वक्फ (संशोधन) विधयेक 2025 अब कानून बन गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को विधेयक पर हस्ताक्षर किया, अब यह कानून बन गया है। विपक्ष इस विधेयक को असंवैधानिक बता रहा है। सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) जैसी पार्टियों की ओर से याचिकाएं दाखिल की गई हैं। ज्यादातर याचिकाओं में कहा गया है कि यह विधेयक असंवैधानिक है, मूल अधिकारों का उल्लंघन है। 

लोकसभा और राज्यसभा में विधेयक पर 12 घंटे से ज्यादा चर्चा के बाद यह विधेयक पास हुआ था। विधेयक पर विपक्ष ने ऐतराज जताया था। विपक्षी सांसदों का कहना था कि यह अल्पंसख्यकों को नीचा दिखाने वाला विधेयक है। मुसलमानों की धार्मिक आस्था पर प्रहार है। वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि यह विधेयक संसद में सभी संवैधानिक प्रक्रियाओं के पालन के बाद आया है। विधेयक पर संसदीय समिति ने विचार किया है, जिसके बाद इसे मंजूरी दी मिली है। 

वक्फ पर बनी संसदीय समिति के अध्यक्ष रहे जगदंबिका पाल ने शनिवार को कहा, 'यह देश का कानून है, पूरे देश में लागू होगा। राजनीतिक पार्टियों में प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है कि ज्यादा से ज्यादा सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की जाएं, यह बहुमत से संसद में पारित कानून है। लोकसभा और राज्यसभा ने इस पर घंटों की चर्चा के बाद पास किया है।'

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अब तक कितनी याचिकाएं दायर हुई हैं?
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ पर अलग-अलग राजनीतिक दलों और व्यक्तियों की ओर से कुल 12 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने पहली याचिका दायर की थी, असदुद्दीन ओवैसी ने दूसरी याचिका दायर की। इमरान प्रतापगढ़ी ने भी एक याचिका दायर की है। एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, अमानतुल्लाह खान, मौलाना अरशद मदनी, समस्थ केरल जमीयतुल उलेमा, तैय्यब खान समलानी, अंजुम कादरी, AIMPLB, SDPI, IUML, DMK और राष्ट्रीय जनता दल ने भी याचिकाएं दायर की हैं।



किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं पार्टियां?
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संशोधन भेदभावपूर्ण है। संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है। यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को ताक पर रख गया है, धार्मिक मामलों में छेड़छाड़ की गई है। यह समता के सिद्धांत के भी खिलाफ है।  केंद्र सरकार का कहना है कि विपक्ष मुस्लिमों को गुमराह कर रहा है, जबकि इस कानून से गरीब मुसलमानों और महिलाओं का भला होगा। 



कब संसद से रद्द हो सकता है कानून?
सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक मामलों के जानकार वकील विशाल अरुण मिश्र ने कहा, 'संसद से पारित कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख तब किया जा सकता है, जब कोई कानून संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता हो। अनुच्छेद 32 और 136 तहत, सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जा सकता है। ये अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को मूल अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में सीधे हस्तक्षेप करने और विशेष अपील सुनने की शक्ति देते हैं।'

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विशाल अरुण मिश्रा ने कहा, 'संसद के कानून अगर अनुच्छेद 13 के तहत संविधान के मूल ढांचे या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं तो ऐसे कानूनों को शून्य समझा जाता है। सुप्रीम कोर्ट की भूमिका, संविधान के संरक्षक की होती है। सुप्रीम कोर्ट यह तय कर सकता है कि कोई कानून, संविधान का उल्लंघन कर रहा है या नहीं कर रहा है।'



एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड विशाल अरुण मिश्रा ने कहा, 'केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) केस में सुप्रीम कोर्ट ने 'संविधान की मूल संरचना' का सिद्धांत दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति है लेकिन संविधान की मूल संरचना को नहीं बदला जा सकता है। जैसे धर्मनिरपेक्षता, न्यायिक स्वतंत्रता को खत्म करने जैसे बदलाव नहीं किए जा सकते हैं।'

सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता रुपाली पंवार ने कहा, 'जब भी कोई कानून संविधान की सीमा का उल्लंघन करता है, सुप्रीम कोर्ट उसकी न्यायिक समीक्षा कर सकता है और उसे रद्द करने या संशोधित करने का आदेश दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट के पास न्यायिक समीक्षा का अधिकार होता है।'



किस आधार पर रद्द हो सकता है वक्फ संशोधन कानून?
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अंजन दत्ता ने कहा, 'अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि कोई कानून संविधान के भाग 3, मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है तो सुप्रीम कोर्ट उस कानून को असंवैधानिक घोषित करके रद्द कर सकता है। पहले भी संसद की ओर से पारित कई कानून रद्द हुए हैं। अनुच्छेद 13 साफ कहता है कि अगर कोई कानून मौलिक अधिकारों के साथ असंगत हो तो वह शून्य होगा।' 

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अगर रद्द हों तो किस आधार पर रद्द होगा?
- अगर याचिकार्ता यह साबित कर दे कि अनुच्छेद 14 में वर्णित विधि के समक्ष समता के अधिकार का यह कानून उल्लंघन करता है।
- अगर याचिकाकर्ता यह साबित कर दे कि धार्मिक आधार पर यह कानून भेदभाव कर रहा हो, अनुच्छेद 15 का उल्लंघन हो रहा हो
- अगर याचिकाकर्ता साबित कर दे कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 30  तक में वर्णित धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता हो।



कब-कब रद्द हुए हैं संसद के कानून?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विशाल अरुण मिश्रा ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन अधिनियम को रद्द कर दिया था। साल 2018 में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में समलैंगिकता को अपराध मानने वाले हिस्से को असंवैधानिक घोषित किया था। बैंक नेशनलाइजेशन लॉ के कुछ हिस्सों को हटा दिया था। 70 के दशक में बैंकों के राष्ट्रीय करण से जुड़े कुछ कानूनों को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया था। सुप्रीम कोर्ट की भूमिका संविधान के संरक्षक है। सुप्रीम कोर्ट कानून नहीं बनाता है लेकिन कानूनों के संवैधानिक होने या न होने की व्याख्या जरूर करता है। अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि संविधान के मूल अधिकारों का हनन वक्फ संशोधन अधिनियम कर रहा है तो इसे रद्द किया जा सकता है।'