आज मौसम बड़ा बेईमान है... यह गाना 70 के दशक में आई फिल्म 'लोफर' का है। जब यह फिल्म आई थी, तब तो मौसम इतना बेईमान था भी नहीं, जितना इस गाने में बताया गया था। असल माइने में मौसम तो अब 'बेईमान' हो रहा है। इसे मौसम की बेईमानी ही कहा जाएगा कि अब जबरदस्त गर्मी पड़ रही है, सर्दियां तो सिकुड़कर अब कुछ ही वक्त के लिए रह गई हैं और बारिश भी या तो हो नहीं रही है या फिर इतनी हो रही है कि बाढ़ आ जा रही है। इस सबका कारण है 'जलवायु परिवर्तन' या 'क्लाइमेट चेंज'।


कुछ दशकों में मौसम इतनी तेजी से बदला है कि इसका सीधा असर हम पर पड़ा है। शायद यही कारण है कि गर्मी अब समय से पहले ही सताने लगी है। सर्दियों का अच्छी तरह से लुत्फ भी नहीं उठा पाते और गर्मी लगने लगती है। बारिश भी अब राहत से ज्यादा आफत लेकर आती है। मगर इस सबसे सवाल उठता है कि क्या वाकई मौसम का पैटर्न बदल रहा है?

 

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क्या वाकई बदल रहा है मौसम का पैटर्न?

तप रही है धरती

हां। मौसम का पैटर्न बदल रहा है, जिस कारण गर्मी बढ़ रही है। मौसम विभाग की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में भारत में पृथ्वी की सतह का औसत तापमान सामान्य से 0.65 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया। मौसम विभाग 1901 से मौसम का रिकॉर्ड रख रहा है और 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रहा है।


सर्दियों तक में तापमान सामान्य से ज्यादा दर्ज किया जा रहा है। पिछले साल जनवरी-फरवरी में औसत तापमान 0.37 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया था। मार्च से मई के बीच 0.56 डिग्री, जून से सितंबर के बीच 0.71 डिग्री और अक्टूबर से दिसंबर से 0.83 डिग्री सेल्सियस तापमान ज्यादा दर्ज हुआ था। यह दिखाता है कि भारत में तापमान कितनी तेजी से बढ़ रहा है। 

 

 

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बारिशः राहत या आफत?

तापमान बढ़ने का एक बड़ा कारण मॉनसून का बदलता पैटर्न और कम होती सर्दियां हैं। भारत में मॉनसून का सीजन जून से सितंबर तक होता है। इसे साउथवेस्ट मॉनसून कहा जाता है। मौसम विभाग के मुताबिक, पिछले साल सामान्य से ज्यादा ही बारिश दर्ज की गई थी। पिछले साल मॉनसून सीजन में 934.8 मिमी बारिश हुई थी, जो सामान्य 868.6 मिमी से ज्यादा थी। 


हालांकि, कई स्टडीज से पता चलता है कि बारिश हो तो रही है लेकिन कम ही दिन में बहुत ज्यादा। इस कारण कहीं बाढ़ के हालात आ जाते हैं तो कहीं पर सूखा आ जाता है। स्टडी से पता चलता है कि पिछली एक सदी में भारत में हर 10 साल में मॉनसूनी बारिश में 0.6 मिमी की कमी आई है। सरकार ने भी संसद में बताया था कि 2007 से 2024 के 18 सालों में मॉनसूनी बारिश में 18 फीसदी की कमी आ गई है। इसे ऐसे भी समझ लीजिए कि 1961 से 2010 के बीच हर साल औसतन 1176.8 मिमी बारिश होती थी, जबकि 1971 से 2020 के बीच 1160.1 मिमी बारिश ही हुई। यही कारण है कि पहले 880.6 मिमी बारिश को सामान्य माना जाता था लेकिन अब 868.6 मिमी बारिश को सामान्य माना जाता है।

सर्द भरे दिन बीते!

इसी तरह सर्दियां भी अब सिकुड़ रही हैं। भारत में सर्दियों का मौसम अक्टूबर से फरवरी तक माना जाता है लेकिन इस दौरान भी तापमान औसत से ज्यादा दर्ज किया जा रहा है। पिछले साल ही अक्टूबर से दिसंबर तक 0.83 डिग्री और जनवरी से फरवरी के बीच 0.37 डिग्री सेल्सियस तापमान ज्यादा दर्ज किया गया था। 


इतना ही नहीं, अब कोल्ड वेव के दिनों की संख्या भी कम हो रही है। 2022 में कोल्ड वेव के 57 दिन दर्ज किए गए थे जिनकी संख्या 2023 में घटकर 33 दिन हो गई। 

 

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क्या सिर्फ ऐसा भारत में ही हो रहा?

नहीं। दुनियाभर में ऐसा हो रहा है। क्लाइमेट चेंज के कारण पृथ्वी तप रही है। यूरोपियन कॉपरनिकस क्लाइमेट सर्विस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 से 2024 के बीच औसत तापमान 1.28 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया है। 


इसकी रिपोर्ट बताती है कि 80 के दशक के बाद हर नया दशक पिछले दशक की तुलना में ज्यादा गर्म रहा। औद्योगिक काल के बाद 2024 ऐसा साल रहा है, जब पृथ्वी की सतह का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा बढ़ा। यही कारण है कि 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रहा है।


1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने का मतलब यह है कि इससे समुद्र का स्तर 0.1 मीटर तक बढ़ सकता है, जिससे करीब 1 करोड़ लोगों पर बाढ़ का खतरा मंडरा सकता है। इतना ही नहीं, बढ़ता तापमान 2050 तक करोड़ों लोगों को गरीबी में धकेल सकता है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) का अनुमान है कि अभी भी करीब 4 अरब लोग ऐसे हैं, जिन पर क्लाइमेट चेंज का खतरा है।

 

इसका असर क्या हो रहा है?

भारत में जैसे-जैसे मौसम का पैटर्न बदल रहा है, वैसे-वैसे तापमान भी बढ़ रहा है। बदलते पैटर्न के कारण मौसम की मार भी बढ़ती जा रही है। इसे 'एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स' कहा जाता है।


मौसम विभाग के मुताबिक, पिछले साल मौसम की मार के कारण देश भर में 2,400 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई थीं। हालांकि, पर्यावरण पर काम करने वाले प्राइवेट थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्मेंट (CSE) की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में 3,238 लोगों की जान गई थी। यह संख्या 2018 की तुलना में 22 फीसदी ज्यादा है।


वहीं, हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि देश के 85 फीसदी जिले ऐसे हैं, जहां बाढ़, सूखा, तूफान या हीटवेव का खतरा बना रहता है। इतना ही नहीं, बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और असम के कम से कम 60 फीसदी जिले ऐसे हैं, जहां मौसम की मार बनी रहती है।


इसके अलावा, यह क्लाइमेट चेंज का ही असर है कि भारत में अब हीटवेव के दिनों की संख्या बढ़ती जा रही है। पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2023 की तुलना में 2024 में हीटवेव वाले दिनों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई थी। 2023 में 230 दिन हीटवेव चली थी। वहीं, 2024 में 554 दिन हीटवेव चली थी। यहां साफ कर दें कि अलग-अलग शहरों में अलग-अलग दिनों में चलनी वाली हीटवेव से यह आंकड़ा लिया जाता है। इसलिए 554 दिन का आंकड़ा लिया गया है।