और रूस की 49.5% हिस्सेदारी थी। यह वही वक्त था, जब भारत 3 मई से लेकर 26 जुलाई 1999 तक पाकिस्तान के साथ सीमा पर जंग लड़ रहा था। बीच जंग में 9 जुलाई 1999 को दोनों देशों के बीच औपचारिक अनुबंध पर हस्ताक्षर हुए।   

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भारत की रूस ने मदद क्यों की?
भारत किसी भी धुरी के साथ नहीं था। भारत वैश्विक गुटबंदी का हिस्सा नहीं था। भारत को मिसाइल तकनीक देने में रूस को खतरा नहीं लगा। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकारों की आपसी सहमति ने डीन को आसान किया। साल 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण पोखरण-II के बाद भी रूस ने भारत का साथ दिया।

ब्रह्मोस मिसाइल। (Photo Credit: PTI)



एक नजर ब्रह्मोस पर
ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। इसे जल, थल, नभ कहीं से भी फायर किया जा सकता है। यह सटीक निशाने को भेदती है। इसे डिटेक्ट करना इतना मुश्किल है कि दुश्मन जब तक रडार पर इस देख पाए, यह अपना निशाना भेद चुकी होती है। यह मिसाइल रूस की P-800 ओनिक्स तकनीक पर आधारित है। इसका पहला सफल परीक्षण भारत में 12 जून 2001 को हुआ था। 

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यह एक गाइडेड मिसाइल है। भारत ने इसकी उड़ान प्रणाली, नेविगेशन और टारगेट से जुड़े तरीकों को तैयार किया, वहीं रूस ने देश को प्रक्षेपण तकनीक दी। इस मिसाइल को जमीन, समुद्र, हवा और पनडुब्बी से लॉन्च करने की क्षमता के साथ डिजाइन किया गया है।  2007 में इसे भारतीय सेना और नौसेना में शामिल किया गया। वायुसेना के लिए भी इसे विकसित किया गया।

ब्रह्मोस मिसाइल। (Photo Credit: PTI)



साल 2016 में भारत के मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) में भी इसे शामिल किया गया। तब इसकी रेंज 290 किमी थी, इसे बढ़ाकर 450-800 किलोमीटर किया गया। ब्रह्मोस अब भारत की रक्षा शक्ति का अहम हिस्सा है। भारत कई देशों को इसे बेचता भी है।

और घातक बन रहा है ब्रह्मोस
एयरोस्पेस इंजीनियर अभिषेक राय बताते हैं, 'ब्रह्मोस-II में 21 जनवरी 2025 को स्क्रैमजेट इंजन का सफल परीक्षण किया गया था। यह इंजन मिसाइलों में लगता है। इसकी रफ्तार पहले से ही बहुत तेज है, स्क्रैमजेट इंजन लगने के बाद यह बेहद मारक हो जाएगी। यह आवाज की रफ्तार से 8 गुना ज्यादा तेजी से टारगेट हिट कर सकती है। ब्रह्मोस एनजी तो सबसे घातक साबित होगा। 1260 किलोग्राम वजन और 300 किलोमीटर रेंज वाले इस मिसाइल को फाइटर जेट के लिए तैयार किया जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि अभी एक ब्रह्मोस्त्र के साथ लड़ाकू विमान उड़ते हैं, एनजी की वजह से 5-5 एकसाथ आ सकेंगे।'



भारत में ब्रह्मोस की कितनी किस्म, ताकत क्या है, पाकिस्तान के किन शहरों तक पहुंच?

  • ब्रह्मोस ब्लॉक-I  
    ताकत: 200–300 किग्रा वॉरहेड, स्टील्थ, फायर-एंड-फॉरगेट।  
    रेंज: 290 किमी तक। पंजाब से लाहौर, सियालकोट, गुजरांवाला, फैसलाबाद तक पहुंच सकती है।
     
  • ब्रह्मोस ब्लॉक-II  
    ताकत: हवा से 3 गुनी ज्यादा रफ्तार, भीषण तबाही मचाने की क्षमता  
    रेंज: 290–400 किमी। रावलपिंडी, मुल्तान, मियां चन्नू जैसे शहर जद में आ सकते हैं।
     
  • ब्रह्मोस ब्लॉक-III  
    ताकत: पहाड़ी युद्ध, सुपरसोनिक डाइव, 200–300 किग्रा वजन, बड़ी तबाही मचाने की क्षमता।
    रेंज: 400–600 किमी। कराची, पेशावर और क्वेटा जैसे शहरों को निशाना बनाया जा सकता है। 

  • ब्रह्मोस एक्सटेंडेड रेंज (ER)  
    ताकत: आवाज की ताकत से 3 गुना ज्यादा मारक क्षमता।
    रेंज: 450–800 किमी। नूर खान, रफीकी, स्कर्दू और ग्वादर जैसे शहर तबाह हो सकते हैं।

  • ब्रह्मोस-एनजी  
    ताकत: 1.5 टन, तेजस-राफेल जैसे विमानों में फिट होने की क्षमता।
    रेंज: 290–400 किमी। जद में पूरा पाकिस्तान। साल 2027 तक तैयार हो सकती है।
  • ब्रह्मोस-II
    ताकत: मैक 6–7, स्क्रैमजेट, हाइपरसोनिक। तकनीक पर काम जारी।
    रेंज: 1000 किमी तक हो सकती है। पूरे पाकिस्तान को कवर किया जा सकता है। साल 2028 तक पहली खेप मिल सकती है।

    ब्रह्मोस मिसाइल। (Photo Credit: PTI)
     भारत के किन शहरों में है ब्रह्मोस की यूनिट?
  • हैदराबाद
  • नागपुर
  • बिलानी
  • लखनऊ
  • थिरुवनंतपुरम
  • अमरावती (प्रस्तावित)

    भारत के ब्रह्मोस पर किन देशों की हैं नजरें?
  • फिलीपींस: 2022 में $375 मिलियन की डील।  
  • वियतनाम: $700 मिलियन के सौदे पर चर्चा अंतिम चरण में है।
  • इंडोनेशिया: $450 मिलियन के सौदे पर बातचीत चल रही है।   

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ब्रह्मोस मिसाइल। (Photo Credit: PTI)

एक ब्रह्मोस मिसाइल की कीमत क्या है?
एक ब्रह्मोस मिसाइल की अनुमानित कीमत लगभग 34 करोड़ रुपये है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया गया है कि इसकी कीमत 500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो सकती है। रक्षा मंत्रालय की ओर से इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है।